AMAN AJ

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आर्य और काली छड़ी का रहस्य-3

अध्याय 1
    12 साल‌ बाद
    भाग-2

    ★★★

    ठंडी हवाओं का सिलसिला जंगल में भी जारी था। लंबे पेड़ों के बीच आर्य और विष्णुवर एक दूसरे के आगे पीछे वहां बनी पगडंडी पर टहल रहे थे। आर्य के हाथ में लकड़ी का लंबा ठंडा था जिससे वह बीच-बीच में आने वाली झाड़ियों को इधर-उधर कर रहा था।

    आर्य चलते हुए अपने बाबा से बोला “बाबा... आपको याद है आपने मुझे एक बार कहानी सुनाई थी। कुछ खतरनाक और अच्छे लोगों की कहानी।”

    विष्णुवर कहानी के बारे में सोचने लगा। वह कहानी नहीं बल्कि हकीकत थी। विष्णुवर ने उसे शैतानी दुनिया के बारे में बताया था। एक ऐसी दुनिया जो हमारी दुनिया से अलग कहीं दूर किसी कोने पर हैं। वहां जितनी भी बुरी शक्तियां है वह रहती हैं। कोई भी इस कहानी पर यकीन नहीं करता, लेकिन यह एक असली हकीकत थी।

    विष्णुवर बोला “हां बेटा। मुझे वह कहानी अच्छे से याद है।हमारे समाज में तीन तरह के लोग रहते हैं। पहले इंसान, दूसरे बुरी आत्माएं जिनमें हर एक बुरा शैतान शामिल है, और तीसरे शैतानों से लड़ने वाले लोग। बुरी आत्माओं का मकसद इस दुनिया पर कब्जा कर अपना साम्राज्य बसाना है। जिसके लिए जरूरी है वह अंधेरे के शहंशाह को इस दुनिया पर लेकर आए। अंधेरे के शहंशाह के आने से इंसानों में खोफ फैलेगा... वहीं उनकी सेना को ताकत मिलेगी... और वह इंसानों पर कब्जा कर लेंगे। लेकिन उनसे लड़ने वाला समुह उन्हें ऐसा करने नहीं दे रहा। उनकी वजह से शैतान अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाते। उन्होंने शैतानो की दुनिया के रास्ते को खास जादुई ताकतों से बंद कर दिया, जिसे खोलने के लिए दो छड़ियों की आवश्यकता है। हालांकि सब जानते हैं शैतानों को आने से नहीं रोका जा सकता। जिसके पीछे के कई कारण हैं। एक तो शैतानों की संख्या बहुत ज्यादा है, और एक उनके पास जो ताकत है वह दूसरे लोगों के पास नहीं। इस वजह से उनसे लड़ने वाले काफी कम लोग हैं। और उनमें उन लोगों की संख्या और भी कम है जिनके पास अलग तरह की ताकत हो। गिनती के चार या पांच। इस समस्या से निपटने के लिए शैतानों से लड़ने वाले लोगों ने ताकत को बढ़ाने के लिए एक अलग जगह की स्थापना की, जो हिमालय में बर्फीले पहाड़ों के बीच में बनी हुई है। सब उस जगह को वर्ष वर्धन नाम से जानते थे। वहां नए छात्राओं को शामिल किया जाता, और फिर जादू और तलवार से लड़ने वाली दूसरी चीज़ें सिखाते थे।”

    “जादू...” अचानक आर्य ने हैरत से कहा “मगर क्या आपको लगता है जादू जैसी चीजें संभव है... और फिर वहीं अगर शैतानों को रोकने की कोशिश नाकामयाब हो गई.... और उनका शहंशाह दुनिया पर आ गया तो क्या होगा... क्या वह अपने मकसद में कामयाब हो जाएगा...”

