आर्य और काली छड़ी का रहस्य-41
अध्याय-14
सौदेबाजी
भाग-2
★★★
बूढ़ी औरत और आर्य दोनों ही किसी बेसमेंट की तरह दिखने वाली जगह की ओर जा रहे थे। जगह बंगले के नीचे की ओर बनी हुई थी जिससे दोनों ही सीढ़ियां उतर रहे थे। आर्य के हाथ में जो पेय पदार्थ था उसने उसे अभी तक पिया नहीं था। और ना ही शायद वह पीने वाला था।
दोनों नीचे आए तो पता चला यह बेसमेंट ही था। पूरा बेसमेंट किताबों और उन अलमारियों से भरा पड़ा था जिनमें किताबें रखी गई थी। कुछ अजीब सी उड़ने वाली मक्खियां किताबों को एक जगह से दूसरी जगह पर स्थांतरित कर रही थी।
बूढ़ी औरत उन किताबों की तरफ इशारा करते हुए बोली “तुम यहां जितनी भी किताबें देख रहे हो, इन सब किताबों में जादुई मंत्र लिखे हुए हैं। वह जादुई मंतर जिन्हें शैतान ने मुझे सौंपा है। इनमें वो मंतर भी आते हैं जिनका किसी के पास तोड़ नहीं। यहां तकरीबन 35,000 के आस पास किताबें होंगी और इन सभी किताबों में डेढ़ अरब से ज्यादा जादुई मंत्र होंगे। इतने मंत्रों की वजह से यहां इस दुनिया में मुझ से मुकाबला करने वाला कोई नहीं। और इसी वजह से मुझे ताकतवर छड़ी की उपाधि मिली है।”
आर्य किताबों को देख रहा था। उसने किताबों को देखते हुए पूछा “लेकिन मुझे एक बात समझ में नहीं आ रही यह सारे मंत्र तो शैतान के हैं ना, जब शैतान को खुद इन सभी मंत्रों की जानकारी है तो उसने तुम्हें क्यों बनाया। और तुम्हें बना कर यह मंत्र क्यू सौंपे। वह तुम्हारे बिना भी तो इन मंत्रों का इस्तेमाल कर सकता था, और वही बात मंत्रों को इस्तेमाल कर हमले को दिशा देने की, तो उसके लिए किसी भी छड़ का इस्तेमाल किया जा सकता था।”
“हां यह बात सही है।” बूढ़ी औरत दो अलमारियों के बीच में से गुजरने लगी “शैतान इन सभी मंत्रों का मालिक है। वह जब चाहे तब इनका इस्तेमाल कर सकता है। यहां तक कि मंत्रों को इस्तेमाल करने के बाद हमले को दिशा देने के लिए जो छड़ी चाहिए वह भी कहीं से मिल जाती। मगर फिर भी, मैं मैं हूं। और मेरे शैतान के साथ होने से उसकी ताकत कई गुना बढ़ जाती है। जब मैं और शैतान दोनों एक साथ होते हैं, तब सामने वाले का मुकाबला सिर्फ शैतान से नहीं होता, बल्कि मुझसे भी होता है। शैतान तो अपने मंत्रों का इस्तेमाल करता ही है, मैं भी अपने मंत्रों का इस्तेमाल करती हूं। फिर बात यह भी है कि इन सब में याददाश्त वाला भी एक समस्या है। शैतान को सभी डेढ़ अरब मंत्र याद है, लेकिन सिर्फ क्रमवार। अगर उसे अपने इन डेढ़ अरब मंत्रों में से कोई बीच का मंत्र इस्तेमाल करने की जरूरत पड़ जाए तो उसे मंत्र को याद करने में वक्त लगता है। भले ही वक्त 10 या 15 सेकंड का हो, लेकिन इतना वक्त सामने के दुश्मन को मुकाबले में बढ़त दे देता है। जबकि जब मैं साथ होती हूं तो शैतान को किसी मंत्र को याद करने या बोलने की जरूरत नहीं पड़ती। उसे बस मुझे आदेश देना है कि यह काम करो, और मैं तुरंत उस काम को करने वाले मंत्र को पढ़ देती हूं।”
“तो तुम्हें वक्त नहीं लगता। मतलब अगर शैतान को मंतर याद करने में वक्त लगता है तो तुम्हें भी लगता होगा। शैतान तो याद किए गए मंत्र को पढता है, जबकि तुम तो यहां लिखे गए मंत्र को पढ़ोगी। उसे भी पढ़ने से पहले तुम्हें उसे ढूंढना पड़ेगा, फिर उसे किताब में जहां लिखा गया है उस पन्ने को खोलना पड़ेगा, फिर पढ़ोगी। इसमें तो काफी सारा टाइम लगेगा।”
“तुम ऊपर उड़ती हुई इन मक्खियों को देख रही हो....” उसने ऊपर की तरफ देखा। आर्य इन मक्खियों को पहले ही देख चुका था मगर बूढ़ी औरत के कहने पर उसने दोबारा देखा। सभी मक्खियां जब हरकत करती थी तो उनमें अजीब सी चमक पैदा होती थी। “यह मक्खियां मेरी ज्ञानेंद्रियां हैं। हमारे मस्तिष्क में कई सारी ज्ञानेंद्रियां होती हैं जो किसी भी चीज को संचित करने और उन्हें बाद में इस्तेमाल करने पर ढूंढने का काम करती हैं। जादुई मंत्रों की वजह से मैंने अपने दिमाग की ज्ञानेंद्रियों को मक्खियों के रूप में बदल कर यहां इस किताबों के बरामदे में खुला छोड़ रखा है। इन सब की संख्या यहां तीन अरब से भी ज्यादा है, और हर एक को अपने अपने हिसाब से कुछ ना कुछ मंत्रों के बारे में पता है। बाहर शैतान मुझे मंत्र के इस्तेमाल के लिए आदेश देता है, यह मैं इनको आदेश देती हूं, जिसके ठीक उपरांत मंत्र वाली किताब मेरे आगे आ जाती है। इन सब में पलक भर का समय भी नहीं लगता। किताब सामने आते ही मैं तुरंत मंत्र को पढ़ देती हूं।” बुढी औरत आर्य को बीच में रोकते हुए बोली “रुको, मैं तुम्हें बताती हूं यह कैसे काम करता है।”
