AMAN AJ

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आई नोट , भाग 42

    अध्याय 8

    शुरुआत में 
    भाग 1
    
    ★★★
    
    एक 14 साल का लड़का साधी कमीज और साधी पेंट में 1 दरवाजे के ठीक सामने खड़ा था। उसके सर के बाल बारिक थे। चेहरा लंबा और गोल था। लड़के की कमीज उसके घुटनों तक आ रही थी। कलाई के बटन खुले हुए थे और वहां से भी कमीज नीचे की ओर लटक रही थी। आंखें सामने के दृश्य को निहार रही थी जहां एक औरत डाइनिंग टेबल के ऊपर अपने सामने मौजूद अपने पति से लड़ रही थी। सब स्लो मोशन वाले दृश्यों में हो रहा था।
    
    “मौत....” उस लड़के के अंतर्द्वंद में एक आवाज गूंजी “मौत को परिभाषित नहीं किया जा सकता। लोगों को लगता है मौत सूकुन देती है। मगर कोई यह नहीं जानता मौत से पहले के कुछ क्षण आपको आपकी पुरानी यादों में ले जाते हैं।”
    
    सामने पति ने डाइनिंग टेबल पर मौजूद प्लेट उठाई और उसे सामने पत्नी के मुंह पर दे मारी। प्लेट चेहरे के ऊपर टूटते हुए धीरे धीरे नीचे जा गिरी। इसके ठीक बाद पति ने एक कटोरी उठाई और उसे 14 साल के लड़के की और दे मारा। कटोरी धीरे-धीरे लड़के की और आई, जहां लड़के की आंखें बंद हो गई और उसने अपना मुंह दूसरी ओर घुमा लिया, कटोरी उसके सर के ऊपर हिस्से से लगी और फिर हवा में उड़ते हुए नीचे फर्श पर जा गिरी। नीचे फर्श पर गिरने के बाद कटोरी वहां गोल गोल घूमने लगी।
    
    “मैं अक्सर यह सोचकर हैरत में पड़ जाता था कि जब भी मेरे मां-बाप की लड़ाई होती थी तब मैं क्यों बीच में बलि का बकरा बन जाता था। जितनी मार मेरी मां को पड़ती थी उतनी ही मार मुझे पड़ती थी। मैं इसे अपनी बिती जिंदगी के बुरे कर्म कह सकता था, मगर अपनी 14 साल की जिंदगी में मैंने कुछ भी बुरा नहीं किया था। फिर पिछले जन्म का कोई कांड! मैं इन्हें मानता ही नहीं।”
    
    तभी तकरीबन एक अट्ठारह उन्नीस साल की दिखने वाली लड़की जिसने सैंडल और शोर्ट्स पहन रखा था, वह सेंडल की टिक टॉक की आवाज करती हुई आई और लड़के के सामने आकर‌ खड़ी हो गई। उसके बाल खुले हुए थे। मुंह में माचिस की तीली थी। आंखें भूरे रंग की और अपने आप में गुस्सा लिए हुए थी। लड़की के बाल भी भूरे रंग के थे।
    
    “इन सब में मुझे मेरी बहन का भी कोई कसूर नहीं लगता था। वह समझदार थी, घर में बड़ी थी, हां उसके नाक पर हमेशा गुस्सा चढ़ा रहता था, जिसके उसके अपने कारण थे। मॉडर्न स्टाइल में रहने वाली मेरी बहन मुझे हमेशा से ही पसंद थी।”
    
    लड़के के सामने खड़ी लड़की ने आंखों से लड़के को अंदर जाने का इशारा किया। लड़का धीरे से मुड़ा और कमरे के अंदर चला गया। उसके जाने के बाद लड़की भी कमरे में आई और उसने दरवाजा बंद कर दिया।
    
    “मगर अफसोस, इन सबके बावजूद उसकी कुछ बुरी आदतें थी। ऐसी बुरी आदतें जिसमें उसे तो मजा आता था मगर मुझे, मुझे 2 दिन तक तेज दर्द सहना पड़ता था।” 
    
    लड़की ने वहां दीवार पर टंगा एक हंटर उठाया जो चमड़े का बना था और काफी बड़ा था। छोटे से कमरे में ढेर सारा सामान और एक बेड था। सामने की दीवार पर गिटार और फर्नीचर का कुछ सामान टंगा पड़ा था। पीछे की तरफ खिड़की थी। हंटर लेने के बाद लड़की लड़के के सामने आई और उसके कमीज के बटन खोलने लगी।
    
    “मुझे इस दर्द से नफरत नहीं थी, मगर यह सवाल हमेशा मेरे मन में रहता था, कि मेरे मां-बाप की लड़ाई में मेरे भागीदार होने के साथ-साथ, मेरी बहन कि मुझे इस तरह के दर्द देने के पीछे क्या वजह थी।”
    