    विष्णुवर एक साथ दो सवालों से घिर चुका था। उसने पहले सवाल का जवाब देते हुए कहा “देखो जहां तक बात जादू की है, तो तुम्हारे पास जो क्षमता वह भी एक ऐसी क्षमता है जिस पर कोई यकीन नहीं कर सकता। अगर उसका वजूद है तो जादू का भी वजूद है। रही बात शैतान की दुनिया पर आ जाने की, तो इसे लेकर एक भविष्यवाणी है। भविष्यवाणी में कहा गया है कि कोई खास तरह का लड़का... जब 21 साल का हो जाएगा... तो वह शैतान को मार सकता है... तब इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता वह दुनिया में आए या ना आए...। लेकिन आश्रम के लोग ऐसा नहीं होने देना चाहते। उनकी कोशिश तो यही है कि वह शैतान को दुनिया पर ही ना आने दे। एक तरह से ना रहेगा बांस.... ना बजेगी बांसुरी। मतलब जब दुनिया पर किसी तरह का खतरा ही नहीं आएगा... तो भविष्यवाणी का कोई मतलब नहीं रह जाता।”

    “आह... मतलब आपके यह आश्रम वाले लोग काफी समझदार हैं। वह नियति को बदलने की कोशिश कर रहे हैं। जिसका सीधा-साधा दूसरा मतलब निकल कर आता है, मुसीबत के इलाज से बेहतर, मुसीबत को ही मत आने दो।”

    विष्णुवर हंस पड़ा। “यहां धागे के दो छोर एक जैसे हैं बेटा। कहीं से भी पकड़ लो चीज एक ही मिलेगी। संभावनाओं को नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता ना।”

    दोनों ही चलते चलते एक ऐसी जगह पर आ गए थे जहां उनके ठीक सामने खूबसूरत झरना बह रहा था। झरने का पानी ऊंचाई से गिरते हुए एक मनमोहक आवाज पैदा कर शानदार दृश्य का निर्माण कर रहा था। झरने के आस पास काफी सारे रंग बिरंगे फूल थे। जिन पर तितलियां उड़ रही थी।

    आर्य ने लंबी अंगड़ाई लेते हुए कहा “हमारा घर शायद दुनिया की सबसे खूबसूरत जगह के पास मौजूद घर है। इस तरह के खूबसूरत झरने का दृश्य.... शायद ही किसी को अपने घर के पास देखने को मिले। मेरा तो अब नहाने का मन करने लगा है।”

    विष्णुवर ने अपने सामने बहते पानी को देखा। “मेरे ख्याल से तुम्हारा यहां नहाना ठीक नहीं। यहां का पानी शांत है, बहाव में तेजी नहीं, इस तरह के पानी में मगरमच्छ अधिक संख्या में मौजूद रहते है। कोई भी धोखे से तुम पर हमला कर सकता है।”

    आर्य यह सुनकर हल्के से हंसने लगा “आपको पता है ना बाबा मैं कौन हूं। और मुझ में क्या क्या खास है। मुझे ठंड नहीं लगती, गर्मी नहीं लगती, यह नई बात है। मगर मुझे जख्म भी नहीं होते यह तो काफी पुरानी बात है। आप इसे कैसे भूल गए।”

    यह सुनकर विष्णुवर ने उसे समझदार शिक्षक के नजरिए से देखते हुए कहा “बेटा, तुम्हारी यह खासियत इसलिए नहीं कि तुम किसी खतरों से भरी जगह में खुद को एक शिकार की तरह डाल दो। तुम्हें अपनी इस आदत को बदलना होगा। अपनी ताकत को जानते हुए भी खतरों से सावधान रहना होगा। ऐसे रहना होगा जैसे तुम एक आम इंसान हो। तुम्हारे रहने सहने का तरीका, तुम्हारा लोगों से बोलने का तरीका, कठिन परिस्थितियों का सामना करने का तरीका, यह चीज तुम्हें महान बनाएगी,  ना कि तुम्हारी क्षमताएं। वो बस महज तुम्हारी मदद के लिए है। अगर तुम इसे लेकर महत्वकांक्षी हो गए, तो हो सकता है किसी मुकाबले में तुम्हें मुंह के बल मात खानी पड़ी।”

    आर्य ने झुके हुए चेहरे से हामी भरी “मैं आपकी बात का मतलब समझ गया बाबा। आप यही कहना चाहते हैं ना की, मुझे अपने खास क्षमताओं का हर वक्त इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। बल्कि उन्हें जरूरत के हिसाब से सही वक्त पर आजमाना चाहिए।” इसके बाद वह झरने की तरफ देखता हुआ बोला “आपका कहना सही है। मैं नहाने के लिए किसी सुरक्षित जगह की तलाश करता हूं.... शायद झरने के सबसे पास की जगह ज्यादा बढ़िया रहेगी। वहां पानी का बहाव तेज है तो खतरनाक मगरमच्छ हमला नहीं करेंगे।”

