Jaane Kahaa ??? The Revolution
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दुसरे दिन की परोढ की सुरज की लालीमा जैसे ही बेडरुम की खिडकी को चिरती हुइ राजेश्वरीदेवी को जगा गइ और उस ने देखा किशोरीलाल अभी भी गेहरी नींद से जागनेवाले नही है तो वो फ्रेश होकर पूजा कर रही थी । लेकिन कल रात के खयालो मे सोये हुये किशोरीलाल को जैसे सपने मे भी अभी सारी बाते याद थी और वह सहसा उठा और तुरंत फ्रेश हो गया । फिर दोनो ने प्रार्थना की तभी सुबह के 7.30 बजे थे।
जैसे ही किशोरीलाल नीचे जाने को तैयार हुवा तभी राजेश्वरीदेवी
ने पुछा की क्या विक्रम से कुछ बात हुई ? तभी किशोरीलाल ने राजेश्वरीदेवी
को उनकी और बंसी की सारी बाते बताई जो कुछ इस तरह थी और चौका देने वाली थी ।
गंगाधर (विक्रम के पिता) का ज़्यादातर समय जोधपुर के महाराजा
इंदरजीत दीवान के साथ गुजरता था। हिन्दुस्तान की आज़ादी के बाद सब राज्यो का विलिनीकरण
किया गया था और उसमे जो भी शर्त भारतीय सरकार ने रखी थी उसमे किस राजा को कितना सालाना
मिलेगा (सालाना मतलब अब महाराजा अपने ही स्टेट की गवर्मेंट मे कोई उँचे होद्दे पर रहेंगे
और बदले मे कुछ सेलेरी जैसा मिलेगा उसे सालाना कहते है), वो कितना होना चाहिए और उस अमाउंट से गुजारा कैसे होगा । खास करके क्षत्रियो के शौख कम करने पड़ेंगे, ये सब तय करने की रेस्पॉन्सिबिलिटी महाराजा ने गंगाधर को दी
थी। गंगाधर की पत्नी का तो जब विक्रम बहुत छोटा था तब ही देहांत हो गया था। गंगाधर
अब महाराजा को संभालता की अपने बेटे विक्रम को।
सालाना तय करने के लिये गंगाधरजी ने सरकार से बहुत कुछ
मेहनत कर ली और जब बहुत कुछ अच्छा अमाउंट महाराजा के लिए पास हो कर आ गया तो बदले मे
महाराजा ने गंगाधर को भी हर महीने अच्छी अमाउंट तय कर दी थी। ये बिल्कुल उल्टा हुवा
था की गंगाधर की सॅलरी अच्छी थी और यहा जूनागढ़ मे उसके दोस्त नारायणप्रसाद की सॅलरी
बिल्कुल नही जैसे थी। इसीलिए यहा गंगधार अमीर होता गया और वहा नारायणप्रसाद ग़रीब
होता गया।
इधर नारायणप्रसाद का बेटा किशोरीलाल साइंटिस्ट बन ने पर तुला
हुवा था, जब की गंगाधर का बेटे विक्रम की दोस्ती राजघराना के क्षत्रियो
के साथ मोज मस्ती मे बीत रही थी। किशोरीलाल के पास मा के संस्कार थे। और विक्रम के पास मा भी नही थी और रोकनेवाला बाप भी फ्री नही
होता था। विक्रम के शराब, सुर की आदत से गंगाधर जल्द ही
वाकेफ़ हो गया था।
लेकिन एक दिन जब वो राजघराने पर पहुचा तो महाराज उध्यान मे थे
और जब वो उध्यान की तरफ जा ही रहा था और कोई शाम के 7 बजे होंगे, तो वो सर्वेंट क्वॉर्टर के पास से गुजर रहा था की उसने प्रिन्स
की और विक्रम की आवाज़ सुनाइ दी । वैसे वो कभी किसी कार्य मे दखल नही देता लेकिन जब
