Sonia Jadhav

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बुद्धम शरणम गच्छामि

आम्रपाली अपने शयनकक्ष में अपना सौंदर्य निहार रही होती है। कहाँ पहले उसे अपने रंगरूप पर कितना अहंकार, कितना गर्व महसूस होता था और होता भी क्यों नहीं, समूचे वैशाली राज्य में उसके जैसा खूबसूरत भी तो कोई नहीं था। चारों तरफ उसी के रूप की चर्चा थी। वैशाली राज्य का हर व्यक्ति चाहे वृद्ध हो या फिर युवा, उसके रूप का रसपान करना चाहता था, उसे सदा के लिए अपना बनाना चाहता था।

उसने भी तो सपने देखे थे किसी सम्पन्न नवयुवक से विवाह करने के, लेकिन किस्मत ने उसे वैशाली की नगर वधू बना दिया। अगर वो किसी एक की ब्याहता बनती तो पूरे वैशाली में युद्ध छिड़ जाता।  
नगर की अखंडता बचाने के लिए सर्वसम्मति से वैशाली के राजा ने उसे नगर वधू घोषित कर दिया।

आम्रपाली अपने साधारण से घर को छोड़कर अब महल में रहती थी। उसे अपने मनपसन्द साथी के साथ सम्बन्ध बनाने का अधिकार भी प्राप्त था। अब वो नगर वधू होने के साथ-साथ राज नर्तकी भी थी।

अब वो किसी एक की नहीं थी, समूचे वैशाली की थी। अनुपम सुंदरी और कुशल नृत्यांगना अब अपनी खुशी के लिए नहीं नाचती थी, वैशाली की प्रजा के लिए नाचती थी। उस पर अब हर किसी का हक़ था स्वयं उसके।

यही सोचते-सोचते उसकी आँखों से एक आंसू उसके हाथ पर छलक आया और उसे पीड़ा होने लगी अपनी ही सुंदरता से। उसे ना तो अब महल के राजसी ठाट बाट ही सुख देते थे ना उसके स्वर्णिम रूप की आभा।

एक दिन बुद्ध अपने शिष्यों के साथ प्रवास के लिए वैशाली आये। उनके सारे शिष्य घर-घर जाकर भिक्षा माँगते थे। ऐसे ही एक दिन एक युवा भिक्षुक आम्रपाली के द्वार पर आया भिक्षा मांगने के लिए।

उस भिक्षुक के मुख पर गजब का तेज़ था। ऐसा तेज, ऐसी गरिमा तो उसने कभी किसी पुरुष के मुख पर नहीं देखी थी। कुछ तो दिव्य था भिक्षुक के व्यक्तित्व में जिसने आम्रपाली के हृदय को भीतर तक छू लिया था।

आम्रपाली ने भिक्षुक के भिक्षा पात्र में भिक्षा डाली और महल के भीतर आने के लिए आमंत्रित किया जिससे साथी भिक्षुक गण ईर्ष्या और क्रोध की अग्नि में जलने लगे। आम्रपाली का सौंदर्य ही कुछ ऐसा था जो हर किसी के हृदय को विचलित कर देता था।

आम्रपाली ने कहा…..कुछ ही दिनों में वर्षा ऋतु प्रारम्भ हो जायेगी। मेरी इच्छा है कि आप वर्षा ऋतु के समय महल में प्रवास करें।

भिक्षुक..… मैं कोई भी कार्य तथागत की आज्ञा के बिना नहीं करता। अगर बुद्ध की आज्ञा हुई तो मैं महल में अवश्य ही प्रवास करूँगा। आपके निमंत्रण के लिए आभार, अब मुझे चलना चाहिए। आज्ञा दें देवी।

महल से बाहर निकलने पर भिक्षुक ने साथी भिक्षुकों को आम्रपाली के निमंत्रण के बारे में बताया जिससे वो और अधिक क्रोधित हो गए। भिक्षुक के पहुँचने से पहले ही अन्य भिक्षुक बुद्ध के पास पहुँच गए और शिकायत करने लगे।

भिक्षुक गण.....बुद्ध आपका एक भिक्षुक आज भिक्षा के लिए आम्रपाली के द्वार पर गया था। आम्रपाली ने उस पर मोहित होकर उसे भवन में अंदर आने के लिए कहा और वर्षा ऋतु उसके महल में बिताने के लिए निमंत्रण दिया ।

बुद्ध…… निमंत्रण उस भिक्षुक को मिला, इस पर तुम्हें क्या आपत्ति है?

