surendra@4004

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लेखनी प्रतियोगिता -29-Nov-2021

                                      मां

कृष्ण की श्याम निशा में, शुक्ल की बढ़ती चांदनी तुम।
अज्ञानता के अथाह अंधकार में, ज्ञान की पहली रोशनी तुम।
निराशा के अनन्त सागर में, आशा का किनारा तुम।
सूरज की तपती धूप में, चांद की शीतलता तुम।
मेरे दिल के दर्द को समझे, मेरे मन की ज्ञाता तुम।
क्रोध में कभी जो डांटा मुझको, ममता का प्यार बरसती तुम।
रात को जब नींद न आती, स्नेह की लोरी सुनाती तुम।
जब मैं खाना न खाऊं, तो पीछे दौड़ लगाती तुम।
मांगता हूं मैं दो रोटी, फिर क्यों चार देती तुम;
मेरे जीवन की प्रथम गुरु तुम, फिर गिनती क्यों भूल जाती तुम।
सुबह उठू जो न मैं जल्दी, नौ बज गए बताती तुम; 
घड़ी देखना तुम्हीं ने सिखाया, क्यों गलत समय बताती तुम।
गीले में खुद सो जाती, मुझे सूखे में सुलाती तुम;
की मैंने बचपन में गलती, उसकी सजा खुद को क्यों देती तुम।
नौ महीने का कष्ट सहा,मेरे रुह की निर्माता तुम
तुमने मुझको जीवन दिया, मेरे लिए भगवान हो तुम।

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4 Comments

Angela

29-Nov-2021 10:19 PM

Wonderful penning ☺

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surendra@4004

30-Nov-2021 04:51 PM

Thanks

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Swati chourasia

29-Nov-2021 07:33 PM

Very beautiful 👌👌

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surendra@4004

30-Nov-2021 04:51 PM

Thanks 😊

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