बेचारी... रेप विक्टिम (लेखनी प्रतियोगिता)
बेचारी... रेप विक्टिम
उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर में गुप्ता जी के घर के बाहर बहुत भीड़ लगी थी। पुलिस वहां से लोगों को हटा रही थी... लोगों की भीड़ आपस मे कानाफुसी कर रही थी। उसी भीड़ से थोड़ी ही दूरी पर खड़ा अर्पण नम आँखो से उन सब लोगों की बातें सुन रहा था। उसे इस दोगले समाज से घिन आ रही थी।
"बेचारी .... रेप विक्टिम" मोहल्ले की अम्मा ने घूंघट निकालते हुए बोला, "अच्छा हुआ फांसी ले ली। इसे कौन अपने घर की बहू बनाना चाहता।"
"पर कुछ भी कहो अम्मा ...लड़की ने हिम्मत का काम किया अपनी जान देकर। कब तक इस दाग को लेकर जीती। हमे तो बहुत दया आई जब काजल को कल उस हाल मे देखा " अम्मा की हां में हां मिलाते हुए सुमन ने कहा।
"हमने तो पहले ही कहाँ था चंदनवा से कि छोरियो को इतनी छुट देना सही नही है। बेचारी बच्ची की जान चली गयी " रामबिहारी काका अपने मोटे पेट पर हाथ फिराते हुए बोला।
वही अर्पण को उनकी बात सुनकर गुस्सा आ रहा था। यही मोहल्ले वाले कल इसी वक्त काजल के चरित्र को तार तार किये जा रहा था। उसे ना जाने क्या क्या बोल कर सम्बोधित कर रहा था।
"कल जो लड़की चरित्रहीन थी, वो आज बेचारी हो गयी। वाह रे समाज़... कब एक लड़की को ऊपर उठने दोगे। कुछ ना मिले तो उसके करेक्टर का सहारा ले लो और कर दो उसकी आत्मा को तार तार" नम आँखो से अर्पण इस दोगले समाज से सवाल पूछ रहा था और यहीं सवाल काजल की आत्मा सबसे पूछे जा रही थी क्योंकी अब उसका शरीर बोलने के काबिल जो नही रहा था।
पुलिस काजल की डेडबॉडी उतार कर पोस्टमार्टम के लिए ले जा चुकी थी। काजल की मंजु बुआ जोर जोर से रोये जा रही थी।
"ई का होय गवा चंदू... हम तो बोले थे समय रहते अगर हमरी काजल का व्याह कराय देते, तो आज ई दिन देखन को नाही मिलता।" मंजु बुआ छाती पीटते हुए बोली।
काजल के पिता चंदन प्रकाश गुप्ता बिना कुछ बोले नजरे झुकाए वही बैठे थे।
जिस घर से आज काजल की अर्थी उठने की तैयारियां हो रही थी, वहीं आज से एक दिन पहले काजल की डोली उठने की बातें चल रही थी। काजल की बुआ मंजू उसके लिए एक रिश्ता लेकर आई थी। काजल एमबीबीएस के सेकंड ईयर की स्टूडेंट थी, तो उसने अपनी पढ़ाई पूरी होने से पहले शादी से साफ इनकार कर दिया और साथ ही अपनी इच्छा जाहिर की कि वह अपने ही पड़ोस में रहने वाले कार्तिक से प्यार करती हैं।
काजल का शादी से ना कहने से ज्यादा हड़कंप इस बात से मचा कि काजल कार्तिक से प्यार करती हैं।
"तुम उस लड़के को साफ साफ मना कर दो। हमारे घर में प्रेम विवाह बिल्कुल नहीं होते हैं और अंतरजातीय विवाह के लिए तो मैं तुम्हें कभी इजाजत नहीं दे सकता" काजल चंदन प्रकाश ने सख्ती से काजल से कहा।
"पर पापा आजकल वक्त बदल रहा है। कार्तिक भी मेरे साथ ही पढ़ता है.... और मैं कार्तिक के अलावा किसी और से शादी करने के बारे में सोच भी नहीं सकती।" काजल ने गुस्से में कहा।
काजल भी अपनी जीत पर अड़ी थी।