ज़ोर ज़ोर से हसने की आवाज़ आई तो उसके पैर अपने आप ही सर्वेंट क्वॉर्टर्स की और चले
गये।
महल की दाई साइड पर कोने मे ये सारे सर्वेंट क्वॉर्टर्स बनाए
गये थे। गंगाधर बाइ और चला और क्वॉर्टर्स का पिछे का हिस्सा अब उसे स्पष्ट दिखाई दे
रहा था। उसने उध्यान की ओर देखा तो महाराजा भी दिखाई नही दे रहे थे तो उसको सरवेंट्स
क्वॉर्टर्स मे ज़ाकने का मन हुवा। जहा से आवाज़ आ रही थी वहा जाकर वे खड़े हो गये। कुल
मिलाकर 12 क्वॉर्टर्स थे । जो आवाज़ आ रही थी वो क्वार्टर
नं 5 था यानी स्टेट अकाउंटेंट मानिकलाल का क्वार्टर था। दीवार से होते हुए वो वहा पहुचे
और जुक कर विंडो के नीचे बैठ गये। आवाज़ दूसरे रूम से आ रही थी। उसको बड़ा अजीब लगा
की अकाउंटेंट के क्वार्टर मे प्रिन्स और विक्रम क्या कर रहे है ? अब आवाज़ स्पष्ट सुनाई
देने लगी ।
प्रिन्स बोल रहे थे, “देखो मानिकलाल इसमे क्या है जैसे मैं प्रिन्स हू और मूज़े कोई
हिसाब महाराजा को नही देना होता वैसे ही वीकी को भी कोई हिसाब अपने बाप को देना नही
पड़ेगा। विक्रम सिर्फ़ पुरोहितजी का बेटा ही नही हमारा दोस्त है, हमारा। एक प्रिन्स
की वॅल्यू को कम ना समजो। अरे भाई प्रिन्स के शौख अगर उचे है तो उसके दोस्तो के शौख
भी तो उचे ही होंगे ना, क्यू वीकी ?”
जवाब मे विक्रम बोला, ”कुमार यही तो मे मानिकलाल को समजा रहा हू, वैसे भी मेरे अलावा पैसे खर्च करने वाला है ही कौन मेरे घर मे।
अब जब देखो तब मूज़े आप के पास हाथ लंबे करने पड़ते है, अब ये अच्छा नही लगता।”
मानिकलाल की आवाज़ आई, ”छोटे सरकार आप की बात सही है लेकिन मूज़े गंगाधर बाबु ने जो
कहा है उतनी ही रकम दे सकता हू ना । यह राजघराने के नियम है । महाराजा ने आप के लिए कोई पाबंधी
नही रखी । इसीलिए आप जो भी चाहे अमाउन्ट उठा
सकते है । लेकिन विक्रमबाबु के लिए उनके पिताजी ने जो रकम तय की है उतनी ही मै दे सकता
हु। मूज़े भी हर महीने हिसाब देना होता है।”
“अरे मानिकलाल थोड़ा बहुत इधर
उधर कर दीजिए ना, क्या फ़र्क पड़ता है ? आप तो अकाउंटेंट है, आप के हिसाब को कौन चॅलेंज करेगा ? अब वीकी अपनी मिलकत को छोडकर
क्या किसी ओर से भीख माँगेगा? ये प्रिन्स के दोस्त के लिए
अच्छा है क्या ?” प्रिन्स की आवाज़ आई।
मानिकलाल बोला,”ठीक है छोटे सरकार जैसी आप की
मरजी। लेकिन मै एक बार पुरोहित जी
से तो बात कर लू, ता की उनका विश्वास कायम रहे।”
“आप को पुछना है तो ज़रूर पुछे, लेकिन एक बात सुन लीजिये मानिकलाल, अगले महीने से वीकी को डबल
पैसा मिलना शुरू करा दीजिये। चाहे पढ़ाई के नाम से ही। आप को जो करना है कर लीजिये। हमे तो पैसे से मतलब है। और हा अब थोड़ी देर तक हमे अकेला छोड
दीजिये। कम से कम 1 घंटे तक। बाद मे
आप आईयेगा। अब यहा से जाइए, मूज़े कुछ प्राइवेट बात करनी है वीकी से” प्रिन्स बोला।
