Sonia Jadhav

Add To collaction

सिगरेट और मैं

तुम्हारे होंठों के बीच पूरी रात सुलगती रहती हूँ,
ख़त्म हो जाती हूँ जलकर जब,
 पैरों तले रौंद दी जाती हूँ।
हर रोज़ एक बुझती है तो,
दूसरी जलती है।
यह क्रम कभी टूटता नहीं,
मैं दहलीज के भीतर भी जलती हूँ,
और दहलीज पार भी सुलगती हूँ।
मुझसे बेहतर तो तुम्हारी यह सिगरेट है
खुद जलती तो है मगर ,
तुम्हें भी जीने लायक छोड़ती नहीं,
तुम्हारे जिस्म में जहर बन कर दौड़ती है।
और मैं.... मैं सिर्फ जलती हूँ, सुलगती हूँ।
धीरे-धीरे राख बन जाती हूँ 
और फिर हमेशा के लिए बुझ जाती हूँ।

❤सोनिया जाधव

   7
8 Comments

रतन कुमार

10-Dec-2021 02:58 AM

Nice

Reply

Seema Priyadarshini sahay

07-Dec-2021 12:25 AM

बहुत सुंदर रचना

Reply

Ravi Goyal

06-Dec-2021 11:44 PM

वाह जबरदस्त 👌👌

Reply