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आर्य और काली छड़ी का रहस्य-34

    

    अध्याय-12
    काली छड़ी का रहस्य
    भाग-1

    ★★★
    
    आचार्य ज्ञरक तीनों को अपनी योजना के बारे में बता कर आचार्य वर्धन की तरफ चलने लगे। आर्य भी उनके साथ साथ चल रहा था। हिना और आयुध पीछे ही खड़े रहे। वह दोनों आगे नहीं आए। 
    
    आचार्य ज्ञरक अपने साथ चल रहे आर्य को बोले “आर्य, तुम्हारे हाथ में जो तलवार हैं वह काली छड़ के बड़े से बड़े हमले का प्रतिकार कर सकती है। ऐसे में जब भी आचार्य वर्धन मुझ पर या तुम पर हमला करें तो तुम इस तलवार को आगे कर देना। इस तलवार के होते हुए उनके हमले से हम पर कोई असर नहीं होने वाला।”
    
    आर्य ने सहमति भर दी “आप फिकर मत कीजिए आचार्य ज्ञरक। आप जैसा कहेंगे वैसा ही होगा।”
    
    इतना सुनने के बाद आचार्य ज्ञरक ने कहा “माना कि अब हमारे पास उनका सामना करने के लिए प्राप्त क्षमता आ गई है। लेकिन इसके बावजूद हम उन्हें कम नहीं समझ सकते। उनके पास काली छड़ की ताकत के साथ-साथ खुद की भी ताकत है। ऐसे में मुकाबला अभी भी संघर्ष वाला रहेगा।”
    
    आर्य ने थोड़ा जोश में कहा “मुकाबले में चाहे कितना भी संघर्ष क्यों ना हो, हम अपनी कोशिश तो आखरी दम तक करेंगे।”
    
    जल्द ही वह दोनों आचार्य वर्धन से पर्याप्त दूरी पर आकर खड़े हो गए। वहां आते ही अचार्य ज्ञरक ने उन्हें दोबारा ललकारा “आचार्य वर्धन, अब यह आपके लिए आखिरी मौका है। आप अपने इरादों को बदल दीजिए, जो भी कर रहे हैं वह किसी भी मायने में अच्छा नहीं है। इस बात को समझिए और अंधेरी पंरछाइयों को आजाद करने की मंशा छोड़ दीजिए। अगर आपने अभी भी अपनी मंशा नहीं छोड़ी तो मजबूरन हमें आप को खत्म करना पड़ेगा। आप हमारे लिए इसके अलावा और कोई भी रास्ता नहीं छोड़ रहे।”
    
    अचार्य वर्धन ने अपनी क्रिया फिर से रोक दी। बार-बार रुकने की वजह से वह पूरी तरह से चिढ़ गए थे। इस बार उन्होंने तेजी से अपने हाथों को नीचे किया और पलट कर पीछे देखा। उनके ठीक सामने आचार्य ज्ञरक और वह लड़का था जो यहां पहली बार आया था। यानी की आर्य। वह उसके हाथ में पकड़ी रोशनी की तलवार को भी देख सकते थे। 
    
    अचार्य वर्धन ने दोनों के चेहरों को देखा और फिर गुस्से वाली आवाज में कहा “तुम लोगों में तो इतनी हिम्मत भी नहीं कि तुम लोग मुझे रोक सको, ऐसे में मारने वाली कल्पना तो बहुत दूर की बात है। मैं अपनी बात को स्पष्ट कर चुका हूं, अपनी इस कोशिश में मैं अब पीछे नहीं हट सकता। अंधेरी परछाइयां अब इस दीवार के पीछे से आजाद होकर ही रहेंगी। और इन्हें आजाद करने वाला भी कोई और नहीं होगा, बल्कि मैं ही होऊगां। मैं ही दीवार के पीछे केद इन अंधेरी परछाइयों को आजाद करवाऊंगा।”
    