"हम तो पहिले ही बोले थे चंदू... बिन मां की बच्ची है। ध्यान रखो। पहिले तो तुम ई के खातिर दूजा व्याह ना किए। सोचा दूजी माई काजल ऊँ पियार ना दे पायेगी और आज ऊँ ही काजलिया तुमरे पियार का ई सिला दे रही है। अपना फर्ज निभाय से पीछे हट रही है" मंजू बुआ ने मुंह बनाते हुए कहा।
बुआ जी की बातें आग में घी डालने का काम कर रही थी।
" तुम उस लड़के के पास अभी जाओगी.... और उसे साफ साफ मना करके आओगी। काजल हम कुछ नहीं जानते और इतनी तुम्हें अपनी जिद्द करनी है.... तो जाओ जाकर अभी उससे शादी कर लो। पर जाने से पहले अपने पिता के पेट में छुरा घोंप कर जाना " चंदन प्रकाश जी ने नम आंखों से कहा।
बुआ जी ने सोचा कि इस बार चंदू ने बिल्कुल सही दांव खेला है। अगर कोई काम प्यार से नहीं किया जाए तो बच्चों को भावनात्मक रूप से कमजोर कर दो। अपने पिता की बात सुनकर काजल हक्की बक्की रह गई। जिस कार्तिक के साथ उसने अपनी शादी की सपने संजोए थे। वह सपने आज एक पिता की जिद के आगे हार मान रहे थे। काजल उनके सामने बहुत गिड़गिड़ाई... लेकिन सब व्यर्थ रहा। एक पिता की जिद के आगे उसका प्यार हार गया।
काजल ने अपने दिल को मजबूत किया और थक हार कर कार्तिक को शादी के लिए मना करने के लिए उसके घर चली गई। काजल कार्तिक के घर गई, तो कार्तिक अकेला था। वो भी अचानक से काजल को अपने घर पर देखकर आश्चर्यचकित हो गया। क्योंकि काजल उसके घर कभी नहीं आती थी। खासकर जब वह अकेला होता था।
लेकिन आज काजल उसके घर कैसे आ गई ? जबकि उसे तो पहले से पता था कि उसके मम्मी पापा उसके ननिहाल गए हुए हैं।
"कार्तिक तुम मुझे भूल जाओ..... मैं तुमसे शादी नहीं कर सकती।" अपनी आंखों के आंसू छुपाते हुए काजल ने कहा।
"काजल तुम मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकती हो? तुम्हारे लिए मैं पूरी दुनिया से लड़ सकता हूं, तो तुम मेरे लिए अपने पापा को नहीं मना सकती।" काजल की बात सुनकर कार्तिक गुस्से में पागल हो रहा था।
"पर कार्तिक मैं हमारे प्यार के लिए अपने पापा की जान तो नहीं ले सकती ना। अब वो नहीं मान रहे.... तो मैं क्या करूं। मैंने भी उन्हें साफ बोल दिया था कि मैं सिर्फ तुमसे शादी करूंगी। पर वो नहीं मान रहे ...." बोलते हुए काजल रोने लगी।
कार्तिक को काजल का यू शादी के लिए मना करना नागवार गुजरा। रिश्ते तो उसके लिए भी बहुत आए थे लेकिन उसने हमेशा मना ये बोलकर कर दिया कि वह काजल से प्यार करता था। उसने अपने मम्मी पापा से भी बहुत झगड़ा किया इस मामले में ... और आखिरकार उन्हें अपनी शादी काजल के साथ करने के लिए मना ही लिया। लेकिन जब काजल की बारी आई तो उसने अपने हाथ खड़े कर दिए।
यह सोचकर कार्तिक का दिल जला जा रहा था।
उसके ऊपर खून सवार हो चुका था। काजल अपनी बात कहकर जाने लगी। जैसे ही वो जाने के लिए मुड़ी, कार्तिक ने उसके सिर पर पीछे से एक गुलदस्ता दे मारा। अचानक हुए इस वार से काजल लड़खड़ा गयी और उसे समझ नहीं आया कि कार्तिक ने उसके साथ ऐसा क्यो किया?
