AMAN AJ

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आई नोट , भाग 37

    

    अध्याय 7 
    डिसाइड तुम्हें करना है 
    भाग 1 
    
    ★★★
    
    मानवी ने जैसे-तैसे कर जुस को गिलास में भरा और शख्स के पास आ गई। उसने जुस शख्स को देते हुए कहा “वो मैं घर की सफाई करने वाली थी, इस वजह से चद्दर को डाइनिंग टेबल के ऊपर डाल दिया ताकि धूल मिट्टी डाइनिंग टेबल के ऊपर ना गिरे। कांच का डाइनिंग टेबल है तो जब साफ करती हूं तो उसमें स्क्रैच आ जाते हैं।”
    
    “और मोमबती...”
    
    “वो कल रात को लाइट अचानक से खराब हो गई थी, कुछ सूझ नहीं रहा था तो मोमबत्ती जगाई।”
    
    मानवी ने जवाब देखकर खुद को जैसे-तैसे बुरी परिस्थितियों से बाहर निकाला। शख्स ने जूस पिया और उसके बाद कहा “देखो, मैंने तुम्हारी जॉब को लेकर कुछ सोचा है लेकिन मैं उस पर अभी डिसीजन नहीं ले सकता। मेरी कहानी आने वाले लगभग 3 दिनों में पूरी हो जाएगी। इसके बाद में उसे पब्लिशर को दूंगा और फिर हम बैठ कर आगे की बात करेंगे। तुम्हें इससे कोई एतराज तो नहीं...?”
    
    मानवी ने ना में सिर हिला दिया। उसने शख्स से खाली कांच के गिलास को पकड़ा और कहा “नहीं, मुझे कोई एतराज नहीं है। तुम आराम से बात कर लेना।”
    
    गिलास को पकड़ने के बाद वो किचन की तरफ चली गई। जबकि शख्स दोबारा बाहर चला गया। उसके जाते ही मानवी तेजी से दरवाजे की तरफ बढ़ी और दरवाजा बंद कर दिया। दरवाजे को बंद करने के बाद वह दुबारा डाइनिंग टेबल के पास आई और उसके ऊपर मौजूद चददर को हटाकर उसे साफ करने लगी।
    
    डाइनिंग टेबल साफ करने के बाद उसने कैंडल उठाकर डस्टबिन में डाल दिया। आॅयल वाले बर्तन को किचन में लेकर गई और वहां उसे धो दिया। सब काम हो जाने के बाद वह नहाने के लिए चली गई। 
    
    उसे नहाने में पूरा आधा घंटा लग गया। तेल को पूरी तरह से साफ करने में उसे काफी मेहनत करनी पड़ी। नहाने के बाद वह जल्दी से तैयार हुई और ऑफिस के लिए चल पड़ी।
    
    बिल्डिंग के बाहर आलीशान कार हमेशा की तरह उसका इंतजार कर रही थी। मानवी कार में बैठी और ड्राइवर उसे आशीष एंड कंपनी की तरफ ले चला। 
    
    कार में उसके चेहरे पर अलग-अलग तरह के भाव आ रहे थे। जब वह अपने पति के बारे में सोचती थी तब उसे डर लगने लगता था, और जब आशीष के बारे में तो सोचती थी तो इस बारे में फैसला नहीं कर पा रही थी वह ऑफिस में उसका सामना कैसे करेगी। खासकर कल रात जो हुआ उसके बाद। 
    
    मानवी कंपनी में पहुंची और तुरंत लिफ्ट पकड़ कर आशीष के दफ्तर की तरफ जाने लगी। आशीष के दफ्तर के पास पहुंचते ही वो कमरे में जाने की बजाय बाहर ही डेस्क पर जाकर बैठ गई। उसमें इतनी हिम्मत नहीं हो पा रही थी कि अब वो आशीष के सामने जा सके। वहीं उसने कुछ फाइलें निकाली और उसे पढ़ते हुए अपने ध्यान को डाइवर्ट करने की कोशिश करने लगी।
    
    उसे वहां बैठे हुए तकरीबन 15 मिनट हुए थे कि आशीष अपने कमरे से बाहर निकला और बालों में हाथ फेरते हुए पूरे दफ्तर में काम करते हुए लोगों को देखा। सभी लोगों को देखने के बाद उसका ध्यान मानवी की तरफ गया जो अपनी नजरें चुरा रही थी। 
    
    उसने मानवी को देखते ही कहा “एक्सक्यूज मी, मानवी, क्या तुम ऑफिस में आओगी मुझे तुमसे कोई काम है।”
    
    मानवी अपनी उंगलियों को अपनी मुठीयों में मसलने लगी। आशीष अंदर आने का कहने के बाद अपने कमरे में चला गया। मानवी ने फाइल उठाई और धीरे धीरे चलते हुए उसके ऑफिस में गई।
    
    वहां आशीष अपनी बड़ी आलीशान कुर्सी पर हाथ जोड़कर उसे ठोढ़ी के नीचे रख कर बैठा था। आशीष ने अपने हाथों से सामने की तरफ इशारा किया और मानवी‌ को बैठने के लिए कहा। मानवी कुर्सी पर बैठ गई। कुर्सी पर बैठने के बाद भी उसे अजीब सा फील हो रहा था।
    
    आशीष कल रात के घटनाक्रम को याद करते हुए मानवी से बोला “देखो कल रात जो भी हुआ, उसके लिए...”
    
