आकांक्षा: द डेविल्स एंजेल -2
Recap - अब तक आपने पढ़ा सन 1850 में बिलासपुर रियासत के राजकुमार रीवांश विदेश से अपनी पढ़ाई पूरी करके अपनी रियासत में लौट रहे थे। लेकिन रास्ते में उनके चार दोस्तों ने धोखे से उनसे एक तंत्र विद्या करवाकर शैतान को जागृत करवाया। शैतान ने उन पांचों को एक नर पिशाच बना दिया।
कहानी का दूसरा हिस्सा सन 2018 के वक्त की कहानी को दर्शाता है, जहाँ 22 साल की आकांक्षा ठाकुर अपने दादा राजवीर ठाकुर के साथ शिमला में शिफ्ट हुई है। जहां आकांक्षा अपनी दोस्त जानवी से मिलने उसके घर जा रही थी कि उसे रास्ते में एक लड़के की लाश दिखाई दी। अनजाने में जब आकांक्षा का हाथ उस लाश को छूआ, तो ना चाहते हुए भी उसे वह सब घटनाएं दिखाई देने लगी, जो उस लड़के के साथ पिछली रात को हुई थी।
अब आगे....
आकांक्षा उन सब विजुअल्स ( दृश्यों) को देखकर बेहोश हो गयी। आसपास के लोग उसे बेहोश देखकर घबरा गए। उधर जानवी भी आकांक्षा के घर ना आने पर परेशान हो गयी और उसे बुलाने के लिए उसके घर की ओर निकल पड़ी। । घर से निकलते ही जानवी ने देखा कि उसके घर की कुछ दूरी पर भीड़ इकट्ठा थी। जानवी ने उस भीड़ मे जाकर देखा कि वहाँ एक लाश के पास आकांक्षा बेहोश पड़ी थी।
जानवी ने घबराते हुए बोली, "अक्षु.... अक्षु... क्या हुआ तुझे?" वो जल्दी से अक्षु के पास आकर आई और कहा,"ये लड़की मेरी फ्रेंड है। किसी के पास पानी मिलेगा?"
तभी भीड़ के आगे खड़े एक बच्चा ने अपनी बॉटल उसे पकड़ाते हुए कहा, "दीदी मेरे पास है. आप मेरी वॉटर बॉटल ले लो। पता नहीं इन दीदी को क्या हुआ..... जो अचानक से बेहोश हो गई।"
जानवी ने उस बच्चे से जल्दी उसकी पानी बॉटल ले ली।
उसने आकांक्षा के ऊपर पानी छिड़कते हुए कहा, "थैंक यू सो मच बच्चा! अक्षु... अक्षु होश में आ.... ! दद्दू ने तुझे सीधा मेरे घर आने के लिए बोला था। तू भी ना.. . बीच में कहां बेहोशी - बेहोशी खेलने लगी।"
पानी गिरने से आकांक्षा को होश आया। वो खुद को सम्भालते हुए खड़ी होने लगी। उसके कपड़ो पर मिट्टी लग गयी थी।
उसने अपने कपड़े झाड़ते हुए कहा, "पता नहीं यह अजीब से सपने मुझे ही क्यों आते हैं?"
आकांक्षा को लगा कि वह सपना देख रही थी। तभी उसका ध्यान गया कि उसके आसपास के लोग इकट्ठा थे और पास में एक लाश पड़ी थी। इन सब को वहां देख कर उसे समझ आया कि वह कोई सपना नहीं देख रही थी। वह उस लाश को देखकर थोड़ा डर गई।
आकांक्षा ने जानवी का हाथ पकड़कर कहा, "जानवी चल यहां से.... मुझे बहुत अजीब लग रहा है।"
जानवी उसके साथ भीड़ से बाहर आ गई।
"ऑफ कोर्स ... अजीब तो लगना ही है। डेड बॉडी के पास आकर कौन सोता है? तू तो मेरे घर आ रही थी ना ? बीच में कहां रुक गई ?"