क्या यह वही कार्तिक था, जो उससे प्यार करता है। उसके लिए किसी से लड़ झगड़ने के लिए तैयार रहता था। लेकिन काजल की एक ना ने उसके अंदर के शैतान को जगा दिया। उसने काजल को पकड़ा उसे जबरदस्ती बेड पर फेंक दिया।
"त.. तुम यह क्या कर रहे हो कार्तिक? इतना ही था तुम्हारा प्यार? इसी के लिए मुझसे शादी करना चाहते थे। तुम होश मे नही हो। प.. प्लीज मुझे जाने दो" काजल ने गिड़गिड़ाते हुए कहा।
लेकिन कार्तिक पर इसका कोई असर नही पड़ा। वो काजल पर जानवरो की तरह झपट पड़ा। उसने खुद को उस से बचाने की बहुत कोशिश की.... लेकिन उस पर तो मानो शैतान सवार हो चुका था, जो उस दिन उसने काजल के शरीर के साथ-साथ उसकी आत्मा को भी छलनी कर डाला। उसने उसके पूरे शरीर को नोच डाला।
कार्तिक को अपने किए पर जरा भी पछतावा नहीं था। काजल का शरीर दर्द के मारे टूटा जा रहा था और वो जोर जोर से रोये जा रही थी। फिर भी उसने काजल को पकड़कर उसी हालत मे घर के बाहर फेंक दिया।
काजल रोती हुई जैसे तैसे लड़खड़ाते अपने घर की तरफ आ रही थी। गली मोहल्ले के लोग उसे देखकर इकट्ठा हो गए और वहीं रुक गए। काजल के कपड़े फटे हुए थे.... जिन पर खून के धब्बे थे। उसके माथे से खून निकल रहा था और पैर भी खून से सने हुए थे। यह खून चिल्ला चिल्ला कर उसके नाकाम प्यार की दास्तान सुना रहे थे। कोई भी काजल को संभालने के लिए आगे नहीं बढ़ रहा था। उसके बाल से लेकर कपड़े तक अस्त व्यस्त हो रखे थे। लेकिन उसे कोई होश नही था।
"ई देखो.... नाम भी काजल और आज अपने बाप के मुंह पर कालिख भी पोत दी ,, कलमुँही ने। " मंदिर से आते हुए हाथ में पूजा की थाली लिए हुए अम्मा ने कहा।
"अरे अम्मा डॉक्टर बनना चाहती थी। अब देखो इज़्ज़त का पोस्टमार्टम करवा कर आई है। " हंसते हुए सुमन भाभी ने कहा।
"ई मैना के भी आज पर कट गए... क्या हुआ बिटिया ? काहे अपनी रंगरेलियो के सबूत मोहल्ले भर को दिए जा रही हो" अपने मोटे पेट पर हाथ फेरते हुए राम बिहारी काका काजल के पास जाकर बोले।
जहां पूरा मोहल्ला काजल के बारे में तरह-तरह की बातें बनाए जा रहा था और ना जाने उसे किन किन नामों से बुलाया जा रहा था। वही अर्पण ने जब काजल को ऐसे देखा तो वह दौड़कर काजल के पास गया और उसे उसके घर लेकर गया।
काजल के फटे कपड़े और खून से लथपथ देखकर मंजू बुआ और चंदन प्रकाश जी को समझते देर नहीं लगी कि काजल के साथ क्या हुआ होगा।
"ल्यो चंदू ... आज तुमरी काजल ने काजल का टीका लगाया है तुमरे मुंह पर। " मंजू बुआ ने काजल को धक्का देते हुए कहा ।
"अरे इससे अच्छा होता कि हम तुम्हें पैदा होते ही मार देते। आज तुम्हारी वजह से हमारी इज्जत चली गई।" चंदन जी ने काजल को देख कर मुंह फेर लिया।
काजल समझ नहीं पा रही थी कि इज्जत उसकी गई है या उसके पिता की...? आज दुनिया में जिन दो लोगों को वह सबसे ज्यादा प्यार करती थी,, उन दोनों ने उसके प्यार का अच्छा सबब दिया।
"हमें पुलिस को बुलाना चाहिए और गुनहगार को सजा दिलानी चाहिए।" अर्पण ने गुस्से में कहा।
