AMAN AJ

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आई नोट , भाग 12

अध्याय-2

    लक्ष्य और मकसद 
    भाग-5
    
    ★★★
    
    तकरीबन 1 घण्टे बाद आशीष सीधे अपने ऑफिस के लिफ्ट में दिखाई दिया। उसका चेहरा हैरान परेशान और खामोश सा था। उसने कपड़े भी बेतरतीब पहन रखे थे। टाई लगी हुई नहीं थी और कमीज के ऊपर के दो बटन खुले थे। उसका चेहरा ऊपर की ओर था जहाँ वह लिफ्ट की लाइट को देख रहा था।
    
    लिफ्ट की लाइट को देखते हुए उसने अपने मन में कहा “लक्ष्य और मकसद, जिन्दगी सिर्फ लक्ष्य और मकसद तक सीमित नहीं रहती। कई बार ऐसा होता है जब हम लक्ष्य और मकसद को हासिल कर लेते हैं, मगर लक्ष्य और मकसद...वो हमारा नहीं हो पाता। यह थोड़ी कॉम्प्लिकेटेड चीज है। शायद किसी इन्सान को बुरे करैक्टर का दर्जा भी यहीं से मिलता है। अगर इन्सान को खुशी मिल जाए तो वह कहानी में एक अच्छा किरदार बनकर उभरता है, उसकी एक्सपेक्टेशन जो पूरी हो जाती है और अगर उसकी खुशी मिलने के बाद उससे छीन जाए तो वह कहानी का बुरा किरदार बन जाता है। यहाँ यह सवाल भी उठता है कि क्या मैंने शुरुआत में जब खुद को सीधे द बैड करेक्टर परिभाषित किया, क्या वह सही था? क्या मैंने खुद को शुरूआत में जो परिभाषा दी थी वह सही थी? शायद नहीं, क्योंकि तब मैं लक्ष्य और मकसद के पीछे भागता हुआ एक शख्स था। एक ऐसा भागता हुआ शख्स जिसे लक्ष्य और मकसद को हासिल करने के लिए बुरे रास्ते का चयन करना पड़ा। पहले इस बात में कंफ्यूजन थी कि मैं बुरा था या नहीं, मगर अब, जबकि अब अगर मैं खुद को द बेड करैक्टर परिभाषित करूँ तो वह असल मायने एक सही चयन होगा क्योंकि अब मैं वास्तव में बुरा हूँ।”
    
    लिफ्ट का दरवाजा खुला और वह अपने ऑफिस की ओर जाने लगा। इस दौरान वह वापिस आसपास के मौजूद लोगों के चेहरों की तरफ देख रहा था। उनके चेहरों की तरफ देखते हुए उसने अपने मन में कहा “इन लोगों में किसी को भी लक्ष्य और मकसद हासिल करने की नहीं पड़ी, इसलिए ना तो इन लोगों को एक अच्छा किरदार कहा जा सकता है ना ही एक बुरा किरदार। यह बस कहानी में आए ऐसे लोग हैं जिन्हें दिखाना जरूरी है, मगर इनकी जिन्दगी को टटोलना या नहीं टटोलना, इससे कोई मतलब नहीं बनता। कहानी उसी की बनती है जिसके पास लक्ष्य और मकसद हो। जजमेंट भी उसी को लेकर होती है। अच्छा किरदार और बुरा किरदार भी वही से निकलकर आते हैं। लक्ष्य और मकसद के हिसाब से ही यह डिसाइड किया जाता है कौन अच्छा है और कौन बुरा। शायद यहाँ मेरे समाज वाली बात भी गलत साबित हो जाती है। समाज अपनी जगह सही है, वह हमेशा ही अपना जगह सही रहता है। उसके फैसले, उसके फैसले किसी भी किरदार को एक किरदार बनने से रोकते हैं। अगर वह किसी लड़के लड़की को शादी करने से रोकते हैं तो वह सीधे सीधे उसे बुरा होने से रोकते हैं। आह। लगता है मैं खुद की बातों में खुद ही फंसता जा रहा हूँ। इन्सान, आखिर इन्सान के दिमागी ख्याल कभी उसे एक जगह पर लाकर क्यों नहीं खड़ा करते। इन्सान के ख्याल और विचार हमेशा उसे कन्फ्यूज ही क्यों करते रहते हैं।”
    