    “नहीं उसके लिए माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं” अभी आशीष ने अपनी बात पूरी भी नहीं की थी कि मानवी बोल पड़ी।
    
    आशीष ने अपने हाथों को पीछे की तरफ किया और कहा “मैं माफी मांग भी नहीं रहा था, मैं बस यह कह रहा था कि शायद हमें वो सब नहीं करना चाहिए था। कम से कम इतनी जल्दी नहीं...”
    
    “शायद,” मानवी ने चेहरे पर गंभीरता दिखाई “मुझे तो इस बात का डर है अगर मेरे पति को पता चल गया तो क्या होगा?”
    
    “पति!!” आशीष कुर्सी पर आगे की ओर हुआ “आखिर तुम अपने पति से इतना डरती क्यों हो”
    
    “मैं डर नहीं रही, वो बस ...वो शादी के बाद यह सब करना अच्छा नहीं होता, इसलिए, इसलिए अजीब सा लग रहा है, अगर उसको पता लगेगा तो क्या होगा।”
    
    “वैसे मानवी मुझे तुम्हें कहना तो नहीं चाहिए....” आशीष पीछे की तरफ हो गया “लेकिन अगर तुम चार दीवारों से बाहर जी रही हो तो यह सब कोई बड़ी बात नहीं। तुमने जो भी किया उसे अफेयर आफ्टर मैरिज कहा जाता है। दुनिया के 70% मैरिज कपल ऐसा करते है। पति का अफेयर किसी और लड़की के साथ होते है, और पत्नी का किसी और के साथ, जस्ट सिंपल”
    
    “मगर, मगर यह धोखा देने में आता है।”
    
    “धोखा सब तो कुछ शब्द है जिसे इंसानों ने रचा है। उन इंसानों ने जो शायद नहीं चाहते कि उनकी पत्नी चार दीवारों से बाहर निकल कर अपनी जिंदगी जिए। यह शब्द इंसानों पर लिमिट लगाते है, उन्हें उन कामों को करने से रोकते है जो समाज के दायरे में नहीं आते। समाज, समाज भी यही चाहता है कि इंसान हमेशा किसी ना किसी सीमा में बंधा रहे। और तुम, तुम्हें अगर चार दीवारों से बाहर निकलकर अपनी जिंदगी जीनी है तो सभी सीमाओं से बाहर निकलना होगा।”
    
    “क्या सच में..” मानवी फिर से आशीष की बातों में खो गई।
    
    “हां मानवी सच में, मैंने तुमसे कहा था ना तुम वो जिंदगी डिजर्व नहीं करती जो तुम्हें तुम्हारे पति ने दी हैं, तुम असल मायने में वह जिंदगी डिजर्व करती हो जिसके तुम लायक हो। ढेर सारा ऐशो आराम, हर तरह की सुख सुविधा, वो जिंदगी जो अब तुम्हें मिलने वाली है।”
    
    “मुझे मिलने वाली है मतलब...” मानवी हैरानी से आशीष के चेहरे की तरफ देखने लगी।
    
    आशीष मुस्कुराया और कहा “दरअसल मैं अपना एक गेस्ट हाउस तुम्हारे नाम करने जा रहा हूं, अपना एक गेस्ट हाउस और कंपनी के दो पर्सेंट शेयर, मैं तुम्हें वह देने जा रहा हुं जो तुम डिजर्व करती हो।”
    
    टेबल पर एक फाइल पड़ी थी। आशीष ने वह फाइल मानवी की ओर खिसका दी। मानवी ने फाइल का उठाया और उसे पढ़ा। उसमें लिखा गया था कि अब एक गेस्ट हाउस और कंपनी के 2% शेयर मानवी के नाम हैं। मानवी यह देखकर दंग रह गई।
    
    उसने आशीष से पूछा “मगर यह सब क्यों और किस लिए...?”
    