    आर्य थोड़ा हताश स्वर में बोला “आप आखिर यह बात समझने की कोशिश क्यों नहीं कर रहे यह बिल्कुल गलत है। आप जानते हुए भी इसके पीछे के नुकसान को नजरअंदाज क्यों कर रहे हैं। आप वरिष्ठ हैं, समझदार है, आश्रम के बुद्धिमान अचार्य है, और साथ में ताकतवर भी। लेकिन इसके बावजूद आपके द्वारा उठाया गया कदम कितना गलत है। कृपया आप इस बात को समझिए। ‌आपकी जो भी इरादे हैं उन्हें बदल दीजिए।”
    
    “तुम तो मुझे मत ही समझाओ कल के आए लड़के।” आर्य के कहने पर आचार्य वर्धन ने उसे कठोर शब्दों में जवाब दिया “इस आश्रम की भलाई के बारे में मैं तुमसे ज्यादा जानता हूं। मुझे पता है कौन सा कदम आश्रम की भलाई के लिए ठीक रहेगा, और कौन सा नहीं। तुम्हारे कुछ कहने या कुछ ना कहने से कुछ भी नहीं होने वाला। आने वाले समय में तुम इस आश्रम को नहीं बचाने वाले, जब अंधेरी परछाइयां हम पर हमला करेगी तब तुम लड़ने के लिए सामने नहीं आओगे, इसलिए तुम इस बात को कभी नहीं समझ पाओगे हमारे सामने कितना बड़ा खतरा है। आने वाले समय में हमारे लिए अंधेरी परछाइयों को रोकना भी एक बड़ी चुनौती बन जाएगा, और शैतान, उसे तो हम रोकने की कल्पना भी नहीं कर सकते। ऐसा कुछ भी ना हो इसलिए मैं अब जो करने जा रहा हूं वही एक बेहतर कदम है।”
    
    आचार्य ज्ञरक आर्य से बोले “हम बेमतलब दीवार में सर फोड़ने वाला काम कर रहे हैं। आचार्य वर्धन का दिमाग पूरी तरह से फिर चुका है। हम चाहे उन्हें कितना भी क्यों न समझा ले वह नहीं समझने वाले। वो आश्रम की मोह माया में इतना अंधे हो चुके हैं की आश्रम की भलाई के लिए पूरी दुनिया की जान दांव पर लगाने के लिए तैयार हैं। उनके लिए आश्रम की 400 जान के आगे दुनिया की अरबों आबादी वाली जान भी कोई मायने नहीं रखती।”
    
    आर्य के चेहरे पर हल्की मायूसी अब गंभीर मायूसी में बदल गई।“काश वो इस बात को समझ जाते। काश वो समझते यह कितना गलत कदम है।”
    
    “वह अपने निर्णय पर अडिग है। और जैसा बर्ताव कर रहे हैं उससे यही पता चल रहा है लाख समझाने के बाद भी वो इसी फैसले पर अडिग रहेंगे।” इतना कहकर आचार्य ज्ञरक ने वापिस सामने आचार्य वर्धन की तरफ देखा “मैं अब उन्हें हमले के लिए ललकारता हूं। बस मैंने तुम्हें जो बताया है उस योजना पर अमल करते रहना। बाकी मैं संभाल लूंगा।” उनकी आंखों में अलग ही तरह की उर्जा आ गई। आचार्य ज्ञरक ने खुद को इस ऊर्जा से लबरेज किया और सामने आचार्य वर्धन को एक बार फिर से ललकारते हुए कहा “ मुझे हमेशा इस बात का पछतावा रहेगा मैं आपसे एक बड़ी लड़ाई लड़ने जा रहा हूं। मगर दुनिया की भलाई के लिए मुझे यह करना पड़ेगा। आचार्य वर्धन, अगर आपको अपने मकसद में कामयाब होना है तो आपको मुझ से युद्ध करना पड़ेगा। मैं आपको आपके मकसद से पहले लड़ने की चुनौती देता हूं।”
    