भिक्षुक गण…..बुद्ध आम्रपाली नगर वधु है वैशाली की।

बुद्ध…..आम्रपाली का बोझ अपने कंधों पर से उतार दो, उसे महल में ही छोड़ दो। इस समय तुम मेरी शरण में हो, आम्रपाली के महल में नहीं, इसलिये यहाँ ध्यान केंद्रित रखो।

रही बात उस युवा भिक्षुक की, उसे निमंत्रण मिला अवश्य है लेकिन उसने अभी स्वीकार नहीं किया है। मुझे पूर्ण विश्वास है उस पर वो बिना मेरी आज्ञा लिए महल में प्रवास नहीं करेगा। अब तुम सभी जाकर ध्यान में अपनी ऊर्जा केंद्रित करो और मलिन विचारों को त्याग दो।

तभी युवा भिक्षुक बुद्ध के पास आता है और कहता है…….
बुद्ध आज जब मैं भिक्षा की अभिलाषा में आम्रपाली के द्वार पर गया था तो उसने मुझे वर्षा ऋतु में महल में रहने के लिए आमंत्रित किया। मैंने कहा अगर बुद्ध की अनुमति हुई तो मैं अवश्य ही महल में रहने के लिए आऊंगा।

बुद्ध ने कहा…..तुम जाकर महल में रह सकते हो, मुझे कोई आपत्ति नहीं।

अन्य भिक्षुकों ने यह सुना तो वो क्रोधित हो गए और बोले ….बुद्ध , एक वैश्या के घर वो युवा भिक्षु रहा तो वो अपने मार्ग से हट जायेगा।

बुद्ध…..तुम सब ऐसा क्यों सोचते हो कि युवा भिक्षुक भ्रष्ट हो जायेगा, यह भी तो संभव है कि आम्रपाली अपना मार्ग छोड़कर युवा भिक्षुक के मार्ग पर चलने लगे, क्या पता वो नगर वधु का पद छोड़कर एक भिक्षुणी का जीवन जीने को तैयार हो जाये?

भविष्य के गर्भ में क्या है, यह कोई नहीं जानता। इसलिये व्यर्थ चिंता मत करो। सब समय पर छोड़ दो। समय के पास हर समस्या का समाधान है।

वर्षा ऋतु के आते ही सभी भिक्षुक किसी ना किसी के घर चले गए रहने के लिए और युवा भिक्षुक भी आम्रपाली के महल चला गया रहने के लिए।

आज आम्रपाली विशेष रूप से तैयार हुई थी युवा भिक्षुक के स्वागत के लिए। उसकी प्रसन्नता उसके मुख पर साफ़ झलक रही थी।

आम्रपाली का अनुपम सौंदर्य देखकर भी युवा भिक्षुक के मुख पर कोई प्रतिक्रिया नहींं थी। वो तटस्थ था।

आम्रपाली ने अपने साथ वाले कक्ष में भिक्षुक के ठहरने का इंतज़ाम किया था। इतना सुंदर कक्ष, मखमली बिस्तर कुछ भी भिक्षुक की मनः स्थिति को विचलित नहीं कर पा रहा था।

भिक्षुक ने कहा…..देवी मुझे धरती माँ की गोद में सोने में आराम मिलता है। यह साज-सज्जा आपने व्यर्थ ही की, मैं तो वनों मे रहने का अभ्यस्त हूँ।
आप मेरी किंचित मात्र भी चिंता ना करें।
अभी मेरे ध्यान का समय है। 

आम्रपाली….....मुझे क्षमा करें, कहकर वो अपने कक्ष में चली जाती है और बिस्तर पर लेट जाती है। वो मन ही मन सोचने लगती है यह कैसा युवा भिक्षु है जिस पर ना मेरे सौंदर्य का कोई प्रभाव पड़ रहा है और ना ही इस राजसी ठाट बाट का। हो सकता है आने वाले दिनों में मैं इसका मन बदलने में सफल हो जाऊँ। तभी कक्ष से भिक्षु की आवाज़ आती है….

बुद्धम शरणम गच्छामि….

समूचे भवन की ऊर्जा ही बदल जाती और आम्रपाली का मन शांति का अनुभव करने लगता है। ऐसी शांति जो उसने पहले कभी अनुभव नहीं की थी।

इधर अन्य भिक्षुक फिर से बुद्ध के पास आते हैं और युवा भिक्षुक के बारे में बुद्ध से कहते हैं…..सारा वैशाली सिर्फ एक ही बात की चर्चा कर रहा है कि युवा भिक्षुक की मति भ्रष्ट हो गयी है जो वो एक नगर वधु के घर जाकर रह रहा है। इन सब चर्चाओं के कारण हमारे भिक्षुक संघ की बदनामी हो रही है बुद्ध।

बुद्ध……वैशाली के लोग ईर्ष्या की अग्नि में जल रहे हैं क्योंकि आम्रपाली ने उन्हें आमंत्रण ना देकर एक भिक्षुक को अपने महल में जगह दी है।

