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लज्जा

लता ने आज स्कूल काव्य प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। उसकी कविता का शीर्षक था 'लज्जा'। लज्जा...स्त्रियों का वह सुंदर भाव है जो स्त्रियों को एक सम्पूर्णता प्रदान करता है। इसी सुंदर भाव को लता ने अपनी लेखनी से सुशोभित किया था। प्रथम पुरस्कार प्राप्त कर आज वह बहुत खुश थी।

अभी वह मात्र बारह वर्ष की ही थी। उसकी अवस्था ऐसी थी...जो स्वप्नों के कई रंगों से उसको स्नान करा रही थीं...उसके नेत्रो में गहरी नीले समुंदरों की लहरें हिलोरें ले रहीं थी...उसके अधर सद्यः विकसित पुष्पों की पंखुड़ियों की तरह सजल थे...उसके केश पवन के साथ ऐसे लहराते थे जैसे अभी कई मंजिलें चढ़नी है।

उसके कदम बड़ी जल्दी-जल्दी घर की तरफ बढ़ रहे थे आखिर उसे माँ को खुश खबरी जो सुनानी थी। लेकिन...जब वह अपने घर से थोड़ी दूर पर थी, तो देखती है कि उसके घर के आसपास काफी भीड़ लगी हुई है। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि इतनी भीड़ उसके घर के बाहर क्या कर रही है? वह भीड़ को चीरती हुई अंदर पहुंचती है तो उसकी आंखें स्थिर और सासें रुक सी जाती हैं, वह देखती है उसके माता-पिता की लाशें भूमि पर लेटी हुई है। वह हकलाती हुई मामी से पूछती है―

"मामी...मामी! यह क्या है? मामी, माँ को क्या हुआ ? पापा जमीन पर क्यों लेटे हैं। मामी! माँ आंखे क्यों नहीं खोल रही।"

मामी रोते हुए कहती है―

"बेटा! तुम्हारे मम्मी पापा हमें छोड़ कर चले गए। एक कार एक्सीडेंट में उनकी मृत्यु हो गई , वह तुम्हें और तुम्हारे भाई मनु को अकेले छोड़ कर इस संसार से चले गए।

लता के हाथ से पुरस्कार छूट कर नीचे गिर जाता है और वह जोर-जोर से रोने लगती है―

"माँ उठो न...देखो मैं तुम्हारे लिए क्या लाई हूँ।"

लेकिन अब माँ कहाँ उठने वाली थी। समुन्दर जैसी नीली आँखे अब पत्थर सी हो गई थी, उसके होंठ सूख गए थे। एक सप्ताह गुजर गया लेकिन लता अपने कमरे से बाहर नहीं निकली। उसकी मामी उसके कमरे का दरवाजा खट-खटाती है―

"बेटा! दरवाजा खोल, खाना खा ले, कब तक इसतरह रहो गी। हम लोग आज मिर्जापुर वापस जा रहे तुम भी अपना सामान पैक कर लो। तुम और मनु अब हमारे साथ ही रहोगे।"

मनु अभी दस साल का था। वह दीदी से कहता है―

"क्या हमलोग यहीं नहीं रह सकते, मुझे मामी के साथ नहीं जाना।"

लता मनु को अपने गले से लगा लेती है परंतु उसकी जिह्वा अब शब्दों का साथ नहीं दे रही थी; वह कुछ बोल न सकी। उसे तो अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था कि अब माँ-पापा उसके साथ नहीं हैं। उसे लगता था अभी मां आवाज देंगी—"लताss...आ बेटा खाना खा ले बहुत देर हो रही।" लेकिन अब वह माँ की आवाज नहीं सुन रही थी। कहाँ चली गई मां...? चारो तरफ सन्नाटा क्यों है...? अब माँ की वह मीठी आवाज क्यों नहीं सुनाई दे रही...?सब कहाँ चले गए? क्या अब मैं कभी भी मां-पापा को नहीं देख पाऊँगी? उसका मन-मस्तिष्क सब जड़वत सा हो गया था, उसकी संज्ञानता शून्य सी हो गई थीं।

लता और उसका भाई दोनों अपने मामी के घर मिर्जापुर रहने चले जाते हैं। मामा-मामी गरीब थे, उनकी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि लता को पढ़ा सके। अब लता स्कूल नहीं जाती थी। जीवन के वो सुनहरे रंग जिससे कभी लता ने अपने सपनों को रंगा था आज वो सारे रंग उसके अश्रुओं से धुल गए थे। मामी ने उसे घर के कामों में लगा लिया था। मामा शराबी था वह रोज रात शराब पी कर आता और घर में कलह करता था। दोनों बच्चों का भविष्य अब सुरक्षित नहीं था, उन दोनों के जीवन ने एक भयानक और अंतहीन पीड़ा की ओर करवट लेली थी।

