AMAN AJ

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आर्य और काली छड़ी का रहस्य-11

    अध्याय-4
    अगला दिन
    भाग-1
    
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    चिड़ियों की चहचहाहट के साथ अगले दिन की शुरुआत हुई। मौसम खुशनुमा था और ठंडी हवाओं के साथ हल्की बर्फबारी भी हो रही थी। आर्य अभी भी अपने बिस्तर में सोया हुआ था। तभी बाहर दरवाजे पर खटखटाहट हुई और उसकी आंख खुल गई।
    
    उसने उठकर दरवाजा खोला तो सामने हिना खड़ी थी। कल रात दोनों में ही नई दोस्ती की शुरुआत हो गई थी। हिना ने दरवाजे से खड़े खड़े कहा “तो क्या तुम तैयार हो आश्रम के साथ घुलने मिलने के लिए। आज मैं तुम्हें आश्रम की दिनचर्या के बारे में बताऊंगी। साथ में तुम्हें भी आश्रम की दिनचर्या के हिसाब से मेरे साथ मिलकर काम करने पड़ेंगे।”
    
    आर्य ने अपनी आंखों को मटकाया और अपने बालों में हाथ फेरे। इसके बाद उसने कहा “मुझे कोई एतराज नहीं है।”
    
    जल्द ही आर्य और हिना आश्रम के सरोवर के पास जा रहे थे। वही सरोवर जहां कल रात आर्य ने अपना मुंह धोया था। वहां सरोवर में लड़के स्नान कर रहे थे। आर्य उन्हें देखकर बोला “मुझे यहां क्या करना होगा?”
    
    “वही जो यह लड़के कर रहे हैं।”‌ हिना ने आंख तरेरते हुए जवाब दिया “तुम्हें यहां स्नान करना होगा। आश्रम की दिनचर्या सुबह सुबह नहाने के बाद ही शुरू होती है। तो जाओ और जल्दी नहा कर आ जाओ। तब तक मैं तुम्हारे लिए आश्रम के कपड़ों का इंतजाम करती हूं।” हिना ने जाते-जाते आर्य को धक्का मारकर सरोवर की और भी कर दिया। उसके जाने के बाद आर्य ने अपनी गर्दन को टेडी मेडी हिलाया और सरोवर में नहाने के लिए चला गया।
    
    सरोवर का पानी गर्म था तो उसे नहाते वक्त किसी भी तरह की दिक्कत नहीं हुई। अगर यहां का पानी ठंडा भी होता तब भी उसे दिक्कत नहीं होती। वह ठंड और गर्मी दोनों के एहसासों से कहीं दूर था। नहाने के बाद बाहर निकला तो हिना ने उसे लाल रंग के चोगे वाले कपड़े दे दिए। हिना कपड़ों को देते हुए बोली “यहां आश्रम में लड़कियां नीले रंग के चौगे पहनती हैं, जबकि लड़के लाल। अब तुम आश्रम के ही सदस्य हो तो तुम्हें भी यह नियम मानना होगा। अब से तुम्हें यह लाल चौगे वाले कपड़े पहनने होंगे।”
    
    आर्य ने चौगे वाले कपड़ों को पकड़ा और अजीब नजरों से देखा। इसके बाद वह वहां मौजूद लकड़ी के फट्टे वाले बाथरूम में जाकर कपड़े बदलने लगा। बाथरूम से कपड़े बदल कर बाहर आया तो उसका अलग ही रूप देखने को मिल रहा था। लाल चौगे वाले कपड़ों में वह आश्रम का ही हिस्सा लग रहा था। कहीं ना कहीं यह कपड़े उसे पहले की तुलना में ज्यादा अच्छा दिखा रहे थे।
    
    हिना आर्य को देख कर बोली “तुम पर तो यह कपड़े कुछ ज्यादा ही जच रहे हैं। बिल्कुल फिल्मों के हीरो की तरह लग रहे हो।”
    
