Raju Ladhroiea

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Piracy

एक लेखक जब कोई कहानी/लेख/कविता लिखता है तो इसमें उसकी मेहनत, खोज और काफी भागदौड़ खर्च होती है। एक छोटी सी कविता लिखने में ही जब दो तीन घंटे लग जाते हैं। फिर कहानी लिखने में तो महीनों लग जाते हैं। लिखने के बाद प्रकाशक तलाशना, पब्लिशर को खोजना, इन कामों में काफी समय खर्च हो जाता है। किताब पब्लिश होने के बाद उस पर जनता की जो‌ प्रतिक्रियाएं मिलती हैं। वो ही एक लेखक के लिए असली सम्मान होता है। कुछ लेखकों की जीविका का मुख्य स्रोत उनकी किताबें ही होती हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से कुछ लोगों ने उनकी किताबों को डिजिटल प्लेटफार्म पर मुफ्त में बांटना शुरू कर दिया है। जिसे पीडीएफ फाइल और अन्य फाइल्स के रूप में वितरित किया जा रहा है। 


अब तो कुछ लोगों की इतनी हिम्मत बढ़ चुकी है कि कोई लेखक जब डिजिटल प्लेटफार्म पर अपनी किताब अपलोड करता है तो वो लोग वहां से उसे चोरी छुपे डाउनलोड कर लेते हैं और फ़ाइल रुप में लोगों में बांटने लग जाते हैं। उन लोगों को तो कोई फर्क नहीं पड़ता किंतु जब उक्त लेखक अपनी किताब पब्लिश करवाता है तो उसकी उम्मीद अनुसार बिक्री नहीं हो पाती क्योंकि जो‌ किताब लेखक के द्वारा  आज पब्लिश की गई है। उसकी फाइल लोगों के बीच में पहले ही पहुंच चुकी होती है। जब लोगों को उक्त किताबमुफ्त में ही पढ़ने को मिल रही हो तो वो‌ पैसे खर्च करने की जहमत क्यूं उठाएंगे।

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ऐसे मामलों से आहत हो कर लेखक की किताब लिखने की इच्छा खत्म होने लगती है। एक ऐसा लेखक जिसकी जीविका का एक मात्र साधन ही उसकी किताबें हैं। वो निराश हो कर लिखना बंद ही कर देता है। पर यह वक्त निराश हो कर अपने कदम पीछे खींचने का नहीं, बल्कि इस फ़ाइल कल्चर को खत्म करने में योगदान देने का है। यह हम पहल लेखकों को ही करनी पड़ेगी। कि हम इस फ़ाइल कल्चर के खिलाफ डटकर खड़े हो जाएं। और मुफ्तखोरी के इस मायाजाल का अंत कर दें। 


कुछ लोग पायरेसी को फायदे का सौदा समझते हैं पर पायरेसी एक अभिशापत अवधारणा है जो लेखकों और पाठकों के बीच का जो भावनाओं का पुल होता है जिससे दोनों एक दूसरे के साथ जुड़ा करते हैं, उसे दिन प्रतिदिन दींमक की भांति खोखला करता जा रहा है। अगर अभी भी पायरेसी के मायाजाल को तोड़ा नहीं गया तो पायरेसी के इस मायाजाल का लेखक समुदाय पर और भी बुरा और बहुत गहरा प्रभाव पड़ेगा। समाज से एक दिन लेखकों का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।

कुछ लोग कहेंगे कि यह तो पहले भी होता रहा है। फिल्म लाइन में भी तो रिलीज से पहले ही फिल्में मार्केट में उपलब्ध हो जाया करती थीं। उन लोगों को शायद इस बात की जानकारी तक नहीं कि वो अनजाने में ग़लत अवधारणा को बढ़ावा दे रहे हैं। उन‌ लोगों को शायद यह बात याद नहीं है कि हर चमकती चीज सोना नहीं होती।
समय की नाजाकत को समझते हुए हमारे दो मुख्य मकसद होने चाहिए। पहला इस पायरेसी के काले मायाजाल को चलाने वाले अपराधिक तत्वों के खिलाफ आवाज उठाना और उनका पर्दाफाश करके उन्हें कानून के दायरे में लाना और दूसरा लोगों को इस पायरेसी नामक अभिशाप की बुराइयों से अवगत करवाते हुए उन्हें जागरूक किया जाए। साहित्य संगम समूह में शामिल हमारे कई मित्र लेखकों और पाठकों के समूह ने संगठित होकर इस पायरेसी के खिलाफ आवाज उठाने का प्रयास किया है। आप सभी माननीय सदस्य से विनम्र निवेदन है कि हमारे द्वारा शुरू की गई इस लड़ाई में हमारा भरपूर सहयोग कीजिए जिसका स्लोगन है एक युद्ध पायरेसी के विरुद्ध। धन्यवाद

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8 Comments

Author laxmi Singh

26-Mar-2022 11:27 PM

🙌

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Miss Lipsa

01-Sep-2021 10:20 AM

Are wah

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Archana Tiwary

23-Jan-2021 07:52 PM

सही कहा अपने एक लेखक टूट जाता है

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