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दहेज

परम एक मध्यम वर्ग परिवार का सदस्य था। उसके पिताजी प्राइवेट कंपनी में वॉचमैन की जॉब करते थे और माताजी साधारण गृहणी थी। उसने अभी-अभी अपनी पढ़ाई कम्पलीट करके एक प्राइवेट बैंक में क्लर्क की जॉब हासिल की थी, आब वह इस जॉब को करते हुए इससे बेहतर जॉब पाना चाहता था जिसकी तैयारी में वह दिनरात लगा रहता। घर में उसकी छोटी बहन भी थी जो अभी पढ़ाई कर रही थी। घर की माली हालत न ही ज्यादा अच्छी थी न ही बहुत अधिक खराब। कुल मिलाकर यह एक ऐसा परिवार था जैसा लगभग भारत के हर क्षेत्र में मध्यम वर्ग का हाल होता है।


परम अच्छा खासा ऊँचा एवं हुष्ट पुष्ट नौजवान था, उसे अपने घर की माली हालत का भली भांति ज्ञान था इसलिए तो दुनिया के सारे कामों को नजरअंदाज कर पढ़ाई करता रहा और आखिरकार एक कामचलाऊ अच्छी जॉब हासिल कर के ही माना। आखिर हमारे देश मे नौकरी ढूंढ पाना इतना मुश्किल जो है।

परम नेक ख़्यालों वाला लड़का था, उसने पुस्तकों एवं जीवन से जो पढ़ा और अपने जीवन में उतार लिया उसके एक और आदत थी कि वह बेवजह अधिक बोला नही करता था जबकि उसकी बहन बहुत ही चुलबुली और शरारती लड़की थी, वह हमेशा ही अपने भाई को तंग करती रहती।

परम के जॉब लगते ही कई जगहों से अच्छे अच्छे रिश्ते आने लगे, अव ये तो हर पिता का स्वार्थ होता है कि उसकी बेटी जहां भी जाये खुशी से रह सके। परम फिलहाल काम पर ध्यान देना चाहता था इसलिए वह बार बार शादी से मना कर देता। कुछ ही दिनों में उसका ट्रांसफर दूसरे जगह हो गया, यह स्थान उसके घर से कुछ ज्यादा ही दूर था इसलिए वह वही रहने लगा।


उसके लगातार मना करने से उसके माता-पिता की चिंता बढ़ने लगी। उन्होंने तय कर लिया कि इस बार जैसे ही वह घर आएगा उसे शादी के लिए मनवा कर ही रहेंगे। आखिर ये माँ-बाप है उसके, उसका बुरा तो नही चाहेंगे न। उसकी मम्मी की फुफेरी बहन ने किसी लड़की के बारे में बताया था, जो कि अगले रविवार को आने वाले थे क्योंकि परम शनिवार को ही घर आया करता था।

दहेज

परम के घर आते ही उसकी मम्मी जिद करने लगीं की इस बार उसे उनकी बात माननी ही होगी। कब शादी करेगा वो बूढ़ा हो जाने के बाद?  आखिर उन्हें भी अपने पोते-पोतियों को अपनी गोदी में खिलाना है। काफी मशक्कत के बाद किसी तरह परम ने हाँ कर दी क्योंकि वह बार बार मना करके उनका दिन नही दुखाना चाहता था। उसने कह दिया कि लड़की अगर उसके पापा मम्मी को पसंद आई तो वो शादी के लिए तैयार है।

अगले दिन रविवार को लड़की वाले आये, स्वागत आवभगत किया गया। परम को देखते ही सभी ने उसे दोनो हाथ ले लिया। लड़के और लड़की के बारे में थोड़ी चर्चा हुई, लड़की वालों को लड़के में कोई कमी नही दिखाई दी अब बस लड़के वाले जाकर लड़की देख आते फिर मंगनी और शादी की रस्म भी अदा कर दी जाती। थोड़े दिन बाद आने की बात कहकर परम के पापा-मम्मी ने उन्हें विदा किया, वे सब बहुत खुश थे कि आखिरकार अब परम उनकी बात मानकर शादी करने को तैयार हो गया।