    आर्य ने अपने दोनों बाहें फैला दी “मुझे तो यह झोले जैसे लग रहे हैं। पता नहीं तुम लोग इसे कैसे पहनते हो।”
    
    “तुमने पहन लिए ना... सारे ऐसे ही पहनते हैं।”
    
    सरोवर से स्नान करवाने और कपड़े देने के बाद हिना आर्य को आश्रम की किसी और जगह की ओर ले गई। यह ऐसी जगह थी जहां सामने बर्फीली पहाड़ियों के बीच सूरज निकलता हुआ दिखाई दे रहा था। बर्फीली पहाड़ियों में सूरज की रोशनी तो पूरी तरह से नहीं आ रही थी मगर उसकी एक झलक जरूर दिख रही थी।
    
    वही पास ही काफी सारे लड़के एक साथ झुंड में खड़े होकर गायत्री मंत्र का जाप कर रहे थे। उनके दूसरी और लड़कियां थी जो सरस्वती माता की मूर्ति के सामने खड़ी थी। वह लड़कियां लड़कों से अलग सरस्वती मंत्र का जाप कर रही थी।
    
    हिना ने आर्य से कहा “हमारे यहां आश्रम में स्नान करने के बाद लड़के गायत्री मंत्र का उच्चारण करते हैं, वह भी सूर्य देव के सामने। जबकि लड़कियां सरस्वती माता की पूजा करती है। तुम यहां गायत्री मंत्र का उच्चारण करो... तब तक मैं जाकर सरस्वती माता की पूजा करके आती। फिर तुम्हें आगे के बारे में बताती हूं...”
    
    इतना कह कर हिना सरस्वती माता की पूजा करने के लिए चली गई। उसके जाने के बाद आर्य ने लड़कों के झुंड में खड़े होकर गायत्री मंत्र का उच्चारण किया। गायत्री मंत्र का उच्चारण करने के बाद लड़के वहां से जाने लगे थे। लड़कों के साथ आर्य नहीं गया। उसने वहां खड़े होकर हिना का ही इंतजार किया। थोड़ी ही देर में हिना सरस्वती माता की पूजा करके आ गई थी।
    
    हिना आकर बोली “सरस्वती माता की पूजा करने में ज्यादा समय लगता है। गायत्री मंत्र छोटा होता है तो उसमें इतना समय नहीं लगता। इसलिए मुझे आने में देरी हो गई।”
    
    आर्य ने सामने से कहा “कोई बात नहीं। वैसे भी मैं यहां तुम्हारे कहने से पहले कौन सा कुछ और करने वाला था।”
    
    हिना ने दोबारा से चेहरे पर मुस्कान दिखाई और आर्य को कहीं और ले गई। इस बार वह दोनों ही जिस जगह पर आए थे वहां लड़के और लड़कियां एक साथ झाड़ू निकालने का काम कर रहे थे। सभी के हाथ में लंबे लंबे झाड़ू थे जिन्हें खड़े होकर निकाला जाता था। वह सभी झाड़ू वहां बने एक कमरे में मौजूद थे। हिना वहां उस कमरे में गई और वहां से दो झाड़ू निकाल कर ले आई। उसने एक झाड़ू आर्य को देते हुए कहा “यहां आश्रम के दिनचर्या में सुबह स्नान करने और गायत्री मंत्र के बाद आश्रम की साफ सफाई करनी पड़ती है। आश्रम की यह साफ सफाई अगले 40 मिनट तक चलती है। 40 मिनट में 400 विद्यार्थी मिलकर पूरे आश्रम की साफ-सफाई कर देते हैं। ” 
    
    आर्य ने झाड़ू पकड़ लिया “आश्रम के दिनचर्या में तो काफी सारी चीजें हैं।”
    
    “हां। इसके बाद तो और भी काफी कुछ है। अभी तुम मेरे साथ मिलकर झाड़ू निकालो, फिर तुम्हें आगे के बारे में बताती हूं।”
    
