लेखनी प्रतियोगिता -25-Nov-2021
*विषय - प्रेम*
जब आए हो इस दुनिया में
कुछ ऐसा तुम करते चलो
प्रेम बाग के प्रेम सुमन में
प्रेम पराग लुटाते चलो
नफरत ना पनपे दिल में अब
प्रेम भरे इस जीवन में
प्रेम ही बोओ प्रेम ही काटो
प्रेम से प्रेम लुटाते चलो।
प्रेम नाम है ह्रदय मिलन का
तन का मिलना प्रेम नहीं,
प्रेम दूर से हो जाता है
संग में चलना प्रेम नहीं
प्रेम करो तो दिल से करना
प्रेम है कोई खेल नहीं,
प्रेम के रूप अनेकों है यहां
प्रेम का कोई रूप नहीं।
प्रेम था राधा और कृष्णा का
जिसमें कोई स्वार्थ नहीं,
जिस प्रेम में स्वार्थ छुपा हो
उसका कोई अर्थ नहीं,
सुन लो मेरे दुनिया वालों
प्रेम की बात बताता हूं,
जहां प्रेम का चलन नहीं है
मैं वहां भी प्रेम लुटाता हूं।
मैं हूं *मुसाफिर* प्रेम नगर का
प्रेम की धुन में रहता हूं,
कुछ नहीं है पास में मेरे
प्रेम ही साथ में रखता हूं,
जब जी चाहे घूम लेना
मेरे दिल की गलियों में
मैं पागल हूं बादल जैसा
प्रेम का नीर बरसता हूं।
-मनोज पाण्डेय "मुसाफिऱ"
स्वरचित हिंदी कविता