आर्य उसके कहने पर रुक गया। सामने बूढ़ी औरत ने ऊपर सबकी तरफ देखा और अपनी कर्कश वाली आवाज में थोड़ा जोर से बोलते हुए बोली “मुझे थमे हुए वक्त को बहाल करने का मंत्र चाहिए.... जल्दी।” उसके ऐसा कहने पर ही अचानक ऊपर की सभी मक्खियां चमकने लगी। इससे पहले उनकी संख्या का अंदाजा नहीं लग रहा था, मगर अब पता चला कि यह कम मात्रा में तो बिल्कुल भी नहीं थी। देखते ही देखते एक मक्खी दूसरी ओर की अलमारी से किताब लेकर बूढ़ी औरत के सामने आ गई। किताब बूढ़ी औरत के सामने आते ही अपने आप खुल गई और उस पर हिंदी में लिखा हुआ एक मंतर दिखाई देने लगा। बूढ़ी औरत ने तेजी दिखाई और किताब को अपने हाथों से पकड़ कर जल्दी बंद कर दिया। वह किताब बंद करते हुए बोली “शायद मुझे कोई और मंत्र वाली किताब मंगानी चाहिए थी। मैं इस वक्त अपने एक दुश्मन के साथ हूं, आह... मेरी इस बड़ी उम्र का असर मेरे दिमाग पर भी देखने को मिल रहा है।” उसने बोलते हुए किताब को अपने गंदे काले रंग के लबादे के अंदर कर लिया। आर्य बस उसे देखता रहा। उसने कुछ खास नहीं किया।
“चलो अगर तुमने यह देख लिया है तो मैं तुम्हें एक चीज और दिखा देती हूं। इसके बाद हम आराम से बैठकर सौदेबाजी की बात करेंगे।” बूढ़ी औरत कहने के साथ ही वापस जाने लगी। आर्य भी उसके पीछे पीछे वापस चल पड़ा। दोनों ने बेसमेंट की सीढ़ियों को चढ़ते हुए पार किया, इसके बाद हॉल में आए जहां बेसमेंट की सीढ़ियां आती थी, और फिर हाॅल से ऊपर की मंजिल की तरफ से चढ़ने लगे। बूढ़ी औरत के इस बंगले में कुल 3 मंजिले थी, जिन्हें एक हाॅल लगता था। दोनों ही सीधे तीसरी मंजिल पर पहुंचे।
वह बूढ़ी औरत ने एक कमरे का दरवाजा खोला। इस कमरे से आने वाली हवा बाहर से काफी अलग थीं। बाहर जहां हवा में गंदी बदबूदार दुर्गंध थी, वही इस कमरे से भीनी-भीनी और मिठी सी खुशबू आ रही थी। आर्य अंदर गया तो उसकी नजर सबसे पहले नीचे बीछे लाल रंग के कालीन पर गई। लाल रंग का कालीन गद्देदार और काफी मुलायम था। इसके बाद आर्य ने बाकी का कमरा देखा। यह कमरा किसी आलीशान कमरे से कम नहीं था। तकरीबन एक बड़े बरामदे जितने बड़े इस कमरे में हर एक ऐशो आराम की चीज थी। वो ऐशो आराम की चीज जिसका अस्तित्व आधुनिक दुनिया में था। जैसे कि कांच का बड़ा मेज, उस पर रखे कांच के गिलास, एक बड़ी सी वाइन की बोतल, फिर मोमबत्तियां थी। इसके अलावा मखमली गद्देदार बेड, उसके सामने पड़े दो सोफे। कमरे के एक तरफ आर्य को लाल रंग का पर्दा भी दिखाई दे रहा जिसके पीछे बाथ टब पड़ा था। पूरा कमरा गर्म था, जिसे गर्म करने का काम कमरे में बनी दो अलग-अलग अगीठीयां कर रही थी।
बूढ़ी औरत बोली “तुम्हारी आंखों ने देख लिया होगा इस कमरे की शानो शौकत कितनी है। यहां बाहरी दुनिया की हर एक मूल्यवान चीज को रखा गया है। उस मूल्यवान चीज को जिसे इंसान खुद का मन बहलाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। उन्हें इन सभी चीजों से खुशी मिलती है। जैसे कि वह मखमली गद्देदार चीज...” बूढ़ी औरत ने बेड की तरफ इशारा किया “इंसानों की आधी जिंदगी इस गद्देदार चीज पर निकलती है। वह इन पर पर उटपटांग हरकतें करते रहते हैं। और वो चमकती हुई चीज...” उसने कांच की बोतल और गिलास दोनों की और एक साथ इशारा किया था “इंसान इसे पेय पदार्थ की तरह पीते हैं। फिर तुम इसे देखो....” वह चलते हुए पर्दे की तरफ चली गई थी जिसके पीछे बाथ टब पड़ा था। “यह इंसान अपनी गंदगी साफ करते हैं। तुम्हें पता है यह सब किस लिए है...?”
