Kavita Jha

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मूमल और महेन्द्रा की प्रेम कहानी #लेखनी प्रतियोगिता -18-Nov-2021

मूमल और महेन्द्रा की प्रेम कहानी (# रोमांस और ऐतिहासिक फिक्सन)


इतिहास में  कई ऐसी प्रेम कहानियां हैं जिनका अंत बहुत दुखद हुआ। वैसे सबको अपना प्यार मिल जाए यह कम ही होता है, प्रेम सिर्फ सौन्दर्य आकर्षण मात्र का नाम  नहीं  है। वो तो कब किससे हो जाए कोई जान नही पाता। प्रेम ना जात पात देखता है ना सरहद और ना ही उसका अनजाम। 
ऐसी ही एक कहानी है राजस्थान के जैसलमेर की मूमल और  महेन्द्रा  की प्रेम कथा। हालांकि यह प्रेम कथा पूरी तरह सौन्दर्य आकर्षण पर ही थी। पर अंत बहुत ही दुखद रहा तो अगर मौका मिलता इतिहास के पन्नों को बदलने का तो  इस प्रेम कहानी का अंत सुखद होता। 

सारिका और अमित ने भी प्रेम विवाह किया और जैसलमेर घूमने आए हैं। मूमल की मेड़ी देखते हुए सारिका अमित के गले में अपनी बाँहे डाल कहती है, "शाहजहाँ ने ताजमहल बनवाया अपनी बेगम मुमताज के लिए और मूमल ने ये मेड़ी बनवाई अपने प्यार के लिए। अच्छा तो बताओ तुम मेरे लिए क्या बनवा रहे हो। "

अमित हँसते हुऐ सारिका का हाथ पकड़ उसे वहीं मेड़ी के पास बिठाता है और मूमल महेन्द्रा की प्रेम कथा सुनाना शुरू करता है। जानती हो महेन्द्रा अमरकोट जो अब पाकिस्तान में है पहले गुजरात में था, यहाँ मूमल की मेड़ी से सौ कोश दूर। वो इतना लंबा सफर रोज रात को अपने ऊंट से पहले पहर आता अपनी मूमल के पास और तीसरे पहर वापस अपने ऊँट से ही अमरकोट अपने राजमहल पहुँच जाता। 

सारिका कहती है, " बाप रे! वो ऊँट था कि हवाई 
जहाज। "
अमित : अरे! मेरी जान! प्यार में तो इंसान चीटी को भी हवाई जहाज बना लेता है। वैसे भी ऊँट तो होते ही है रेगिस्तान का जहाज, और  वो ऊँट तो सबसे तेज दौड़ने वाला था। और क्या तुम जानती हो मंहिन्द्रा पहले से ही शादीशुदा था और  उसकी सात पत्नियां थी। 

सारिका : अच्छा! फिर तो पूरी कहानी सुनाओ कि कैसे हुई थी महेन्द्र और मूमल की पहली मुलाकात, और कैसे हो गया उनमें इतना गहरा प्यार जो हर रात को अपनी सात पत्नियों को छोड़ कर मूमल से मिलने आता। आखिर खासियत क्या थी उसमें इतनी। 

अमित : अरे मेरी मूमल वो मूमल भी तेरी तरह बड़ी खूबसूरत थी। पूरे राजस्थान की सबसे खूबसूरत लड़की थी वो और अब उसी के नाम पर ही मरु महोत्सव में हर साल मिस मूमल प्रतियोगिता होती है। जिसमें पूरे राजस्थान से सुंदर सुंदर लड़कियाँ भाग लेती है। 

मूमल का मतलब जानती है क्या होता है??
सारिका : पता नहीं??  तुम ही बताओ। 

अमित : मूमल का अर्थ मोहब्बत होता है। अच्छा सुन पहली मुलाकात कैसे हुई महेन्द्र की मूमल से। 

महेन्दर अमरकोट के राणा वीलसदे का पुत्र था ,उसकी बहन का पति हमीर जडेजा बहुत अच्छा मित्र था उसका। दोनों में खूब पटती, एक बार जब हमीर अपने ससुराल आया था तो महेन्द्रा ने हमीर से कहा, " चलो जीजाजी शिकार खेलने चलते हैं। "

