आर्य और काली छड़ी का रहस्य-2
अध्याय 1
12 साल बाद
भाग-1
★★★
यह एक भिन्नी सुबह थी। मीठी और फूलों की खुशबू मिली हुई सुबह। परिदृश्य जंगल के थे। जहां घने पेड़ों के बीच बने हुए एक घर के चारो और सुंदर बाग जैसे फूल, लंबे छरहरे पेड़ पौधों की छाया, और सूखे पत्तों की मोटी चादर जो जमीन पर बिछी हुई थी, मौजूद थी।
आर्य एक 16 साल का अपरिपक्व युवक था। रंग गोरा मगर कमजोर शरीर। नीले रंग की आंखें, लंबे भूरे बाल जो उसके माथे को भी ढकते थे, टोढी थोड़ी लंबी थी, और गाल अंदर की ओर धंसे हुए। लेकिन इसके बावजूद उस में अलग तरह का आकर्षण था।
सुबह के इस समय वातावरण में एक खुशबू उसके द्वारा बनाए जाने वाले खाने की भी थी। जिस घर में खाना बन रहा था वह घर कुछ ज्यादा खास नहीं था। छोटा लकड़ी का बना हुआ घर, जिसमें 2 कमरे, एक रसोई और एक बरामदा था। घर के बाहर 4 सीढ़ियां बनी हुई थी तो नीचे की ओर उतरती थी।
बरामदे में एक लंबा गोल मेज था जिस पर बैठा विष्णुवर अपनी उम्र के आखिरी पड़ाव में खाने का इंतजार कर रहा था। इंतजार में उसकी आंखों के सामने वह दृश्य घूम रहे थे जहां घोर अंधेरा था। उसके पीछे अंधेरे के नुमाइंदे लगे हुए थे। और वह अपनी जान बचाने के लिए खाई में कूद गया था। उस समय वह खुशकिस्मत था, क्योंकि जब वो खाई में कुदा तो वह वहां एक पेड़ से जा लटका था। ऐसे पेड़ से जो जमीन से ज्यादा ऊंचा नहीं था। इस वजह से उसकी जान बच गई और उसके साथ-साथ बच्चे की भी। वह इसे बच्चे का करिश्मा मानता था। यानी की आर्य का करिश्मा। भविष्यवाणी उसे लेकर हुई थी, तो उसे आम तो किसी भी नजर में नहीं कहा जा सकता।
जल्द ही आर्य खाना लेकर बाहर आया और बोला “बाबा, गरमा गरम खाना तैयार है। चलिए अब जल्दी से जल्दी से खाना शुरु कीजिए।”
आर्य के बोलते ही विष्णुवर अपनी पुरानी यादों से बाहर आ गया। उसने खाने की तरफ देखा और कहा “तुम भी अपनी प्लेट ले आओ आर्य... काफी दिनों से हमने साथ में खाना नहीं खाया।”
यह बात सच थी। आर्य हमेशा अपने बाबा के खाना खाने के बाद ही खाना खाता था। उसने हामी भरी। “मैं अभी लेकर आता हूं...” इसके बाद वह पलक झपकते ही अंदर गया और वापस बाहर आ गया। उसका अंदर जाना और वापस बाहर आना करिश्में के तौर पर हुआ था। वह इसे हवा से भी तेज चलना कहता था। विष्णुवर उसकी इस तेज चलने वाली गति को भी को तब से देखता आ रहा जब से आर्य ने अपनी उम्र के आठवें साल में पड़ाव रखा था। वह इसे लेकर कई तरह के सिद्धांत बना चुका था। एक तो आर्य ऐसे समुदाय से आता था जो खास तरह की क्षमताए रखते थे। इसमें उनके मां-बाप की खूबी भी शामिल थी। जिनके रहस्य अज्ञात है। एक वह भविष्यवाणी के हिसाब से पैदा हुआ था, तो उसका अलग होना किसी तरह का आश्चर्य नहीं था।
जल्द ही दोनों एक-दूसरे के आमने-सामने बैठकर खाना खाने लगे। खाना खाते हुए आर्य बोला “बाबा, आपको पता है आज कल मैंने एक नई चीज की खोज की है। मैंने सुबह चाय बनाते वक्त इस बात पर ध्यान दिया, कि मेरा हाथ आग में नहीं चलता। यह कुल मिलाकर मेरी चौथी ऐसी खूबी है जो मुझे इस साल देखने को मिली। ठंड का एहसास तो पहले ही नहीं होते थे, और अब आग के एहसास भी नहीं होते।”
विष्णुवर ने गहरी सांस ली “अभी तो और भी बहुत कुछ है जो तुम्हें अपने आप में देखने को मिलेगा। मेरे ख्याल से 21 साल के होने तक तुम अपनी सारी क्षमताओं को जान जाओगे।”
“वह तो ठीक है बाबा। लेकिन मेरे साथ ऐसा हो क्यों रहा है। आपने मुझे अभी तक नहीं बताया कि इन सब की वजह क्या है?”
