Himani singh

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बचपन

"बचपन में न चिंता थी और न थी फिक,

कैरिअर के बारे मे करता था नहीं कोई ज़िक्र , 
वो तो बचपन का जमाना था,
खुशियों का खजाना था,
बचपन की दोस्ती सच्ची  थी, 
मतलब पता नही था, पर अच्छी थी, 
चाहत चांद को पाने की थी, 
पर दिल तितली का दीवाना था,
खबर न थी कुछ  सुबह की,
न शाम का ठिकाना था, 
वो तो बचपन का जमाना था, 
वो दिन भी काफी सुहाना था, 
मेरा पूरा दिन खेल मे गुजरता था ,
बचपन के दिनों को खुलकर जीती थीं,                                              मा की कहानियां थी, 
परियो का फ़साना था।   

बचपन

बारिश में कागज़ की नाव थी,

हर मौसम सुहाना था,
हर खेल में साथी थे,
हर रिश्ता निभाना था,
गम की जुबान न थी,
न जख्मो का पैमाना था,
रोने की वजह न थी, 
न हसने का बहाना था,
न कुछ पाने की चाहत थी , 
न कुछ खोने का डर था ,
मेरा बचपन मेरी खुशियो का सफर था,
हर वक़्त कुछ नया करने का जुनून था,
खेलते -खेलते दिन बिता देते थे,
यु ही खेलो मे खुद को भुला देते थे,
स्कूल के पहले दिन मुझे क़ाफी डर लगा था,
सुबह उठकर तैयार रहती थी,
स्कूल बस आने की राह देखती थीं,
स्कूल की किताबो में मन नही लगता था,
पढ़ाई करने के लिए रातों को नहीं जगती थीं।

बचपन

अब सारी सारी रात पढ़ने लगती हूं

फिर अचानक बचपन की यादों में खो जाती हूँ,
बचपन मे स्कूल के टेबल को बजाना, 
टीचर के न होने पर गाना -गाना,
इतना आसान नहीं हैं,
उन हसीन लम्हो को  भूल जाना, 
टेबल के नीचे दोस्तो के साथ  छिपते थे,
पकड़े जाने पर , टीचर से भी लड़ते थे,
नादानी में न जाने क्या -क्या करते थे,
टीचर के सवाल पर जवाब न देने पर ,
हाथ उठाकर खड़े हुआ करते थे।

बचपन

स्कूल में सब होमवर्क नकल करते थे,

बेस्ट फ्रेंड के लिए दूसरे से लड़ते थे ,
स्कूल की लडाई दूसरे दिन भूल जाते थे, 
फिर सभी आपस  में दोस्त बन जाते थे,
बेल बजने से पहले स्कूल से निकलने के लिए तैयार हो जाते थे,
फिर अगले दिन मम्मी से पैसे लिए बिना स्कूल नही जाते थे।


कभी -कभी स्कूल में मन नही लगता था, 
फिर दोस्तो के साथ मस्ती शुरू कर देती थी,
स्कूल के दोस्तो के साथ ही मैं,
खुद को हमेशा ख़ुश पाती थी।।



बचपन

जो क्लास में बने मोनिटर ,

कोरी शान दिखाते थे,
आता -जाता कुछ भी नहीं,
हम पर रोब जमाते थे।।
जब क्लास में टीचर नहीं,
तो खुद टीचर बन जाते थे,
कॉपी पेंसिल लेकर,
बस नाम लिखने लग जाते थे,
खुद तो हमेशा बातें करे,
हमें चुप करवाते थे,
वो जो क्लास मोनिटर कहलाते थे,
परीक्षा फल आते ही नजरें चुराते थे।

बचपन

साईकल से स्कूल जाते हुए मस्ती करना,

एक दूसरे की साईकल को खीचते हुए लड़ना, 
बहुत ही हसीन वक़्त था वो भी,
अब तो उन यारो से बहुत कम होता हैं मिलना,

काश लौट आये बकचन के वो दिन,
जहाँ गुजरते थे , मस्ती में पूरे दिन,
बचपन के दोस्त आज भी साथ हैं,
मेरे सभी दोस्त मेरे लिए खाश है,
बचपन की हस्सी अब कहि ग़ुम हो गयी हैं,
शायद बडे होने के सफ़र में पीछे रह गई हैं।


क्यो हो गए हम इतने बड़े,
इससे अच्छा तो, 
वो बचपन का जमाना था,
जहाँ खुशियों का ख़जाना था।।
                                           -हिमानी सिंह 

बचपन

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लाजवाब लाजवाब लाजवाब लाजवाब लाजवाब

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