मामा मनु को अकारण मारता-पीटता भी था, अपनी सारी निराशा और हताशा उस नन्हें से बच्चे पर उड़ेलता; वह बच्चा जिसको जीवन का ज्ञान भी न था वह अब जीवन की विभीषिका देख रहा था। उसका मस्तिष्क इस योग्य भी न था कि वह इस अचानक हुए परिवर्तन को समझ सके।

दिन बितने लगा... लता अब 15 वर्ष की हो गई थी, अब उसकी मामी उसको दूसरों के घर काम के लिए भी भेजने लगी थी। अब उसके जीवन में मात्र दूसरों के घरों का गृह-कार्य ही शेष रह गया था, समय के साथ मामा-मामी अत्यधिक स्वार्थी भी हो गए थे, और उनके अत्याचारों का क्रम भी बढ़ गया था।

प्रतिदिन की तरह आज भी लता घर के काम निबटा कर घर से निकलती है, इस बात से अनभिज्ञ कि आज का दिन उसके जीवन में एक और भयानक मोड़ लेने वाला है।

सुबह के 8 बजे हैं। वह अपने ग्राहक सिविल लाइन्स स्थित मकान न. 226 का दरवाजा खटखटाती है...या यूँ कहें कि वह आज अपने दुर्भाग्य को दस्तक दे रही थी।

इस घर पर चार लड़के रहते थे जिनमें से दो सिविल परीक्षा की तैयारी कर रहे थे, एक कोई सरकारी जॉब कर रहा था और एक जिसका नाम नवीन था वह राष्ट्रीय स्तर का खिलाड़ी था।

बहुत खटख़टाने के पश्चात भी जब किसी ने दरवाजा नहीं खोला तो वह दूसरी चाभी से...जो अक्सर डोरमैट के नीचे होती है उससे दरवाजा खोल कर अंदर चली आयी। घर में प्रवेश करते ही वह पुनः आवाज लगाती है―

"भैया...भैया...कोई है?"

लेकिन कोई प्रत्युत्तर न मिलने पर―

"लगता...है कोई नहीं है।" ऐसा कह कर अपने काम में व्यस्त हो जाती है। तभी उससे दरवाजे पर किसी के खटखटाने की आवाज सुनाई देती है, वह अपना काम रोक कर आवाज सुनने की कोशिश करती है, लेकिन उसे कुछ सुनाई नहीं देता; वह पुनः अपने कार्य में व्यस्त हो जाती है...तभी उसे फिर दरवाजे पर किसी के होने का आभास होता है...इसबार वह कौन है...? यह जानने के लिए उठती है। और दरवाजा खोलकर देखती है तो एक लंबा-चौड़ा लड़का दरवाजे पर खड़ा है, जिसे उसने पहले कभी नहीं देखा था।

"तुम कौन हो? तुमको किससे मिलना है? इस समय यहाँ कोई नहीं है, तुम बाद में आना।"

"मैं आशीष का दोस्त हूँ, उसने कहा है कि मैं यहीं उसका इंतजार करूँ।"

वह लड़का जिसका नाम प्रवीण था, अंदर आ जाता है और लता से कहता है―

"एक गिलास पानी मिलेगा।"

"हाँ, अभी लाती हूँ।"

लता पानी लाने रसोई की तरफ जाती है।

प्रवीण चारो तरफ घूम-घूम कर देखता है और आश्वस्त हो जाता है कि लता सचमुच घर में अकेली है।

"ये लो भैया पानी"

जैसे ही लता उसको पानी देने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाती है, वह उसका हाथ तेजी से अपनी तरफ खींच लेता है, तभी पानी का गिलास नीचे गिर जाता है...।

"भैया ये आप क्या कर रहे?"

वह अपने आप को छुड़ाने की कोशिश करती है, लेकिन वह उसे जबरदस्ती कमरे की ओर ले जाता है और उससे दुराचार करने का प्रयास करता है।

तभी नवीन...जो शारीरिक अभ्यास के लिए बाहर गया था...वापस आजाता है। उसे कमरे से कुछ आवाजें सुनाई देती हैं ,वो कमरे की तरफ जाता है तो देखता है कि प्रवीण लता के साथ बलात् व्यवहार कर रहा है।
नवीन को उस समय कुछ समझ में नहीं आता और वह वहाँ से चला जाता है।

लता को अब कुछ समझ में नहींआ रहा था कि अब वह क्या करे। वह किसी तरह अपने आप को समेट कर घर पहुंचती है और मामी से सब कुछ कह देती है।
मामी उसके ऊपर बहुत चिल्लाती है फिर कुछ न समझ में आने पर वह उसको पुलिस स्टेशन ले जाती हैं।
लता अपना सारा वृतांत सुना देती है। पुलिस इंस्पेक्टर उसको सांत्वना देता है कि तुम्हें न्याय अवश्य मिलेगा। पुलिस तुरंत कार्यवाही करते हुए प्रवीण को गिरफ्तार कर लेती है।