हमीर भी तुरंत तैयार हो गया, शिकार की खोज में वो दोनों यहाँ तक पहुँच गए। उस समय उन्हें यहाँ एक सुंदर बगीचा और उसमें बनी एक सुंदर दोमंजिला झरोखेदार मेड़ी दिखाई दी। इस विरानी जगह में इतने सुंदर बाग को देख वो दोनों आश्चर्यचकित हो गए। हमारे पड़ोस में ऐसा नखलिस्तान भी है जिसकी चर्चाऐं सौदागरों से सुनी है, महेन्द्र हमीर से बोला। 

मूमल ने मेड़ी के झरोखे से जब दोनों को देखा तो दासियों को उनकी खातिर करने के लिए कहा, लगता है यह दोनों किसी राजपूत घराने से हैं। 

जब दासी उन दोनों की सेवा में  हाज़िर हुई तो महेन्द्र ने इस विराने में इतने खूबसूरत बगीचे और मेड़ी के बारे में  पूछा कि यह किसकी मेड़ी है, किसने बनवाया है और  कौन रहता है इतनी सुंदर जगह पर। तब दासी ने मूमल के बारे में  बताया क्या तुम नहीं जानते, पूरे राजस्थान में मूमल की तरह सुंदर कोई नहीं है। इसके रूप की चर्चा से यह सारा प्रदेश महक रहा है, जिसके गुणों का बाखान यह काक नदी कल कल कर गा रही है। जो प्रकृति प्रेम के कारण अकेले ही अपनी सहेलियों के साथ यहाँ रहती है अपने माता पिता से दूर इसकी एक बहन भी  है सूमल। 

महेन्द्र पूछता है दासी से, "क्यों विवाह नहीं हुआ क्या तुम्हारी मूमल का। "
दासी : मूमल ने प्रण ले रखा है कि विवाह उसी से करेगी जो उसका दिल जीत लेगा। नहीं तो पूरी उम्र कुवांरी रहेगी। 

अमित सारिका को मूमल और महेन्द्रा की प्रेमकथा सुना रहा है और सारिका अमित के कंधे पर सिर रख पहुँच गई है इतिहास के पन्नों में ...
अमित आगे बताता है.. 
मूमल अपने मेड़ी के झरोखे से हमीर और महेन्द्रा को देख रही थी उसने अपनी सहेली से कहा उनमें से किसी एक को मेरे पास आने के लिए बोल। दोनों दूर से बहुत आकर्षक लग रहे हैं मैं उनकी बुद्धि और  साहस की परख करना चाहती हूँ । उसने अपनी सहेलियों की मदद से एक बाघ और एक अजगर बनाया जिसमें भूसा भर अपनी मेड़ी के चौक पर रख दिया। 
अपने सेवकों से कहकर मूमल ने हमीर और  महेन्द्रा की खातिरदारी करवाई फिर उनमें से एक को अपने पास बुलवाया। 
हमीर चूंकि पद पर बड़ा था महेन्द्रा का जीजा जो था, तो पहले महेन्द्रा ने उसे मूमल के पास जाने को कहा। 
मेड़ी के चौक पर हमीर को एक बाघ बैठा नजर आया बड़ी मुश्किल से हिम्मत कर थोड़ा आगे बढ़ा तो आगे एक बड़ा सा अजगर बैठा दिखा,  हमीर यह सोच कर भाग खड़ा हुआ  कि इतने खतरनाक जानवरों के साथ रहने वाली मूमल कोई डायन है जो पुरुषों को मार कर खा जाती है। 
हमीर डर कर महेन्द्रा के पास आ बोला चलो यहाँ से भाग चलो यह सुंदर बगीचा और मेड़ी किसी डायन की है। लेकिन महेन्द्रा ने मन बना लिया जब बुलाया है तो मिल कर ही जाऐंगे हम भी तो देखें जरा इनकी सहेलियां जो इनके गुणों का बखान कर रही हैं ये मूमल हैं कैसी।
अब महेन्द्रा अपनी तलवार कंधे पर लटकाऐ चल दिया मूमल की मेड़ी की तरफ, जैसे ही चौक पर पहुँचा वहाँ बैठे बाघ को देख समझ गया कि मूमल हमारी परीक्षा ले रही है। झट से अपनी तलवार से जैसे ही बाघ पर मारा अंदर भरा भूसा बाहर आ गया और वो मुस्कुराता हुआ आगे बढ़ा। कुछ ही कदम बढ़ा था कि एक अजगर चौकड़ी मार बैठा दिखा , महेन्द्रा ने अजगर पर भी अपनी तलवार चलाई तो उसमें से भी भूसा बाहर आ गया। अब तो महेन्द्रा का मन उस स्त्री को देखने के लिए  व्याकुल हो उठा जो इस तरह उसके बुद्धि और  साहस की परीक्षा ले रही थी। 
इधर मूमल भी झरोखे से देख रही थी सब और  महेन्द्रा पर मोहित हो रही थी। 
महेन्द्रा जब मूमल के पास पहुँचा उसकी सुंदरता देख अवाक रह गया, उसने आज तक इतनी सुंदर लड़की नहीं  देखी थी,  उन झील सी आँखों में वो डूब गया और मूमल भी उसके आकर्षण से खुद को ना बचा पाई। दोनों रात भर बातें करते रहे, पूरी रात महेन्द्रा मूमल की मेड़ी में उससे बात करता रहा। सौन्दर्य के साथ साथ मूमल की बुद्धि से भी वो बहुत प्रभावित हुआ। 
इधर हमीर की जान हलक पर थी उसे यकीन हो गया था कि ये मूमल डायन है और मेरे साले साहब को जरूर खा गई। इतनी रात को वहाँ से हमीर को अकेले निकलना भी मुश्किल लग रहा था, वो भी बस सुबह होने का इंतज़ार करने लगा। 
बातों ही बातों में मूमल और  महेन्द्रा की कब सुबह हो गई  पता ही ना चला। महेन्द्रा को मूमल के पास से जाने का मन ही नहीं कर रहा था फिर दुबारा आने का वादा कर वो जैसे ही हमीर के पास पहुँचा। हमीर उसे देख फूले ना समाया और तुरंत वहाँ से चलने को कहा। महेन्द्रा का तो मन ही नहीं कर रहा था पर घर तो जाना ही था। 
वो रास्ते भर गाता जा रहा था... 