    आशीष अपनी जगह से खड़ा हुआ और उसकी तरफ चलते हुए कहा “यह पुछने लायक सवाल नहीं है, ना ही यह एक ऐसा सवाल है जिसका मेरी तरफ से जवाब दिया जा सके। मैंने तुम्हें जो भी दिया है वह तुम्हारा पति जिंदगी भर नहीं दे सकता। कंपनी के 2% शेयर से ही इतना प्रॉफिट होता है जितना तुम्हारा पति साल में 50 किताबें लिखने के बाद भी नहीं कमाएगा। तुम बस... तुम बस अपनी जिंदगी के मजे लो।” 
    
    आशीष बिल्कुल मानवी के पास आया और उसके पास मौजूद दूसरे कुर्सी पर बैठ गया। कुर्सी पर बैठने के बाद उसने मानवी की कुर्सी अपनी और घुमाई और मानवी की आंखों में आंखें डाल कर कहा “मानवी, पता नहीं क्यों मैं बार-बार तुमसे यह कहता हूं, पता नहीं, मगर सच में, सच में तुम वो सब नहीं डिजर्व करती जो तुम्हें तुम्हारा पति नहीं दे रहा। तुम्हें देखकर यह बात अपने आप मेरे मुंह पर आ जाती हैं। मुझे तरस आता है, तरस आता है जब मैं देखता हूं तुम किस तरह से अपनी जिंदगी खराब कर रही हो।” वह फिर से मानवी को बहला फुसला रहा था। “मत धेकलो खुद को इस तरह के दलदल में, सच्चाई को समझो और वह करो, जो तुम्हें अपने लिए सही लगे।” 
    
    उसने अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाएं और मानवी के बालों में फेरते हुए उसका चेहरा अपने चेहरे के पास किया। चेहरा पास करने के बाद उसने मानवी के होंठों पर अपने होंठ रख दिए और उसे चूमने लगा। चुमने के बाद उसने मानवी को पीछे किया और कहा “मैं जानता हूं तुम सही फैसला लोगी।”
    
    मानवी समझ गई थी वह किस फैसले के बारे में कह रहा है। कल रात आशीष ने उसे अपने पति को छोड़कर उसका होने की बात कही थी। मानवी ने उसे याद किया और आशीष को कहा “मैं सब कुछ ऐसे अचानक से नहीं कर सकती, मुझे थोड़ा वक्त चाहिए।”
    
    “हां जरूर, तुम जितना चाहो उतना वक्त ले सकती हो, फिर मैंने तो पहले से ही सोच रखा है मुझे किसी तरह की जल्दबाजी नहीं करनी। इस बार तो बिल्कुल भी नहीं।”
    
    “हां..” मानवी ने कहा इसके बाद उसने थोड़ी हिचकिचाहट दिखाई। उसे कोई और बात भी कहनी था जो शायद आशीष को अच्छी नहीं लगने वाली थी। उसने अपनी गर्दन पर घबराहट के मारे हाथ फेरा और आशीष से कहा “अच्छा अगर तुम बुरा ना मानो, तो जब तक मैं फैसला नहीं कर लेती तब तक तुम, मतलब हम दोनों ने कल जो भी किया, उसे ना करें”
    
    “क्या मतलब, क्या मैंने किसी तरह की कमी रखी थी”
    
    “नहीं, मैं, दरअसल....” आशीष के चेहरे के एक्सप्रेशन ऐसे हो गए थे कि मानवी को आगे कहने से भी डर लग रहा था।
    
    “नहीं, मैं, दरअसल, क्या मानवी.... बोलो आगे” आशीष उसके एक-एक शब्द को दोहराते हुए बोला 
    
    “वह मुझे इस बात का डर है कि कहीं मेरे पति को पता ना लग जाए। बस मैं नहीं चाहती मेरे बताने से पहले उसे कुछ भी पता चले।”
    
    आशीष हल्का सा हंसा “कैसी बातें कर रही हो मानवी, तुम्हारे पति को भला यह सब कैसे पता चलेगा, तुम बताने वाली नहीं, मेरा तुम्हारे पति से वैसे भी कोई कांटेक्ट नहीं, तो ऐसे में कोई गुंजाइश ही नहीं की तुम्हारे पति को यह सब पता चले। हम हर एक चीज के लिए आजाद हैं।”
    
    “लेकिन अगर तुम घर पर आओगे, वहां तो रिस्क बना रहेगा ना।”
    
    “घर पर” आशीष सोचने लगा “तो ठीक है...” उसने सोचा और मानवी की कुर्सी को खींच कर अपने करीब करते हुए कहा “मेरे सारे के सारे गेस्ट हाउस खाली पड़े हैं, आज के बाद मैं तुम्हारे घर पर कभी नहीं आऊंगा, और जो काम कल रात को किया था, उसे अब दिन में ही कर लिया करेंगे।”
    
    उसने मानवी को अपनी और खींचा और उसे अपने सीने से लगा लिया। आशीष की कायल मानवी भी उसकी बाहों में जाते ही उसकी होती चली गई।
    
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