आई नोट , भाग 20
अध्याय 3
दिमागी कैद
भाग-6
★★★
तकरीबन रात के 10:00 बज रहे थे। शख्स अपने बेड पर सफेद रंग का कंबल ओढ़ कर लेटा हुआ था। उसने अपने सर के नीचे दो सिरहाने रख रखे थे। मानवी किचन में खाना बना रही थी। शख्स चेहरे से उदास और गम में डूबा हुआ लग रहा था।
शख्स ने ऊपर चल रहे पंखे को देखते हुए अपने मन में कहा “मेरी कहानी आखिर लॉन्ग टाइम टेकिंग क्यों होती है? यह एक ऐसा सवाल है जो मैं खुद से तब पूछता हूं, जब मुझे मेरी कहानी लंबी खिंचती हुई दिखाई देती है। क्या इसलिए, क्योंकि मैं बीच-बीच में जिंदगी के इन छोटे-मोटे इमोशन को दिखाने लगता हूं। ऐसे इमोशन जिसका भले ही जिंदगी से कोई वास्ता हो, मगर इनके होने या ना होने से कहानी को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। एक कहानी लिखने वाले लेखक के हाथ में क्या नहीं होता, वो अपनी कहानी को जब चाहे तब नया मोड़ दे सकता है, कहानी में सस्पेंस भर सकता है, जो चीज कल्पना में नहीं होती वह भी कर सकता है।”
वह पलटा और दूसरी तरफ देखने लगा। “जैसा कि मैं अभी इस वक्त लोगों को यह दिखा सकता हूं कोई मकड़ी आई और मुझे आकर पीठ पर काट गई।” वह वापिस सीधा हो गया “इसके बाद मेरे शरीर में कुछ अजीब हुआ, मुझे उल्टियां आई, दस्त लगे, और आखिर में मुझमें जाले छोड़ने की पावर आ गई। मगर क्या लोग इसे स्वीकार करेंगे? क्यों नहीं करेंगे? आखिर इसमें बुराई क्या है? फिर सब कुछ लेखक के हाथ में होता है तो वह अपनी कहानी से क्या नहीं कर सकता। हां कहानी क्राइम सेक्शन से निकलकर सुपर हीरोईक सेक्शन में चली जाएगी, तो? सुपर हीरोईक सेक्शन का तो अच्छा खासा ट्रेंड है। क्राइम स्टोरी की किताबें तो सिर्फ और सिर्फ बाजार में धूल खाने के लिए लिखी जाती है, लोगों की मानसिकता से जुड़ना तो उसका काम ही नहीं होता। लव लव स्टोरी पढ़कर जरूर यह कह देंगे कि आंखों में आंसू आ गए, मगर किसी की क्राइम स्टोरी पढ़कर कभी नहीं कहेंगे। मानो क्राइम स्टोरी का किरदार इंसान होता ही नहीं। इमोशन क्या होते हैं उसे पता ही नहीं। वह तो एलियन होता है जिसे जादू की दुनिया से उठा कर यहां कहानी में डाल दिया जाता है।” वो रुका और छत के बल्ब को देखने लगा। बल्ब को देखते हुए उसने कहा “शायद कहानी का लोगों की मानसिकता से जुड़ने का कोई काम होता ही नहीं। या लेखक ऐसी कहानियां लिखते ही नहीं जो लोगों की मानसिकता से जुड़ पाए। फिर इसी के चलते अगर कोई लेखक अपने जिंदगी के कुछ क्षणों को कहानी में डाल देता है तो लोग लेखक को जज करने लगते हैं। अब मैं लोगों को भी क्या कहूं, यहां असल जिंदगी में दो फ्लोर नीचे रहने वाला एक मोटा बेकार सा भददा आदमी भी लेखक को जज करने लगता है, फिर आप लोग तो हो ही बहुत दूर। उस मोटे भद्दे आदमी की ..... हद है... मुझे ना उसे गाली देनी है... मगर लोग... गाली दे दी तो लोग कहते फिरेंगे साला गालियां बक रहा है। मन तो करता है किसी दिन इन लोगों की भी वाट लगा दूं।”
