AMAN AJ

Add To collaction

आई नोट , भाग 50

    

    अध्याय-9
    मैं अच्छा हूं या बुरा 
    भाग-4
    
    ★★★
    
    आशीष ने एक टूक जवाब दिया और शख्स को घुर कर देखने लगा। शख्स रोड़ लेकर उसके सामने खड़ा था मगर फिर भी आशीष को परवाह नहीं थी।
    
    आशीष के पिता उसकी बात सुनकर खुद को देखने लगे। उनके चेहरे पर घोर निराशा दिखाई दे रही थी। निराशा दिखाने के बाद वह आशीष की तरफ बढ़े और हल्के गुस्से वाले शब्दों में कहा
    
    “क्या कहा तुमने, मैंने तुम्हें कंट्रोल करने की कोशिश की, आखिर... आखिर तुमने यह सोच भी कैसे लिया। अपने लक्ष्य से भटके हुए अगर किसी राही को रास्ता दिखा दिया जाए तो उसे कंट्रोल करना नहीं कहते। अपने बच्चों को सही रास्ता दिखाना हर एक पिता का फर्ज होता है। क्या मैंने अपना वह फर्ज निभा कर तुम्हारे साथ जायदीती की।”
    
    “अच्छा...” आशीष अपने पिता की तरफ घुमा “तो मुझे बताइए मेरे बुद्धिजीवी पिताजी, मुझे एक कमरे में बंद रखकर आप अपना कौन सा फर्ज निभा रहे थे। आपने मुझे 10 साल तक एक कमरे में बंद रखा। बताइए पिताजी 10 साल कमरे में बंद रखने के बाद मुझे मेरी कौन सी मंजिल मिली।”
    
    “क्योंकि तुम्हारी आदतें सही नहीं थी।” आशीष के पिता बोले “तुम्हें याद होगा तुमने अपने बचपन में क्या किया था। तुमने अपनी पेंसिल से अपने क्लासमेट की आंख फोड़ दी थी। इतना ही नहीं तुमने उसकी बहन का कान खाकर उसे अलग कर दिया था। यह चीज तुम्हें खतरनाक इंसान बना रही थी। मैं नहीं चाहता था तुम्हारे साथ ऐसा हो इसीलिए तुम्हें एक कमरे में बंद करके रखा। अगर तुम्हें एक कमरे में बंद ना करते तो तुम एक खतरनाक इंसान बन जाते।”
    
    “मगर आप की इस हरकत ने तो मुझे और भी ज्यादा खतरनाक इंसान बना दिया।” आशीष बोला और अपना मुंह अपने पिता की तरफ कर लिया। आशीष अपनी आंखों में ऐसा गुस्सा दिखा रहा था जिसे उसे आज बाहर निकालने का मौका मिला। 
    
    आशीष ने आगे कहा “आपको पता है आपकी इस आदत की वजह से क्या हुआ। आपकी इस आदत की वजह से मैं एक ऐसा इंसान बन गया जिसे कुछ पसंद ही नहीं आता। दुनिया में मेरी पसंद इतनी लिमिटेड हो गई जिसके बाद मुझे पसंद आने वाली चीजें जबरदस्ती हासिल करनी पड़ती है। अगर वो चीज मुझे हासिल नहीं होती तो मैं अंदर ही अंदर तड़पने लगता हूं। इस तरह जैसे किसी इंसान को जिंदा जलाने के बाद उसकी आग बुझाने के लिए उस पर गर्म पानी गिरा दिया गया हो। आप नहीं जानते कमरे में बंद होने के बाद मुझमें जो आदतें बिल्ड हुई, उन्होंने मुझे कितना दर्द दिया।” आशीष रोने लगा “आप नहीं जानते पिताजी, नहीं जानते। आपने मुझे सही रास्ता नहीं दिखाया बल्कि मुझे अपने रास्ते से और ज्यादा भटका दिया”
    
