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लंचबॉक्स - प्यार

हाय मैं निहारिका, पहले भाग में अपने सुनी प्रज्ञा की कहानी ........आज मैं सुनाती हूं अपनी कहानी.......


मेरी और नितेश की मुलाकात एक कॉमन फ्रेंड के जरिए हुई थी। अच्छा लड़का था, बहुत हंसमुख था।  उससे बात करके मुझे बहुत अच्छा लगता था। हम दोनों ही इंजीनियरिंग कर रहे थे और हमारे हमारी ब्रांच  भी same थी तो हमारी अच्छी बनने लगी थी। हमारे कॉलेज अलग-अलग शहरों में थे इसलिए हमारी सारी बातें फोन पर ही होती थी।

एक रात नितेश का फोन आया: 

नितेश:  यार रिजल्ट आ गया।
मैं:  अच्छा यार मैं तो कहीं बाहर हूं मेरा भी देख लो।
नितेश:  अच्छा मैं देख कर बताता हूं अपने रोल नंबर मेरे को मैसेज करो।

थोड़ी देर बाद उसका फोन आया और उसने बताया कि मैं अच्छे marks  से पास हो गई हूं हम दोनों ही खुश थे।

अगले दिन: 

नितेश : कैसी हो?
मैं   : ठीक हूं तुम कैसे हो?
नितेश : मुझे कुछ कहना है।

मैं समझ तो गई थी कि वह क्या बोलेगा ,शायद मैं भी इस इंतजार में थी  कि कब वो यह बोले ।

मैं  : हां बोलो
नितेश:  आई लव यू
मैं     : आई लव यू टू
नितेश (आश्चर्य से):  सच में
मैं  : हां बाबा

सब कुछ बदल रहा था, हम बदल रहे थे हमारी बातें बदल रही थी, हमारी बात करने के तरीके बदल रहे थे और समय भी बदल गया था।

सुबह उठकर "गुड मॉर्निंग" बोलना तो आदत बन गई थी। रात को जब तक फोन पर उससे बात ना हो जाए तब तक सो नहीं पाती थी । उससे बात करके हमेशा सेफ फील होता था। अगले कुछ दिनों बाद हमने मिलने का प्रोग्राम बनाया डिसाइडेड दिन पर वो मुझसे मिलने आया ।

वो शाम मेरे लिए बहुत अलग एहसास था। हमने मंदिर जाने का प्लान बनाया था ।वह ब्लैक टीशर्ट और जींस है मंदिर के बाहर खड़ा हुआ था ,मैं ग्रीन सलवार सूट पहन कर गई थी । हम दोनों ने देखते ही एक दूसरे को मुस्कुराए ।हम ने दर्शन किए प्रसाद लिया और वापस आ गए क्योंकि मैं हॉस्टल में रहती थी और बहुत देर तक नहीं घूम सकती थी फिर हमने अगले दिन मिलने का प्रोग्राम बनाया।


अगले दिन भर हम घूमे लोटते वक्त उसने मुझे ऑटो में बिठाते टाइम उसने मेरे कंधे पर हाथ रखा और प्यार से साइड से hug किया वह एहसास अवर्णनीय था।

मैं रात भर मन बेचैन थी, खुश थी क्योंकि मुझे अच्छा लड़का मिला था क्योंकि उसने मुझे कहीं भी गलत तरीके से नहीं छुआ था। रोज का हंसना, प्यार, लड़ना (जो कि वह कभी भी किसी भी बात पर गुस्सा हो जाता था), मनाना चलता रहता था । 


लंचबॉक्स - प्यार

कुछ दिन बाद मैं अपने घर गई और मैंने एक चीज गौर की कि मैं जितने भी दिन घर पर रही उसका खुद पलटकर कभी फोन नहीं आता था । यह सिलसिला हमेशा चलता था जब जब घर जाती तो यही होता यह बहुत अजीब था। जब भी मैं उससे इस बारे में बात करती तो बोलता कि" मैं दूसरी से बात कर रहा था"| 

जितने भी जब भी बात उसको मैं फोन करती तो उसका वह हमेशा वेटिंग पर ही रहता था। जब भी पूछो हमेशा "मम्मी से बात कर रहा था ", यह हंसते हुए हमेशा बात को टाल जाता था और कहता था कि "दूसरी से बात कर रहा था।"

एक रात मेरी बहुत लड़ाई हुई और वह बोला कि "मैं तुमसे टाइम पास कर रहा हूं मेरे पास और भी है ।" उस रात मैं बहुत रोई । सुबह शांत होकर मैंने फिर से कॉल किया।

नितेश:  हेलो
मैं : मुझे नंबर चाहिए
नितेश : किसका
मैं  : जिनसे भी बातें करते हो
नितेश:  रुको मैसेज करता हूं

आगे की  कहानी....... अपने प्रज्ञा से सुनी है।


कुछ दिन मैंने उससे बात ही नहीं की मेरा मन विश्वास ही नहीं कर रहा था कि वह मेरा नितेश है । नितेश वो "लंच बॉक्स"  था जो कई हाथों में शेयर हो रहा था।

 इसके बाद भी वह मुझसे एक बार मिला और वह वैसे ही साफ तरीके से मिला जैसे वह पहले मिला था ।समझ में नहीं आ रहा था कि क्या अजीब इंसान है,  मैं उसको समझ भी नहीं पा रही थी और उसको उसके साथ  संभल भी नहीं पा रही थी ।


कुछ दिन बाद वही हुआ..... उसके सारे कांटेक्ट मीडियम बंद थे।

"पास्ट को भूलकर आगे बढ़ो"  उसका हमेशा ही है कहना था। मैं समझ गई थी कि वह आगे बढ़ गया है । खैर .....समय के साथ मैं भी आगे बढ़ गई आज मेरा परिवार है। कुछ महीने पहले सुनने में आया है कि शायद नितेश की भी शादी हो गई है।

बहुत अजीब सी हमारी कहानी पर यादगार थी ।

 फिर कुछ बंद पन्नो को  खोलूंगी तब तक के लिए....... 

क्रमशः

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5 Comments

पवन पुत्र

19-Apr-2021 05:05 PM

nice

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Manisha Yadav

18-Apr-2021 09:51 PM

Bahut hi acha

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OMESHWAR PATHAK

18-Apr-2021 09:51 PM

अति सुन्दर प्रस्तुति के लिए धन्यवाद

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