कुछ दिन बाद परम के पापा-मम्मी कुछ रिश्तेदारों को लेकर लड़की के घर गए, परम नही जा पाया क्योंकि उसकी जॉब थी और उसे विश्वास था कि पापा-मम्मी जो भी लड़की चुनेंगे उसके लिए वो परफेक्ट होगी। लड़की काफी ऊँची, हल्के सांवले रंग की तीखे नैन-नक्श वाली थी, सिर पर ओढ़नी डाले हुए चाय और प्लेट में नमकीन लिए बाहर आई। परम की माँ को तो लड़की देखते ही पसंद आ गयी। आते ही उसने सभी को सिर झुकाकर दोनो हाथ जोड़ते हुए प्रणाम किया और आशीर्वाद लिया। लड़की के उच्च संस्कारो पर सभी मोहित हो गए। परम के पापा ने लड़की से पूछा - "तुम्हारा नाम क्या है बेटा।" 

वह लड़की थोड़ा सकुचाते हुए बोली "जी गंगा!" कहते ही वह लाज से कमरे में भीतर चली गयी।

उसकी बोली इतनी मीठी थी जैसे कोयल कूहक रही हो। परम के पापा ने गंगा के पापा को पास बुलाया और पंडित जी से शुभ मुहूर्त निकलवाने की बात करने लगे।

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अब तक परम, गंगा से मिला तक न था बस एक तस्वीर देखी थी जो लडक़ी वाले दिखाने आये थे, उसके पापा-मम्मी ने तो बस पसन्द कर लिया तस्वीर तक न दिखाई। परम को गंगा तस्वीर देखते ही पसन्द आ गयी थी पर वह चाहता था कि वह सबकुछ अपने माता-पिता की इच्छा से करे। अब उससे इंतेज़ार नही होता था, उसके घर आते ही सब गंगा की तारीफ करना शुरू कर देते खासतौर से उसकी बहन बहुत चिढ़ाती। एक दिन जब वह आया और आते ही अपना बैग टांगकर खटिया पर बैठा हुआ था, अचानक गंगा की याद आते ही उसके चेहरे पर हौले से मुस्कान आ गयी। और बस मिल गया बहन को टांग खिंचने का मौका….

"क्यो भाई! भाभी की याद आ रही किस जो इतना मुस्कुरा रहे हो।" उछलते हुए उसके पास आकर धक्का देकर बैठते हुए बोली। वह अब बड़ी तो हो गयी थी पर हरकते बच्चों वाली ही किया करती।

"अरे नही रे कन्नू! उसे तो मैं देखा भी नही हूँ। बस घर आकर अच्छा लगा।" परम उससे दूर हटते है बोला।

"झूठ न बोलो भैया! देखो कनक के कानों में सब खनक जाता है कि क्या हो रहा!" उसकी बहन आंखे तरेरते हुए बोली, जैसे उसने उसे कोई जुर्म करते हुए रंगे हाथ पकड़ लिया हो।

"हाँ तो मिस कनक! बताइये क्या खनका है अभी आपने कानो में?"  परम थोड़ा गम्भीर होते हुए बोला।

"वही जो मैंने बोला।" कनक मुस्कुराई।

"देख मैं फालतू बात करने के मूड में नही हूँ, तू जा यहाँ से।" परम उसे बाहर निकलने का इशारा करते हुए बोला।

"झूठ न बोलो भैया! सबर नही हो रहा है तुमसे, लड्डू फुट रहे हैं मन में तभी इतने मीठे हो रहे हो आजकल!" उठकर जाते हुए कनक बोली, जिसपर गुस्से से घूरता हुआ परम उसे मारने बढ़ा और कनक हँसते हुए भागने लगी। यह सब उसके मम्मी पापा भी देख रहे थे।

"ये लोग बड़े हो गए पर बड़े कभी नही होंगे।" परम के पापा मुँह बनाते हुए बोले।

"ना हो तो ही अच्छा है जी! अब तो एक और बेटी आएगी घर में फिर घर कितना चहक उठेगा न!" परम की मम्मी के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव दिखाई दे रहे थे।

"ये बात तो है।" उसके पापा ने कहा

"हाँ अब तो इंतज़ार नही होता! बस जल्दी से बहू को घर ले आये।"  उसकी मम्मी बोली और किचन में चली गयी।


दहेज

आखिर वो दिन भी आ गया जब सबका इंतेज़ार खत्म हुआ, परम दुल्हे के भेष में सजा हुआ बहुत ही आकर्षक लग रहा था। उसके दोस्त उसे चिढ़ा रहे थे तो कुछ 'भाभी जी भाभी जी' करके उसे खूब तंग कर रहे थे। सभी औरते गीत गा रही थीं बारात चल पड़ी दुल्हन को लेने के लिए।