“जैसा हुकम आपका” कहकर मानिकलाल बाहर निकल गया।
फिर से प्रिन्स की आवाज़ आई,” चल तेरा काम भी हो जाएगा कुछ अब तो पार्टी का इंतेज़ाम तो कर
दे”।
विक्रम,” वो तो पहले से हाजिर है कुमार” कहकर वीकी क्वार्टर से बाहर निकला और एक टोर्च निकाली और ग्रीन
लाइट तीन बार की। गंगाधर को स्पष्ट दिखाई दे रहा था और उसे उस दिशा मे थोड़ा खुलकर
देखा तो एक लड़की भागी सी आ रही थी। लड़की तेज़ी के साथ क्वार्टर मे दाखिल हो गयी और
जब गंगाधर ने थोड़ा उचा उठकर देखा तो वो मानिकलाल की ही बेटी क्रिश्ना थी। विक्रम अब
बाहर के रूम मे आ गया था। और यहा प्रिन्स और कृष्णा अकेले थे।
क्रिश्ना की आवाज़ आई,”कुमार अब मूज़े डर लग रहा है ऐसे मेरे ही घर मे छुप छुप के आते
हुए। कुछ एसा करो ना की मै सब के सामने आप के सामने आ साकु।"
प्रिन्स ने क्रिश्ना के बाल सह्लाते हुये पुछा,” और मूज़े ऐसा क्या करना चाहिए ?"
“शादी” क्रिश्ना नजरे जुकाकर बोली।
प्रिन्स ने ज़टके से उठकर पुछा, ”शादी ? क्या बात कर रही है तु ? एक अकाउंटेंट की बेटी की हेसियत क्या है जो तु मुजसे शादी करेगी
? आखिर हम प्रिन्स है प्रिन्स ।”
“कुमार आप ने ही वादा किया था
भूल गये क्या? और इसीलिए मैने अपने आप को पूरी
तरह से सौप दिया है। आप को पता है थोड़े ही महीनो
मे छोटा कुमार आनेवाला है इस कुटिया मे। तब मैं क्या जवाब दूँगी सब को।" क्रिश्ना ने गभराकर
जवाब दिया ।
चौकन्ना रहकर प्रिन्स ने पुछा,”क्या ? तु.. तु.. मा बन ने वाली है ?”
कुछ आवाज़ नही आई, गंगाधर समज गया की क्रिश्ना कुछ बोलेगी नही लेकिन स्वीकार कर
लिया होगा।
“तो पहले बोलना था न पगली, मैं तो मज़ाक कर रहा था, ठीक है अगले महीने ही हम शादी कर लेंगे बस” प्रिन्स ने वादा कर दिया ।
“सच कुमार साहिब” क्रिश्ना ने खुश होकर पुछा।
“ये एक प्रिन्स का वादा है पगली
और क्षत्रिया ज़बान के बड़े पक्के होते है।” प्रिन्स बोला। “चल थोड़ा जाम पीते है इस खुशी
के मौके पर।”
“नही बाबा लड़किया शराब नही पीती।” क्रिश्ना बोली।
“अरे लड़किया नही पीती होगी लेकिन
रानी तो पीती ही है ना, अब तु मेरी रानी बन ने वाली
है तो क्या आदत नही डालेगी ?” प्रिन्स बोला।
“देखो कुमार आप हर बार कुछ ना
कुछ सरबत या कुछ पीला देते हो जिस से हमेशा मूज़े नींद आ जाती है, फिर आप ना जाने कहा चले जाते हो और मैं अकेली यू ही पड़ी रहती
हू। इसीलिए शायद मेरे बाबुजी को भी पता चल गया है हमारे बारे मैं।” क्रिश्ना बोले।
“तेरे बाबूजी को सब पता है पगली
इसीलिए तो उस को जो मैं कहता हु वैसा ही उसे करना पड़ता है समजी।” प्रिन्स ने हासकर जवाब दिया।” चल जल्दी कर पीती है या नही, चल मेरे हाथो से पी।” प्रिन्स बोला।
थोडी देर क्रिश्ना की दबी दबी आवाज़ आई “ओउ, उउउ।” गंगाधर समज गया की प्रिन्स ने क्रिश्ना को ज़बरदस्ती शराब पिलाई
