कालिदास
महाकवि कालिदास
महान कवि कालिदास का नाम जग विश्रुत है। उन्हें संस्कृत साहित्य के प्रथम कवि का दर्जा प्राप़्त है।
किंवदंती है कि कालिदास एक मूर्ख व्यक्ति थे । उनका विवाह एक बहुत ही विद्वान राजकुमारी विद्योत्तमा से हुआ था।
यह एक बहुत रोचक प्रसंग है जो आप को मालूम भी होगा लेकिन आज मेरी इच्छा हुई कि इस विषय पर थोड़ी चर्चा करूं हो सकता है आप को कुछ पसंद आए...
विद्योत्तमा एक रूपवती और विद्वान राजकुमारी थी। उन्होंने शर्त रखी थी कि जो उन्हें शास्त्रार्थ में हरा देगा वह उसके साथ अपना विवाह रचाएंगी लेकिन उन्हें शास्त्रार्थ में कोई नहीं हरा पा रहा था ।बहुत से विद्वान आए लेकिन कोई उन्हें हरा ना सका। वे लोग अपने आप को बहुत अपमानित महसूस करने लगे ।इनमें कई विद्वान पंडित लोग भी थे । उन्होंनेे अपने अपमान का बदला लेने के लिए उनका विवाह अनपढ़ व्यक्ति से करवाने की ठान लिया।
वे किसी ऐसे आदमी की खोजकर रहे थे। उनकी दृष्टि एक पेड़ पर पड़ी। उन्होंने देखा कि एक आदमी जिस डाल पर बैठा हुआ है उसी डाल को काट रहा ह। वे लोग बहुत खुश हुए ।
उन्होंने कालिदास को विवाह करने का लालच देकर पेड़ से नीचे उतारा और उनसे मौन व्रत धारण करने को कहा। कालिदास देखने में बहुत आकर्षक थे अतः पंडित उन्हें अच्छे वस्त्रों से सुसज्जित करके राज महल में ले गए और राजकुमारी विद्योत्तमा से कहा कि--" हमारे गुरु जी ने कुछ दिनों का मौन व्रत रखा हुआ है"। अतः वह आपके प्रश्न का जवाब इशारों में देंगे।
शास्त्रार्थ शुरू हुआ .......राजकुमारी विद्योत्तमा ने अपनी एक उंगली आगे किया। जिसका तात्पर्य था कि ब्रह्म एक है...... कालिदास को लगा यह मेरी एक आंख फोड़ना चाहती हैं ।उन्होंने दो उंगली दिखाया...
कि मैं तुम्हारी हूं दोनों आंखें फोड़ दूंगा।
पंडितों में राजकुमारी को समझाया ---""गुरुजी कह रहे हैं की ब्रह्म दो है एक ब्रह्म को सिद्ध करने के लिए दूसरे ब्रह्म के सहायता लेनी पड़ती है। अकेलाे ब्रह्म स्वयं को सिद्ध नहीं कर सकता है"।
इसके बाद राजकुमारी ने अपने एक हाथ का पंजा दिखाया ....