आकांक्षा ने चलते हुए कहा, "जैसे तू भीड़ को देखकर यहां आ गई थी, वैसे ही भीड़ को देखकर मैं भी यहां रुक गई थी।
जानवी ने हंसकर कहा, "ओह तो सारा कसूर भीड़ का है। ओके अब जल्दी से घर चलते है। बाकी बातें वहाँ करेंगे।"
आकांक्षा और जानवी दोनों जानवी के घर पर पहुँची। आकांक्षा अपना प्रोजेक्ट बनाने के लिए जानवी के घर पर आती है। लेकिन उसका ध्यान प्रोजेक्ट बनाने में ना होकर उस डेड बॉडी और उससे जुड़े हुए दृश्यों में लगा हुआ था।
जानवी ने देखा कि आकांक्षा सारा काम गलत कर रही थी उसने उसका हाथ पकड़ कर कहा,"अक्षु..! कहां ध्यान है तेरा? सब गलत कर दिया।"
आकांक्षा ने काम को बीच में रोककर बोला, "यार जानवी... पता नहीं क्यों मुझे अजीब- अजीब से विजुअल्स आते रहते हैं।"
आकांक्षा और जानवी को मिले हुए ज्यादा वक्त नहीं मिल पाता फिर भी बहुत कम समय में दोनों की पक्की दोस्ती हो गई थी। वह दोनों एक दूसरे से सभी बातें शेयर करती थी। वह उसी की हम उम्र थी। जानवी और आकांक्षा का स्वभाव एक दूसरे से काफी मिलता था।
जानवी ने उसकी बात का जवाब दिया, "हां मै भी पिछले कई दिनों से नोटिस कर रही हूँ। तू अचानक से बेहोश हो जाती है और उठकर बहकी बहकी बातें करने लगती है। कहीं इसका मतलब यह तो नहीं कि तू किसी का भी फ्यूचर या पास्ट देख सकती है... मुझे हाथ लगा कर देख कर बता ना कि तेरे होने वाले जीजू कौन है.... और कब मिलेंगे मुझे?"
आकांक्षा ने उसकी बात सुनकर हंसते हुए कहा, "ऐसे हाथ लगाने से पता चलता तो मैं खुद के बारे में पता नहीं लगा लेती कि मेरे साथ ये सब कुछ क्या हो रहा है। यह सब अचानक से ही होता है।"
जानवी ने आगे पूछा, "अक्षु..! जब तूने उस लड़के को छुआ था तो तुम्हें क्या दिखाई दिया था?"
"पता नही कैसे अचानक से मेरा हाथ उस लाश को छू गया और मेरी आंखें बंद हो गई। मुझे दिखा जैसे वह लड़का भागे जा रहा है..... और मदद के लिए चिल्ला रहा है। वह किसी जंगल में था और वहां पर बहुत अंधेरा था। तभी एक और लड़का आता है, जिसने काले रंग के कपड़े पहने थे। उसका चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था। वह उसके पास आकर वो उसकी गर्दन पर काटता है और उसका खून पीने लगता है।"
उसकी बात सुनकर जानवी जोर जोर से हंसने लगी।
"अरे ऐसा तो सिर्फ मूवीज और सीरियल्स में ही होता है। तू जिसके बारे में बात कर रही है... वह एक काल्पनिक व्यक्ति होता है। वैंपायर के बारे में नहीं सुना तुमने कभी?"
आकांक्षा ने गहरी सांस लेकर बोला,"हां मैंने थोड़ा बहुत पढ़ा है। लेकिन ज्यादा कुछ नहीं पता इस बारे में....."
जानवी– " इंटरनेट पर सर्च करें इस बारे में?"
