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आर्य और काली छड़ी का रहस्य-22

    

    अध्याय-7
    कोन है वो
    भाग-3

    ★★★
    
    सभी छात्रों के इकट्ठा होने के बाद अचार्य ज्ञरक सबसे पहले बोले “आप सब को यह तो पता चल ही गया होगा कि आज आप सबको एक नई जानकारी मिलने वाली है। इस नई जानकारी में आज आपको एक खुशखबरी दी जाएगी। बदलते मौसम की वजह से बर्फबारी दिन प्रति दिन तेज होती जा रही है। जबकि अभी नया साल आने में 20 दिन बचे हैं।” इतना कहकर उन्होंने पत्र खोला और बोले “मुझे आप सब को यह बताते हुए बहुत खुशी हो रही है, हम नए साल का समारोह इस बार 18 दिन पहले आज से ठीक 2 दिन बाद रखने जा रहे हैं। इस खास मौके पर आचार्य वर्धन ने आपके लिए शब्द जारी किए हैं— वह कहते हैं— वक्त का कारवां अगर ठहर जाए तो जिंदगी रुक जाती है। ऐसे में इसका चलते रहना ही बेहतर है। हर साल की तरह नया साल भी हमारी, आपकी, और हम सबकी जिंदगी में खुशियां लेकर आए। हमारा रोशनी का दीया मजबूती से जले, उसकी रोशनी दूर तक फैले, और उसके प्रभाव से अंधकार का खात्मा हो। विगत कुछ सालों से लेकर हमारी अंधेरे से होने वाली लड़ाई हर साल की तरह इस साल भी जारी रहेगी। हम तब तक उनका सामना करते रहेंगे जब तक हम आखरी सांस नहीं ले लेते। मुझे इस बात का खेद है की इस बार खराब मौसम के चलते चीजें सही समय पर नहीं हो सकती, मगर हम इस समारोह का आयोजन जरूर करेंगे। जिसका निर्धारित समय आपको अचार्य ज्ञरक दोबारा बता दिया गया होगा। आप सभी इस बात को लेकर चिंतित जरूर होगे कि मात्र 2 दिनों में आप समारोह की तैयारियां कैसे करेंगे? इसे लेकर आपको फिक्रमंद होने की कोई जरूरत नहीं। सूचना जारी होने के बाद जब तक समारोह नहीं हो जाता तब तक आश्रम की सभी गतिविधियां पूरी तरह से बंद कर दी जाएगी। ना तो आप सबको उठकर सुबह सुबह साफ सफाई करनी होगी, ना ही आपको कक्षाओं में अध्ययन करना होगा, ना ही आप युद्ध क्षेत्र जाएंगे। पूरा समय आपको आपकी तैयारियों के लिए दिया जाता है। समारोह में देव पूजन के बाद नृत्य और कुछ खेलों का आयोजन भी होता है। आप इन दिनों अपनी जोड़ीदार को ढूंढकर नृत्य की तैयारियां कर सकते हैं। खेलों को लेकर अभ्यास कर सकते हैं। अब समय आप लोगों को दे दिया गया है, समारोह तक आप इसका बखूबी फायदा उठाइए। समारोह वाले दिन मैं भी यहां आश्रम में आ जाऊंगा। अब आखिर में एक बार फिर— नया साल आपकी जिंदगी में खुशियां लाए। आप इस नए साल के दिन आश्रम के इतिहास की एक नई कहानी का शुभारंभ करें। — आप सबका शुभचिंतक— आश्रम का मुखिया— आचार्य वर्धन। हमेशा आपकी और आश्रम की सेवा में।” 
    