    “यह क्या कह रहे हो बेटा... तुम.... तुमने आखिर हमें इस बारे में बताया क्यों नहीं?” आशीष के पिता ने चेहरे पर हैरानी वाले एक्सप्रेशन दिखाए। वह आशीष के पास आए और उसके दोनों ही गालों पर हाथ रखते हुए कहा “अगर ऐसा था तो हम इसका कोई ना कोई इलाज ढूंढते। मैं दुनिया की बड़ी से बड़ी जगह पर तुम्हारा इलाज करवाता।”
    
    आशीष ने अपने पिता के हाथों को नीचे किया “क्या बताता पिता जी आपको क्या बताता, यही की मैं एक पागल इंसान हूं, यह की आपकी वजह से ना सिर्फ मैं अलग बना, बल्कि मेरा दिमाग भी अलग हो गया। मैं यह सब नहीं बता सकता था पिताजी आपको। मैं अपने मुंह से नहीं कह सकता था मैं अब एक आम इंसान नहीं। बल्कि कोई पागल भटका हुआ और अपने लक्ष्य और मकसद में जुझता हुआ इंसान हूं।।”
    
    “हमें माफ कर देना बेटा...।” आशीष के पिता ने दुबारा अपने हाथ उसके गालों पर रखें “अगर हमें अंदाजा होता इससे ऐसा कुछ होगा तो हम ऐसा बिल्कुल नहीं करते। हम तुम्हें कभी भी कमरे में कैद नहीं रखते। हमसे बहुत बड़ी गलती हो गई बेटा।” आशीष के पिता रोने लगे। रोते-रोते उन्होंने आशीष के चेहरे को चूमा “सच में हमसे बहुत बड़ी गलती हो गई।”
    
    “पिताजी, आपने सिर्फ इतना ही नहीं किया। 10 साल तक मुझे कमरे में बंद रखने के बाद जब मुझे बाहरी दुनिया में लाया गया, तब आपने मेरी बाहरी दुनिया को भी पूरी तरह से अपने कंट्रोल में रखा। आप मेरी बाहरी दुनिया के हर एक काम पर नजर रखने लगे। इसके लिए आपने स्टीफन को मेरे पीछे लगाया।”
    
    आशीष यह बोला तो आशीष के पिता स्टीफन की तरफ देखने लगे। स्टीफन ने कहा “मुझे माफ करना, मगर मैंने यह बात शुरुआत में ही आशीष को बता दी थी। मैं यह समझ चुका था आप जो भी कर रहे हैं वह गलत कर रहे हैं, और ऐसा करके कभी भी किसी को सही नहीं किया जा सकता।”
    
    “और इसके बाद यह मेरा साथी बन गया...” आशीष आगे बोला “सिर्फ साथी नहीं बना बल्कि मेरे कुछ बुरे कामों को भी इसने छुपाया। इसने हर एक कदम पर मेरी मदद की। वह मदद जो आप कभी नहीं कर सकते थे। अगर आप यहां होते तो फिर से मुझे किसी कमरे में कैद कर देते।”
    
    “मगर बेटा...” आशीष के पिता बोले “मैंने कहा ना मैं इसके लिए शर्मिंदा हूं। शायद मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। मुझे बचपन में ही ऐसा करने की बजाय तुम्हें किसी अच्छे साइकैटरिस्ट के पास लेकर जाना चाहिए था। इस तरह की बीमारी को खत्म करने का सबसे बेहतर रास्ता यही होता है कि जब भी इसके प्रभावी लक्षण दिखे, किसी अच्छे साइकैटरिस्ट की सलाह ली जाए।”
    
    आशीष के पिता आखिर में कहते कहते और ज्यादा रो पड़े। रोते रोते उन्होंने आशीष को गले लगाया और कहा “मैं तुमसे दिल से माफी मांगता हूं बेटा।”
    