जिसका मतलब था कि और पंचतत्व जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
कालिदास को लगा कि ये मुझे थप्पड़ मारने को कह रही है।
उन्होंने अपनी पूरी मुट्ठी बन्द कर ली कि" तुम मुझ थप्पड़ मारोगीे तो मैं तुम्हें घूंसा मारूंगा"।
पंडितों ने समझाया कि----
पंचतत्व अलग-अलग रूप से कोई विशिष्ट कार्य नहीं संपन्न कर सकते हैं और यह आपस में मिलकर ही एक शरीर का रूप लेते हैं "।
राजकुमारी ने अपनी हार स्वीकार कर ली। इस तरह कालिदास का विवाह राजकुमारी विद्योत्तमा के साथ संपन्न हुआ।
कालीदास उन्हें लेकर अपने कुटिया में आए । एकदिन वे दोनों सो रहे थे । अचानक रात में बाहर से कोई.आवाज सुनाई दी। विद्योत्तमा ने कहा "" किमेतत्"" कालिदास को तो संस्कृत आती नहीं थी उन्होंने उट्र उट्र कहना शुरू किया ।जबकि संस्कृत में ऊंट को उष्ट्र कहते हैं। अब तो उन्हें पता चल गया कि उनका पति अनपढ़ है। उन्होंने कालिदास को बहुत बुरा भला कहकर घर से निकलने को कहा और यह भी कहा कि जब तक एक सच्चे विद्वान मत बन जाना तब तक घर वापस मत आना।
कालिदास ने अपने को बहुत अपमानित महसूस किया और घर छोड़कर चले गए। उन्होंने काली मां के मंदिर में जाकर उनकी आराधना की जिससे प्रसन्न होकर मां ने उन्हें सरस्वती का वरदान दिया ।
कालिदास ने बहुत सालों तक अध्ययन किया। उसके बाद वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान हो गए। अपनी विद्वता के कारण कालिदास अब बहुत धनवान भी हो गए थे। तब वह अपने घर वापस आए ।
उन्होंने"" अनावृत्तम कपाटम् द्वारम् देहि" ( दरवाजा खोलो) कहकर दरवाजा खटखटाय विद्योत्तमा एकदम आश्चर्यचकित थीं । उन्होंने ने जवाब दिया--""अस्ति कश्चित् वाग्विशेषः" ज़रूर कोई वाणी का विद्वान है।
कालिदास ने अपनी पत्नी के मुंह से निकले इन शब्दों को माध्यम बनाकर तीन रचनाएं लिखी......
अस्ति से
अस्त्युत्तरस्याम् दिशि देवात्मा...कुमारसंभव महाकाव्य की रचना की।
इसमें शिव पार्वती के जीवन का और हिमालय सौंदर्य का विशद वर्णन हुआ है इसमें कवि कालिदास ने शिव पार्वती को साधारण मानव प्रेमी प्रेमिका के रूप में प्रस्तुत कर मानवीय प्रणय और गृहस्थ जीवन को महिमामंडित किया है। कुमारसंभव का तात्पर्य शिव जी के पुत्र कार्तिकेय से है। कवि ने कार्तिकेय के जन्म की कथा को एक महाकाव्य का रूप दिया है।
"" कश्चित" से कश्चितकान्तविरहगुरूणा "मेघदूत" .खण्डकाव्य की रचना की....इसमें एक विरही यक्ष जिसे कुबेर ने अलकापुरी से निष्कासित कर दिया था और वह राम गिरी पर्वत पर निवास करता था । वर्षा ऋतु में जब उसे अपनी प्रेमिका की याद सताने लगती है तब वह बादलों के है माध्यम से अपनी प्रेमिका को संदेश भेज रहा है ।
"वाग्विशेषः" से वागार्थिव सम्पृक्तौ
"रघुवंश महाकाव्य" की रचना की... इसमें रघुकुल में उत्पन्न 29 राजाओं का विशेष वर्णन किया गया है यह सभी राजा समाज में आदर्श स्थापित करने में सफल हुए भगवान श्री राम का इसमें विशद वर्णन किया गया है।
यद्यपि "अभिज्ञान शाकुंतलम्" उनकी विश्व प्रसिद्ध रचना है। यह नाट्यरूप में लिखा गया है। इसमें राजा दुष्यंत तथा शकुंतला के प्रेम, विवाह ,विरह तथा पुनर्मिलन की एक सुंदर कहानी है इस नाटक में कवि ने राजा दुष्यन्त को मुद्रिका द्वारा शकुंतला की याद दिलाया है।
सौजन्यसे.........स्वध्याय एवं विकपीडिया व अन्य स्रोत....
नोटः यदि आप को कुछ अच्छा लगा हो तो कमेंट बॉक्स में कमेंट जरूर कीजिएगा☺☺
स्नेहलता पाण्डेय'स्नेह'
Gunjan Kamal
23-Nov-2021 10:57 PM
शानदार👏👏👏👌👌🙏🏻
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Sneh lata pandey
23-Nov-2021 11:07 PM
आभार🙏🙏🌹🌹
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Zakirhusain Abbas Chougule
23-Nov-2021 10:51 PM
Nice
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Sneh lata pandey
23-Nov-2021 11:08 PM
Thanks
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