बचपन
एक दौर था बचपन का,
जब हम मिट्टी के खिलौने,
से खेला करते थे।
एक दौर था बचपन का,
जब हम मां के हाथो से,
खाना खाया करते थे।
एक दौर था बचपन का,
जब हम पिता के कंधो,
पर खेला करते थे।
एक दौर था बचपन का,
जब हम मां के सहारे के बिना,
एक कदम भी चल नहीं पाते थे।
एक दौर था बचपन का,
जब हमें बिना कहे सब ,
मिल जाता था।
एक दौर था बचपन का,
जब घर से दूर जाने को सुन,
खुश हो उठते थे।
अब एक नया दौर आया है,
जिसने किया सबको पराया है।
कौन अपना कौन पराया ,
यह हमें वक्त ने सिखाया है।
अब कदर नहीं होती उनकी ,
जिन्होंने हमें दुनिया में लाया है।
इसलिए तो हमने कहा ,
अब एक नया दौर आया है।
जिसने बचपन को चुराया है।
Shaba
09-Apr-2021 04:33 PM
भावपूर्ण पंक्तियां
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RICHA SHARMA
09-Apr-2021 03:49 PM
बहुत अच्छी कविता लिखी आपने
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