AMAN AJ

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आई नोट , भाग 23

  

    अध्याय-4
    इंटरनल हैप्पीनेस
    भाग-2

    ★★★  
    
    “मगर आपको पता है ना मेरा अभी शादी करने का कोई विचार नहीं है।” आशीष ने अपने अंदर के भावों को कंट्रोल में रखा और कहा। 
    
    यह सुनते ही सामने उसके पिता मुस्कुरा पड़े। आशीष के पिता ने मुस्कुराते हुए कहा “मगर तुम इस शादी के लिए मना नहीं कर सकते।”
    
    “क्यों... अगर मैं शादी से मना करूंगा तो क्या आप मुझे जायदाद से बेदखल कर देंगे।” अबकी बार आशीष का लहजा बदल गया “मैं केयर नहीं करता। मैंने अपनी मेहनत से खुद की एक अलग कंपनी खड़ी कर रखी है, अगर आप जायदाद से बेदखल कर देंगे तो ज्यादा नुकसान आपको ही होगा। आपका बिजनेस मेरे बिना एक दिन भी नहीं टिक पाएगा।”
    
    “ऐसी बातें तुम ना हीं करो तो बेहतर है बेटा।” आशीष के पिता ने खाना प्लेट में डालना शुरू कर दिया “मैं तुमसे पहले इस दुनिया में आया था, सिर्फ आया ही नहीं था बल्कि आने के बाद तुम्हारा पिता भी बना था। तुम एक पिता को नहीं बता सकते उसे कौनसी चीज कैसे संभालनी। वह सब चीजों को तुम से बेहतर जानता है।”
    
    “बेहतर जानना किसी चीज का हल नहीं होता।” आशीष ने कहा और दूसरी तरफ मुंह कर लिया। इसके बाद वह बोला “बस आप यह अच्छे से जान लीजिए मैं शादी नहीं करने वाला।”
    
    सोम्या बीच में टोकती हुई आशीष को बोली “मगर भाई इसमें गलत क्या है। और तुम जानते हो पिताजी जिस लड़की की बात कर रहे हैं उसने अपने सारे स्टडी अब्रोड से कंप्लीट की है।‌ वह गॉर्जियस है, टैलेंटेड है, खूबसूरती में तो उसका कोई सानी भी नहीं, तो फिर मना करने का मतलब क्या। अच्छा चलो मान भी लिया आपकी खुद की मर्जी है, मगर आप एक बार लड़की को तो देख लो। उसके बाद कुछ डिसाइड कर लेना।”
    
    सोम्या ने देवराज की तरफ देखा जो दूर खड़े थे। सौम्या के देखते ही देवराज आगे आया और एक टेबलेट निकालकर उसे आशीष के सामने रख दिया। टेबलेट में किसी लड़की की फोटो थी जो एक दीवार के पास अपने एक हाथ में शॉपिंग बैग के साथ खड़ी थी। 
    
    देवराज ने फोटो दिखाते हुए कहा “फिलहाल मिस स्नेहा अपने पिता के व्यापार को नए लेवल‌ पर ले जाने के लिए उसमें कुछ बदलाव कर रही है। वह मॉडर्न चीजों का इस्तेमाल कर अपने पिता के व्यापार को मॉडर्न बना रही है।”
    
    आशीष का चेहरा अभी की दूसरी तरफ था। देवराज पीछे की तरफ हुआ और वापस अपने पहले वाली जगह पर जाकर खड़ा हो गया।
    
    आशीष के पिता ने खाना खाना शुरु कर दिया था। वह खाना खाते खाते बोले “देखो बेटा, यह फैसला सिर्फ हमारी खुशी के लिए नहीं लिया गया है, बल्कि तुम्हारी खुशी के लिए भी लिया गया है। हम जानते हैं तुमने बचपन में अपने दिन कैसे बिताए हैं, हम यह भी जानते हैं भगवान ने तुम्हारी पसंद को लिमिटेड रखा है। इन चीजों की वजह से तुम हमेशा परेशान रहते हो। मगर तुम्हें कभी ना कभी तो खुद को बदलकर आम लोगों की तरह जीना सीखना होगा। यह शादी तुम्हारी जिंदगी में नए बदलाव लेकर आएगी। लड़की अच्छी है, खूबसूरत है, कोई कमी नहीं है, फिर बिजनेस भी अच्छा चलाती है। मुझे नहीं लगता इसमें ना कहना किसी भी तरह की समझदारी होगी।”
    
    आशीष ने अभी भी ध्यान नहीं दिया।‌ आशीष के पिता ने धीरे से आशीष की मां की तरफ देखा और उन्हें कुछ बोलने के लिए कहा। आशीष की मां ने यह देखा तो मैं आशीष से बोली “हां बेटा, यहां कोई भी फैसला लेकर तुम्हारा नुकसान नहीं चाहता। तुम्हारे भले की बात है इसलिए यह फैसला लिया गया है। एक मां बाप को हमेशा अपनी संतान की चिंता रहती है, तुम हमारे बेटे हो तो हमें तुम्हारी चिंता है। इस नाते हमारा फर्ज है कि हम तुम्हारे अच्छे बुरे इन सब के बारे में सोचे।”
    