    पत्र के पूरा होते ही सभी विद्यार्थियों ने जोर-जोर से तालियां बजाई। हर किसी के चेहरे पर नए साल के समारोह को लेकर कुछ सवाल भी थे और काफी सारी एक्साइटमेंट भी। सवाल इसलिए क्योंकि समारोह का आयोजन काफी पहले कर दिया गया था। ऐसे में क्या सच में 2 दिन का समय काफी रहेगा? और एक्साइटमेंट इसलिए क्योंकि समारोह का मतलब था कुछ दिनों के लिए आश्रम की दैनिक दिनचर्या का पूरी तरह से बदल जाना। विद्यार्थियों का एक दूसरे से जान पहचान बनाना। जो सबसे अलग और बढ़िया बात है वो है जोड़ीदार बना कर नृत्य करना। यानी लड़के नृत्य के लिए लड़कियों को पसंद करेंगे और लड़कियां लड़के को।
    
    आयुध हिना और आर्य दोनों से बोला “यह नए साल का प्रोग्राम पहले होने वाली बात तो हमें सुबह ही पता चल गई थी। सुबह आचार्य ज्ञरक ने बताया था कि आचार्य वर्धन नए साल के समारोह की तैयारियों का सामान खरीदने के लिए शहर गए हैं। मगर यह नृत्य वाली बात नई है” वह वहां खड़ी लड़कियों की तरफ देखने लगा “मुझे मेरी किस्मत खराब ही लगती है। शायद ही यहां कोई लड़की मेरे साथ नाचने के लिए मानेगी।”
    
    हिना ने उसी वक्त अपने भाई के कंधे पर हाथ रखा “तुम इतने भी बुरे नहीं दिखते भाई। टेंशन मत लो कोई ना कोई लड़की तो मिल ही जाएगी। अगर नहीं मिली तो मैं अपनी किसी फ्रेंड की सेटिंग तुम से करवा दूंगी। कम से कम तुम्हारा काम तो हो ही जाएगा।”
    
    आयुध ने हिना को घुरा और उसके हाथ को अपने कंधे से हटाया “मुझे नहीं लगता मुझे तुम्हारी मेहरबानी की जरूरत है। तुमने मुझ पर एहसान किया तो जिंदगीभर मुझे सुनाती रहोगी। हर बार यही कहोगी कि मैंने तुम्हारी दोस्ती एक लड़की से करवाई। इसलिए यही बढ़िया है कि मैं खुद ही अपने लिए कोई लड़की ढूंढ लूं। लड़की मिली तो ठीक, नहीं मिली तो भी ठीक। मैं अपनी जिंदगी में अकेला भी काफी खुश रहता हूं।”
    
    हिना ने दांत दिखाते हुए कहा “फिल्मी बातें करना तो कोई तुमसे सीखे।” इसके बाद वह आर्य से बोली “क्या तुम भी इस बारे में सोच रहे हो? फिकर मत करो मैं तुम्हारे लिए भी लड़की ढूंढ लूंगी।”
    
    “मुझे इन सब में कोई दिलचस्पी नहीं।” आर्य ने अपने कंधे उचकाते हुए कहा। “इसलिए मैं इस बारे में कोई चिंता नहीं करने वाला। खैर तुम लोगों को नहीं लगता, अब हमें जल्दी से जल्दी आश्रम की दीवार पर जाना चाहिए। यह मत भूलो कि हम किले पर नजर रखने वाले हैं। अगर यहां इन्हीं बातों में लगे रहे हो किले पर नजर रखना भूल जाएंगे।”
    
    “हां, अच्छा हुआ तुमने याद दिला दिया।” हिना ने तुरंत प्रत्युत्तर दिया। “चलो भाई, वापिस कमरे में जा कर सामान उठाएं और किले पर नजर रखें। यह जो भी आचार्य होगा हम उसे अपने हाथों, मेरा मतलब अपनी आंखों से ओझल नहीं होने देंगे।”
    
    सरोवर के पास खड़ी विद्यार्थियों की भीड़ हटने लगी थी। धीरे धीरे सारे विधार्थी वहां से चले गए थे। हिना, आर्य और आयुध तीनों ही आर्य के कमरे की तरफ जा रहे थे। ताकि वहां से सामान उठाकर किले पर नजर रखी जा सके। जल्द ही तीनों कमरे में गए और वहां अलग-अलग समान उठा लिया। इस दौरान आयुध अपने बड़े से कंबल को ले जाना नहीं भुला था।
    