आकांक्षा ने जवाब दिया, "कुछ खास नहीं मिलेगा। मैं पहले भी इस बारे में सर्च कर चुकी हूं। वही घिसी पिटी पुरानी बातें सामने आ जाती है।"
"तो क्यों ना हम सिटी लाइब्रेरी जाएं और इस बारे में पढ़ें ? वहाँ जरूर कुछ मिल जायेगा।" जानवी ने सुझाव दिया।
आकांक्षा–"लेकिन जानवी सिटी लाइब्रेरी तो यहां से बहुत दूर है। पता है ना हम सिटी के आउटसाइड जंगलों के पास रहते हैं.... ना कि सिटी एरिया के अंदर। हम आएंगे तब तक बहुत लेट हो जाएगी। वैसे भी मैंने दद्दू को सिर्फ तुम्हारे घर आने का बोला था।"
राजवीर जी को आकांक्षा की इन अप्राकृतिक शक्तियों का पहले से अंदेशा था। यही वजह थी कि वह उसे ज्यादा लोगों से मिलने जुलने नहीं देते और उन्होंने अपने रिटायरमेंट के बाद भीड़भाड़ वाले इलाके से दूर जंगलों के पास अपना घर लिया था। आकांक्षा भी उनकी हर बात बिना किसी सवाल किए मानती थी।
जानवी– "मैं दद्दू को कॉल कर के बोल दूंगी ना कि तू रात को मेरे घर पर रुक रही है।"
"जैसे तुझे कुछ पता ही नही.. कि दद्दू मेरे फोन का जीपीएस एनी टाइम ऑन रखवाते हैं। जैसे ही हम जाएंगे..... उन्हें पता चल जाएगा।" आकांक्षा ने मुंह बना कर कहा।
जानवी– "तुम सिंगल हो ना ?"
जानवी अक्सर उटपटांग सवाल पूछती रहती थी। आकांक्षा ने हंसकर जवाब दिया, "हां... पर तू यह क्यों पूछ रही है? तुम्हें तो सब पता है ना।"
जानवी–" तो तुम्हें दद्दू के अलावा कौन कॉल करेगा? तू अपना फोन घर पर छोड़ दे। ,दद्दू को लगेगा कि तु घर पर ही है। पहले हम उनसे बात कर लेंगे कि तू रात को यहीं पर रुकेगी। उसके बाद में यह मैसेज छोड़ देंगे कि हम पढ़ाई कर रहे हैं, तो कॉल करके हमें डिस्टर्ब ना करें। तू बिल्कुल फिक्र मत कर, हम लोग शाम तक वापिस भी आ जाएंगे।"
आकांक्षा ने कहा, "पता नहीं तू इतने उल्टे सीधे प्लांस बना कैसे लेती है? लेकिन मैं इसके बारे में जानना चाहती हूं, वरना तेरे इन प्लांस मे कभी तुम्हारा साथ नही देती।"
जानवी ने तिरछी मुस्कुराहट के साथ कहा, "तो चल..! सिटी लाइब्रेरी चलते हैं।"
आकांक्षा ने राजवीर जी को फोन करके रात को जानवी के घर रुकने की परमिशन ली। उन्होंने बिना किसी सवाल के उसे हाँ कह दी। वैंपायर के बारे में और ज्यादा जानने के लिए आकांक्षा और जानवी दोनों सिटी लाइब्रेरी गए। वो वहाँ पहुँचे तब शाम के लगभग 4 बज रहे थे।
सिटी लाइब्रेरी......
वह लोग वहां पहुंचे तब लाइब्रेरी बंद होने का समय हो रहा था। वहां पर ज्यादा भीड़ मौजूद नहीं थी।
आकांक्षा ने घड़ी में समय देखकर कहा,"मैंने कहा था ना कि हम लेट हो जाएंगे। यहां पर पहुंचते पहुंचते ही हमें 4:00 बज गए हैं। कब तो हम अपनी रिसर्च करेंगे और कब वापस जाएंगे .... पता नहीं यहां पर कुछ मिलेगा भी या नहीं ....."