है।
उसने थोड़ा उठकर देखा तो उल्टा क्रिश्ना भी प्रिन्स को कुछ
पीला रही थी । कुछ देर तक गंगाधर जुक गये और फिर से उस ने उठकर देखने की कोशीश की
और देखा की की प्रिन्स अपने कपड़े उतार रहा था। प्रिन्स ने क्रिश्ना को खड़ा किया और
क्रिश्ना के मूह से आहे निकल ने लगी। गंगाधर शर्म से जुक कर बैठ गया और अंदर से
धीरे धीरे आवाजे आनी बंध हो गयी । उस के बाद गंगाधर की हिम्मत नही हुइ की अन्दर की
और देखे । लेकिन अन्दर से कुछ आवाजे नही आ रही थी । कुछ देर तक तो देखना ठीक नही
समजा । लेकिन गंगाधर ने सोचा की अगर शर्म मे रहेंगे तो पुरा किस्सा समज नही
पायेंगे । और उस ने तय कर लीया की कुछ भी हो पुरा खेल जान ना ही होगा।
थोडी देर बाद गंगाधर ने फीर से उठकर देखा की प्रिन्स बेढाल
होकर पडा था और क्रिश्ना की और देखा तो वो शराब के नशे मे बेहोश थी और उसकी साँसे तेज़
चल रही थी, आज पहली बार उसको शराब पिलाई
गइ थी वरना अक्सर प्रिन्स उसे नींद की गोलिया पिलाता था ता की उसे ज़्यादा मालूम ना
हो की उसके साथ क्या क्या किया गया है। दोनो के शरीर पर कपडे नही थे। कुछ देर बाद प्रिन्स क्रिश्ना होश मे आइ और अपने शरीर पर साडी
डाली और ऐसी ही हालत मे प्रिन्स को छोडकर बाहर चली आइ और जल्दी से भाग गइ ।
गंगाधर अभी भी सासे रोक कर वही डटे रहे । उसे मतलब था विक्रम
क्या करेगा अभी । कुछ देर बाद विक्रम अंदर आया और उस प्रिन्स को होश मे लाने की
कोशिश की ।कुछ देर बाद प्रिन्स होश मे आया
और बोला, ”विक्रम ये लडकी न जाने मुजे क्या पिला देती है । कुछ होश नही
रहता । तुम जाओ और जल्दी ही सब समेटकर मेरे पास आ जाओ कुछ इंपॉर्टेंट बाते करनी है।
विक्रम जा ही रहा था और फिर रुक गया और पलटकर प्रिन्स को पुछा,”क्या आप इन से शादी करेंगे ?”।
प्रिन्स बोला,”हा ज़रूर करनी ही पड़ती मूज़े, लेकिन अगर ज़िंदा रही तो।"
और दोनो जोरो से हसने लगे और वहा से चल दीये।
कुछ देर बाद गंगाधर खडे हुए । गहरा सदमा पहुचा था गंगाधर को, की प्रिन्स तो ठीक लेकिन ऐसी साज़िश मे उनका खुद का खून विक्रम
भी समिल था। वो फ़ौरन लौटे और रात भर करवटॆ बदलते रहे। उस की नींद हराम हो गइ थी ।
पुरी रात वो सोचते रहे। और उस ने एक फैसला कर लिया ।
दूसरे दिन सुबह उसने अकाउंटेंट मानिकलाल को बुलाया सब बात की
तो मणिकलाल ने बताया की वो सबकुछ जानता है लेकिन अगर उसकी बेटी इस राजघराना की बहु
बने तो बुराई क्या है ? गंगाधर ने उसकी लालच देखकर कुछ ज़्यादा बताना उचित नही समजा
और उसने एक टेलिग्राम नारायणप्रसाद को किया की फ़ौरन जोधपुर आए। नारायणप्रसाद तुरंत
जोधपुर पहुचा और दोनो आमने सामने बैठे और नारायणप्रसाद बोले,” क्या बात है की आप को मुजे बुलाने के लिये टेलिग्राम करना पडा ?"