    दोनों ही मिलकर झाड़ू निकालने लगे। अगले 40 मिनट तक दोनों ही ऐसे ही झाड़ू निकालते रहे। इसके बाद सभी विद्यार्थी झाड़ू लेकर उन्हें उस कमरे में रखने लगे जहां से लेकर आए थे। हिना ने आर्य से झाड़ू पकड़ा और दोनों ही झाड़ू वहां रख आई। झाड़ू रखने के बाद सारे ही विद्यार्थी अपनी अपनी झोपड़ीयों की तरफ जा रहे थे।
    
    हिना आर्य के पास आई और बोली “झाड़ू निकालने के बाद इन्हें वापस इनकी जगह पर रखना पड़ता है। अब इसके बाद दिनचर्या में जो चीज आती है उसे हम पढ़ाई लिखाई कहते हैं। सारे ही छात्र अपने-अपने कमरों से किताबें और दूसरे काम की चीजें लेकर आ रहे हैं, जिनसे वो आज की पढ़ाई लिखाई करेंगे।”
    
    आर्य ने हैरानी से कहा “यह पढ़ाई लिखाई भी होती है। मुझे तो लगा था यह लड़ाई के लिए तैयार करने का काम करता है।”
    
    हिना आर्य को जवाब देते हुए बोली “हम यहां आश्रम में हर एक चीज की तैयारी करते हैं। लड़ाई लड़ने के लिए जितनी जरूरत तलवारबाजी सीखने की होती है उतनी ही जरूरत है पढ़ाई लिखाई की होती है। पढ़ाई लिखाई से मानसिक बुद्धि का विकास होता है, जो आगे कभी ना कभी कहीं ना कहीं काम आ ही जाता है।” इसके बाद हिना ने कहा “आओ तुम अब मेरे साथ चलो। तुम्हारे पास किताबें नहीं है, तो मैं तुम्हें अपनी आधी किताबे देती हूं।”
    
    हिना और आर्य दोनों ही हिना की झोपड़ी की तरफ चल दिए। वहां आर्य बाहर ही खड़ा रहा और हिना अंदर जाकर कुछ किताबें ले आई। उसने उनमें से आधी किताबें आर्य को दे दी, और आधी किताबे खुद पकड़ ली। 
    
    फिर वह आर्य के साथ चलते हुए बोली “यहां आश्रम में 23 गुरु हैं, जो अलग-अलग कक्षाओं में बच्चों को पढ़ाने का काम करते हैं। तुम्हें यहां एक बात याद रखनी है, तलवारबाजी और जादू सिखाने का काम आचार्य करते हैं, जबकि पढ़ाने लिखाने का काम गुरु। आश्रम में गुरु और आचार्यों के अंदर यही फर्क है।”
    
    आर्य ने कहा “मैं इसे याद रखूंगा।”
    
    “हां” हिना बोली “मगर इसके अलावा एक और चीज है जो तुम्हें याद रखनी है। हमारे आश्रम में सभी 23 गुरु एक साथ पढ़ाते हैं। लेकिन एक छात्र 1 दिन में सिर्फ 7 गुरुओं से ही पढ़ सकता है। सभी छात्रों के पढ़ने का शेड्यूल उनके पाठ्यक्रम के हिसाब से है। तुम अभी नए हो तो तुम उन 7 गुरुओं से पढ़ोगे जो छात्राओं को शुरुआत से ज्ञान देते हैं। जब तुम्हारा शुरुआती ज्ञान पूरा हो जाएगा तो तुम अगले 7 गुरुओं के पास पढ़ने के लिए चले जाओगे”
    
    “मतलब हम दोनों एक साथ नहीं पढेगें।”
    
    “बिल्कुल भी नहीं।” हिना ने सर झटकते हुए जवाब दिया “मुझे यहां आए हुए 6 महीने हो गए हैं, और मैंने अपना शुरुआती ज्ञान शुरू के 4 महीनों में ही पूरा कर लिया था। अब मैं आगे की चीजें पढ़ रही हूं जिसके लिए मुझे अगले 7 गुरुओं के पास जाना है। जबकि तुम नए हो तो तुम्हें शुरू से ही सब शुरू करना है। इसलिए तुम शुरुआती ज्ञान देने वाले 7 गुरुओं के पास जाओगे।” 
    