म्हारी माढ़ेची ए मूमल, हाले नी अरराणे देश।। 
मेरी माढ़ देश की मूमल, आओ मेरे साथ अमरकोट चलो। 

अमरकोट  पहुँच कर महेन्द्रा का मन ही नहीं लग रहा था उसे बार बार मूमल की वो झील सी आँखें याद आ रही। अपनी सात पत्नियां उसे अब नहीं भा रही थी वो तो बस मूमल की सुंदरता से मोहित हो गया था। 
इधर मूमल भी महेन्द्रा के प्यार में डूब गई थी वो भी महेन्द्रा के पास आने के लिए  बेताब थी। इंतजार में  थी कि ये राजपूत अपना वादा जरूर निभाएगा और मुझसे मिलने आऐगा। 
महेन्द्रा ने अपने राजमहल में काम करने वाले रामू काका से पूछा क्या ऐसा कोई ऊँट नहीं है जो इस रेगिस्तान में रात को 100 कोस का आना जाना कुछ ही घंटों में पूरा कर ले। सबसे तेज दौड़ने वाला ऊँट कहाँ मिलेगा। रामू ने उसे चीतल ऊँट के बारे में  बताया,  जो सबसे तेज दौड़ता है। 
अब महेन्द्रा ने भी योजना बनाई रात भोजन और सबके सोने के बाद वो उस चीतल ऊँट पर बैठ अपनी मूमल के पास पहुँच जाता लोद्रवा ओर सुबह तीसरे पहर वहाँ से निकल ऊँट पर बैठ सुबह अपनी सबसे छोटी पत्नी के कमरे में आ सो जाता। ऊँट के तेज दौड़ने से और  पूरी रात इतनी दूर आने जाने से वो पसीने से लथपथ रहता और  उसके बालों से पानी टपकता। 
ऐसा लगभग रोज रात आठ महीने तक महेन्द्रा चीतल ऊँट पर बैठ अपनी मूमल से मिलने जाता। धीरे धीरे यह बात परिवार वाले जान गए। जब आठ महीनों तक वो किसी दूसरी पत्नियों के कमरे में  नहीं गया तो सबसे अपनी सास से शिकायत कर दी कि महेन्द्रा सिर्फ़ छोटी पत्नी के पास रात बिताता है। जब उसने कहा मैं तो उन्हें सिर्फ सुबह कमरे में  सोया देखती हूँ रात को कब आते हैं पता ही नहीं चलता। जब बाल गीले होने वाली बात बताई तो महेन्द्रा के पिता बोले छोटी बहु तुम सुबह एक कटोरे में उसके बालों के पानी को जमा करना। जब अगले दिन छोटी बहु वो पानी का कटोरा ले ससुर जी के पास पहुँची वो पानी देख समझ गए ये काक नदी का पानी है। फिर चीतल ऊँट के बारे में भी जान गए और उसके टाँग तुड़वा दिऐ। 
सारिका बड़े ध्यान से यह प्रेम कहानी सुन रही थी। फिर क्या हुआ अमित चीतल ऊँट के टाँग टूटने के बाद क्या वो महेन्द्रा फिर कभी नहीं मिला मूमल से। और उनकी प्रेम कहानी यहीं खत्म हो गई। 
अमित : नहीं सारिका महेन्द्रा ने इतनी जल्दी हार नहीं मानी। 
मूमल और महेन्द्रा की प्रेम कहानी में सारिका खो गयी और खुद को मूमल की जगह देखने लगी। अमित से बोली, " याद है तुम भी दिल्ली से चेन्नई कैसे हर हफ्ते सिर्फ मुझसे मिलने आते थे और घर में हर बार नए बहाने बनाते। पर आखिर तुमने हमारी शादी के लिए परिवार वालों को मना ही लिया। "
अमित : मेरी सात बीवियाँ जो नहीं थी, कहते हुऐ हँसने लगा। 
सारिका : अच्छा तो ऐसी बात है। हिम्मत भी मत करना किसी की तरफ आँख उठा कर देखने की। वरना फोड़ दूँगी मैं तुम्हारा ये चश्मा जैसे उस चीतल ऊँट की तोड़ी थी टाँगें उसकी पत्नियों ने। और वो भी ठहाका मार हँसने लगती है। 