“मे जो बोलने जा रहा हू उसे ध्यान
से सुनो । आज के बाद इस घर की देखभाल के
लिए मैने मानिकलाल के पुत्र बंसी की नौकरी यहा लगा दी है। महाराज ने मेरा प्रस्ताव
स्वीकार किया है क्यूकी प्रिन्स के चुंगाल से कृष्णा को बचाना ज़रूरी है।“ गंगाधर ने
सब बाते नारायणप्रसाद को बताई और अंत मे बोले,”देखो नारायण मूज़े अपने बेटे पर कोई भरोसा नही। इसीलिए अगर मेरी
मृत्यु हो गयी तो मेरी सारी संपति का वारीश अकेला विक्रम होनेवाला है। अगर इतनी सारी
दौलत उसके हाथ लग गयी तो न जाने वो आगे क्या कुछ नही करेगा। इसीलिए मेरे बाद ये पूरी
मिलकत के आप गार्डियन बनेंगे और आप की जानकारी
के बगैर एक पाई भी विक्रम के पास नही जाएगी।"
“लेकिन ये कैसे हो सकता है गंगाधरजी” नारायणप्रसाद आश्चर्य के साथ बोले।
“बीच मे कुछ मत बोलो नारायण सिर्फ़
सुनते रहो” गंगाधर थोडी देर रुके और फीर बोले,” अभी मूज़े महाराजा के पास जाना
होगा और इसके बाद हम दोनो कोर्ट मे जाके वसीयत भी कर आयेंगे । जब भी ज़रूरत होगी तुम्हे यहा
आना पड़ेगा । इसका पूरा आनेजाने का खर्चा तुम्हे अपने आप ही मिल जायेगा ऐसी व्यवस्था
मेने कर दी है। तेरे बेटे की पढ़ाई के लिए और उसके प्रयोगो के लिए जो भी खर्चा होगा
वो मैं उठाउंगा अगर मेरी शर्त तु मान लेता है तो। दूसरा मेरी बहुत तमन्ना थी की तेरी
बेटी सुनंदा को अपने घर की बहू के स्वरूप मे देखु । लेकिन अगर तू विक्रम को सुधार पाया और तुजे सही लगे तो मेरा
ये सपना पूरा करना वरना कोई ज़रूरत नही उस नादान की ज़िंदगी को बिगाड़ने की। दूसरा
मैने ये सारी बात बंसी को बताई है। वो आज से ही यहा काम पर लग गया है। तु जब भी जूनागढ़
से यहा आयेगा, बंसी तब तक का विक्रम का पूरा रहन सहन तुजे बताएगा और इसके आधार पर ही
तुजे आगे के निर्णय लेने है।"
“लेकिन बंसी पर मैं भरोसा कैसे
करू ? वो भी तो विक्रम से मिला होगा
तो” नारायणप्रसाद ने पुछा।
“ऐसा कभी नही होगा बाबुजी” बंसी चाय लेके आया और बोला, ”हम पर बहुत बड़ा उपकार किया गंगाधरबाबु ने की हमारी बहन कृष्णा
को बचा लिया।”
“वो कैसे ?” नारायणप्रसाद ने पुछा।
“महाराजा से कहकर इस स्टेट के
खर्चे पर ही मेरी बहन क्रिश्ना को ज़्यादा पढ़ाई के लिए विदेश भेजा जा रहा है, और इस मे महाराजा की स्वीकृति हमारे गंगाधर बाबु ने दिलाई है।
क्रिश्ना विदेश चली जायेगी तो प्रिन्स के हाथो से ज़रूर बच जाएगी और मेरी बहन ज़िंदा
रह पायेगी। क्रिश्ना को सारे हालात से वाकेफ़ किया जा चुका है और वो राज़ी है विदेश
जाने के लिये। तो हमारा भी फ़र्ज़ बनता है की हम विक्रम बाबा को सुधारे और साये की
तरह उनके पिछे रहे।" बंसी ने अपना दिल रख दिया था जैसे ।
“लेकिन क्रिश्ना का बच्चा ?”, नारायणप्रसाद ने सवाल पुछा।
“क्रिश्ना ने आज तक ऐसा काम