तभी दरवाजे की डोर बेल बजी और शख्स का ध्यान टूट गया। उसका ध्यान सीधे ही घर के मुख्य दरवाजे की तरफ चला गया। मानवी किचन से दरवाजे की ओर जाने के लिए पलटी ही थी की शख्स फौरन अपने ऊपर मौजूद कंबल को दूर करते हुए उठा और मानवी से बोला “मैं खोलता हूं।” मानवी रुक गई और वापिस किचन में चली गई। वही शख्स दरवाजे की तरफ चलता हुआ मन में बोला “क्या पता वह मोटा फिर से मेरी बैंड बजाने आ गया हो। उसने ज्यादा चुं चा की तो आज रात उसकी बैंड बजा दूंगा।”
दरवाजे के पास पहुंचते ही उसने दरवाजा खोला। दरवाजा खोलते ही ठीक उसे दूसरी ओर कंचन खड़ी दिखाई दी। उसने सफ़ेद रंग का नाइट सूट पहन रखा था और हाथों में चॉकलेट वाला डब्बा था। उसने चॉकलेट वाला डब्बा आगे बढ़ाया और शख्स को देते हुए कहा “मेरे पापा की तरफ से सॉरी, उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था।”
शख्स ने अपने उदास चेहरे पर एक मुस्कुराहट दिखाई जो ठिक ठाक वाली मुस्कुराहट लग रही थी, और चॉकलेट के डिब्बे की तरफ हाथ बढ़ाया, मगर तभी कुछ ऐसा हुआ कि उसके आसपास सन्नाटा छा गया। कानों में बजने वाली एक आवाज गूंजने लगी। शख्स ने चॉकलेट के डिब्बे को पकड़ा और उसे साइड में करते हुए कंचन के हाथों को देखा। उसके हाथ लाल रंग के खून से सने हुए थे। यह देखते ही शख्स को अचानक धक्का सा लगा।
उसने चॉकलेट का डब्बा फेंका और तुरंत बाहर सीढ़ियों की तरफ भागा। उतनी तेजी से जितनी तेजी से वह भाग सकता था। भागते हुए वह नीचे के दूसरे फ्लोर पर पहुंचा और वहां कंचन के घर का रुख किया। 2 फ्लोर नीचे तेजी से उतरने की वजह से उसकी सांसें हाफने लगी थी।
दरवाजे तक वह गिरता पड़ता पहुंचा, पहुंचते ही उसने दरवाजा खोला और तेजी से अंदर गया, जैसे ही अंदर पहुंचा उसने सोफे के दृश्य देखें और वहीं पीछे की ओर पलट कर खड़ा हो गया।
इतने में कंचन भी वहां आ गई और आते ही दरवाजे के पास खड़े हो गई। मानवी ने भी शख्स को तेजी से भागते हुए देख लिया था, उसके भागते ही वह भी उसके पीछे आने लगी थी। कंचन के आने के बाद ठीक उसके पीछे मानवी आ गई।
मानवी ने अपने पति को ऐसे किसी दूसरे के घर में दरवाजे की ओर मुंह कर खड़ा देख हैरानी जताई। उसने कंचन को एक तरफ किया और धीमे धीमे कदमों से अपने पति की ओर बढी। मगर तभी उसने अपने पति के पीछे मौजूद सोफे को देखा, सोफे को देखते ही उसकी हालत खराब हुई और वो वहीं घुटनों के बल बैठते हुए उल्टीया करने लगी।
शख्स अपनी जगह पर खामोश खड़ा था, कंचन के एक्सप्रेशन नॉर्मल थे और वह दरवाजे के पास अब पीठ लगा कर खड़ी हो गई थी। वही मानवी तीन से चार बार उलटीयां करने के बाद कमजोरी और अजीब सी फीलिंग महसूस कर रही थी।
शख्स पलटा और उसने दोबारा सोफे की तरफ देखा। सोफे पर मोटे आदमी की लाश पड़ी थी, उसके पूरे शरीर में ढेर सारी चाकू के वार किए गए थे। मोटे आदमी के दाएं कंधे वाले हाथ का हिस्सा उसके शरीर पर नहीं था। सोफा और फर्श लाल रंग के खून से सना हुआ था।