अच्छा अब बताओ आगे क्या हुआ। फिर कभी महेन्द्रा जा पाया मूमल से मिलने या नहीं। सातों पत्नियों को पता चलने के बाद तो बुरी हालत हुई होगी उसकी। 

अमित : हाँ तुम ठीक कह रही हो बुरी हालत तो हो ही गई थी महेन्द्रा की राजमहल में अब कड़ा पहरा लग गया था। सातों पत्नियां उस पर नजर रखती, पर वो तो तड़प रहा था अपनी मूमल से मिलने के लिए। उसने रामू काका को अपने कक्ष में बुलाया और सभी सेवकों को किसी काम से भेज एकांत में रामू से पूछा, "काका चीतल तो अब नहीं दौड़ सकता, किसी दूसरे ऊँट का जुगाड़ कीजिऐ जो उस जैसा ही तेज दौड़ता हो। "

रामू ने एक ऊँटनी के बारे में  बताया वो कम उम्र की है, दौड़ती तेज है पर उसे रास्ते का इतना ज्ञान नहीं है और तेज चाबुक पड़ते ही भड़क जाती है तो सावधानी से बड़े प्यार से उसकी सवारी करना। 

रात फिर सबके सोने के बाद महेन्द्रा उस नई ऊँटनी पर बैठ चल दिया सौ कोस दूर लोद्रवा। उस रात थोड़ी देरी से निकला था समय कम था, मूमल से मिलने के लिए व्याकुल था तो भूल गया रामू काका की नसीहत और ऊँटनी को और तेजी से दौड़ाने के लिए चाबुक तेजी से मारा। चाबुक लगते ही वो भड़क गई और दूसरी दिशा में दौड़ने लगी। लोद्रवा की जगह बाड़मेर पहुँच गया महेन्द्रा। 

यहाँ मूमल बहुत देर तक अपने प्रियतम महेन्द्रा का इंतजार करती रही, फिर उसकी सहेलियां और उसकी बहन सूमल उसका मन बहलाने के लिए नाटक खेलने लगी। जिसमें सूमल ने लड़कों वाले कपड़े पहन लिए थे। खेलते बाते करते दोनों बहन वहीं थक कर सो गई और सहेलियां अपने कमरों में चली गई। 

महेन्द्रा को जब अपनी गलती का एहसास हुआ कि चाबुक तेजी से मारने से ही ऊँटनी उसे लोद्रवा की जगह बाड़मेर ले आई। वो फिर ऊँटनी को लोद्रवा की तरफ मोड़ा। रात के तीसरे पहर जब वो मूमल की मेड़ी पर पहुँचा और मूमल के सयनकक्ष में एक पुरूष को सोया देखा जोकि मूमल की बहन सूमल थी जिसने पुरुष के कपड़े पहने हुए थे, नफरत से भर गया महेन्द्रा का मन। जिसके लिए मैं जान की बाजी लगा कर हर रात आता हूँ वो अन्य पुरुष के साथ सो रही है। गुस्से में चाबुक वहीं फैक महेन्द्रा वहाँ से चला जाता है। 