    अचार्य वर्धन के चेहरे पर शैतानी मुस्कान आ गई “तुम पहले भी लड़ने की कोशिश कर चुके हो। अब और दोबारा करना चाहते हो।” उन्होंने अपनी मुस्कान को और तेज किया “ठीक है। मुझे कोई एतराज नहीं। तुम्हारा स्वागत है।” उन्होंने अपने दोनों हाथ फैला दिए “चलो लड़ाई करें। एक बड़ी लड़ाई।”
    
    आर्य तलवार को पकड़कर सावधान हो गया। वही ‌आचार्य ज्ञरक ने मौत की छड़ पर अपनी पकड़ तेज कर ली। सामने आचार्य वर्धन ने भी काली छड़ को कसकर पकड़ दिया। 
    
    इस बार आचार्य ज्ञरक ने पहल करते हुए पहला हमला किया। ‌ उन्होंने अपनी आंखों को बंद किया और कुछ मंत्र पढ़े। इसके बाद उन्होंने छड़ को सामने की तरफ कर दिया। ऐसा करते ही उनकी छड़ से भीषण आग की लपटें निकली। भीषण आग की लपटें पूरे हाॅल को पीली रोशनी से भरते हुए आचार्य वर्धन पर टूट पड़ी।
    
    अचार्य वर्धन ने भी इस हमले के बचाव के लिए अपनी तरफ से हमला किया। उन्होंने अपनी आंखें बंद की और कुछ मंत्र बुदबुदाए। इसके बाद उन्होंने अपनी काली छड़ सामने की तरफ कर दी। आग वाले हमले के बचाव के लिए उनकी छड़ से पिछले कुछ हमलो में इस्तेमाल होने वाला काले रंग का धुआं निकला। लेकिन इस बार निकलने वाला काला धुआं पहले वाले धुएं की तुलना में ज्यादा संघन था। इतना ज्यादा सघन कि उसने सामने से आने वाले आग के हमले को रोक लिया। 
    
    उनके हमले और अचार्य ज्ञरक के हमले, दोनों के हमले की वजह से जिस बिंदु पर दोनों हमले टकराए थे वहां पर इधर उधर लाल रंग की आग और काले रंग का धुआं निकलने लगा। पूरा हाॅल पहले जहां सिर्फ पीली रोशनी से भरा हुआ था, वहीं अब आधे हिस्से पर काला धुआं पानी की तरह बिखरने लगा। कुछ देर तक दोनों के ही हमलें आपस में टकराते रहे, इसके बाद उनके हमलों की तीव्रता कम हुई और हमले बंद हो गए।
   
    जैसे ही आचार्य ज्ञरक का पहला हमला खत्म हुआ उन्होंने उसी वक्त दूसरा हमला कर दिया। उन्होंने अपनी आंखें बंद की और कुछ अलग मंत्र पढ़े। मंत्र पढ़ने के बाद उन्होंने छड़ सामने की तरफ कर दी। इस हमले में उनकी छड़ से अजीब से मधुमक्खियों जैसे जीव निकलने लगे। वह जीव हवा में उड़ते हुए एक लहर बनाने लगे और उसके बाद उसी लहर के साथ आचार्य वर्धन की ओर चल पड़े। 
    
    आचार्य वर्धन ने इन जीवों का सामना करने के लिए अपनी तरफ से छड़ का इस्तेमाल करते हुए सामने गोल काले रंग का घेरा बना दिया। उनके गोल काले रंग के घेरे में सारे ही उड़ने वाले जीव अपने आप खिंचते चले गए। जैसे ही सारे जीव गोल घेरे के अंदर चले गए उनका गोल घेरा गायब हो गया। जहां पहले हमले में ना तो कोई जीता था ना ही कोई हारा था, वही इस हमले में आचार्य वर्धन की जीत हुई थी। अपनी जीत की वजह से उनके चेहरे पर विजय मुस्कान आ गई थी।
    
    विजय मुस्कान के साथ उन्होंने इस बार तीसरे हमले के तौर पर खुद से पहल की। उन्होंने छड़ कों हवा में उठाया, कुछ मंत्र पढ़े, जिसके बाद ऊपर छत वाली जगह पर अजीब से तरल पदार्थ का कब्जा होने लगा। आर्य और आचार्य ज्ञरक ने ऊपर उस तरल पदार्थ को छत पर कब्जा करते हुए देखा। 
    