फर्श पर मौजूद लाल रंग के खून के धब्बे अंदर किचन की तरफ जा रहे थे। शख्स ने अपनी आंखें बंद की, गहरी सांस ली, उन्हें खोला और किचन की तरफ जाने लगा।
किचन के दरवाजे के पास पहुंच कर उसने अंदर की तरफ देखा तो दोबारा आंखें बंद कर ली। अंदर कटिंग बोर्ड पर मोटे आदमी का हाथ पड़ा था जिसे टुकड़ों में काटने की कोशिश की गई थी। वहीं पास ही मिक्सी थी, जिसमें किसी लाल रंग की चीज का जूस बना हुआ था।
शख्स ने अपने नीचे वाले होठ को अपने मुंह में लिया और ठोढ़ी अजीब सी करते हुए अपने हाथ को मुक्का बनाकर दरवाजे पर मारा। यह सब चीजें उसे विचलित तो नहीं कर रही थी मगर कुछ सोचने पर जरूर मजबूर कर रही थी।
तकरीबन 2 घंटे बाद पुलिस की लाल रंग की गाड़ियां बिल्डिंग के आसपास खड़ी थी। कंचन की मां एक तरफ खड़ी रो रही थी। कंचन को एक लेडी इंस्पेक्टर ने कार में बिठा दिया था। शख्स और उसकी पत्नी मानवी मोटी औरत से कुछ दूर अकेले खड़े थे। मानवी के हाथ में पानी की बोतल थी। जबकि शख्स वह अपने एक हाथ को बगल में लेकर दूसरे हाथ को उसके ऊपर रखकर नाखून चबा रहा था।
“बॉउंडेशन! रिस्ट्रक्शन! दिमागी कैद! यह है इसका रिजल्ट! इस वजह से बनता है एक इंसान बुरा।” शख्स ने नाखून चबाते हुए अपने मन में कहा, उसका ध्यान सामने पुलिस की गाड़ियों की तरफ था “यह खतरनाक है। सच में बहुत खतरनाक है। जब हम किसी मानसिक रूप से परेशान इंसान के साथ ऐसा करते हैं तो ज्यादातर मामलों में यही होता है। इमोशन हावी होते हैं और जाने अनजाने में गलत फैसले कर लिए जाते हैं। मैं यहां यह नहीं कहूंगा कि कंचन बेकसूर है, उसने एक कत्ल किया है और उसे बेकसूर कहना जायज नहीं रहेगा। मगर क्या उसके पिता, उसके पिता ने उसके साथ जो किया वह जायज था। मैं दिन भर उसके साथ रहा, मैंने कंचन की फीलिंग और इमोशन को समझा, जाना कि उसे प्यार चाहिए। थोड़ी सी आजादी। ऐसी आजादी जो उसे अपने दिमाग में बनने वाले काल्पनिक दुनिया से बाहर निकाल कर रखें। कमरे में कैद इंसान खुद को सही कर सकता है, मगर एक बार इंसान अपने दिमाग में कैद हो गया तो उसका कोई इलाज नहीं। दिमागी ख्याल, इंसान का दिमाग में कैद होना, यह, यह सच में वह करवा सकता है जिसकी कोई उम्मीद नहीं करता। कंचन ने तो अपने पिता को मारकर, उसके एक हाथ को काट कर, उसका जूस तक बनाने की कोशिश की। शायद ऐसा करके वह लाश ठिकाने लगाने की कोशिश कर रही थी। उसके मन में लाश को इस तरह से जूस बनाकर फ्लश में बहाने का इरादा था। मगर इंसानी लाश की हड्डियां मजबूत और घर के सामान से ना कटने वाली होती है, तो वह अपनी इस कोशिश में कामयाब नहीं हो सकी। दिमाग ख़्याल, और उसकी कैद, दोनों ने कंचन को वह बना दिया जो बरसों पहले में बना था। एक कातिल.....।” शख्स पलटा और अपनी बिल्डिंग की तरफ जाने लगा, मानवी भी उसके पीछे-पीछे चलने लगी, शख्स ने अपने मन में चलते हुए कहा “बस मैंने ऐसे लाश को मिक्सी में डालकर ठिकाने लगाने की कोशिश नहीं की।” इतना कहकर उसने अपने चेहरे पर दबे हुए भाव दिखाए।
