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आर्य और काली छड़ी का रहस्य-10

    

    अध्याय 3 
    जंगल में
    भाग-3
    
    ★★★
    
    हिना और आयुध नीचे जमीन पर लेट कर आराम कर रहे थे। जबकि आर्य वही उन दोनों के पास खड़ा था। हिना ने आराम करने के बाद गहरी सांस ली और फिर उठकर आयुध के मुंह पर जोर का मुक्का दे मारा। एक ही मुक्के में आयुध के 2 दांत टूट कर दूसरी ओर जा गिरे।
    
    हिना ने आयुध को गिरेबान से पकड़ा और अपनी ओर खींचते हुए पूछा “बताओ? बताओ तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई आश्रम से बाहर निकलने की? बताओ तुम कैसे मुझे छोड़कर खुद को ऐसे खतरे में डाल सकते हो? बताओ मुझे?” कहने के बाद उसने एक मुक्का और उसके मुंह पर दे मारा।
    
    आर्य आगे आया और हिना को पकड़ते हुए उसे आयुध से दूर किया। “आराम से हिना। अपने गुस्से पर काबू रखो। यह तुम्हारा भाई है... पहले बात को समझो उसने ऐसा क्यों किया। फिर उसे कुछ कहना।”
    
    आयुध रोने लगा था। “मुझे नहीं रहना था यहां...” उसने रोते-रोते कहा “मेरा दम घुटता है इस जगह पर। इसलिए मैं इस जगह को छोड़कर जाना चाहता था...।”
    
    यह सुनकर हिना का गुस्सा और बढ गया। उसने खुद को आर्य की पकड़ से छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा “तुम्हारी तो... आज मैं तुम्हारे यहां जान ले लूंगी। अगर तुम्हें आश्रम ही छोड़ कर जाना था तो मुझे क्यों नहीं बताया। तुम मुझे बता देते। मैं तुम्हारी हेल्प करती। ऐसे पागलों की तरह है हरकतें करने की क्या जरूरत थी।”
    
    आयुध अपनी जगह पर ही उठ कर बैठ गया। मगर वह अभी भी रो रहा था। उसने अपने मुंह को साफ किया। दांत टूटने की वजह से खून निकल रहा था। “तुम यहां अच्छे से घुलमिल गई थी। और यहां खुश भी थी। मुझे लगा अगर मैं तुम्हें आश्रम से बाहर जाने का बताऊगां तो तुम दुखी हो जाओगी। मैं अपना आश्रम छोड़कर जाने वाला फैसला बदलने वाला नहीं था, फिर तुम भी मेरे साथ जाने के लिए तैयार हो जाती है। और मैं यह नहीं चाहता था।‌”
    
    हिना ने खुद को छुड़ाने की कोशिश करना छोड़ दिया। जब वह शांत हुई तो आर्य ने भी अपनी पकड़ छोड़ दी। हिना घुटनों के बल रेंगते हुए आयुध के पास आई। उसने अपने दोनों हाथों को अपने भाई के गालों पर रख दिया “मेरे भाई, तुम नादान हो। मगर तुम्हें मुझे कम से कम एक बार बताना चाहिए था। मुझे अब तक यही लगता आया था कि तुम यहां आश्रम में रहकर खुश हो। यहां तक कि कभी तुम्हारा चेहरा देखकर भी नहीं लगा था कि तुम यहां से जाने का सोच रहे हो। अगर तुम मुझे बताते हैं तो मैं जरूर इस बारे में कुछ करती। हम आचार्यों से बात करते। वह इसका कोई ना कोई रास्ता जरूर निकालते।”
    
    आयुध ने कहा “वह तो किसी को भी आश्रम से बाहर नहीं जाने देते। किसी छोटे से काम के लिए भी आश्रम से बाहर जाना संभव नहीं। तो मुझे हमेशा हमेशा के लिए कैसे आश्रम से जाने देंगे। इस वजह से मैंने उनसे कोई बात नहीं की। और तुम करोगी तो भी कोई फायदा नहीं होने वाला।”
    
