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दिखावा

थी आस - पास बहुत भीड़ मेरे ,
सब खुद को मेरे सगे संबंधी बता रहे थे...

ओढ़ रखी थी मैंने सफेद चादर,
दिखावे की इस दुनिया मे सब आज एक आखिरी रस्म निभा रहे थे...

था मन मे कोई दुख नही किसी के मेरे जाने का ,
फिर भी लोग झूठे आंशू बहा रहे थे...

कल तक जिन्होंने न पूछा था कभी हाल मेरा,
मेरी अर्थी पर आज वो भी अपनेपन का ढोंग रचा रहे थे...

जो करते थकते नही थे मेरी बुराइयां ,
वो भी आज मेरी अच्छाइयों के किस्से सुने रहे थे...

जो ले रहे थे मजे मेरी तबाही के,
देख कर कफ़न में मुझे,
वो भी खुद को आज मेरे शुभचिंतक बता रहे थे...

सोनिका शुक्ला


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2 Comments

हर शब्‍द में गहन भावों का समावेश ...बेहतरीन ।

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Vfyjgxbvxfg

14-Apr-2021 12:56 PM

शुक्रिया😊🙏

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