अचानक विष्णुवर के हाथ खाना खाते-खाते रुक गए। उसने कई बार आर्य को इन सब के पीछे की वजहों के बारे में बताने का फैसला किया था। लेकिन हर बार यही सोचा कि आर्य अभी छोटा है, जब तक वह 20 साल के आस पास नहीं पहुंच जाता तब तक उसे इस बारे में ना हीं बताया जाए। कहीं ऐसा ना हो जब वह इस बारे में जाने, तो पूरी तरह से टूट जाए, या कमजोर पड़ जाए, या फिर डर जाए अथवा डगमगा जाए। उसे नहीं पता था आने वाले समय में उसका मुकाबला किससे होने वाला है। उसे अंधेरे से लड़ना था। दुनिया की सबसे बड़ी ताकत अंधेरे से।
आर्य दुबारा बोला “क्या इसमें कोई खास बात है बाबा...?”
विष्णुवर सोच में डूबा हुआ था तो उसने अपनी सोच से निकलते हुए कहा “नहीं बेटा। इसमें कोई खास बात नहीं है। मगर इतना जरूर है, संसार में कुछ चीजें हमेशा अद्भुत होती है। अद्भुत और दूसरों से बिल्कुल अलग। उन चीजों को हम कीमती या अनमोल कहते हैं। तुम ऐसी ही चीजों में से एक हो। बिल्कुल अलग। कीमती। यही वजह है कि तुममें यह सब गुण है। ऐसे गुण जो किसी में नहीं होते। और तुम्हें आगे आने वाले समय हमेशा इस पर नाज होगा।”
“आगे आने वाले समय का तो पता नहीं मगर अभी इस समय मैं अपनी इन चीजों को लेकर काफी दुविधा में रहता हूं। दिमाग पर बोझ सा बना रहता है। यह क्या है क्या नहीं...”
विष्णुवर इस बात को समझ सकता था। किसी 16 साल के बच्चे के पास रहस्यमई शक्तियां होंगी तो उस पर क्या बीतेगी, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। विष्णुवर ने उसे दिलासा देते हुए कहा “तुम्हें धीरे-धीरे इसकी आदत लग जाएगी। समय सभी चीजों को ठीक कर देता है। चलो अब खाना खा लो। खाना खाने के बाद हमें जंगल में भ्रमण के लिए जाना है।”
जंगल में भ्रमण ऐसी चीज थी जिन्हें वह रोजाना करते आ रहे थे। दिन में खाना खाने के बाद वह हमेशा जंगल में भ्रमण के लिए जाते थे। कभी पहाड़ो पर, कभी पेड़ पौधों की गहराई में, तो कभी कहीं और। वहां कभी-कभी आर्य अपनी क्षमताओं को भी आजमाता था। लेकिन आज बाहर का मौसम कुछ ठीक नहीं था। बाहर काले बादल उमड़ रहे थे जो बारिश और तूफान का प्रतीक थे। साथ में किसी और चीज का भी। अंधेरा....!
Horror lover
18-Dec-2021 04:35 PM
Bahut achchi kahani h
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रतन कुमार
17-Dec-2021 06:05 PM
Behtarin kahani ki shuruat badhai ho ap ko
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राधिका माधव
10-Dec-2021 10:08 PM
Very nice story....!!
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