    हिना ने उसे दोबारा समझाते हुए कहा “मेरे भाई, इसका पता तो तब चलेगा ना जब हम उनसे बात करेंगे। तुम उनसे बात करने से पहले ही यह सब क्यों सोच रहे हो। तुमने सब पहले से सोचा तो यहां इतनी बड़ी मुसीबत में फंस गए। अब अपने दिमाग पर और ज्यादा जोर मत डालो।”
    
    “मैंने पहले भी कोशिश की थी।” आयुध ने उसके हाथों को अपने हाथों से पकड़ा “आश्रम से बाहर निकलने के लिए यह रास्ता चुनने से पहले मैंने सब सोच लिया था। लेकिन जब मेरे पास कुछ भी नहीं बचा, तब मैं इस वाले रास्ते पर आया था।”
    
    “मैं तुम्हारी परेशानी को समझ रही। लेकिन अब तुम सब भूल जाओ। और आइंदा आज जो किया है वह कभी मत करना। इससे तुम्हारी समस्या हल नहीं होने वाली थी, बल्कि तुम उल्टा और भी ज्यादा समस्या में फंसने वाले थे।” हिना ने उसकी आंखों में देखा “ठीक है मेरे भाई। अब ऐसा कभी मत करना।”
    
    आयुध महसूस कर रहा था कि उसने यह करके गलती की है। वह माफी मांगता हुआ बोला “मुझे माफ कर देना।” उसने इतना कहकर हिना को गले लगा लिया “मैं अब आगे से ऐसा कुछ नहीं करूंगा। मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है।”
    
    हिना ने उसकी पीठ थपथपाई। “तुम्हें आश्रम से बाहर जाना है ना, फिक्र मत करो, हम कल ही इस बारे में आचार्य से बात करेंगे।”
    
    यह सुनकर आर्य को भी खुशी हुई। वह उन दोनों के पास आया और उनके कंधों पर हाथ रखा। हिना ने भी उसके रखे हाथ पर अपना हाथ रख दिया। हिना धीरे से आर्य को बोली “शायद मैं ही आज तक अपने भाई को ठीक से नहीं समझ सकी थी। मुझे यह पता ही नहीं चला था वह क्या सोचता है। मैंने अब तक इसके बारे में जो भी सोचा था वह गलत निकला।”
    
    आर्य ने यह सुन कर कहा “अक्सर चीजें चेहरे पर लिखी हुई नहीं मिलती। और कभी कबार इंसान भी ऐसा हो जाता है कि उसे समझना मुश्किल हो जाता है।”
    
    हिना ने हां अपना सिर हिलाया। “उम्मीद करो, अब आगे सब ठीक हो जाएगा।”
    
    “हां।” आर्य ने भी सहमति में सिर हिला दिया।
    
    ★★★
    
    तकरीबन 1 घंटे बाद आश्रम के पिछले दरवाजे पर इंतजार कर रहे विद्यार्थियों को दरवाजा खुलते हुए दिखा। सारे के सारे विद्यार्थी वही दरवाजे पर उनके वापस आने का इंतजार कर रहे थे। जब उन्होंने देखा दरवाजा खुल रहा है तो सभी के चेहरे पर खुशी आ गई। सब खड़े होकर वहां दरवाजे के पास जमा हो गए। हिना, आर्य और आयुध तीनों ही वापस आ चुके थे।
    
    सभी ने खुशी के साथ तीनों का स्वागत किया। छात्राओं ने एक तरफ होकर उन्हें आगे जाने के लिए रास्ता दिया। बीच-बीच में कुछ छात्र उन्हें सकुशल वापस आने के लिए बधाई दे रहे थे। आर्य की पीठ को भी थपथपाया जा रहा था। आश्रम के विद्यार्थियों ने यहां पहली बार ऐसा लड़का देखा जिसने पहले ही दिन ऐसी बहादुरी दिखाई। सब उसके लिए अलग ही सोच बना चुके थे। वहीं हिना को लेकर भी आश्रम के विद्यार्थियों की सोच अलग बन गई थी। उसने भी अच्छी खासी बहादुरी दिखाई थी। 
    
    धीरे-धीरे आश्रम के विद्यार्थी छटने लगे। पिछले दरवाजे को अच्छे से बंद कर दिया गया। आयुध को कुछ विद्यार्थी अपने साथ ले गए। सब के जाने के बाद वहां बस आर्य और हिना ही खड़े थे।
    