    आशीष के सब्र का बांध टूटता जा रहा था। उसने अपनी आंखें बंद की और अपने मन में कहा “मैंने फैसला लिया था कि मैं अपने दिमाग के विचारों को शांत रखूंगा, मगर शायद नहीं, अगर मैं दिमाग के विचारों को शांत रखकर उसे खुद को तकलीफ देने से रोकता हूं, तो ये लोग मुझे तकलीफ देना शुरु कर देते हैं।”
    
    आशीष ने गहरी सांस ली और फिर सभी के चेहरों की तरफ देखते हुए कहा “मैं... मैं कुछ भी जल्दबाजी में ही नहीं कह सकता। मुझे वक्त चाहिए। इसके बाद मैं फैसला करूंगा मुझे क्या करना है क्या नहीं...” 
    
    “हां बिल्कुल...” आशीष के पिता ने सामने से हाथ हिलाते हुए कहा “तुम वक्त भी लो और इस लड़की से जान पहचान करने की भी कोशिश करो। हमने आज बिजनेस मीटिंग के चलते एक मीटिंग भी फिक्स करवाई है जहां यह लड़की तुमसे मिलने आएगी। यह एक बेहतर मौका हो सकता है। तुम उसे जानो और फिर फैसला लेते वक्त इस जान पहचान का इस्तेमाल लड़की को जज करने में करो। शायद इससे तुम जान पाओ.. जिंदगी में सब कुछ तुम्हारे बुरे के लिए नहीं होता।”
    
    आशीष ने हां में सिर हिलाया और अपनी जगह से खड़ा हो गया। खड़े होने के बाद वह बाहर की तरफ चल पड़ा। पीछे आशीष की मां ने कहा “अरे बेटा खाना तो खा जाते...” मगर आशीष ने इसे पूरी तरह से अनसुना कर दिया।
    
    आशीष के पिता आशीष की मां से बोले “तुम क्यों बेवजह उसकी फिक्र करती रहती हो। उसे अपने आप को संभालना आता है।”
    
    आशीष की मां ने यह सुना तो आशीष के पिता की तरफ देखते हुए कहा “लेकिन आपको यह भी पता है जब वह खुद को नहीं संभाल पाता तो क्या क्या करने लग जाता है। बचपन में तो खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता रहता था। कितनी बार उसने अपने सर को दीवार में मारा है। हाथ तक काटने की कोशिश की है। ऐसे में तो मुझे बस इसी बात का डर लगता रहता है कि वो कुछ गलत ना कर ले।”
    
    “वो समझदार हो गया है।” आशीष के पिता बोले “ऐसी बचकानी हरकतें करना पता नहीं उसने कब का छोड़ दिया। छोड़ो तुम, खाना खाओ, दोपहर तक लड़की से मिलेगा तो खुद ही देख लेगा क्या करना है क्या नहीं। फिर जब तक मैं नहीं कह देता, तब तक वह इस रिश्ते के लिए सीधे-सीधे ना कर भी नहीं सकता।”
     
    आशीष बाहर आया और तुरंत अपनी लग्जरी कार में बैठ गया। कार में बैठने के बाद उसने ड्राइवर को ऑफिस जाने के लिए कहा। तकरीबन 2 घंटे के सफर के बाद वह ऑफिस पहुंच गया। 
    
    ऑफिस में वह लिफ्ट में पहुंचा। उसने लेफ्ट का दरवाजा बंद किया और शांति से खड़ा हो गया। उसके दोनों हाथ सामने की ओर थे और आपस में जुड़े हुए थे। लिफ्ट धीरे-धीरे ऊपर जा रही थी। तभी अचानक उसके मन में पता नहीं क्या आया उसने अपने चेहरे पर गुस्सा दिखाया और तुरंत अपने एक हाथ को मुक्के में बना कर लिफ्ट के दरवाजे पर जोर से दे मारा। 
    
    मुक्का मारने के बाद वह वापस पहले की तरह हो गया। उसने आंखें बंद की और लिफ्ट के ऊपर जाने का इंतजार करने लगा। अभी लिफ्ट थोड़ा सा ही ऊपर गई थी की उसने दोबारा आंखें खोली और एक के बाद एक उसी हाथ के मुक्के लिफ्ट पर मारता गया। उसके हाथ से खून निकलने लगा था। तभी लिफ्ट खुल गई और वह शांत हो गया।
    
    लिफ्ट के खुलते ही वहां उसके ठीक सामने मौजूद दफ्तर के लोग उसकी तरफ देखने लगे। आशीष ने सभी को नजरअंदाज किया और ऐसे ही बहते खून वाले हाथ के साथ अपने ऑफिस की तरफ जाने लगा। उसके हाथ के खून के छींटे पीछे नीचे गिरते जा रहे थे। 
    