वापस अमरकोट लौट कर अब कभी मूमल से ना मिलने की कसम खाता है। 
अगर वो मेरे बिना किसी दूसरे पुरुष के साथ खुश है तो आज से मेरा भी उसके साथ कोई संबंध नहीं। 

यहाँ जब सुबह मूमल उठती है और दरवाजे पर चाबुक गिरा देखती है तो समझ जाती है कि महेन्द्रा रात को शायद देर से आया था मुझे सोता देख शायद चला गया। 

उसके मन में कई तरह के ख्याल आने लगे कि कहीं कोई गलतफहमी तो नहीं हो गई महेन्द्रा को जब अगली कई रात महेन्द्रा उससे मिलने नहीं आया। 

मूमल विरह में  तड़प रही थी, उसने श्रृंगार करना, खाना पीना सब छोड़ दिया था। उसकी कोमल काया काली पड़ने लगी , उसका वो सौन्दर्य जिससे पूरा राजस्थान महकता था वो धीरे धीरे कम होने लगा था विरह की आग में पल पल जल रही थी मूमल। 
उसने एक दिन ढोलकी को संदेश दे भेजा महेन्द्रा के राजमहल अमरकोट में। 

हाल महेन्द्रा का भी बहुत  बुरा था मूमल के बिना पर वो उस रात के दृश्य को भूल नहीं पा रहा था और मूमल से घृणा करने लगा। मोहब्बत जब नफरत में बदलती है तो बहुत तकलीफ देती है। 
ढोली महेन्द्रा के राजमहल के पास घूम घूम कर गा रहा था.. 
तुम्हारे बिना, सोढा राण, यह धरती धुंधली 
तेरी मूमल राणी है उदास
मूमल के बुलावे पर 
असल प्रियतम महेन्द्रा अब तो घर आव।। 


अमित जब ढोली की आवाज में गा कर सुनाता है वो राजस्थानी लोकगीत तो सारिका चहकते हुए कहती है अरे! वाह! मेरे ढोलना गाना तो बहुत अच्छा गाया तुमने अच्छा अब ये बताओ कि ढोली का यह गाना और मूमल का संदेश महेन्द्रा तक पहुँचा कि नहीं। 

अमित : हाँ महेन्द्रा ने अपने महल में  बुलाया उस ढोली को। जब ढोली ने मूमल का हाल बताया कि मूमल ने खाना पीना सजना सँवरना सब छोड़ दिया है बस तुम्हें संदेशा भेजा है आने का। एक बार आ कर मिल लो उसे कोई गलतफहमी हुई है तो दूर हो जाएगी जाकर एक बार देखो तो सही उसका हाल। 

इतना सुनकर महेन्द्रा और गुस्से से आग बबूला हो गया और  ढोली से कहा, " जाओ जाकर कह दो अपनी उस मूमल से कि मैं उसकी सुंदरता पर नहीं मरता जिसके साथ रात थी उसी से ब्याह कर ले। "

ये बात जब ढोली ने जाकर मूमल को बताई तो मूमल को उस रात की घटना याद आई कि जब उसकी बहन पुरूष के कपड़ो में उसी के पलंग पर सो गई थी, और सुबह उसके कमरे के बाहर महेन्द्रा का चाबुक गिरा पड़ा था। अब उसे पूरी बात समझ आई कि जरूर महेन्द्रा को गलतफहमी हो गई । सूमल को उसने कोई पुरूष समझ लिया, अब मुझे खुद अमरकोट जाकर उसे सारी सच्चाई बतानी होगी। वरना वो मुझे चरित्रहीन समझता रहेगा। 

मूमल ने रथ मँगवाया और अपने सेवक और सहेली के साथ अमरकोट महेन्द्रा के राजमहल पहुँच गई। वहाँ पहुँचकर मूमल ने महेन्द्रा को अपने सेवक द्वारा संदेशा भिजवाया कि वो उससे मिलने आई है। 

अब महेन्द्रा का दिल भी पसीज गया सोचा वो इतनी दूर से आज मुझसे मिलने आई है तो एक बार मिल लेता हूँ, अपने सेवकों से कहकर अतिथि सत्कार और महल के अतिथि कक्ष में उसके रुकने की व्यवस्था करवाई।

