आदमी मिलता नहीं है आदमी से।
2122 2122 2122
छोड़ दो करना गिला शिकवा किसी से।
जो मिला स्वीकार कर उसको खुशी से।
मांग मत मुझसे ख़ुदा का अब पता जब।
आदमी मिलता नहीं है आदमी से।
खून करने मत बढ़ो अपने ही खूंँ का।
भूल मत हम सब बने हैं भारती से।
कहकशांँ में खोजता हूं एक तारा।
जो बधाई कह सके अब ज़िंदगी से।
प्यार के राहों पे चलकर देख तो लो।
भूल जाओगे नशा फिर मयक़शी से।
है नगर अंधा नहीं तो फिर बताओ।
खौफ़ खाते लोग क्यों हैं रोशनी से?
नूर सूरज ने दिया है चांँद को तब।
मांँगते तुम नूर क्यों हो चांँदनी से।
©®दीपक झा "रुद्रा"
Abhilasha sahay
01-Dec-2021 07:22 PM
Nice
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Payal thakur
30-Nov-2021 06:08 PM
Very beautiful
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