मंजुला दुर्भाग्य या सौभाग्य भाग(10)
सुबह उठते ही मंजुला उदास थी, माँ के गले लग गयी माँ कह दो आप पापा से मुझे इतनी जल्दी नही जाना वापस।
राजेश्वरी देवी ने उसे समझाया दो चार दिन में आओ फिर बुला लेंगे, अभी सही दिन है, इसलिए कह रहे।
मंजुला कोई परेशानी तो न है तुझे वहाँ ।
मां के पूछने पर मन भर आया फिर दीपक की बात याद आ गयी।
बात को सभाला उसने, नही माँ, ऐसा कुछ नही है आप कहती तो मान
लेती पर, जल्दी बुलाना मुझे माँ ने मुस्कुरा कर उसे गले लगा लिया।
तभी मंजुला की बहन आ गयी , क्या माँ सारा प्यार इसी को दोगी हम यो कुछ है ही नही ।
न मेरी लाड़ो ऐसा न कहना माँ को सब एक बराबर होते हैं, कहकर दोनों बेटियों को गले लगा लिया।
तभी राजीव आवाज लगाता आया माँ कहाँ हो जल्दी करो मेहमान आने ही बाले हैं।
हांआ रही अभी ।
तभी मंजुला भी दीदी के साथ काम निपटाने लगी , दीदी उसको बहुत सी बातें समझा रही थी घर गृहस्थी की , वो भी बड़े ध्यान से समझ
रही थी।
आखिर उनके पास 4 साल का सुखी जीवन का अनुभव था।
दीदी ने एक बात बहूत जोर देकर कहीं,
देख मंजुला जब मर्द गुस्सा हो कभी उसके मुहँ न लगना , जब शांत हो तो प्यार से 100 सुना लेना।
उसने हाँ में सर हिला दिया।
तभी माँ ने कहा मंजुला तैयार हो जा , सब आ गए।
मंजुला उदास होकर तैयार होने लगी और खान पान के बाद चल दी अपने जीवन की नयी राह पर ।
ससुराल में पहुँचकर एक तरफ बैठ गयी तभी सभी बच्चों ने उसे घेर लिया और सबने कहा चाची आपके बिना हमे अच्छा नही लग रहा था।
मंजुला हँस दी बच्चों का स्नेह देखकर और बातें करती रही उनसे देर तक खाना भी सबने साथ ही खाया।
अब मंजुला की सास ने सभी को डाँट लगायी चलो सब सोना नही क्या , 10 बज गए कल करना बातें चाची कौन सी भागी जा रही यहीं रहना उसे अब , सभी बच्चों को मंजुला की सास ले गयीं, तुम भी आराम करो बहु कहकर चली गयीं।
उसे ससुराल में आए 5 घन्टे हो गए पर दीपक का कहीं अता पता न था मन में कितने विचार आ रहे थे , तभी किसी के आने की आहट से उसने झट से आँखे बन्द कर लीं मानो सो रही हो।
दीपक आ गया हाथ मे कोई पैकिट था बड़ा सा उसने उसे बहुत सभाल कर रखा था।
और मंजुला को सोता देखकर खुद चुपचाप पास पड़े सोफे पर लेट गया बिना कुछ कहे सुने।
मंजुला को बहुत गुस्सा आया पर वो चुपचाप लेटी रही पता नही कब आँख लग गयी , अचानक किसी आवाज से उसकी नींद टूटी उसने उठकर दीपक को जगाना चाह पर यह क्या दीपक सोफे पर नही था,
अजीब से भय ने घेर लिया उसे आखिर कहां गए, कहीं कोई और तो नही इनके जीवन में माँ बाप ने जबरजस्ती व्याह करा दिया हो, तभी उसकी नजर घड़ी पर पड़ी चार, बज रहे थे , वो फिर लेट गयी अपने भाव विचारों में मग्न तभी थोड़ी देर बाद दीपक ने बहुत आहिस्ता से दरवाजा खोला और अन्दर आकर लेट गया चुपचाप,
वह नही चाहता शायद मंजुला को पता चले।
और मंजुला भी ऐसे लेती मानो गहरी नींद में सो रही हो पर हकीकत में वह बहुत व्याकुल थी ।
