Sapna shah

Add To collaction

बचपन

गुजरा जमाना 
यादों में कहीं रह गया 
ताउम्र ढूंढते रहे जिसे
लौट कर ना आया 
फिर बचपन हमारा ...

उन गलियों से गुजरना 
अब रास न आया 
बिछडे बचपन को पाना 
एक ख्वाब सा रहा 

अलहड सी मुस्कान में 
निर्मल प्रेम बह गया 
फरेब की दुनिया में 
मासूम बचपन खो गया 

बचपने में हम जिंदा थे
खुलकर जी रहे थे 
जबसे हम बढें हुए 
जीवन जीना भूल गए 

खुद से बिछडकर जमाना हुआ 
जिंदा हैं पर जिन्दगी कहा 
खोजते रहते यहाँ वहाँ 
बचपन हमारा हैं कहा 

जिम्मेदारीयों से घिरे
बोझ में है लदे हुए 
अब खिलखिलाते चेहरे है कहा 
गाँव की गलियों में छूटा बचपन हमारा 

जिन्दगी की शाम में 
सुबह की तलाश है 
लौटना जहाँ मुमकिन नहीं 
पीछे रह गया बचपन हमारा ..।।





   0
0 Comments