लड़की वालों ने भी उनका भी आवभगत किया, दुल्हन के वेश में गंगा सुकुमार परी जैसी लग रही थी। परम को तो उसे देखते ही प्यार हो गया, उसे अपनी किस्मत पर यकीन नही हो रहा था कि उसकी किस्मत में एक खूबसूरत परी लिखी हुई हैं। आखिरकार सब रस्म अदा कर विदाई हुई, लड़की को अपने बाबुल का घर छोड़ एक अनजान घर में जाना था, वह रोये जा रही थी परम से यह बर्दाश्त नही हो रहा था। उसका दिल चाहता था, वो जाकर उससे कह दें कि 'जिंदगी भर इतना प्यार करूँगा कि कभी मायके की याद तक न आएगी!' पर वह उससे कह नही सकता था इसलिए स्वयं से यह वादा किया।

बारात विदा होकर घर को चली, सब अपने अपने घर को जाने लगे, रिश्तेदारों ने भी अपने बोरिया बिस्तर बांध लिए परन्तु किसी के मुंह पर लगाम नही रहा। खासतौर से इस समारोह में सम्मिलित औरतों को लड़की में खामियां निकालना और दहेज के बारे में चर्चा करना बहुत अच्छा लग रहा था। कई औरते आपस में भीड़ जमा करके खड़ी थी।

एक औरत नाक सिकोड़ते हुए  "इतना गोरा-चिट्टा लड़का है, इसको यही सांवली मिली थी? अरे इससे लाख गुनी अच्छी तो वो थी।"

दूसरी और हाँ में हाँ मिलाते हुए "अब क्या करें करम ही फूटे हैं बिचारे के! लड़की काली मिली तो मिली साथ में फूटी कौड़ी दहेज भी न पाया।" उसके व्यंग्यात्मक व्यवहार में परम के परिवार के लिए ओछी सहानुभूति दिखाई दे रही थी।

"औऱ नही तो क्या! अच्छी खासी नौकरी भी करता है, अब क्या बिठा के खिलाने के लिए ब्याहकर लाया है।" एक अन्य औरत उन दोनों से मुखातिब होते हुए बोली।

"अरे मैं तो कहती हूँ कि किस्मत ही फूटी है घनश्याम भाई की, जो परम के लिए ऐसी लड़की ढूंढे और ब्याहकर भी के आये। जाने कौन सा टोटका किया उन्होंने इन बिचारों पर!" एक अन्य औरत ने भी अपना शोक प्रकट किया।

"तब तो मुझे लड़की के घर वाले कुछ वैसे लगते हैं, नही तो बिना जादू मंतर किये किसी को ऐवे ही ऐसा गबरू जवान और नौकरीपोश नही मिल जाता।" एक औरत को गंगा के परिवार वालों पर शक हुआ। पुरुष भी आपस में तरह तरह की बातें कर रहे थे परन्तु उन सभी में दहेज और लड़की का रंग के बारे में चर्चा, प्रधान विषय था। जब हल्ला होने लगा तो परम की माँ बाहर आई, यह सब सुनकर उनसे न रहा गया। अब तक परम भी बाहर आ चुका था, कूदते हुए वह एक छज्जे पर चढ़ गया ताकि वहाँ से क्लियर सुनाई दे सबको।

दहेज

"हाँ तो कहिये कहा समस्या है आप सभी को!" परम के पापा बाहर आते हुए उन पुरुषों के मुखातिब होकर बोले, जो तब से चर्चा किये जा रहे थे।

"बहिन जी! आप लोगो को कोई समस्या है तो हमसे कहिये।" परम की माँ ने हाथ जोड़ते हुए सभी औरतों से कहा। सभी पुरुष और महिलाए  सन्न मारकर खड़े हो गए थे जैसे सबकी जुबान पर फेविकोल का डब्बा गिर गया हो।


"कुछ नही पापा जी, कुछ नही मम्मी जी! इन सबकी प्रॉब्लम मेरी पत्नी है। कब से सुन रहा हूँ इन सबको सोचा रिश्तेदार हैं, थोड़ा कुछ कहेंगे फिर चुप हो जाएंगे लेकिन नही इनको मेरी पत्नी में ऐब निकालना है। उसके घरवालों तक को बुरा भला कहना है और मुझे दहेज नही मिला तो इसमें आपको कौन सा दुख है? हम कौन सा आपके घर से राशन लाकर खाते हैं?" परम चीखते हुए बोला, उसके आँखों में आँसू डबडबाने लगे।

"अरे कुछ नही बेटा! हम तो बस जाने वाले थे।" एक अधेड़ उम्र के सज्जन भीड़ से बाहर निकलते हुए बोले।

