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राही

राही हु अनजान राहों का,

पहचान हूँ अपनी आहों का।
भटका हूँ गुमनाम राहों पर,
संग ले अरमान पलको पर।
नही चला कभी साया अपना,
था गुमान जिसके होने का।
राही हूँ अनजान राहों का।
खो गया कहीं गुमनामी में,
राही था वो आमफ़हम राहों का।
बिखरा हर पल खुद में,
सहारा था जिसे बाहों का।
राही हूँ अनजान राहों के






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3 Comments

Seema Priyadarshini sahay

18-Nov-2021 08:27 PM

बहुत खूबसूरत

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Swati chourasia

18-Nov-2021 07:00 AM

Very nice 👌

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Fiza Tanvi

17-Nov-2021 09:04 PM

Goid

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