    ★★★
    
    तीनों ही आश्रम की दीवार पर आ गए। वहां आयुध ने एक कोना संभाला और कंबल ओढ़ कर बैठ गया। वही हिना और आर्य किले की तरफ मुंह कर खड़े हो गए थे। उनके हाथ आश्रम की बड़ी दीवार के किनारों पर थे। आज मौसम पहले की तुलना में कुछ ठीक था। बर्फबारी नहीं हो रही थी और आसमान बिल्कुल साफ था।
    
    हिना आर्य को बोली “इससे पहले जब भी मैं यहां दीवार पर आती थी तो अकेली ही आती थी। हां कभी-कभी भाई साथ में आ जाता था मगर कोई और नहीं। यहां के मौसम को अपने साथ पाने के बावजूद भी मैं खुद को अकेला महसूस करती थी। मगर तुम्हारे आ जाने के बाद चीजें कुछ हद तक बदल गई है।”
    
    “मैं कुछ समझा नहीं।” आर्य ने कहा और हिना की तरफ देखने लगा। 
    
    हिना बोली “मेरे कहने का मतलब अब एक दोस्ती की शुरुआत हो गई है तो अकेलापन महसूस नहीं होता। यहां आश्रम में मेरा दोस्ती वाला कोई भी ग्रुप नहीं था। ‌ अब जाकर एक ग्रुप बना है। इसमें तुम हो, मैं हूं, और मेरा भाई। ‌ तुम ग्रुप वाली बात तो समझते हो ना?”
    
    “हां वह जो हर जगह पर बनता है। किसी इलाके में दो परिवारों का, स्कूल में कुछ विद्यार्थियों का, वैसा वाला ही ग्रुप है ना?”
    
    “हां वैसा वाला ही ग्रुप हो। जानकर खुशी हुई कि तुम काफी चीजों के बारे में पहले से ही जानते हो।”‌ हिना ने मुस्कुराहट दिखाई।
    
    “यह तो आम बात है।” आर्य बोला “इसके बारे में सिर्फ मैं ही नहीं बल्कि हर कोई जानता है। इसमें कुछ नया नहीं है।”
    
    “हां वह तो है...” बातों बातों में हिना को आज समारोह वाली बात याद आई। वह अभी भी उसके दिमाग के एक कोने में घूम रही थी। उसने आर्य से पूछा “अच्छा यह तो बताओ... तुम्हें डांस आता है क्या?”
    
    “डांस!!”‌ आर्य हिना को अजीब आंखों से देखने लगा “डांस के नाम पर मुझे बस कूदना आता है।”‌ आर्य यह कहकर खुद में ही हंसने लगा था। “मैं और मेरे बाबा कभी-कभी पुराने जमाने के गानों पर अपनी कमर थिरकाने लग जाते थे। मगर उसे डांस नहीं कहा जा सकता। मतलब उसमें ना तो लय होती थी, ना ही कोई क्रम। हम बस मजे मजे में ही एक कोने से दूसरे कोने में कूदते रहते थे।”
    
    आर्य की बात पर हिना को भी खुशी हुई। “मैं इस मामले में थोड़ा खुशकिस्मत हूं। मेरे मां-बाप दिल्ली से थे तो वह मॉडर्न कल्चर के बारे में जानते थे। दिल्ली में उन्होंने हमें मॉडर्न कल्चर की काफी सारी चीजों के बारे में बताया। उनमें डांस भी था। उन्होंने हमें मॉडर्न कल्चर का डांस सिखाया। वह वाला डांस जिसमें एक लड़का लड़की का हाथ पकड़कर डांस करता है।”
    