    तरल पदार्थ को देखते ही उन्होंने पीछे हिना से कहा “नीले रंग का सुरक्षा कवच बनाओ और अपने और अपने भाई की रक्षा करो।” फिर वह आर्य से बोले “तुम अपनी तलवार को ऊपर उठाकर चेहरे के सामने रखो। ध्यान रहे तुम्हें खुद को तलवार की रोशनी के अंदर रखना है।”
    
    उनकी बात सुनने के बाद हिना ने खुद को नीली रोशनी से चमका लिया। खुद को नीली रोशनी से चमका लेने के बाद उसने अपने दोनों हाथों को अपनी छाती से लगा लिया। ऐसा करते ही उसके आसपास एक गोल घेरे वाला नीले रंग का सुरक्षा कवच बन गया। आयुध भी उस सुरक्षा कवच के अंदर था। वही आर्य ने तलवार को ठीक वैसे ही कर लिया जैसे आचार्य ज्ञरक ने उसे करने के लिए कहा था। उसने तलवार को सामने चेहरे पर कर लिया था, ऐसा करने से उसका पूरा शरीर तलवार की निकलती हुई रोशनी की जद में आ गया था। 
    
    वही अचार्य ज्ञरक ने अपनी तरफ से कुछ मंत्र पढ़े और छड़ कों ऊपर कर दिया। ऐसा करने से उनकी छड़ से लाल रंग की रोशनी निकलते हुए उनके ऊपर किसी छाते जैसे परिदृश्य का निर्माण करने लगी थी।
    
    जल्द ही छत पर कब्जा करने वाले काले द्रव ने पूरी छत पर कब्जा कर लिया। जब उसका कब्जा पूरा हुआ तो वहां से काले रंग की बूंदे नीचे गिरने लगी। काले रंग की बूंदे बारिश के गिरने वाले पानी की बूंदों की तरह नीचे गिर रही थी। जहां जहां वह बूंदें गिर रही थी वहां वहां की चीजें भयंकर रूप से सड़ रही थी। काली बुंदों ने नीचे की मिट्टी को ताजाब की तरह जला दिया था, जबकि जिन पत्थरों पर वह गिरी थी वह पुरी तरह से लाल होकर पिघलने की हालत में आ गए। 
    
    हिना और आयुध ने खुद को नीले रंग के सुरक्षा चक्र के अंदर कर रखा था, तो इस वजह से काली बूंदे उनके सुरक्षा कवच पर गिरने के बाद फिसलते हुए नीचे जा रही थी। वही जो काली बूंदे आर्य की तलवार और उसकी रोशनी के पास गिर रही थी, वह वही की वही जलकर खत्म हो रही थी। जबकि आचार्य ज्ञरक पर गिरने वाली काली बूंदों को उनके लाल रंग की बनी छाते जैसी आकृति संभाल रही थी। उनके लाल रंग की छाते जैसी आकृति अपने ऊपर गिरने वाली काली बूंदों को दूर फेंक रही थी। 
    
    आचार्य वर्धन का यह हमला तकरीबन 2 मिनट तक जारी रहा। ठीक इसके बाद ऊपर छत को घेरने वाले काले रंग का द्रव गायब होने लगा। जैसे ही काले रंग का द्रव गायब हो गया वैसे ही सब पहले वाली स्थिति में आ गए। 
    
    हिना ने अपने शरीर को नीली रोशनी से चमकाना छोड़कर पहले जैसा कर लिया था। आर्य ने तलवार को नीचे कर लिया। जबकि आचार्य ज्ञरक का लाल रंग का छाता गायब हो गया। चारों ही अब आचार्य वर्धन को लाल आंखों से घुर रहे थे। उनसे मुकाबला करना सच में आसान नहीं था। वह एक कठिन प्रतिद्वंद्वी थे।
    
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1 Comments

रतन कुमार

20-Dec-2021 10:56 PM

बेहतरीन कहानी

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