"ई हां कोई पुलिस ना हीं आएगी .... और का कहोगे पुलिस वाले से कि ई खुद गई थी ऊँ के पास? का पता ऊँ छोरे ने जबर्दस्ती भी की है या ई खुद ऊँ के साथ रंगरेलियां मना कर आई है। अगर रिश्तेदार लोगन को पता लगा तो कौन ई कलमुँही को अपन घर की बहू बनाएगा?" मंजू बुआ ने कहा तो यह सुनकर अर्पण गुस्से से फूट पड़ा।
वह कुछ बोलता उस से पहले उसने देखा कि काजल बिना कुछ बोले अपने कमरे में चली गई। काजल को बाहर से आवाजें आ रही थी.... जहां उसके पिता अपनी इज्जत जाने का शोक मना रहे थे और उसकी बुआ उनका साथ दे रही थी।
काजल ने अपने आंसुओं को पोंछा और अपने दुपट्टे से खुद को पंखे से लटका लिया।
आज काजल की अंतिम यात्रा थी। वहां सब लोग दुख जता रहे थे। ये इस सभ्य समाज़ के वही लोग थे, जो कल तक काजल के साथ जो भी हुआ, उसके लिए उसे खुद को जिम्मेदार ठहरा रहा था । जो काजल चरित्रहीन थी और अपने साथ हुए रेप की जिम्मेदार भी खुद ही थी..... आज वही काजल दुनिया के लिए "बेचारी रेप विक्टिम" बन चुकी थी, जिसके पास फांसी लेने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था।
आज पोस्टमार्टम के बाद काजल की बॉडी उनके घर वालों को सौप दी गयी। काजल को अंतिम यात्रा के लिए घर से बाहर लाया गया।
"काजल बेचारी थी या यह समाज.... मुझे समझ नहीं आ रहा। काजल की ये नियति नहीं थी.....पर उसके अपनो ने उसे मजबूर किया। क्या किसी से प्यार करना गुनाह होता है? अगर सामने वाला धोखा दे, तो इसमें भी हमारी ही गलती क्यों होती है? ये चाहते तो उस कमीने को सजा दिला सकते थे... लेकिन नही। इज्जत का सवाल था।"
ये वो सवाल थे, जो अर्पण इस समाज से पूछना चाहता था और कहीं ना कहीं काजल भी....!
पर वह 'बेचारी रेप विक्टिम' तो यह सवाल पूछने के लिए आज इस दुनिया में ही नहीं थी।
अर्पण काजल की अंतिम यात्रा से बाहर निकल पुलिस को अपना बयान देने चला गया और यही उसकी काजल के लिए सच्ची श्रद्धांजलि थी।
काजल की मौत का जिम्मेदार कौन था?
उसका खुद का परिवार या ये समाज?
क्यों लोगो की मानसिकता ऐसी हो गयी है कि वो एक रेप पीड़िता को ही उसके साथ इस अपराध का जिम्मेदार समझता है? अपने तानों से हर रोज उसका बलात्कार करता है। क्या काजल की यही नियति थी... या उन सैकड़ो लड़कियों की, जो घर परिवार की तथाकथित इज़्ज़त के चलते अपने साथ हुए इस अन्याय के खिलाफ कदम नही उठा पाती।
एक रेप विक्टिम बेचारी नही होती... बल्कि वो लोग बेचारे होते है। जिनकी छोटी सोच के चलते इस समाज मे हजारो बलात्कारी आजाद घूम रहे है।
समाप्त..!
By– जाह्नवी शर्मा
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Seema Priyadarshini sahay
03-Dec-2021 01:31 AM
बहुत खूबसूरत रचना
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Amir
03-Dec-2021 12:20 AM
👌👌👌
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Chirag chirag
02-Dec-2021 11:13 PM
Very nice
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