    “आह...” आर्य ने अपने हाथों को अपने बगल में दबा लिया “मैंने इस तरह के डांस को अपने घर के टीवी में देखा है। हमारे एक कमरे में टूटा सा टीवी लगा रहता था। उस पर लड़का लड़की... बस एक ही चीज करते थे। एक दूसरे का हाथ पकड़ते थे और झूलते थे। समझ में नहीं आता इस झूलने को कोई डांस का नाम कैसे दे सकता था।”
    
    “उसे मॉडर्न डांस कहते हैं बुद्धू।” हिना थोड़ा तेज बोली थी “ और तुम जिसे झूलना कह रहे हो वह भी इतना आसान नहीं होता। खासकर उसके लिए जिसे डांस का ड भी नहीं आता।”
    
    “क्या तुम अपनी बातों में मेरी बात कर रही हो...?”
    
    “ऑफकोस..” हिना ने तुरंत हामी भर दी “तुम्हें यहां आस-पास तुम्हारे अलावा कोई और दिख रहा है क्या? हां इसमें मेरे भाई को मत गिनना। तुम्हारे लिए झूलने वाला डांस भी आसान नहीं रहने वाला..”
    
    “यह मेरे लिए बाएं हाथ का खेल है। मुझे तो उसके स्टेप भी आते हैं। दाएं हाथ से लड़की का दायां हाथ पकड़ना है, बाए हाथ से लड़की का बाया हाथ पकड़ना है, फिर उसे झुलाना है। इसके बाद लड़की के हाथ को अपने कंधे पर रखना है, खुद का हाथ उसकी कमर पर रखना है, और फिर पागलों की तरह झूलते रहना है।”
    
    “कहने और करने दोनों में फर्क होता है...” हिना ने आर्य को चीभ दिखाई “और यह बात मैं तुम्हें प्रूफ करके दिखा दूंगी। तुम इस बार पार्टी में यही डांस करना... और वह भी मेरे साथ। दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।”
    
    “मुझे कोई एतराज नहीं है..”‌ आर्य ने तुरंत जवाब देते हुए अपने हाथ उछाल दिए थे।
    
    “मगर मुझे है...” अचानक पीछे आयुध कंबल में लिपटा लिपता बोला। “तुम दोनों एक साथ डांस करने वाले हो... वह भी मेरी इजाजत के बिना।” 
    
    हिना ने मुड़कर आयुध को घूरा। “हम दोनों सिर्फ दोस्त हैं। दोस्त का मतलब दोस्त। तो तुम अपना दिमाग मत घुमाओ।”
    
    यह देख कर आर्य ने अपनी आंख आयुध की तरफ घुमा दी। वही आयुध ने भी आर्य को देखते हुए आंख घुमा दी। इसका मतलब था कि वह दोनों ही एक दूसरे को यह कह रहे थे— लड़कियों के साथ बहस कौन करे। वह कभी किसी की सुनती भी है क्या।
    
    आयुध ने सास बाहर की तरफ छोड़ी। वही आर्य ने गहरी सांस ली जबकि हिना पलटकर किले की तरफ देखने लगी। किले की तरफ देखते ही वह आर्य से बोली “मुझे उम्मीद नहीं थी किले में जाने वाले आचार्य को इतनी जल्दी होगी। अभी हमें आए हुए 10 मिनट भी नहीं हुए और वह किले में जा रहे हैं।”
    
    “क्या!!” आयुध यह सुनते ही कंबल के साथ अपनी जगह से खड़ा हो गया। और दीवार की तरफ भागता हुआ आया। आर्य की नजरें पहले ही सामने थी। तीनों ही किले में किसी अचार्य को जाते हुए देख रहे थे। कल जहां आर्य और आयुध ने अंदर जाने वाले आचार्य के हाथ में सफेद और काली रोशनी वाली छड़ देखी थी। वहीं आज तीनों ही ऐसी छड़ को देख रहे थे जो लाल और सफेद रोशनी से चमक रही थी।
    
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