    आशीष का चेहरा भी रोने वाला था। लेकिन जब आशीष के पिता उसे गले लगा कर रो पड़े तब अचानक उसके चेहरे के एक्सप्रेशन बदले और उसने दबे हुए गुस्से में कहा “आपने बहुत देर कर दी पिता जी.... बहुत देर....” इसके बाद अचानक उसके पिता को महसूस हुआ उसके पेट में कुछ आ लगा है। आशीष के पिता ने आशीष को छोड़ा और धीरे से पीछे हुआ। जैसे ही वह पीछा हुआ वो लड़खड़ा कर नीचे गिर पड़े। उनके पेट में आशीष ने चाकू घोंप कर निकाल लिया था। “अब एक बुरा इंसान बनने के बाद मैं वापस अच्छा इंसान नहीं बन सकता। अब तो आपको... मेरा और भी बुरा रूप देखने को मिलेगा।”
    
    घर के सारे सदस्य यह देखते ही चीख पड़े। नौकर चाकर इधर-उधर भागने लगे। स्टीफन ने अचानक अपने कोट में हाथ डाला और रिवाल्वर बाहर निकाल लिया। घर में कुल छह नौकर थे जो बाहर भागने का प्रयास कर रहे थे। स्टीफन ने उन्हें निशाना बनाया और उन पर गोलियां चलाना शुरू कर दी। जिस भी नौकर को गोली लग रही थी वह नीचे गिरता जा रहा था। 
    
    आशीष की मां यह देखते ही दौड़ते हुए आशीष की तरफ बढ़ी। वह आशीष के पास से गुजर कर आशीष के पिता के पास जाना चाहती थी। लेकिन जैसे वोआशीष के पास पहुंची, आशीष ने उसे बालों से पकड़ा और चाकू उसके पेट में भी दे मारा। चाकू मारता हुआ वह बोला “मेरी मां, इन सब में आप भी उतनी जिम्मेदार हैं जितना कि मेरा बाप। अक्सर एक पति को संभालने की जिम्मेदारी उसकी पत्नी की होती है, जिसमें आप पूरी तरह से नाकामयाब रही।”
    
    चाकू लगने के बाद आशीष की मां भी अपना पेट पकड़ते हुए वहीं आशीष के पिता के पास गिर गई। 
    
    शख्स ने सामने से यह नजारा देखा। मगर यह सब देखने के बाद भी उसके चेहरे पर किसी तरह का भाव नहीं आए थे।
    
    चाकू आशीष के हाथ में ही था। आशीष ने चाकू ऊपर करते हुए शख्स से कहा “ और लेखक साहब तुम, तुम नहीं जानते मैं कितना बुरा हूं..... तुम्हारी पत्नी को छीनना तो बस ट्रेलर था.... जबकि सच्चाई यह है की मैं किसी की जान छिनने में भी देर नहीं लगाता। अभी तो थोड़े सा बिगड़ा हु... और ज्यादा बिगड़ना बाकी है ”
    
    आशीष इतना कहकर अपने चाकू के साथ शख्स की तरफ जाने लगा। शख्स के पास जाकर जैसे ही उसने चाकू उसके पेट में मारने की कोशिश की शख्स ने उसे अपने हाथ से ही पकड़ लिया। यह देखकर आशीष हैरान हो गया। शख्स के हाथ से खून निकलने लगा था। आशीष ने पीछे की तरफ हाथ कर चाकू छुड़ाने की कोशिश की, मगर पकड़ इतनी मजबूत थी कि उसकी यह कोशिश कामयाब नहीं हो सकी।
    
    शख्स ने कहा “अगर तुम्हें लगता है ना तुम बुरे हो... तो तुम्हें एक बार मेरा इतिहास देख लेना चाहिए.... और कुछ हो ना हो... तुम्हारा यह बुरा वाला वहम जरूर टूट जाएगा। रही बात बिगड़ने की.... तो तुम आने वाले सात-आठ सालों में जितना बिगडोगे.... उतना तो मैं बिगड़ करूं सुधर चुका हूं।”
    
    आशीष ने दोबारा चाकू पीछे खींचने की कोशिश की मगर उसे फिर सफलता नहीं मिली। उसने चाकू छोड़ा और पीछे हो गया।
    
    पीछे उसकी बहन सोम्या अपने पिता और मां को संभाल रही थी। उन्हें चाकू लगा था मगर अभी तक उनकी मौत नहीं हुई थी। स्टीफन सभी नौकरों को खत्म करने के बाद आशीष के पास आकर खड़ा हो गया।
    