"अरे नही रुकिए आप लोग! अब बताओ क्या करूँगा मैं दहेज का? क्या मेरे पास कुछ कमी है कि मैं अपनी पत्नी को दो वक्त की रोटी तक न खिला सकूँ जो दहेज जैसी फेंकी हड्डी उठाने जाऊँ? दरअसल मैने मना किया है दहेज के लिए, मुझे सारी उम्र अपनी पत्नी के साथ रहना है, ये चंद रुपये कितने दिन साथ देंगे हमारा? और हाँ चाची जी आप, आपको बहुत शौक है न ये जानने का कि कितना दहेज मिला, लड़की कैसी है! कभी अपनी बेटी के बारे में सोचा है? क्या करोगे घर जमीन गिरवी रखकर दहेज दोगे तब संतुष्टि मिलेगी? जिसको रंग से जो समस्या है रखो, पर ये भी याद रखो ये रंग तो ऊपरवाले ने बनाया है जैसा है वैसा ही रहेगा पर अपने मन मे जो कालिख पोते हुए हैं उससे ज्यादा काला कहाँ देखने को मिलेगा?" परम लगभग चीख रहा था, यह देख सभी सन्न हो चुके थे।

"लड़की कोई वस्तु नही है, दहेज के कारण हजारों पाप करते हैं लोग! कन्यादान को सर्वश्रेष्ठ दान का दर्जा दिया जाता है लेकिन हमारे समाज को दहेज में मिले चंद रुपयों के साथ सोना है, दुख तो तब होता है जब एक लड़की, महिला बनने के बाद आप लोगो के जैसी हरकते करने लगती हैं। लड़की के साथ अत्याचार आप स्वयं करती है और बाद में पुरुषों को दोष देंगी। आप इस समाज का रूख जिस दिशा में चाहे मोड़ सकती हैं लेकिन आपको दहेज, लड़की के रंग आदि से ऊपर ही नही उठना है। और आखिरी बात मुझे मेरी पत्नि के साथ जीवन बिताना है, कागज के टुकड़ो के साथ नही! यदि आपको दहेज न मिलने या मेरी पत्नी के रंग से कोई समस्या है तो कृपया आइंदा से अपना कालिख पुता हुआ काला मन लेकर यहां न आइयेगा।" कहता हुआ परम वहां से नीचे उतरा और लगभग रोता हुआ अंदर जाने लगा। द्वार पर उसके पापा ने उसके कंधे पर हाथ रखकर रोक लिया।


दहेज

"हमें तुमपर गर्व है बेटा! हमारे संस्कार पर गर्व है। हमने बहू नही बेटी को घर लाया है।" उसकी मां ने आंसुओ को पोंछते हुए कहा, सभी लोग शर्मिंदगी से बाहर जाने लगे। 

"अरे रुकिए शाम को बहूभोज है, भोजन करके ही जाईयेगा।" पिता ने मुस्कुराते हुए कहा, उनकी दृष्टि में आज परम का मान बढ़ चुका था। 


परम कमरे में जाते ही धड़ाम से बेड पर गिर गया, गंगा ने उसे सम्भाला और अपने आँचल से उसके आँसू पोछकर मुस्कुराई।



"मुझे माफ़ करना गंगा।" परम रो पड़ा था।

"माफी किस बात की? मुझे तो आपपर गर्व है! मैंने सोचा था कि मुझे ऐसा जीवनसाथी मिले और मैं बहुत खुशकिस्मत हूँ कि मुझे आप मिले हैं।" गंगा, उसके बालों को सहलाते हुए बोली, बाकी सब बाहर निकल चुके थे।

"आई लव यू!" परम धीमे स्वर में बोला।

"आई लव यू टू!" गंगा उसे देखकर मुस्कुरा रही थी, परम के चेहरे पर संतोष का भाव था। कनक भी अपने भाई के बहादुरी से बहुत खुश थी, उसका घर अब सुंदर सा स्वर्ग बन गया।


समाप्त!


©मनोज कुमार "MJ"

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6 Comments

RICHA SHARMA

11-Apr-2021 07:13 PM

बहतरीन कहानी , बहुत ही अच्छी तरह से अपने लिखा है , आप अच्छे लेखक है

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Thanks ji

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Apeksha Mittal

11-Apr-2021 12:23 PM

मनोज जी , बहुत अच्छी कहानी लिखी अपने , आपको फॉलो कर लिया है , आपकी ओर भी कहनी पढनी है , उम्मीद है आप जल्दी है और भी कहानी पोस्ट करेंगे

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Thanks ji

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kapil sharma

10-Apr-2021 09:13 PM

behtreet story ,, sir

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Thank you

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