जानवी ने जवाब दिया, "अरे तुम नहीं जानती यह शिमला की सबसे पुरानी लाइब्रेरी है। यहां पर सभी तरह की बुक्स अवेलेबल है। यहां तक की शिमला के इतिहास से लेकर,,,,, हर एक राजा के जीवन के बारे में भी बुक मिल जाएगी। चल देखते हैं।
आकांक्षा को हमेशा से ही पढ़ने का शौक रहा था। उसने लाइब्रेरी में किताबों की तरफ देखकर कहा, "व्हाव... !! अगर मुझे लेट नहीं हो रही होती तो मैं यहां पर बैठकर सारी किताबें पढ़ लेती। चल अब जल्दी से पता लगाते है।"
आकांक्षा और जानवी लाइब्रेरियन के पास गयी।
आकांक्षा ने वहाँ जाकर बोला,"सुनिए सर! हमें वैंपायर से रिलेटेड बुक्स चाहिए।"
जानवी ने उसकी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, "हाँ... अगर आपको और भी सुपरनैचुरल करैक्टर के बारे मे पता हो, तो उससे जुड़ी बुक्स भी चाहिए।"
वहां के लाइब्रेरियन ने उन दोनों को देखा और फिर अपना चश्मा ऊपर करके कहा,"लगता है पूरा शिमला आजकल वैंपायर के बारे में पढ़ रहा है। यहां पर वैंपायर मेरा मतलब है कि पिशाचों के जीवन से जुड़ी हुई सिर्फ दो या तीन ही किताबे थी। वह भी 2 दिन पहले किसी ने सेंशन करवा ली थी। 1 दिन का बोल कर गया था, लेकिन अभी तक किताबे वापस नहीं की है। जो नंबर देकर गया था, वह नंबर भी नहीं लग रहा है। पता नहीं कैसे कैसे लोग होते हैं..... पहले तो किताबें ले जाते हैं और फिर उन्हें वापस नहीं करते हैं। अगर वापस करते भी हैं, तो उन्हें फाड़ देते हैं .... या उनका कोई पेज निकाल लेते हैं।"
"प्लीज सर हमारे लिए बहुत जरूरी है वैंपायरस् के बारे में जानना। प्लीज कोई और किताब होगी आप एक बार देखिए तो सही। " आकांक्षा ने उससे रिक्वेस्ट की।
लाइब्रेरियन ने मुँह मे पान चबाते हुए कहा, "तुम तो इस तरह बिहेव कर रही हो, जैसे वैंपायर से 1 घंटे पहले ही मिली हो..... और अब उसके बारे में जानना चाहती हो।"
आकांक्षा और जानवी ने उसकी तरफ देख कर मुंह बनाया।
जानवी–"क्या किसी और लाइब्रेरी में वैंपायर की लाइफ से जुड़ी हुई बुक मिल सकती है?"
लाइब्रेरियन ने जवाब मे कहा, "बुक तो नहीं मिल सकती.... लेकिन हां अगर वैंपायर की कहानी के बारे में जानना है, तो यहां के पुराने लाइब्रेरियन है और वो नीचे ऑफिस में बैठे होंगे। यहाँ रोज बुक्स पढ़ने आते है। उनसे जाकर पूछ लो उन्होंने काफी रिसर्च की है इस बारे में।"
जानवी और आकांक्षा जल्दी से निकल गई और लाइब्रेरी के पुराने लाइब्रेरियन मोहन दास गुप्ता से मिले।
मोहन दास गुप्ता एक 75 साल के व्यक्ति थे, जो कद में छोटे लेकिन तजुर्बे में बहुत ही बड़े थे। मोहनदास जी ने उस लाइब्रेरी में लगभग 40 सालों तक काम किया था। इन 40 सालों में उन्होंने खूब पुस्तकें पढ़ी। रिटायर होने के बावजूद आज भी पुस्तको के प्रति प्रेम उन्हे लाईब्रेरी तक खींच लाता था।
आकांक्षा ने हाथ जोड़कर कहा, "नमस्ते सर ... हमें आपसे बहुत जरूरी बात पूछनी थी।"
उनके जवाब का इंतजार किए बिना जानवी झट से बोली, "क्या आप वेंपायर आई मीन पिशाच के बारे में कुछ जानते हैं? एक ऐसा प्राणी जो किसी का खून पीकर जिंदा रहते हैं।"
मोहनदास जी ने अपनी नजरे उठाकर कहा,"अरे.. अरे लड़कियों शांत हो जाओ। यह लाइब्रेरी है.... यहां पर इतना शोर कर ने की अनुमति नहीं है।"
आकांक्षा ने अपनी आवाज को थोड़ा धीमा किया और कहा, "प्लीज सर आप हमें उनके बारे में कुछ बताएंगे।"
मोहनदास जी वहां बैठकर किताब पढ़ रहे थे। उन्होंने अपनी किताब को बंद की और कहा,"चलो आओ बैठो दोनों... चाय पिओगी?"