जल्दी ही वह सिढीयों पर चल रहा था “दिमागी कैद, मैं शुरू से इस पर बात करने के लिए कह रहा था मगर खुलकर बात कर ही नहीं पाया। यह एक काफी बड़ा टॉपिक हैं। इतना बड़ा की इस पर अलग से कहानी लिखी जा सकती है। हां, इसे आर्टिकल लिखकर भी समझाया जा सकता है। मैं अब तक यही समझा पाया हूं की यह कमरे में कैद होने वाली स्थिति से अलग होती है। इसमें इंसान खुद को बाहरी दुनिया से अलग कर देता है और अपने दिमाग में ही अपनी दुनिया बना लेता है। यह दुनिया और ज्यादा गहरी हो जाए तो इंसान धीरे-धीरे उसी में रहने का आदी हो जाता है। और वहां रहते रहते ऐसी परिस्थितियों में पहुंच जाता है जहां वह अपनी कल्पनिक दुनिया का कैदी हो जाता है। इसके बाद वो परिस्थिति पैदा होती है जहां बाहरी दुनिया का कोई भी इंसान उसे काल्पनिक दुनिया में जीने से रोकता है, तो वो उस पर इरिटेशन दिखाता है। गुस्सा दिखाता है। और फिर उस वजह को मिटाने की कोशिश भी करने लगता है जो उसके बीच में आती है। इस एग्जांपल के तौर पर समझना हो, तो आप अपने मोबाइल फोन और अपने आसपास के लोगों का व्यवहार देख सकते हैं। अगर आप मोबाइल फोन के एडिक्टेड हो, और कोई आपको मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने से रोकता है तो आपको उस पर गुस्सा आता है या नहीं? गुस्सा नहीं आता तो चिढ तो आती होगी? हां इसमें इंसान कत्ल नहीं करता, वैसे कर भी सकता है। कुछ मामलों में यह पढ़ने को मिला भी है कि फोन का इस्तेमाल करने से रोकने पर उसका कत्ल कर दिया गया। मेरी बातों को यहां गलत मतलब ना निकाला जाए, मैं बस एक उदाहरण देकर यह समझाने की कोशिश कर रहा हूं कि दिमागी कैद कितनी खतरनाक हो सकती है। वो भी...वो भी एक तरह की आदत होती है। एक तरह की बुरी आदत।”
शख्स ने दरवाजा खोला और किचन के पास मौजूद डाइनिंग टेबल की तरफ बढ़ने लगा “मैं अपनी कहानी में किसी तरह की सीख, या किसी तरह का उपदेश देने की कोशिश नहीं कर रहा। मैं कोई फिलॉस्फर नहीं हूं जो कहानी में सीख देता फिरुं। मगर मैं आपको यह बताने की कोशिश जरूर कर रहा हूं, की दुनिया में कुछ इमोशन, कुछ इमोशन ऐसे होते हैं जो खतरनाक बन सकते हैं। और इंसान को... इंसान को हमेशा इन इमोशन से दूर रहना चाहिए। इसी मैं उसकी भलाई है, इसी में लोगों की भलाई है।”
वह डाइनिंग टेबल पर बैठा, वहां कटे हुए खीरे के टुकड़े को उठाया और मानवी से बोला “जो भी हुआ उसे भूल जाओ, आज रात की बात रात खत्म होने के साथ ही खत्म हो जानी चाहिए।” जिसके जवाब में मानवी ने हां में सिर हिलाया।
★★★
Karan
11-Dec-2021 06:04 PM
Nice....
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