ऋचा

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कविता ःशोर


🌊🌊🌊🌊
सागर की लहरें
स्वागत में खडे थे
बाहर शोर था
अंदर चोर था
मैं भाग रही थी किससे
वह खुद मुझको भी मालूम न था।

🌀💕


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