ही नही किया की शर्म से उन के खानदान की आबरु गीरे । और पहेले मै भी धोखा खा गया
था । लेकिन मुजे खुद क्रिश्ना ने ही बताया की वो आज तक केवल अपने पिताजी की लालच
की वजह से मजबुर थी।” गंगाधर ने जवाब दिया।
कुछ देर तक वहा शांती छा गइ। गंगाधर अभी भी नारायणप्रसाद की
और उम्मीद से देख रहे थे। और उस ने देखा की नारायणप्रसाद ने अपनी आंखो से ही
स्वीक्रुति दे दी थी।
अब बंसी को दोनो दोस्तो की आँखो मे एक द्रढ निश्चय दिखाई दे
रहा था। और वो सुकुन से चाय के प्यालो के साथ रसोइघर मे वापस मुड गया।
इस तरह से विक्रम का पुरा देखभाल गंगाधरजी के मरने के बाद नारायणप्रसाद
के हाथ मे आया और उधर क्रिश्ना को विदेश भेज दिया गया ता की उसकी जान बच जाए। और तभी
से बंसी चौकन्ना होकर विक्रम का साये की तरह पीछा कर रहा है। लेकिन विक्रम बहुत चालाक
है उसके शौख इतने बढ़ चुके थे की पैसो के लिए उधार लेना भी चालु कर दिया। नारायणप्रसाद
हर वक़्त तो यहा नही रह सकते और बंसी रोज रोज तो उसे खबर नही पहुचा पता।
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“और अब तो उस से भी आगे विक्रम
पहुच चुका है। महाराजा की मृत्यु और प्रिन्स का भी एक्सिडेंट होने के बाद विक्रम की
दोस्ती नामी गुंडो से होने लगी है और बंसी का मान ना है की अब विक्रम शायद कुछ असामाजिक
प्रव्रुत्ती भी करने लगा है। हर रोज़ किसी कोठे पे आनाजाना है । शायद इसी वजह से कुछ
बातचीत करने के लिए विक्रम पिताजी को तीर्थयात्रा पे ले गया था। सुनंदा से शायद वो
प्यार तो करता ही था लेकिन बाबूजी की इच्छा नही थी इसीलिए शायद बंसी को और अब तो मूज़े
भी शक है की सुनंदा की मृत्यु नही बल्कि खून किया गया हो। अकेली सुनंदा ही नही बल्कि
माताजी, और पिताजी की मृत्यु के बारे मे भी कुछ तलाश करनी होगी। ये सब
बाते बताने के लिए शायद वक़्त बहुत कम था क्यूकी अभी 7 दिन पहले ही एक कवर आया और जब
विक्रम ने पढ़ते ही उसे आग मे ज़ॉक दिया और उठकर चला गया तो बंसी ने उस कवर को आग से
निकाला और फोटोग्राफ्स देखकर उसे फ़ौरन शक हुवा की शायद वो कन्याकुमारी के है और सुनंदा
की मेडिकल रिपोर्ट पढ़ी, उसे इंग्लीश आती है और इसीलिए
ये सबकुछ हमे बताने के लिए उसने ही यहा आने पर मूज़े जौर दिया। यहा आया तो वो डाइरेक्ट
तो मूज़े नही बता शकता था क्यूकी विक्रम का डर था और साथ मे अपनी वफादारी से विक्रम
को वो बचाना भी चाहता था और मुज़े बताकर हमारे साथ भी वफ़ादारी निभाना चाहता था इसीलिए
उसने जानबूजकर वो कवर हमारे कमरे मे रखा ता की हम इसे पढे और जिसकी सज़ा उसे एक तमाचे
से हुई है” कहकर किशोरीलाल रुक गया ।
थोडी देर वहा सन्नाटा छा गया । दोनो की आँखो मे आँसू थे। राजेश्वरीदेवी
बोली,”अब आप क्या करोगे ?"