    कमीज उतारने के बाद उसने उसे लड़के के सीने से अलग किया और पीछे जाकर खड़ी हो गई। वहां खड़े होने के बाद उसने हंटर को पीछे लिया और जोर से लड़के की पीठ पर दे मारा। इन सब में लड़का खामोशी से खड़ा रहा। ना तो वह चिल्लाया, ना ही उसने अपने चेहरे पर दर्द वाले एक्सप्रेशन दिए। हां, जब हंटर उसके शरीर पर पड़ रहा था तब वह एक झटका सा जरूर खा रहा था।
    
    “शायद उस समय मैं यह बात समझने की स्थिति में नहीं था किसी चीज के पीछे छुपी वजह उसे पता लगाने का काम हमारा ही होता है, ना की किसी और का।”
    
    काफी सारे हंटर खाने के बाद वह लड़का एक कोने में बैठा था। लड़की उसके ठीक सामने बैठ कर काफी सारे कपड़ों में से अपने लिए कपड़े सेलेक्ट कर रही थी। दोनों ही भाई-बहन एक ही कमरे में रहते थे।
    
    “मेरी बहन के पास किसी भी चीज की कमी नहीं थी। उसे मेरी तरह अपने डैड के पुराने कपड़े नहीं पहनने पड़ते थे। मेरे डैड हर महीने उसे 3 जोड़ी नए कपड़े लाकर देते थे।”
    
    लड़की ने अपने लिए एक ड्रेस को सिलेक्ट किया, उसे पहना और फिर बाहर चली गई। लड़का खिड़की के पास खड़े होकर उसे बाहर जाते हुए देख रहा था। वहां वो एक महंगे मोटरसाइकिल पर बैठ कर उसे चलाने वाले को हग कर रही थी। 
    
    “वो कमरे से बाहर जा सकती थी। नए दोस्त बना सकती थी। उन्हें छु सकती थी। मगर मेरे मामले में सब कुछ वर्जित था। जिसके वजह से मैं पूरी तरह से अनजान था।”
    
    लड़की के जाने के बाद लड़का वापिस कोने पर दुबक कर बैठ गया।
    
    “ऐसा नहीं कि मैंने जानने की कोशिश नहीं की, मैं 14 साल की उम्र वाले अपने दिमाग में जितनी संभावनाएं हो सकती थी उन पर विचार करता था। मेरे दिमाग में आता था कि मेरी मां झगड़ालू है, उन्हें झगड़ा करना पसंद है जिसकी वजह से मेरे पिता को गुस्सा आता था। फिर उन्हें गुस्सा आता था तो वह कुछ भी उठा कर उनके सर पर दे मारते थे। मैं इस बारे में भी सोचता था कि हो सकता है मेरी मां ने खाने पीने के सामान या घर की साफ सफाई में किसी चीज की कमी रख दी हो। यह वजह भी उसके पति को गुस्सा दिलाने के लिए काफी रहती थी।”
    
    वह लड़का वहीं कोने पर लेट गया। लेटने के बाद उसने आंखें हल्की सी बंद कर दी।
    
    “मगर इन सब को सोचने के बाद मेरा दिमाग वहां जाकर अटक जाता था जहां मैं खुद को इन झगड़ों के बीच लाकर खड़ा करता था। आखिर मेरे माता-पिता के झगड़ालू स्वभाव की वजह से मुझे क्यों मार पड़ती थी, अगर मां नें सब्जी में नमक मिर्च कम डाला है तो इसके पीछे मेरा क्या कसूर था। मेरे 14 साल के दिमाग में सोचने का इतना सामर्थ्य नहीं था, मगर फिर भी वो सही पॉइंट पर घंटों विचार विमर्श कर सकता था।”
    
    रात के तकरीबन 12:00 बजे मोटरसाइकिल बाहर आकर खड़ा हुआ। लड़का उठा और उसने खिड़की के बाहर देखा। वह मोटरसाइकिल चलाने वाला लड़का उसकी बहन को किस कर रहा था। 
    
    “हां, मेरी बहन यह सब भी कर लेती थी। मगर इसके बावजूद उस पर किसी तरह की पाबंदी नहीं थी। ना तो मेरे पिता को इससे कोई फर्क पड़ता था, ना ही मेरी मां को। मानो, मानो, मुझ में ही कुछ ऐसा था जिसके बाद मैं एक बंद कमरे से बाहर की दुनिया नहीं देख सकता था। किसी तरह की अलौकिक शक्ति! भूत प्रेत! नहीं।”
    
    कुछ दिन बीत जाने के बाद लड़का अपने सामने मौजूद गिटार को दूर खड़ा होकर हिलाने की कोशिश कर रहा था। अपने हाथों को अजीब तरह से करता हुआ। वो बीच-बीच में आंखों को भी अजीब कर रहा था।
    