महेन्द्रा के मन में ना जाने क्या आया सोचा एक बार मूमल की प्रेम परीक्षा ली जाऐ। यह सोच महेन्द्रा ने अपने एक सेवक को सिखा कर भेजा। वो सेवक मूमल के पास जाकर दहाड़ मार कर रोने लगा और बोला, " मूमल राणी आपसे मिलने के लिए जैसे ही वो अपने कक्ष से निकले तभी उन्हें एक काले नाग ने डस लिया। "

इतना सुनते ही मूमल पछाड़ खाकर वहीं गिर गई और अपने प्राण त्याग दिए। मूमल के मरने की खबर जैसे ही महेन्द्रा को मिली वो पागलों की तरह मूमल के पास दौड़ता आया, पर बहुत देर कर दी उसने आने में। उसका वो मजाक भारी पड़ा मूमल के जीवन पर। शक और मजाक दोनों ने ले ली मूमल की जान। 

उसके बाद से महेन्द्रा भी पागलों की तरह थार मरुस्थल में दिन रात भटकता रहता और पुकारता रहता अपनी मूमल को...
म्हारी मूमल प्यारी..  
म्हारी मूमल प्यारी... 

सारिका की आँखों से आँसू टपक रहे थे जब अमित ने मूमल और महेन्द्रा की प्रेमकहानी खत्म की। 
"अरे! पगली तूँ रो रही है। " अमित बोला सारिका के आँसू पोछते हुए। 

सुबकते हुए सारिका बोली बहुत ही दर्दनाक प्रेम कहानी थी इनकी तो। मुझे तो लगा ये दोनों मिल जाऐंगे ।
अमित : सब हमारी तरह थोड़े ही होते हैं जिन्हें उनका प्यार मिल जाए। अच्छा छोड़ रोना धोना ये बता कि तूँ मूमल की जगह होती तो इस इतिहास कि यह प्रेम कहानी किस तरह बदल जाती। 

सारिका : अपने आँसू पोछते हुए पानी की बोतल से एक बार में सारा पानी पी कर बोलती है, हाँ मूमल ने गलती की थी महेन्द्रा की सात पत्नियां होकर भी वो पवित्र, मूमल ने उससे प्यार किया  और एक गलतफहमी के कारण उसने अपनी जान गवाँई । मूमल को उस सेवक की बात का विश्वास ना करके खुद जाकर देखना था। 

हाँ यह पूरी गलतफहमी, शक और झूठ के कारण दो प्रेम करने वाले कुरबान हो गए। 

आज भी मूमल की याद में राजस्थान के जैसलमेर में सौन्दर्य प्रतियोगिता होती है। 
सारिका अमित की बाहें  पकड़ घूम रही थी मूमल की मेड़ी में। 
अमित कभी मुझ पर शक तो नहीं करोगे ना, कोई बात हमें एक दूसरे की बुरी लगी तो हम बैठ कर आपस में बात करेंगे। 
अमित हाँ तुम ठीक कह रही हो ऐसा ही अगर महेन्द्रा ने किया होता तो शायद उनकी प्रेमकहानी का ये अंजाम ना होता। 
चलो बदलते हैं हम इतिहास 
होगी अगर मन में कोई बात
इक दूजे से कहेंगे अपने 
मन की बात 
ना करेंगे इक दूजे पर शक
अपनी प्रेमकहानी ऐसी लिखेंगे 
हमारे बच्चे भी सुनाऐंगे 
अपने बच्चों को बड़े शान से 
अमित सारिका की  प्रेम कहानी 
जिसका अंत होगा सुखद

और दोनों हँसते हुऐ अपनी मंजिल की तरफ आगे बढ़ रहे हैं... हाँ प्रेम के कालचक्र... को बदलने चले। 

समाप्त 

कविता झा 'काव्या कवि'




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6 Comments

Seema Priyadarshini sahay

19-Nov-2021 05:23 PM

बहुत खूबसूरत कहानीलेखन

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🤫

19-Nov-2021 10:37 AM

बेहतरीन लेखन.…👌

Reply

N.ksahu0007@writer

18-Nov-2021 09:59 PM

ये कहानी सच्ची घटना पर आधारित है । मेने ये कहानी नही सुनी थी न ही कहि पढ़ी थी ।

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Kavita Jha

19-Nov-2021 12:34 AM

हां ठीक कहा आपने धन्यवाद 😊🙏

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