    जल्दी वह ऑफिस में पहुंचा अपने आलीशान सीट पर बैठा और फोन निकालकर स्टीफन को फोन किया। 
    
    तकरीबन 25 मिनट बाद आशीष आलीशान कुर्सी पर अपने हाथ को मेज पर रखकर बैठा था। उसके पास ही एक लड़की थी जिसके पास दवाइयों वाली ट्रे थी। वह उसके हाथ पर मरहम पट्टी कर रही थी। स्टीफन उसके ठीक सामने था और वह खामोशी से उसके हाथ की मरहम पट्टी होने का इंतजार कर रहा था।
    
    आशीष की मरहम पट्टी हुई और लड़की उसके ऑफिस से चली गई। उसके जाते ही स्टीफन ने आशीष से पूछा “अब यह क्या है... तुम्हारे हाथ पर चोट कैसे लगी?”
    
    “यह वह बात नहीं जिसके लिए मैंने तुम्हें बुलाया है।” आशीष ने अपने हाथ को धीरे से सहलाया “मुझे तुमसे कुछ और बात करनी है?”
    
    “हां कहो”
    
    “मेरे पिता हद से बाहर निकलते जा रहे हैं। मेरे बचपन को कंट्रोल करने के बाद अब वह मेरे आगे के भविष्य को भी कंट्रोल करने जा रहे हैं।”
    
    स्टीफन ने दाएं बाएं सिर हिलाया और आगे की तरफ झुकते हुए आशीष से कहा “पहले तो अपने दिमाग से यह विचार निकाल दो कि तुम उनको मारने जा रहे हो। अपने पिता को मारना किसी भी तरह से सही विचार नहीं है।”
    
    आशीष ने हाथ को यह क्या है के अंदाज में किया और कहा “मैं अपने दिमाग में कुछ सोच ही नहीं रहा, मैंने सुबह से इसे बिल्कुल शांत रखा है, और मारने वाला ख्याल तो बिल्कुल भी नहीं आया। मैं बस, मैं बस यही चाह रहा था कि वह मेरे भविष्य के फेसले ना ले।”
    
    “ओके...” स्टीफन‌ ने राहत वाली सांस ली और पीछे की तरफ हो गया “सुनकर अच्छा लगा, लगता है तुमने कल मेरे बदलने वाली बात पर काफी गहराई से विचार किया है।”‌ इसके बाद उसने सोचा और आशीष से पूछा “तो तुम्हारे पिता वाला मसला क्या है... वह किस बारे में फैसला लेने जा रहे हैं?”
    
    “शादी.... कोई घर में बड़ा हो जाए तो मां-बाप को शादी के अलावा और सुझता भी क्या है... जैसे मानो शादी ना हुई तो दुनिया में कोई भूचाल आ जाएगा।”
    
    स्टीफन हंस पड़ा “शादी तो दुनिया में हर किसी को करनी पड़ती है। तुम्हें भी एक ना एक दिन करनी पड़ेगी।”
    
    “मगर मुझे इतनी जल्दी शादी नहीं करनी। और अगर करनी भी है तो अपनी पसंद की लड़की से करूंगा।”
    
    “हां मगर उनको जिंदा छोड़ोगे तो ना, मिलते ही अगले दिन तो खत्म कर देते हो, श्रेया से पहले भी तीन लड़कियां तुम्हारी इस पसंद नापसंद का शिकार हो चुकी है।”
    
    “तो क्या करूं, तुम्हें पता है कोई जाने का कह देता है तो दिमाग सटक जाता है। वह श्रेया इतनी अच्छी लड़की थी, ऑफिस में भी ठीक रही, रात को भी ठीक रही, सुबह उठते ही पति के पास जाना है पति के पास जाना है करने लगी, मैं क्या करता...” आशीष कुर्सी पर पीछे की तरफ हो गया
    
    “चलो छोड़ो, जो हो गया सो हो गया, अब मुझे तुम यह बताओ तुम्हारे दिमाग में क्या है..” स्टीफन ने आशीष से पूछा “तुम्हें शादी करनी है या नहीं...”
    
    तभी उसके फोन की घंटी बजी और आशीष ने फोन उठाया। फोन पर दूसरी और से उसके रिसेप्शन गर्ल ने कहा “सर, फैशन डिजाइनर इंटरव्यू के लिए आप्शनस आ गए हैं, आप बताइए कब तक इंटरव्यू शुरू करना है?”
    
    आशीष ने जवाब दिया “बस अभी शुरू करते हैं... मैं इंटरव्यू रुम में आता हूं, इसके बाद तुम एक एक कर सभी को भेज देना।”
    
    आशीष पीछे की तरफ हो गया, वह कुछ गहराई से सोच रहा था।
    
    वहीं रिसेप्शन गर्ल ने फोन रखा और अपने सामने खड़ी लड़की को कहा “बस इंटरव्यू कुछ ही देर में शुरू हो रहा है... मेंम आप तब तक के लिए इंतजार कीजिए।”
    
    यह सुनकर मानवी पलटी और वहां मौजूद सोफे की तरफ चल पड़ी।
 
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