    आशीष अपने ऑफिस में आया और अपनी आलीशान कुर्सी पर जाकर बैठ गया। वहाँ उसने फोन निकाला और किसी को फोन किया। फोन करने के बाद उसने उसे नीचे रख दिया। 
    
    वह अपने दिमागी विचार में बोला “मगर क्या मैं बुरा था? हाँ वैसे मैं खुद को बुरा कह चुका हूँ, मगर मेरे पूछने का तात्पर्य था कि क्या मैं सच में बुरा था? मतलब श्रेया को क्या पड़ी थी अपने पति के पास जाने की। मैंने उसे अच्छे से बताया था कि अगर कोई चीज मुझे पसन्द आ जाती है तो मैं उसे हासिल करके रहता हूँ इसीलिए तो मैंने उसके पति का काम तमाम किया। फिर आखिरी समय में यह भी बताया कि मैं इमोशनली एक अलग ही तरह का लड़का हूँ। मुझे, मुझे एक बार पसन्द आने वाली चीज का दूर जाना पसन्द नहीं। इसके बावजूद भी उसने ऐसा किया। क्या मैंने कहीं गलती कर दी थी? क्या मेरी योजना में किसी तरह की गलती थी? मैं ... लगता है मैं पागल हो जाऊँगा।” उसने अपने दोनों हाथ सर पर रख लिए और उन्हें नोचने लगा।
    
    जल्दी उसके ऑफिस का दरवाजा खुला और सामने 40 साल का एक आदमी दिखाई दिया। ऐसा आदमी जिसने जोड़ीदार शर्ट और पैंट पहन रखी थी। वह आते ही बोला “तुमने बुलाया मुझे...।”
    
    आशीष ने हाँ में सर हिलाया और उसे बैठने के लिए कहते हुए कहा “हाँ बैठो डिटेक्टिव स्टीफन, बैठो।”
    
    आशीष के चेहरे को देखकर साफ पता चल रहा था कि वह परेशान है। उसकी परेशानी छुपाए नहीं छुप रही थी।
    
    स्टीफन बैठा और आशीष से पूछा “क्या हुआ... तुम मुझे इस तरह से परेशान क्यों दिख रहे हो?”
    
    “दरअसल बात ही कुछ ऐसी हुई है..।” आशीष ने अपने चेहरे पर हाथ फेरते हुए जवाब दिया “मैं, मैं, ... अब तुम तो मेरे बारे में सब जानते हो ना। तुम्हें पता है ना मेरी कमजोरी क्या है, मेरे इमोशन क्या है। तुम जानते हो मुझे मेरा दिमाग कितना परेशान करता है।”
    
    “हाँ मगर हुआ क्या? क्या तुमने फिर से किसी...।” स्टीफन ऐसे बोला जैसे मानो उसे किसी अनहोनी के होने की उम्मीद हो।
    
    आशीष ने अपने चेहरे पर मायूसी दिखाई। चेहरे पर मायूसी दिखाते ही स्टीफन ने अपने होठों को दाँतो तले दबा लिया और हैरान होते हुए कहा “ओ गॉड, मतलब तुमने फिर से एक खुन कर दिया, मैंने, मैंने तुम्हें कितनी बार कहा है अपने दिमाग को ठण्डा रखा करो। तुम्हारा साइकेट्रिक्स भी तुम्हें यह करने की सलाह देता है। फिर तुमने, फिर तुमने इसके बावजूद यह गलती कैसे कर दी?”
    
    “अरे... अरे यार मैं क्या बताऊँ तुम्हें। मैंने अपने दिमाग को पूरी तरह से ठण्डा रखा था। पूरी तरह से मतलब पूरी तरह से। मुझे एक लड़की पसन्द आई थी मगर इसके बावजूद मैंने किसी भी तरह की जल्दबाजी नहीं दिखाई। मैंने ना तो उसे इनकमली प्रपोज किया, ना ही उसके साथ किसी तरह की जोर जबरदस्ती की, यहाँ तक कि बुरे ख्याल भी दिमाग में लेकर नहीं आया, जैसे उसे किडनैप करवाना, उसके पति की बन्दूक... मेरा मतलब उसके पति की कनपटी पर बन्दूक रखकर उसे ब्लैकमेल करना, मैंने इन सब के बारे में भी नहीं सोचा।”
    
