मजदूर
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मैं श्रमिक कुछ इस तरह से जीना
चाह रहा हूं।
मेहनत के बदले दो वक्त की रोटी
और अपने बच्चों को पढ़ा लिखा कर
ऊंचे पद पर देखना चाह रहा हूं।
कोठी,बंगले की मुझे चाह नहीं,
बस एक छोटी कुटिया चाह रहा हूं।
जो श्रमिक राष्ट्रीय का आधार स्तंभ है
वो श्रमिक देश की प्रगति,
गांव की समृद्धि चाह रहा हूं।
देश में बेरोजगारी न हो,
कोई भूख से न मरे,
मेरे देश में गरीबी ना हो,
देश का स्तर ऊंचा हो।
बस यही देखना चाह रहा हूं।
मैं श्रमिक कुछ इस तरह से
जीना चाह रहा हूं।
हरप्रीत कौर
Virendra Pratap Singh
07-May-2021 02:47 PM
मज़दूर राष्ट्र का आधार स्तम्भ है,यह बहुत बड़ी बात कही आपने अपनी कविता में।
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Author sid
01-May-2021 09:48 PM
Good
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