    हिना आर्य को ऐसी जगह की ओर ले गई जहां 7 कक्षाएं एक ही लाइन में बनी हुई थी। हिना वहां जाकर बोली “हर एक गुरु 40 मिनट तक पढ़ाता है। 40-40 मिनट बाद तुम एक कक्षा से दूसरी कक्षा में जाते रहना। इन कक्षाओं में तुम्हें काफी कम छात्र देखने को मिलेंगे, क्योंकि अभी हाल फिलाल में ज्यादा नए विद्यार्थी नहीं आए। मगर मुझे पूरी उम्मीद है तुम बोर नहीं होगे।”
    
    आर्य ने एक नजर कक्षाओं की तरफ देखा। कक्षा में गुरु पढ़ाने के लिए तैयार खड़े दिखाई दे रहे थे। “अब हमारी दोबारा मुलाकात कब होगी...?” उसने हिना से पूछा।
    
    हिना ने जवाब दिया “ज्यादा समय नहीं लगेगा। दोपहर के 2:00 बजे से पहले सभी विद्यार्थियों को छोड़ दिया जाएगा। हम उसी वक्त दोबारा मिलेंगे। अच्छा अपनी कक्षाओं में अच्छे से पढ़ाई करना। मैं भी जाकर अपनी कक्षाओं में पढ़ाई करके वापस आती हूं।” 
    
    हिना अपनी कक्षाओं की तरफ चली गई। जबकि उसके जाने के बाद आर्य अपनी कक्षाओं की तरफ चल पड़ा। जल्द ही वह पहली कक्षा के अंदर चला गया।
    
    जिस कक्षा में वह गया था, वो शहरों के स्कूलों की तरह दिखने वाली कक्षा थी। कक्षा में अलग-अलग बेंच लगे हुए थे, जिन पर बैठने की व्यवस्था थी। बेंच के आगे ही बड़े-बड़े मैज थे। जहां पढ़ा जाता था। या फिर अपनी किताबें और दूसरा सामान रखा जाता था। 
    
    आर्य ने अपने लिए एक खाली जगह ढूंढी और वहां जाकर बैठ गया। ‌ उसके सामने सफेद कपड़ों वाले गुरु खड़े थे जो थोड़ी ही देर बाद उसे पढ़ाने लगे। 
    
    आर्य का यह सिलसिला अगले 7 गुरुओं तक चलता रहा। उसने हर 40 मिनट बाद कक्षा बदली और अलग-अलग गुरु के पास जाकर अध्ययन किया। दोपहर के 2:00 बजते बजते हिना और आर्य की दोबारा मुलाकात हो गई।
    
    हिना ने आर्य से मिलते ही पूछा “तो कैसी गई तुम्हारी कक्षाएं? तुम्हें हमारे गुरुओं ने ज्यादा तंग तो नहीं किया।”
    
    आर्य ने ना में सर हिला दिया “नहीं। वह सब इतने भी बुरे नहीं थे। मगर हां कक्षा में जाकर नींद आने लग जाती है, पता नहीं क्यों।”
    
    हिना हंस पड़ी “सभी के साथ यह होता है। ‌ मगर धीरे-धीरे तुम्हें इसकी आदत लग जाएगी। चलो पहले किताबे रख आते हैं, फिर खाना खाने की तैयारी करते हैं।”
    
    “खाना!!”
    
    “हां।” हिना ने जवाब दिया “यहां आश्रम में सभी कक्षाओं को लगाने के बाद सीधे खाना ही खाया जाता है। खाना खाने का समय 2:15 का निर्धारित है। यह 2:15 से लेकर अगले 3:15 तक चलता रहता है।”
    
    दोनों ही किताबे रखने और खाना खाने के लिए चल पड़े।
    
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