    “कब की बात है यह...” स्टीफन ने सवालिया अन्दाज में पूछा।
    
    “बस सुबह की। श्रेया मेरे साथ ही थी। हमने एक साथ रात बिताई थी। इसके बाद सवेरे उठते ही उसे पता नहीं क्या हुआ, वह मुझसे दूर जाने की बातें करने लगी, मुझसे यह बर्दाश्त नहीं हुआ और मैंने...और मैंने उसके सर को पकड़ कर दीवार से ठोक दिया।”
    
    “शीट.....। ” स्टीफन अपने हाथों को अजीब सी हालत में करने लगा। “किसी को दीवार से ठोक कर कौन मारता है.... हे भगवान... आखिर में क्या करूँ तुम्हारा.... अच्छा उसकी लाश?”
    
“अभी वहीं पड़ी है। बेडरूम में।”
    
“तुम पागल हो क्या। किसी ने देख लिया तो? अगर किसी की भी नजर उस पर पड़ गई तो... तो तुम.. तुम्हें बचा पाना मुश्किल हो जाएगा।” 
    
    “वह गेस्ट हाउस में है। वहाँ कोई आता जाता नहीं। किसी को पता नहीं चलेगा।” आशीष ने कहा और कुर्सी पर पीछे की ओर होकर बैठ गया।
    
    स्टीफन उसके सामने शान्त बैठा रहा। कुछ देर शान्त बैठे रहने के बाद उसने कहा “मुझे लड़की के बारे में थोड़ा बहुत बताओ। उसके रिलेटिव में कौन था? क्या करती थी क्या नहीं सब?”
    
    “उसके बारे में जानने वाली कोई भी खास बात नहीं है। ‌ बस एक पति था। यहीं काम करती थी। एक हफ्ता पहले इंटरव्यू के लिए आई थी और मैंने उसे पहली नजर में देखते ही पसन्द कर लिया था। फिर जॉब ऑफर किया और दूसरे दिन प्रपोज कर दिया। वहाँ उसने मना किया तो फिर...।”
    
    “तो फिर इसके बाद तुमने क्या किया... मतलब कल रात को तुम्हारे पास आई थी तो वह सीधे सीधे तो आ नहीं सकती... जरूर तुमने ... जरूर तुमने कुछ उल्टा-पुल्टा किया होगा। है..ना?”
    
    “कुछ खास नहीं। मैंने बस एक लड़की को उन दोनों के बीच दरार डालने के लिए भेज दिया। दोनों में लड़ाई हुई और फिर श्रेया मेरे पास चली आई।”
    
    “और वहाँ तुमने उसे जान से मार दिया। समझ में नहीं आ रहा जब उसके पति को पता चलेगा तो क्या होगा..।” स्टीफन ने अपने चेहरे पर चिन्ता की लकीरें दिखाइए।
    
    “वो...वो..” आशीष बोलने की कोशिश कर रहा था मगर उसने इसके बाद कुछ नहीं कहा।
    
    “वो क्या...?” आशीष कुछ नहीं बोला तो स्टीफन ने पूछा।
    
    “वो उसके पति को भी कल रात मैंने मार दिया। रस्सी से गला घोट कर। इसके बाद उसकी लाश पंखे से लटका दी ताकि वह सुसाइड लगे।”
    
    स्टीफन ने अपनी आँखे बन्द की और गहरी साँस लेकर उसे बाहर की तरफ छोड़ा। साँस बाहर की तरफ छोड़ते हुए उसने कहा “मुझे लगता है साइकेट्रिकस को कह कर मुझे तुम्हारी दवाई का डोज और बढवाना पड़ेगा, तुम्हारी, तुम्हारी दिमागी हालत हद से बाहर निकलती जा रही है। अच्छा, अच्छा क्या तुमने इसके अलावा भी किसी और का कत्ल किया है? या बस यही दो लोग ही थे।”
    
    “नहीं बस यह दोनों ही।”
    
    “पति के पास किसी तरह का सबूत छोड़ा?”
    
    “नहीं। मैंने पूरी सावधानी दिखाई थी। गलब्स का इस्तेमाल किया था और रस्सी पर भी कोई उंगली का निशान नहीं छोड़ा था।”
    
    “और पत्नी... क्या उसके साथ कुछ करते वक्त प्रोटक्शन का इस्तेमाल किया था?”
    