    हिना आर्य के पास आई और बोली “मुझे समझ में नहीं आ रहा आज के लिए मैं तुम्हारा कैसे शुक्रिया अदा करुं। तुमने सच में मेरी काफी मदद की।”
    
    “इसमें शुक्रिया अदा करने वाली कौन सी बात है...।” आर्य उसकी बात सुनते ही बोला “तुम बस यह समझ सकती हो कि एक दोस्त ने दूसरे दोस्त की मदद की। वह भी बिल्कुल अच्छे दोस्त की तरह।”
    
    हिना ने उसके कंधे को थपथपाया “जंगल जाने से पहले मैं तुम्हारी दोस्त नहीं थी। मगर अब शायद जरूर हूं। शायद नहीं बल्कि अब से हम दोस्त ही हैं।” तभी अचानक उसे ख्याल आया कि जंगल में आर्य ने बालु को जोरदार धक्का मारा था। इतना जोरदार धक्का तो उसके जादू की वजह से भी बालु को नहीं लगा। उसने याद आते ही तुरंत पूछा “मुझे एक बात बताओ... तुमने जंगल में भालु को इतने जोर से धक्का कैसे मारा था...? कोई भी आम इंसान इतनी जोर से धक्का नहीं मार सकता।”
    
    यह सुनकर आर्य कुछ देर के लिए शांत हो गया। उसने अपने बाबा को याद किया और कहा “मेरे बाबा अक्सर कहते थे... मुझ में काफी कुछ अलग है... तो बस उसी की वजह हुआ होगा।”
    
    हिना ने अपनी आंखों को छोटी करते हुए उन्हें पूरी तरह से आर्य पर केंद्रित किया “अलग से मतलब...!! तुम आखिरकार इंसान ही हो ना!!”
    
    “हां हां इंसान ही हूं। अलग से मतलब..!!” आर्य अभी बताने ही वाला था कि हिना को पीछे से कुछ लड़कियों ने आवाज लगाई। वह हिना को इस बात का संकेत कर रही थी कि देर रात हो गई है और उसे सोना चाहिए। आर्य ने अपनी बात बदली “मेरे ख्याल से हमें इस बारे में फिर कभी बात करनी चाहिए। तब जब बात करने के लिए काफी वक्त हो। अभी मैं भी तुम्हें चीजों को ठीक से समझा नहीं पाऊंगा।”
    
    “हां मुझे कोई एतराज नहीं।”‌ हिना ने मुस्कुरा कर कहा। इसके बाद उसने कहा “और हां...। थैंक्स। मेरी मदद के लिए। ‌ मेरे भाई को वापस लेकर आने के लिए।”
    
    “थैंक्स!!” आर्य ने अजीब सा मुंह बनाया “मैंने तो यही सुना है कि दोस्ती में नो थैंक्स नो सॉरी। तो तुम यह कौन सा रिवाज शुरू कर रही हो।”
    
    हिना ने उसके सर पर हल्का सा थप्पड़ मारा “बातें तो बहुत करते हो बुद्धू। ठीक है नो थैंक्स नो सॉरी। चलो अब चलती हुं। बाय गुड नाइट। शुभ रात्रि।”
    
    हिना वहां से जाने के लिए मुड़ गई। इसके बाद वह वहां से चली भी गई। आर्य उसे तब तक देखता रहा जब तक वह आंखों से पूरी तरह से ओझल नहीं हो गई। उसके ओझल हो जाने के बाद उसने खुद से कहा “मुझे नहीं लगता यहां आश्रम में मेरी नई जिंदगी इतनी भी बुरी रहने वाली है। अब देखते हैं अगले आने वाले दिन ने मेरे लिए क्या सोच कर रखा हैं। उम्मीद करूंगा वह अच्छा ही हो।” इतना कहकर वह मुस्कुराया और खुद भी अपनी झोपड़ी की तरफ चला गया। अपने आगे वाले अगले दिन के इंतजार के साथ।
    
    ★★★
    
    

   10
2 Comments

Horror lover

18-Dec-2021 04:52 PM

Kafi achchi kahani h lg rhi h

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Seema Priyadarshini sahay

13-Dec-2021 12:42 AM

बहुत खूबसूरत भाग।👌👌👌

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