आर्य ने हल्के अंदाज में ना कहा। “नहीं।”
“कोई भी नहीं जानता।” बूढ़ी औरत अफसोस के साथ बोली “किसी को इस बारे में पता ही नहीं। तुम वो पहले शख्स हो जिससे मैं यहां लेकर आई हूं। यह कमरा जो तुम देख रहे हो यह शैतान के शहंशाह के लिए बना है। वह इंसान और उनके रहने सेहने के तरीके को पसंद करते हैं, उन्हें इंसानो कि यह सब चीजें पसंद हैं। इसीलिए उनके गुलाम अपनी एक हर एक संभावित कोशिश से उन्हें इंसानो की दुनिया में लाने की कोशिश कर रहे हैं। उनके इंसानी दुनिया में आने से पहले ही मैं उनके पास चली जाऊंगी, मेरे लोग मुझे उनके पास ले जाएंगे। उनके पास जाने के बाद जब शैतान मुझसे मुलाकात करेंगे तो वह मुलाकात करने के बाद यहीं आराम करेंगे। इस आराम में उन्हें खुशी मिले इसलिए मैंने यहां यह व्यवस्था की।”
“अच्छी बात है...” आर्य ने कहा। लेकिन इसके बाद वह कंधे उचकाते हुए बोला “लेकिन यह सब आप मुझे क्यों बता रही? मेरा इनसे क्या लेना देना?”
बूढ़ी औरत मियमियाती सी हंसी हंसने लगी। उसने अपनी पर्दे वाली जगह छोड़ी और चलते हुए आर्य के पास आ गई। आर्य के पास आने के बाद उसने कहा “इसलिए ताकि तुम्हें यह लगे मैंने तुमसे कुछ छुपाया नहीं। सौदेबाजी के लिए तुम्हारा मुझ पर विश्वास करना जरूरी है, और विश्वास करने के लिए कुछ ऐसा बताना आवश्यक होता है जो किसी को भी ना पता हो। मेरे पास बताने के लिए यह चीज थी इसलिए मैंने तुम्हें बताई। बाकी इसका और कोई मतलब नहीं निकलता।” इतना कहने के बाद उसने एक लंबी सांस छोड़ी।
आर्य महसूस कर रहा था की सौदेबाजी में होने वाली बात कुछ बड़ी ही होगी। इसलिए बूढ़ी औरत इस तरह के काम कर रही है। उसने खुद को जंग में जीते गए किसी राजकुमार की तरह किया और कहा “ आपको लगता है इससे मुझे आप पर विश्वास हो जाएगा? इसमें ऐसा कुछ भी खास नहीं जो विश्वास पैदा कर सके।”
“तो फिर तुम अपने हिसाब से कुछ पूछ लेना..! अगर सौदेबाजी में तुम्हें इस बात से मुझ पर विश्वास नहीं होता तो तुम और कुछ भी पूछने के लिए आजाद हो। और यकीन मानो, तुम्हें तुम्हारे सवाल का जवाब मिलेगा। मगर....तब... जब सौदेबाजी के लिए तुम हामी भर दो।”
आर्य ने एक बार के लिए बुड्ढी औरत को शंका से देखा, मगर अगर बूढ़ी औरत के पास अपनी कोई योजना है, तो आर्य भी अपनी योजना सोच चुका था। बस अब इंतजार इस बात का था कि बूढ़ी औरत अपनी योजना के पत्ते कब खुलती है। जिसके बाद आर्य अपनी योजना के पत्ते खोलेगा।
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