थोड़ी देर में दीपक गहरी नींद में दो गया मंजुला ने उठकर उसे बहुत गौर से देखा वो सच मे सो चुका था।
फिर वह उठकर बाहर चली गयी और नित्य कार्य से निपटकर रसोई की तरफ चली तभी सास ने आवाज लगा दी मंजुला अभी नही बेटा, दो चार दिन आराम कर लो फिर पूर्णिमा को जाना रसोई मे।
माँ खाली बैठकर अच्छा नही लगता ,
अरे सारी उम्र अब तो काम घर ही सम्भालना है , फिर न मिलेंगे यह फुर्सत के दिन जा चाय ले जा अपनी जेठानी से दीपक को दे दे तो भी वहीं पी लेना।
मंजुला को साथ का प्यार दुलार बहुत भा गया , पहले उन्हें चाय दी फिर दो कप लेकर छत पर चली यह क्या देखते ही दंग रह गयी दीपक एकदम तैयार पूजा भी कर ली पर कमरे में बहुत धुंआ से था ।
शायद पूजा करते वक्त ज्यादा धूप लगा दी।
उसने चाय का कप दीपक की तरफ बड़ा दिया बिना देखे उसे यानि यही तरीका होता न जताने के जब हम किसी से गुस्सा होते उसे जताने के की हम आपसे गुस्सा है।
दीपक समझ चुका था , फिर आहिस्ता से बोला गुस्सा हो आप।
मंजुला कुछ न बोली अपना कप वहीं रख दिया ।
रात जब मै आया तो आप बहुत गहरी नींद में सो रही थी तो जगाया नही।
उसके इस झूठ पर बहुत गुस्सा आया उसे पर चुप रह गई।
आप चाय नही पी रहीं ।
पी लुंगी आप पी लो, कहकर मुँह फेरकर बैठ गयी दीपक चाय का कप उठाकर उसके पास लाया चलो साथ साथ पीते हैं ।
उसका ऐसा व्यवहार उसे आश्चर्य में डाल देता आखिर क्या है यह इंसान सोचने लगी।
चाय पिओ मंजू , उसने कप हाथ मे लिया और न चाहकर भी पलकों के आसुँ गालो पर ढुलक आए ।
उसकी मन की पीड़ा को दीपक समझ गया और अनदेखा करके दूर बैठ गया।
सुनो मैं कॉलेज जा रहा तुम्हे कुछ चाहिए हो तो बता दो लेता आऊँगा।
उसने इनकार में सिर हिला दिया।
दीपक अपना बैग लेकर बाहर चला गया, तभी मां को कहते सुना अरे न जाएगा एक दो दिन तो क्या पहाड़ टूट जाएगा इसपर इतनी न पढ़ाई हो रही ।
तभी बच्चे आ गए और मंजुला का मन बच्चों में बहल गया ।
सबने खाना खा लिया सास मंजुला मो भी बार बार कह रही तू खा ले उसके इंतजार में मत रह बैठा होगा यार दोस्तों में।
2 बज गया अभी आने का वक्त नही आज आने दो बताती इसे , माँ बराबर बड़ बड़ा रही थी।
तभी दीपक आ गया , माँ देखते ही शुरू हो गयी अरे इतनी जल्दी क्यों आ गया अभी तो बहुत दिन बाकी हैं।
अपना न तो जिसे व्याह कर लाया उसका तो ख्यालकर तेरे लिए भूखी बैठी हैं।
माँ ,,मै खाना साथ तो नही ले गया खा लेती ।
अभी बताती तुझे तभी दीपक माँ से लिपट गया ,
माँ तो माँ पिघल गयी ।
अरे अब तेरा व्याह हो गया यह सब छोड़ मटरगश्ती करना।
माँ मटरगस्ती न कर रहा था कॉलेज में पढ़ रहा था।
हां तो दो चार दिन मत जा उसके साथ रह ले फिर तो वो अपने काम तू अपने ।
माँ की बातपर बड़ी बहू जोर से हँसी माँ आपने हमें नही बोला यह सब।
माँ चिढ़कर बोली तुम्हारा मर्द बाहर ही न निकलता था तो क्या कहते बताओ।
बड़ी बहू शरमाकर रह गयी।
और दीपक जोर से हंसा भाभी माँ सही कह रही क्या???