जानवी ने मुस्कुरा कर कहा, "चाय के लिए पूछा नहीं जाता सर..... डायरेक्ट मंगवाई जाती है।"
आकांक्षा– "हां चाय पीते पीते वैंपायर के बारे में जानने में तो और भी मजा आ जाएगा।"
उनकी बात सुनकर मोहनदास जी मुस्कुराए और उन्होंने उन दोनों के लिए चाय मंगवाई।
उन्होंने दबी आवाज मे आगे बोला,"इस लाइब्रेरी में नर पिशाच से जुड़ी हुई लगभग 10 किताबें थी। लेकिन जो भी उन किताबों को यहां से लेकर गया, वह उन्हें लौटाने कभी भी नहीं आया। अभी सुबह ही मेरी ध्यानचंद से बात हुई थी, जो कि अभी इस पुस्तकालय को संभालते हैं। 2 दिन पहले कोई लड़का आया था। जिसने बची हुई तीन किताबें थी, वह भी ले गया। 1 दिन का कह कर गया था, लेकिन अभी तक नहीं आया। जो नंबर देकर गया था, वह भी अभी तक बंद आ रहा है। मुझे तो डर है कि उसके साथ भी कोई अनहोनी तो नहीं हो गई।"
उनकी बात सुनकर जानवी और आकांक्षा थोड़ी घबरा गई। फिर भी वैंपायर के बारे में जानने की जिज्ञासा मे उन दोनों ने वहीं पर रुकने का फैसला किया।
जानवी ने पूछा, "तो क्या अब हम पिशाचों के बारे में कभी नहीं जान पाएंगे।?"
मोहनदास जी– "नहीं लड़कियों..! ऐसा भी कुछ नहीं है कि तुम नहीं जान पाओगी। जितना मैंने इनके बारे में पढ़ा है उतना तो मैं तुम्हें बता दूंगा।
आकांक्षा ने कुछ बोलने के लिए मुंह खुला कि तभी एक लड़का उनके लिए चाय लेकर आया। मोहनदास जी उसके सामने उन दोनों को चुप रहने का इशारा किया। लड़के ने चाय रखते समय उन दोनों की तरफ देखा। मोहन दास जी ने उसे तुरंत पैसे देकर वहां से भेज दिया।
उसके जाते ही मोहनदास जी ने कहा," साइंस इस बात में बिल्कुल भी विश्वास नहीं करता कि वैंपायर जैसा कोई भी प्राणी इस धरती पर है। साइंस उनके अस्तित्व को पूरी तरह से नकार चुका है। तुम तो आजकल की बच्चियां हो... फिर भी पिशाच के बारे में क्यों जानना चाहती हो?"
"वो हमें कॉलेज में एक असाइनमेंट मिला है, तो हम उसके बारे में लिखना चाहते थे। बस इसीलिए..!" आकांक्षा ने झूठ बोला।
मोहनदास जी ने हँसते हुए कहा,"हां तभी मैं सोचूं कि आजकल के बच्चे कहां वैंपायर, पिशाच, डायन और चुड़ैलों में मानते हैं। हाँ तो सुनो... इतिहास के अनुसार पिशाच ना तो जीवित और ना ही मृत प्राणी होते हैं। जीवित इसलिए नहीं होते क्योंकि उनके अंदर आत्मा नहीं होती.... और मृत इसलिए नहीं होते क्योंकि उनका शरीर कभी नष्ट नहीं होता। कहा जाता है कि पिशाच एक शापित जीवन व्यतीत करते हैं। उनकी कभी मौत नहीं होती.... मेरे कहने का मतलब है उनका शरीर कभी नष्ट नहीं होता। पर मैं नहीं मानता इस बात को... जिस चीज का जन्म हुआ है उसका विनाश होना तय है।"
जानवी ने हैरानी से पूछा, "तो क्या पिशाच को भी मारा जा सकता है?"
