Chirag Jain

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बचपन

विधा – दोहे
विषय – बचपन
रचना –

ना  ही  कोई  द्वंद  था,  ना  कोई  छल छंद,
हर्षित करता आज भी, बचपन का आनंद।।१।।

तुतलाती  आवाज  थी,  उल्टे  सीधे  काज,
अविस्मरणीय हैं सदा, बचपन का अंदाज।।२।।

कई यंत्रणाएँ भरी, मगज नहीं अब शांत,
याद सभी को आ रहे, बचपन के दृष्टांत।।३।।

एक ग़ज़ब की बात हैं, बाल्यकाल वह काल,
प्रत्येक माँ को सुत में, दिखता हैं गोपाल।।४।।

प्रौढ़ावस्था साँझ तो, बचपन, दिन की भोर,
नित्य भोर की रश्मियाँ, करती भाव विभोर।।५।।

"स्वरचित मौलिक रचना"
चिराग जैन
कार्य – विद्यार्थी
नीमच(मध्यप्रदेश)

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