प्रवीण जिसके पिता एक माने हुए राजनयिक हैं, अतः वह अपने प्रभावों का प्रयोग करते हुए... प्रवीण को निर्दोष प्रमाणित करने के लिए एड़ी-चोटी एक कर देते हैं। अपने पिता के प्रभाव से वह निचली अदालत से सुरक्षित बच निकलता है, उसका एकमात्र गवाह नवीन भी कोर्ट में झूठ बोल देता है। इसके विपरीत लता पर ही चरित्रहीनता का आरोप लगा दिया जाता है।

किसी तरह लता अपना दिन काटने लगती है। इधर नवीन को अपने किए पर पछतावा होता है। वह लता के घर जा कर उसके मामा से कहता है―

"मैं आपलोगों से क्षमा मांगता हूँ, हम लोग अब ऊपर की अदालत में जायेगें आप बिलकुल चिंता न करें।"

मामा बहुत गुस्सा करता है, और कहता है―

"हमें कुछ नहीं करना तुम यहाँ से जाओ, हम लोगों को तुम्हारी सहायता की कोई जरूरत नहीं।"

नवीन उस दिन वहाँ से चला जाता है। लेकिन दूसरे दिन जब लता दुकान पर कुछ खरीद रही थी, तभी नवीन वहाँ आ जाता है, और कहता है―

"तुम घबराओ नहीं हम लोग हाई कोर्ट जाए गें, तुम्हें इंसाफ जरूर मिलेगा।"

लेकिन तभी प्रवीण के गुंडे उसे देख लेते है और उसको लता के साथ देख कर उसे धमकाते हैं―

"तुम लता से क्या बाते कर रहे थे?"

"कुछ नहीं मैं तो बस उसका हाल चाल ले रहा था।"

"आगे से तुम लता से नहीं मिलोगे, नहीं तो...हम लोग तुम्हारा क्या हश्र करेंगे, उसका तुम अनुमान भी नहीं लगा सकते।"

लेकिन फिर भी नवीन लता से मिलता था और बार-बार उसे अदालत में अपील करने के लिए कहता रहता था।

लता का हृदय टूट चुका था, वह अब इस घटना को भुला देना चाहती थी।

दिन बितने लगा तभी एक दिन लता के पेट में दर्द हुआ, तो मामी उसे डॉक्टर के पास ले गई। पता चला कि लता गर्भवती है। लता को यह सुनते ही चक्कर आने लगता है और वो बेहोश हो जाती है। मामी तो बिल्कुल पागल सी हो जाती है...घर आकर वह लता को बहुत शारीरिक और मानसिक आघात देती है―

"न जाने किस मनहूस घड़ी में मैं इसको अपने घर ले लायी, इसने तो मुझे कहीं-का न छोड़ा, पूरी बिरादरी में इसने नाक कटा दी है ... इसकी माँ तो मर गई और अपनी बला मेरे ऊपर छोड़ गई।"

लता तो कुछ बोल ही नहीं रही थी वह चुप-चाप, संज्ञा शून्य हो कर लगातार जमीन की ओर देख रही थी। उसे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि उसके साथ यह सब क्या हो रहा है। वह रोने लगी और उस दिन को याद करने लगी जब वह माँ-पापा के साथ रहती थी―

"माँ तुम मुझे छोड़ कर कहाँ चली गई। मैं तुम्हारे बिना कैसे जीवन जीउँ? देखो...तुम्हारे बिना मेरा क्या हाल हो रहा है? मुझे भीअपने पास बुला लो। मैं अब यहां नहीं रहना चाहती"

उस दिन सारी रात वह सोई नहीं और खिड़की से आसमान को देखती रही। जाने कब सुबह हो गई तभी मामी की आवाज सुनाई दी―

"अरे कलमुँही उठ गई, नाश्ता कौन बनाये गा? जल्दी उठ क्लीनिक भी जाना है।"

मामी सुबह-सुबह क्लिनिक जाकर लता का गर्भपात करवा देती है।

पुलिस का एक खबरी लता को क्लीनिक से निकले हुए देख लेता है अतः यह सूचना पुलिस को दे देता है।

पुलिस तुरंत मामा के घर जाती है, और पूछताछ करती है―

"मुझे आप की लड़की से बात करना है, उसे बुलाइये।"

लता किसी तरह उठ कर आती है।

"बेटा सच-सच बताओ तुम कहाँ गई थी?"