    आशीष ने अपने दोनों हाथ फैलाए और कहा “देखो चाहे कुछ भी हो जाए, अब मैं मानवी को नहीं छोड़ने वाला। मैं यहां आने से पहले ही योजना बना कर आया था। अब मानवी भी मेरी होगी और मेरे पिता का भी सारा एंपायर भी मेरा होगा। और यहां जो भी होगा, उसके जिम्मेदार तुम बन जाओगे। अपनी पत्नी के प्यार में पागल एक पति कुछ भी कर सकता है।”
    
    वह शख्स से बोला था, मगर इससे पहले वह जवाब देता सोम्या बोली “तुम पूरे के पूरे पागल हो गए हो। तुम यह जो भी कर रहे हो सब गलत है”
    
    “मुझे मत बताओ मेरी बहन मुझे क्या करना है क्या नहीं। तुम कमरे में बंद नहीं हुई थी। अगर तुम कमरे में बंद होती तो तुम्हें भी पता चलता इंसान का एक बंद कमरे में रहना कैसा होता है।”
 
    “आशीष...” सोम्या बोलने वाली थी।
    
    “मगर मगर कुछ नहीं....” तभी आशीष जोर से चिल्लाया “तुम सबको तुम लोगों की सजा मिलेगी।” उसने अपने दोनों हाथ फैलाए और चीखते हुए कहा “तुम सब को मुझे बुरा बनाने की सजा मिलेगी। ना तुम सब यह करते ना मेरे साथ ऐसा होता।” इतना कहकर उसने स्टीफन की तरफ देखा और आदेश देता हुआ बोला “खत्म कर दो इसे भी...” वह सोम्य को खत्म करने का कह रहा था।
    
    स्टीफन ने रिवाल्वर सीधे सोम्या पर तानी। वह गोली चलाने ही वाला था मगर तभी शख्स ने रोड़ को हवा में घुमाते हुए फेंका और सीधे स्टीफन के हाथ पर दे मारा। स्टीफन का रिवाल्वर नीचे गिर गया। 
    
    आशीष यह देखते ही दोबारा शख्स की तरफ देखने लगा। वहीं स्टीफन रिवाल्वर के गिरने के बाद शख्स की ओर गया और उसे जोरदार मुक्का दे मारा।
    
    मुक्का पड़ते ही शख्स का मुंह दूसरी और हो गया। स्टीफन ने दुबारा मुक्का मारने की कोशिश की मगर शख्स ने अपना बचाव किया और जो चाकू आशीष उसे मारने की कोशिश कर रहा, उसे सीधा‌ करता हुआ स्टीफन के पेट पर जख्म दे डाला।
    
    स्टीफन ने अपने पेट की तरफ देखा, मगर तभी शख्स ने दोबारा प्रतिक्रिया दी और चाकू सीधा गर्दन की तरफ हमले के लिए बढ़ाया। स्टीफन‌ ने जैसे ही ऊपर की तरफ देखा वैसे ही चाकू उसकी गर्दन में आर पार जा घुसा। एक ही झटके में उसके मुंह से खून निकला और उसकी आंखें बाहर आ गई। अगले ही पल‌ शख्स ने चाकू पीछे की तरफ खींच लिया। स्टीफन ने अपना गला पकड़ लिया जो अब किसी फटी हुई धोकनी की तरह बजने लगा था। इसके ठीक बाद स्टीफन नीचे जा गिरा। बिल्कुल एक निर्जीव शरीर की तरह।
    
    आशीष यह देखकर ऐसे हिल गया जैसे मानो उसने ऐसी चीज आज से पहले कभी नहीं देखी। शख्स स्टीफन को मारने के बाद आशीष की तरफ पलटा। वो अब फटी आंखों के साथ में शख्स को देख रहा था।
   
    ★★★
    
    
    
    
    
    
    
    
    
    
    
    
    
    
    
    
    
    

   2
0 Comments