    “नहीं। तुम्हें पता है ना मुझे प्रोटक्शन इस्तेमाल करने की आदत नहीं।”
    
    “मतलब गई भैंस पानी में। हमें डेड बॉडी को हमेशा हमेशा के लिए गायब करना होगा। अगर डेड बॉडी किसी को मिलती है और उसका पोस्टमार्टम होता है तो तुम्हारे डीएनए मिलने की सम्भावना है। इस केस को एक्सीडेंट का केस या बिल्डिंग से गिरने का केस दिखाकर नहीं टाला जा सकता। हमें डेड बॉडी ही गायब करनी होगी।”
    
    “हांँ तो कर दो। मैं उसके यहांँ कम्पनी में कल के कुछ कागज बना देता हूंँ जिसमें यह दिखा दूंँगा कि वह कम्पनी छोड़ कर चली गई थी।”
    
    “और कोशिश करना उसके रिलेटिव में कोई भी सामने ना आए। पति को लेकर भी शायद उसकी डेड बॉडी गायब करनी पड़ेगी। मगर यह तभी होगा अगर अब तक घर पर डेड बॉडी को किसी ने देखा ना हो।”
    
    “यह दोनों अमीर कॉलोनी में रहते थे। वहांँ के लोग कम ही मामलों में आसपास के घरों में दखलअंदाजी देते हैं। शायद, शायद अब तक किसी की नजर ना पड़ी हो।”
    
    “मैं देखता हूंँ क्या हो सकता है। लेकिन देखो अगर मामला बिगड़ते हुए दिखा तो तुम कुछ दिन के लिए शहर छोड़कर चले जाना। लेकिन अगर नहीं बिगड़ा तो आगे से इस बात को लेकर ध्यान रखना कि किसी को भी पसन्द ना करो। अब किसी भी लड़की को तुम अपनी जिन्दगी में लेकर नहीं आओगे। समझे? क्योंकि किसी लड़की का तुम्हारी जिन्दगी में आने का मतलब है बस तबाही ही तबाही। पता नहीं कितने लोग लड़की के जिन्दगी में आते ही मौत के घाट उतर जाते हैं। और मैं, माना कि मैं डिटेक्टिव हूंँ, मगर मैं कब तक तुम्हारे किए गए कत्ल को छुपाता रहूंँगा। बेहतर यही रहेगा कि तुम जितना जल्दी हो सको खुद को उतना जल्दी ठीक कर लो।”
    
    आशीष ने आंँखें बन्द की और हल्की सांँस लेते हुए जवाब दिया “मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूंँगा।”
    
    स्टीफन‌‌ ने यह सुना और उसके ऑफिस से बाहर चला गया। उसके बाहर जाने के बाद आशीष ने अपने मन में कहा “लक्ष्य और मकसद, मुझे समझ में नहीं आता इसे हासिल करने और इसे हासिल करने के लिए उठाए गए कदमों को लोग पागलपन क्यों कहते हैं। आखिरी इसे लेकर दवाइयांँ क्यों बनाई जाती है। मोटिवेशनल वीडियो में तो उल्टा खुद इसे हासिल करने के लिए कुछ भी करने की सलाह दी जाती है। फिर कुछ करते हैं तो लोग उसे पागलपन कहने लगते हैं। क्या मानसिक बीमारी, या मानसिक अवसाद, क्या यह सच में किसी के लिए खतरनाक है। मतलब मुझे ऐसा कभी नहीं लगा, मगर दूसरे लोगों को पता नहीं क्यों ऐसा लगता है। लक्ष्य और मकसद, लक्ष्य और मकसद को हासिल करना कभी भी बीमारी नहीं हो सकता। रही बात मेरी पसन्द और नापसन्द की, तो अगर आने वाले समय में मुझे कोई पसंद आया तो मैं उसे हासिल करके ही रहूंँगा। भले ही इसके लिए मुझे कुछ भी क्यों ना करना पड़े। कुछ भी मतलब कुछ भी। दवाइयों के हाई डोज भी खा लूंँगा।” इतना कहने के बाद आशीष ने टेबल पर पड़ा पेन उठाया और कुर्सी पर पसरते हुए उसे सोचने वाले अन्दाज में हिलाता रहा।
    
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1 Comments

Seema Priyadarshini sahay

07-Dec-2021 05:17 PM

बहुत बढ़िया सर।आपकी कहानियों का जवाब नहीं होता है।👌👌

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