ए देबर जी चुपचाप खाना खा लो ज्यादा दांत न निकालो ।
दीपक बोला--दोगी तभी तो खाऊंगा या तुम्हारी बातों से पेट भर लूँ।
बड़ी बहू ने दीपक को थाली लगाकर दी वह खाने ही बाला था तभी माँ ने टोक दिया रे बड़ा निर्दयी है तू वो तेरे इंतजार में भूखी है तू अकेले शुरू हो गया, जा ऊपर ले जा थाली मै पानी भेजती हूँ।
माँ में न खा रहा किसी के साथ दूसरी थाली लगा दो भाभी ।
तभी माँ हँस दी सुमित्रा लगा दे दूसरी थाली ।
तभी दीपक दोनों थाली लेकर कमरे में गया ।
उसे देखकर मंजुला ने अन देखा कर दिया।
अरे गुस्सा बाद में करना पहले यह थाली पकड़ो जल्दी से,
मंजुला तो मंजुला थी मैं क्यों पकड़ू ।
अरे ! "एक तुम्हारी है इसमें"
"जल्दी आओ,
वहाँ रख दो,,
दीपक ने थाली मेजपर रख दी रचना पानी और मिठाई ले आई।
रचना जब चली गयी दीपक मंजुला से बोला- चलो भूख लग रही होगी खाना खा लो।
नही , मुझे भूख नही लगती है।
मैं इंसान नही हूँ कोई एहसास नही होता मुझे किसी बात का।
Sorry, मंजू वो मैं भूल गया कल से ऐसा न होगा चलो अब मुझे बहुत जोर से भूख लग रही ,वैसे भी 3 बज गए हैं।
मंजुला ने उसकी बात मान ली दोनों ने साथ खाना खाया मंजुला बर्तन समेटकर ले गयी वापस लौटी तो दीपक बैड पर सो चुका था।
मंजुला को उसका बच्चों जैसा मासूम चेहरा बहुत प्यारा लग रहा था।
तभी वो बाहर चली गयी ननद जेठानी बच्चों में लग गयी 5 बजे चाय लेकर दीपक को देने आयी पर वो अभी तक सो रहा था।
तभी उसने अपनीचूड़ी बहुत जोर से उसके कान के पास खनका दी दीपक अनमना स उठा सोने दो ,
अरे रात को सो लेना अभी चाय पी लो ।
नयी आवाज से चौक कर देखा तब होश आया अब कोई और भी हैं उसकी जिन्दगी में।
और चाय का प्याला थाम लिया।अरे! 5 बज गए , झट से चाय खत्म कर तैयार हो बाहर चला गया जैसे बहुत जल्दी में था।
मंजुला एकटक देखती रह गयी।
फिर कमरे में उसके फैलाए ताम झाम को समेटा।
फिर बाहर जाकर बच्चों में बहल गयी।
आज फिर रात के 10 बजे दीपक आया खाना नीचे ही खा आया था।
मंजुला भी ननद के साथ खा ली थी।
दीपक सोफे पर लेट गया , मंजुला फिर सोने का बहाना कर ली।
रात का 1 बजे मंजुला की आँख खुली दीपक फिर कमरे से गायब था।
मंजुला का मन किया सारे घर को बता दे पर, उसने पहले दीपक से पूछना ही उचित समझा और उसके आने का इंतजार करने लगी ।
उसकी सपनों भरी आँखों मे अब बस आसुँ थे ।
आँसुओ के साथ उसके सपने भी टूटकर गिर रहे थे।
रतन कुमार
16-Nov-2021 01:11 AM
अछि कहानी है
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Seema Priyadarshini sahay
13-Nov-2021 05:03 PM
बहुत बेहतरीन कहानी मैम
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🤫
07-Nov-2021 08:37 PM
बेहतरीन कहानी.... शानदार लेखन...
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