“देखो राजेश्वरी, विक्रम ने अगर गुनाह किया है तो कुछ सज़ा तो ज़रूर भोगतनी होगी
लेकिन मैं चाहता हु बाबूजी और अंकल (गंगाधर) का सपना भी पूरा हो, मेरा मतलब है अगर विक्रम सही रास्ते पर आए तो हमारे लिए और खुशी
की बात कोई नही होगी। वैसे भी वो बाबा की अमृतवाणी याद है ना शायद विक्रम की बेटी से
ही हमारे जय की शादी लिखी हो और आनेवाला युग का कुछ कल्याण हो । और अगर ऐसा है, अगर किस्मत मूज़े इसीलिए यहा खिच लाई है तो मै कोशिश ज़रूर करूँगा।"
द्रढ निश्चय के साथ किशोरीलाल खडा हो गया था ।
“लेकिन अब इस कार्य मे ख़तरा
है”, राजेश्वरीदेवी बोली।
“ख़तरा है तो हमे वो जोखिम उठाना
होगा, इस बेटे के लिए, आनेवाले युग के लिए, और मूज़े विश्वास है की महादेव हमे ज़रूर आशीर्वाद देंगे, मूज़े विश्वास है तुम भी हिम्मत से काम लॉगी और आगे जैसा भी
समय आयेगा तुम मेरा साथ निभाओगी” किशोरीलाल द्रढ विश्वास के साथ
बोला। “बोलो मेरा साथ दोगी ना ?”, किशोरीलाल ने पुछा।
राजेश्वरीदेवी आगे आई और अपने पति की आँखो मे आँखे डाल के बोली,” मैं आप की पत्नी हु । स्त्रीया तो हमेशा से
अग्निपरीक्षा देती आइ है लेकिन् आज पहली बार किसी पुरुष को अग्निपरीक्षा
देते हुए देख रही हु । मूज़े आप का साथ देना ही होगा, चाहे कुछ भी हो जाए,” राजेश्वरीदेवी ने मक्कमता से अपने पति का हौशला बढ़ाया।
और दोनो पति पत्नी गहरी सांस लेके एक दुजे मे खो गये। तभी बंसी
चाय लेकर हाजिर हुवा और उसने दोनो पति पत्नी की आँखो से पता लगा लिया की उन तीनो को
अब कौन से कर्तव्यपथ पर चलना है। उसकी आँखे
भी भीनी हुई और दोनो हाथ जोड़कर उम्र मे छोटी लेकिन कर्तव्य मे उनसे भी बड़ी साबित
हुई ऐसी राजेश्वरीदेवी के पाव छु लिए।
एक पुत्र अपने पिता के कर्तव्यपथ पर चलने के लिए, अपने जिगरी दोस्त को सही रास्ता दिखाने के लिए कटिबद्ध हुवा
था। एक पत्नी अपने पति के कर्तव्यपथ पर बिखरे काँटे पर चलने के लिए
तैयार थी और एक वफ़ादार नौकर बंसी अपने बाबा को बचाने के लिए सबकुछ करने को, जान की बाजी लगाने को तैयार था । लेकिन किशोरीलाल, बंसी और राजेश्वरीदेवी तीनो को कदैव अह्सास नही था की उन सब
की यही ग़लती एक ऐसा सैलाब लानेवाली थी.... जिस सैलाब मे बहुत कुछ बह जानेवाला था।
जाने कहा ????
Pamela
15-Jan-2022 05:12 PM
Kya kahani h jabrdast, Vikram ko raste par lane ke liye sabhi apne apne capacity se trying kr rahe hn
Reply
PHOENIX
15-Jan-2022 05:38 PM
Yes. Everyone trying hard. Even myself also 😀thanks and keep reading.
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Barsha🖤👑
10-Dec-2021 08:02 PM
बहुत अच्छा भाग
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PHOENIX
11-Dec-2021 12:22 AM
धन्यवाद।
Reply
PHOENIX
02-Jan-2022 11:47 AM
Thanks
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Arshi khan
09-Dec-2021 12:04 PM
काफी अच्छी कहानी .... आज हीं सारे भाग पढ़ डाले। अगले भाग की प्रतीक्षा में
Reply
PHOENIX
09-Dec-2021 12:31 PM
ya dekha aap ne sare bhag par aaj hi comments kiye hai. agala bhag jaldi aa raha hai.
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