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बचपन

लोग बचपन की मीठी यादे लिखते हैं,
पर मैं जो अपना बचपन लिखना चाहूँ अक्सर मेरी आंखे भीग जाती हैं..

क्या लिखूं मैं अपने बचपन के बारे में.. 
लड़की होने के ताने या रिश्तों की अनबन..
पलट कर जो देखूं जिंदगी के पिछले पन्ने..
पारिवारिक तनाव और संयुक्त परिवार में रोता दिखता मेरा बचपन..

क्या लिखूं मैं अपना बचपन माँ का गुस्सा हर छोटी बात पर या बेवजह दादी की डांट...
आत्महत्या का आता वह ख्याल लिखूं या आशुओँ से भिगोता बचपन का वो तकिया लिखूं

एक मासूम मन में लगी चोट लिखूं या भाई बहन के रिश्ते को शर्मसार करने वाली एक भाई की करतूत लिखूं..!!

नोट:- लोग कहते हैं वक़्त के साथ सब कुछ बदल जाता है...पर जो घाव हमारे अपने दे देते हैं एक बच्चे के कोमल मन मे वह घाव कभी नही भरते हैं....वक़्त के साथ वो घाव और बढ़ते जाते हैं...
वो बच्चा फिर डरने लगता है अपनेपन से, 
उसे पसन्द आने लगता है फिर अकेलापन रहने लगता है वो सबसे अकेला, 
बन जाता है वो अपनो से अजनबी,
नही करता फिर वो किसी से भी ज्यादा बातें...
वो खुद में ही वो खोया रहने लगता है...


रोशनी शुक्ला

बचपन

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