मुझे युवा भिक्षु पर पूर्ण विश्वास है वो अपने मार्ग से कभी डिगेगा नहीं। तुम सब चिंता करना छोड़ दो, उसे इस मार्ग पर स्वयं चलने दो। जीवन में विपरीत परिस्थितियां हमारे आत्मबल, हमारे धैर्य का परीक्षण करने आती हैं। अगर हम विपरीत परिस्थितियों में भी अपने मार्ग पर स्थिर रहते हैं तो हम विजेता कहलाते हैं, नहीं तो असफल।

तुम सभी उस भिक्षु की चिंता छोड़कर ध्यान में मन लगाओ। वो विजेता बनकर ही लौटेगा, मुझे विश्वास है।

उधर आम्रपाली प्रतिदिन नए तरीके खोजती है भिक्षुक को लुभाने के लिए। कभी श्रृंगार, कभी पकवान तो कभी नृत्य लेकिन उसका ध्यान आकर्षित करने में आम्रपाली असफल हो जाती है। सुबह-शाम बस बुद्धम शरणम गच्छामि…. की ध्वनि भवन में किसी दिव्य वाद्य की तरह गूंजती रहती है।

आम्रपाली एक दिन भिक्षुक से सवाल पूछती है….
क्या तुम्हें मेरा अनुपम सौंदर्य अपनी तरफ आकर्षित नहीं करता?

नहीं देवी…..ये सौंदर्य तो अस्थायी है, आज है कल नहीं तो फिर इसकी लालसा कैसी? जिस चीज़ के खो जाने का डर हो, उसका मोह कैसा?

मेरे लिए हर स्त्री माँ के समान है और इसलिए पूजनीय है। 

आम्रपाली...... और यह स्वादिष्ट पकवान, इनसे क्या तुम्हारी दुश्मनी है जो तुम इनकी तरफ एक नजर देखते भी नहीं?

सच कहूँ तो देवी मेरी जिव्हा को किसी भी खाद्य पदार्थ के स्वाद का भान नहीं। मेरे लिए भोजन मात्र शरीर को गतिमान रखने का माध्यम है, इससे ज्यादा कुछ नहीं।

आम्रपाली चुप हो जाती है और ग्लानि होने लगती है उसे अपने विचारों पर। वो भिक्षुक से नजरें नहीं मिला पाती है और नजरें नीचे कर लेती है।

धीरे-धीरे आम्रपाली की विचारों में परिवर्तन होने लगता है। वो साज-श्रृंगार करना छोड़ देती है और साधारण वस्त्र पहनना शुरू कर देती है। उसे पकवानों से अरुचि हो जाती है और वो मखमली बिस्तर छोड़ जमीन पर सोने लगती है। भिक्षुक के ध्यान के समय वो भी अपने कक्ष में बुद्धम शरणम गच्छामि…. का ध्यान करने लगती है। 

आम्रपाली को असीम शांति का अनुभव होता है जो उसे पहले जिंदगी में कभी नहीं हुआ था। धीरे-धीरे उसका मन स्थिर होता जा रहा था।

इसी तरह वर्षा काल बीत जाता है और भिक्षुक के लौंटने का वक्त आ जाता है।

आम्रपाली के आँखों में आंसू होते हैं….जाते-जाते भिक्षुक कहता है…..मुक्ति का एक ही उपाय है बुद्धम शरणम गच्छामि…. और भिक्षुक बुद्ध के पास लौट जाता है।

भिक्षुक बुद्ध के पास लौट आता है और उसके पीछे-पीछे आम्रपाली भी आ जाती है।

बुद्ध को प्रणाम कर कहती है….मैं नहीं बदल पायी इसे लेकिन इसने मुझे बदल दिया, ऐसे जैसे किसी अशुद्ध वस्तु को गंगाजल सा पवित्र कर दिया गया हो।

बुद्ध मैं अपनी सारी संपत्ति भिक्षुक संघ को दान में देना चाहती हूँ, कृपया इसे स्वीकार करें। 

मुझे अपनी शरण में ले लीजिए बुद्ध, मुझे एक भिक्षुणी के रूप में स्वीकार करें।

तुम्हारा स्वागत है आम्रपाली। हर दिशा से बस एक ही आवाज़ आती है…..
बुद्धम शरणम गच्छामि….

❤सोनिया जाधव

#लेखनी पार्टियों

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3 Comments

Sana Khan

01-Dec-2021 01:52 PM

Good

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Payal thakur

30-Nov-2021 06:21 PM

बहुत सुंदर रचना

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Swati chourasia

30-Nov-2021 05:08 PM

Very beautiful 👌👌

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