    “हां यह एक हंसने वाला दृश्य है। एक 14 साल का छोटा दिमाग, वह कुछ भी सोच सकता है। यह भी कि की उसमें अजीब शक्तियां हैं। किसी तरह की अलौकिक शक्तियां। कुछ भी।”
    
    गिटार नहीं हिला तो लड़के ने अपनी कोशिश छोड़ दी और दोनों हाथों को नीचे की तरफ झटक दिया। 
    
    “इसके रिजल्ट में यह निकल कर सामने आया की भगवान ने मेरे साथ ऐसा भी कुछ नहीं किया था जिससे मुझे किसी तरह की अलौकिक शक्तियां मिले, या मैं दूर खड़ा होकर किसी चीज को हिला सकूं। सवाल घूम फिर कर वहीं आ जाता था कि आखिर यह भी नहीं तो फिर क्या?”
    
    लड़की दुबारा आई और उसने दोबारा लड़के के साथ वही किया। शर्ट खोली उसे सीधा खड़ा किया। फिर एक के बाद एक हंटर मारती गई। लड़का ऐसे ही हंटर खाते-खाते बड़ा हो गया था। इतना बड़ा कि वह 17-18 साल का दिखाई देने लगा था। उसे किताबे दे दी गई थी जिसे वह अपने कमरे में ही पढ़ता था।
    
    “दिन बीते, मेरे शरीर ने बदलाव लिया, और मेरे सोचने समझने का दायरा भी बढ़ गया। मैं अब अपने उस दायरे से भी काफी बाहर निकल कर सोचने लगा था जहां मैं कभी पहुंच नहीं पाता था। इनमें किताबों ने भी मेरा साथ दिया, मगर मुझे वह बोरिंग लगती थी। न्यूटन का थर्ड लो, पाइथागोरस की प्रमेय, अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति के फेल होने के कारण, और मुंशी प्रेमचंद, इनमें से कोई भी मेरी वजह वाली आग को शांत नहीं कर पा रहा था।”
    
    17-18 साल का लड़का कमरे में कोने पर बैठा था। उसके ठीक सामने लड़की वापस अपने लिए कपड़े ढूंढ रही थी। वह भी बड़ी हो गई थी और पहले से ज्यादा अट्रैक्टिव और सुंदर दिखाई देने लगी। 
    
    “मेरी बहन से मुझे काफी सारी चीजों के बारे में पता चला। मैं बाकी दुनिया में नहीं जा पाता था तो उसने मुझे बाहरी दुनिया की जानकारी दी। उसने मुझे बताया बाहरी दुनिया कितनी अच्छी होती है।”
    
    लड़की ने एक ब्लैक रंग का सूट लड़के की और किया और उसे दिखाया। जिसके जवाब में लड़के ने हां में सर हिला दिया। लड़की खुश हुई और वह ड्रेस पहनने चली गई।
    
    “इसके साथ साथ उसने मुझे बाहरी दुनिया के कुछ रिश्तो के बारे में भी बताया। कुछ ऐसे रिश्तो के बारे में जो एक लड़का एक लड़की के साथ बनाता है। वो उसे कभी-कभी टाइम पास का दर्जा देती थी तो कभी कबार सेक्सुअल रिलेशनशिप का। मैं इन सब से अनजान था, मगर बड़ा हो गया था और सोच का दायरा भी बढ़ गया था तो शब्दों को सुनने के बाद उनके मतलब और अर्थ के बारे में जरूर सोच सकता था।”
    
    रात के समय लड़की घर आई। लड़का खड़ा हुआ और खिड़की से बाहर की तरफ देखने लगा। इस बार बाहर कार खड़ी थी जिसके अंदर कोई लड़का उस लड़की को किस कर रहा था। किस करने के बाद वो आगे बढ़े जिन्हें कमरे के अंदर खड़ा लड़का देखता रहा।
    
    “मैं चीजों को देखकर समझ गया था इसका क्या मतलब निकलता है। सेक्सुअल रिलेशनशिप का तात्पर्य था दो लोगों के बीच की दीवार को पूरी तरह से खत्म कर देना, और फिर एक दूसरे का हो जाना। जबकि टाइम पास, टाइमपास में बस बातें होती है। हां बातों से आगे भी कुछ होता है मगर इतना ज्यादा नहीं। मैं अपनी बहन के नजरिए से समाज को समझ रहा था। एक ऐसे समाज को जो वास्तव में कैसा था इसके बारे में नहीं कहा जा सकता, मगर मेरी बहन के नजरिया में कैसा था इस बारे में पूरी एक किताब लिखी जा सकती थी।”
    
    लड़की कमरे में आई, उसके कमरे में आते ही लड़का कोने में जाकर बैठ गया। वहीं लड़की बेड पर बैठी और कोने में बैठे लड़के को तरह-तरह की बातें बताने लगी।
    
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