मामा बीचमें हस्तक्षेप करते हुआ कहता है―

"साहब, रिश्तेदारी में शादी है उसी की खरीदारी के लिए गई थी।"

"तुम चुप रहो मैं बच्ची से बात कर रहा, हाँ बेटा बताओ घबराओ नहीं, किसी से डरने की कोई जरूरत नहीं है।"

लता पहले मामा की ओर देखती है, फिर मामी की ओर। फिर मामी हड़बड़ाते हुए कहती है―

"हाँ, हम लोग क्लीनिक गए थे।"

"क्यों?"

"बच्चा गिरवाने।"

"बच्चा गिरवाने? क्यों...?किसका बच्चा है ये?"

कोई कुछ नहीं बोलता चारो तरफ सन्नाटा है।

"बोलो,अब बोलते क्यों नहीं? किसका बच्चा है ये?

"साहब, वही नवीन का..."

पुलिस इतना सुनते ही वहां से सीधे क्लीनिक पहुँचती है और डॉक्टर से मिलती है।

"डॉ. राधा आपको पता है कि बच्ची नाबालिक है तो आपको पुलिस को सूचना देना चाहिए था। भ्रूण कहाँ है? वह रखा है या फेंक दिया?"

"सर, रखा है।"

पुलिस भ्रूण को डीएनए टेस्ट के लिए भेज देती है।

लता शारीरिक और मानसिक दोनों ही स्थिति में टूट गई थी। उसे अब कुछ समझ में नहीं आ रहा था...उसके पास अब न ही कोई सपना शेष था और न ही आशा... उसकी हालत अब उस टूटी हुई पतंग की तरह थी जो पता नहीं कहाँ गिरेगी...कौन उसको थामेगा जो फिर उसे आसमान की ऊंचाइयों में घुमा सके...वह बिल्कुल मृतप्राय सी हो गई थी।

डीएनए रिपोर्ट आ जाती है पता चलता है कि मृतक भ्रूण नवीन का नहीं है। अब पुलिस लता को पुलिस स्टेशन बुलाती है और एक महिला पुलिस और मनो चिकित्सिका के साथ बैठ कर लता से पूछताछ करती है―

"लता यह बताओ तुमने झूठ क्यों बोला कि यह बच्चा नवीन का है।"

लता घबरा जाती है―

"मैं आपलोगों को कुछ नही बताउंगी।"

"क्यों बेटा?"

"वो मामा"

"हाँ, बताओ क्या मामा...?"

"नहीं... मैं कुछ नहीं बताऊँगी।"

"बोलो बेटा घबराओ नहीं तुम्हें किसी से डरने की बात नहीं, कोई तुम्हें कुछ नहीं करेगा, हम सब तुम्हारे साथ हैं।"

"वो मामा मेरे भाई मनु को मारेगा...अगर मैंने आप लोगों को कुछ बताया तो, मामा..."

"नहीं बेटा... तुम सच-सच बताओ, हम तुम्हारे भाई को कुछ नहीं होने देगें।"

"हाँ... वो बच्चा नवीन का नहीं है, ऐसा कहने के लिए मामा ने मुझसे कहा था। वो...वो बच्चा प्रवीण का था।

प्रवीण का...?"

"मेरे मामा ने प्रवीण के पिता रामनाथ शुक्ल से पैसे लिए थे और अदालत में भी गलत रिपोर्ट दी गई थी, प्रवीण को बचाने के लिए।"

अब पुलिस मामाको बुलाती है पूछताछ करने के लिए।

"मैं क्या करता साहब, वो काफी बड़े लोग थे, उन्होंने हमें जान से मारने की धमकी भी दी थी।"

पुलिस के पास अब सारे सबूत थे, अतः उन्होंने ऊपरी अदालत में केस फ़ाइल किया। इस बार सशक्त प्रमाण होने के कारण प्रवीण का बचना मुश्किल था। रामनाथ शुक्ल का वकील केस जीतने में असफल रहा और एक बार फिर सच्चाई न्याय के बाहों में सुरक्षित थी।

मामा के ऊपर भी कोर्ट में गलत रिपोर्ट देने और बच्चों की परवरिश ठीक से न करने के अपराध में मुकदमा कर दिया गया।

लेकिन इन सब से लता के जीवन में कोई परिवर्तन नहीं हुआ, उसकी जिंदगी तो अब जैसे समाप्त सी हो गई थी...उसकी लिखी हुई कविता 'लज्जा' न जाने कहाँ खो गई थी। लज्जा तो क्या अब उसके जीवन में कोई भी भाव शेष नहीं था...दूर-दूर तक केवल एक रेगिस्तान था जिस पर केवल सूखी और गरम हवा ही बह रही थी...।

समाप्त।


आपके सुझाव आमंत्रित हैं। धन्यवाद।


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10 Comments

kashish

03-Feb-2023 02:21 PM

osm story

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Abhilasha sahay

16-Dec-2021 04:33 PM

Very nice 👌

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Kaushalya Rani

15-Dec-2021 07:12 PM

Sundar katha

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