Geeta

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मुखौटा

अपने विदाई संबोधन में साहब ने सभी का नाम ले लेकर उनका आभार व्यक्त किया। इतने वर्षों की सरकारी सेवा में सभी साहब की दरियादिली से परिचित हो चुके थे। आज उनके विदाई समारोह के दौरान सभी की आंखें नम थी। किसी ने साहब से जुड़ा कोई प्रसंग सुनाया और किसी ने कोई। इधर समारोह चल रहा था और उधर साहब का सामान गाड़ी में चढ़ाया जा रहा था। कुछ सामान उतरता और कुछ चढ़ता। ऐसे ही भागादौड़ी के बीच एक तरफ समारोह समाप्त हुआ और उधर दूसरी तरफ साहब का सारा सामान गाडी में लद गया। पूरी नौकरी रायबरेली में करने के बाद भी साहब को यहां के माल ढुलाने वालों पर भरोसा नहीं था, इसलिए साहब ने लखनऊ से ही सामान ले जाने के लिए गाड़ी और आदमियों का इंतजाम किया था। खैर......उनकी जो भी इच्छा रही हो, उसमें किसी को क्या एतराज हो सकता था। जाते जाते भी साहब सबसे व्यक्तिगत तौर पर मिलकर गए, इसी बात से सभी गदगद थे।


सभी लोग एक दूसरे से साहब की तारीफों के पुल बांध रहे थे। तारीफ हो भी क्यों ना! आखिर उनके घर की चौखट से कभी भी कोई बिना चाय पिये नहीं निकला होगा, चाहे साहब का ड्राइवर हो, माली हो या ऑफिस का चपरासी। यह बात अलग है कि बाद में उनके आवास छोड़न के काफी समय बाद पता चला कि साहब के ऑफिस के चाय नाश्ते के हिसाब में, घर आने वाले रिश्तेदारों तक की चाय का हिसाब सम्मिलित था। ठीक ही तो है, उनक रिश्तेदार साहब के ऑफिस की ही जिम्मेदारी होने चाहिए, आखिर इतने बड़ा ओहदा था उनका।


अरे हाँ, जाते समय साहब सभी कर्मचारियों को, लखनऊ में बनाई अपनी नई कोठी के गृह प्रवेश में बुलाना नहीं भूले। यह होता है बड़े लोगों का बड़प्पन। हमने भी सोचा ऑफिस के काम से लखनऊ जाना ही है....क्यों न साहब की कोठी भी देख आएं। मुई रेलगाड़ी की लेट लतीफी तो देखो, जब तक हम पहुंचे, तब तक गृह प्रवेश की पूजा समाप्त होकर, भोज आरंभ हो चुका था। मन में बहुत ग्लानि हुई। साहब भी क्या सोचेंगे? आ गए भुक्कखड.....ठीक खाने के समय पर। साहब के हिसाब का उपहार भी तो नहीं ला पाया था मैं। कहां साहब इतने बड़े विभाग के सबसे बड़े अधिकारी और कहां मैं..... एक कनिष्ठ लिपिक। अपनी हैसियत के अनुसार ही एक छोटा सा उपहार ला पाया था। 


साहब दरवाजे पर ही मिल गए और मेरी शंकाओं को गलत साबित करते हुए उन्होंने बड़े प्रेम से मेरा स्वागत किया। भोजन करने के लिए पंडाल में ले गए और मेरी कार्यशैली की प्रशंसा करने लगे। मुझे स्वयं पर गर्व हो रहा था कि मैंने इतने बड़े और सज्जन व्यक्ति के साथ कार्य किया है। तभी वहां खेल रहे बच्चों में से एक बच्चा आकर मुझसे टकरा गया और मेरी खाने की प्लेट मुझ पर ही उलट गई। मैंने साहब की ओर देखा तो उन्होंने अपने बेटे के साथ मुझे घर के भीतर जाकर कपड़े साफ करने के लिए भेज दिया।


घर के अंदर जाते ही मेरी दृष्टि जैसे जड़ सी हो गई। साहब के बैठक के कमरे में लगा झूमर, दीवार किनारे लगे बड़े बड़े फूलदान और कमरे के बीचों बीच लगी मेज....सब पहले कहीं देखे देखे से लगे। फिर याद आया कि ये सब बेशकीमती चीजें....साहब के सरकारी बंगले की शान बढ़ाया करती थीं। आज भी साहब के बंगले की शान में दमक रहे हैं। करोड़ों की कोठी बनाने वाले साहब इन छोटी छोटी वस्तुओं की कीमत अच्छी तरह समझते थे, शायद इसलिए ही उन्हें सरकारी बंगले पर धूल खाने के लिए छोड़कर ना जा सके। मैंने कौतूहलवश अंदर बाहर घूम घूमकर पूरे बंगले का चोर नजरों से मुआयना किया। छोटा आदमी और कर भी क्या सकता है। इतनी कीमती चीजों से कहां खुलकर नज़रें मिला पाता। साहब के घर के हर कोने में सरकारी आवास की छाप दिखाई दे रही थी।


मैं बहुत भारी मन से साहब के घर से बाहर आया, तो साहब ने दुबारा खाने की प्लेट मेरे सामने रख दी। हमारे संस्कारों में अन्न का अपमान करना नहीं सिखाया जाता, इसलिए बहुत बेमन से मैंने प्लेट पकड़ ली। साहब और मैं एक ही मेज़ के दो विपरीत किनारों पर बैठे थे। साहब लगातार कुछ न कुछ बोलते जा रहे थे, जो मेरे कानों से होकर शायद जा ही नहीं पा रहा था। मैं मन ही मन  कभी उन साहब की छवि देख रहा था, जिन्हें हमारा पूरा ऑफिस देवता की तरह पूजता था और कभी अपने सामने बैठे, सुन्दर मुखौटे में छुपे एक छोटे आदमी को। समझ नहीं आ रहा था कि वे दोनों एक ही इंसान हैं या वह सिर्फ मेरा भ्रम था। मैं उपहार स्वरुप देने के लिए स्वामी विवेकानंद जी की तस्वीर लेकर गया था। उस तस्वीर के समक्ष, मेरे सामने बैठा व्यक्ति मुझे इतना तुच्छ लग रहा था कि मैंने उन देवता के प्रतीक को अपने पुराने थैले में ही रखना बेहतर समझा। फटा पुराना ही सही, वह थैला मेरी खून पसीन की कमाई से खरीदा गया था, इसलिए उसकी कीमत मेरे लिए बहुत अधिक थी। मेरी दृष्टि से शायद स्वामी जी के लिए वह थैला, साहब के बंगले से अधिक उपयुक्त स्थान था। ऐसा लग रहा था जैसे वह कोठी और मेरे सामने बैठा व्यक्ति उस उपहार के लिए सुपात्र न थे।

✍️गीता गरिमा पांडेय

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8 Comments

जीवन का कटु सच..

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Shashank barnwal

12-May-2021 12:03 PM

Nice 👌

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