मोहनदास जी ने जवाब दिया, "हां..! बिल्कुल मारा जा सकता है। लेकिन कैसे मारा जा सकता है..... इस बारे में मैं तुम लोगों की कोई मदद नहीं कर सकता। ये लोग किसी जीवित प्राणी का खून पीकर जिंदा रहते हैं। इनकी उम्र कभी नहीं बढ़ती। यह जिस उम्र में पिशाच बनते हैं, इनकी उम्र वहीं ठहर जाती है।"
आकांक्षा ने पूछा, "कोई भी व्यक्ति कैसे पिशाच बनता है?"
"मुझे ज्यादा कुछ तो नहीं पता ..... लेकिन उनकी भी कुछ शैतानी प्रक्रियाएं होती हैं। कुछ लोग इन प्रक्रियाओं को दोहरा कर शैतान को बुलाते हैं और उनसे शक्तियां मांगते हैं। कहते हैं ना बुराई अगर कुछ देती है, तो उसकी कीमत लेती है। शैतान बदले में इनकी आत्माओं को अपना गुलाम बना लेता है और छोड़ देता है इनके शरीर को एक शापित जीवन जीने के लिए.... बस मुझे इतना ही पता था, जो कि मैंने तुम दोनों को बता दिया।" मोहनदास जी उनके हर एक सवालों का जवाब दे रहे थे। उन्हें ज्यादा तो नहीं पता था लेकिन पिछले कुछ सालों में वहां लाइब्रेरी में रहते हुए उन्होंने इस बारे में काफी किताबें पढ़ी थी। उनका वही ज्ञान यहां आज काम आ रहा था।
आकांक्षा और जानवी मोहनदास जी से पिशाचों के बारे में सुनकर थोड़ा घबरा गयी। तभी आकांक्षा का ध्यान समय की तरफ ध्यान गया तो रात के 8:30 बज रहे थे।
आकांक्षा ने घबराते हुए कहा, "जानवी हमें लेट हो रहा है। जब तक घर पहुंचेंगे, उतने में तो 10:00 बज जाएंगे।"
जानवी ने आँखे बड़ी करके बोला,"इनकी बातें सुनने के बाद तो और भी डर लग रहा है। कहीं रास्ते में हमें पिशाच मिल गए और हमारे खून से अपनी आज रात की पार्टी कर ली तो.....!"
मोहनदास जी उन दोनों की बातों को सुनकर हंसने लगे।
"तुम आजकल के बच्चे भी ना.... बस हर चीज मजाक में लेते हो। आजकल की दुनिया मे पिशाचों का कोई अस्तित्व नहीं है। अब बिना डरे घर चले जाओ। ये सब बस किस्से–कहानियाँ है।" मोहनदास जी ने उनका डर खत्म करने के लिए उन्हे समझाया।
मोहन दास जी की बात सुनकर आकांक्षा और जानवी को थोड़ी संतुष्टि महसूस हुई कि पिशाचों का कोई अस्तित्व नहीं होता और बिना डरे वह दोनो घर की ओर निकल पड़ी।
उनके जाते ही मोहनदास जी ने गंभीर स्वर मे कहा, "भगवान इन बच्चियों की रक्षा करें। भले ही मैंने इन्हें कह दिया हो कि पिशाचों का कोई अस्तित्व नहीं होता.... लेकिन जंगल में रोजाना किसी न किसी की लाश मिल रही है। उनकी मौते भी एक अलग ही रहस्यमय तरीके से हो रही है। ऐसे मे कौन कह सकता हैं कि पिशाचों का आज भी कोई अस्तित्व नहीं है।"
क्रमशः....!
shweta soni
26-Jul-2022 07:18 PM
Achhi rachana
Reply
Punam verma
29-Apr-2022 09:33 AM
Nice
Reply
🤫
07-Dec-2021 09:51 PM
बेहतरीन.... कहानी बुनी जा रही हैं..। लगता है हॉरर के साथ आपका गहरा नाता जा रहा है...
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