    ★★★

    आर्य ने झरने के पास एक सुरक्षित जगह की तलाश की और स्नान करने लगा। वहीं उसके बाबा विष्णुवर झरने से थोड़ी दूर एक पत्थर की चट्टान पर जाकर बैठ गए। वह खुद को थका हुआ महसूस कर रहे थे। शारीरिक तौर पर नहीं बल्कि मानसिक तौर पर। आर्य जैसे लड़के का उनके कंधों पर भार उन्हें थका रहा था। वह यह बात अच्छे से जानते थे की उन्हें आर्य की जिस जिम्मेदारी का निर्वाह करना है वह उसके लायक नहीं, उसे किसी लड़ाई के लिए तैयार करना उनके वश की बात नहीं। इसके लिए उसे वहां जाना चाहिए जिसके लिए वह बना है। मगर वो उलझन में थे। वो सही और उचित समय के माया जाल में उलझे हुए थे। क्या सही रहेगा क्या नहीं... इसका फैसला करना यह उनके वश की बात नहीं थी।
    
    आर्य को देखने के साथ-साथ उन्होंने अपनी जेब में हाथ डाला और टटोलते हुए कुछ बाहर निकाला। वह एक अंगूठी थी। एक छोटी सुनहरे रंग की अंगूठी जो बीच बीच में सूरज की किरणों की वजह से चमक रही थी। उन्होंने अंगूठी को देखते हुए कहा “आर्य... यह अंगूठी तुम्हारे सफर की शुरुआत के लिए बनी है। एक ऐसे सफर की शुरुआत के लिए जहां तुम्हें हजारों मुसीबतों से गुजरते हुए मंजिल तक पहुंचना है। ताकतवर दुश्मनों का सामना करना है। लेकिन तुम इस रास्ते पर कब निकलोगे, इसका फैसला या तो तुम खुद करोगे, या यह वक्त...। इन दोनों के सिवा कोई भी तुम्हारे इस सफर को शुरू नहीं करेगा।”
    
    वह अभी बात ही कर रहे थे कि उन्होंने देखा ऊपर का आसमान अविश्वसनीय तौर पर काला होता जा रहा है। उन्होंने अब तक कई दफा काले बादलों को आसमान में आते हुए देखा था, मगर जिस तरह से आज काले बादल अचानक से पूरे आसमान को ढक रहे थे, यह हैरतअंगेज था। कुछ समय पहले जो धूप नजर आ रही थी वह गायब होती जा रही थी। ‌ धूप की जगह ऐसा मौसम हो रहा था जैसे शाम पूरी तरह से ढल चुकी हो। 
    
    विष्णुवर अचंभित होते हुए अपनी जगह से खड़ा हो उठा। 
    
    वहीं आर्य पानी में नहा रहा था, तो नहाते नहाते उसने ऊपर आसमान की तरफ नजर डाली। आसमान के गहरे काले रंग को देखकर वह भी हैरान हो गया था। लेकिन उसकी हैरानी तब और ज्यादा बढ़ गई जब उसने इससे भी हैरतअंगेज कुछ और देखा। 
    
    जिस पानी में वह नहा रहा था वह पूरा का पूरा पानी काला पड़ गया। आर्य यह देखकर घबरा गया। उसने तुरंत तेजी दिखाई और पानी से निकलकर बाहर विष्णुवर के पास आ गया। 
    
    आर्य पानी से बाहर आने के बाद झरने की तरफ देखते हूए बोला “बाबा.... झरने का पानी ऊपर से लेकर नीचे तक पूरा काला पड़ चुका है। आखिर यह सब हो क्या रहा है? क्या हम किसी तरह की मुसीबत में फंसने वाले हैं? मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा।”
    
    विष्णुवर के माथे पर सिलवटें आती जा रही थी। उसकी बुढी चमड़ी सिकुड़ रही थी। शायद वह जान चुका था यह घटना क्यों घट रही है। यह प्रतीक था, एक सूचना, शैतानों के आने की।
    
    “अरे.....तो हमारे कुछ दोस्तों यहां छुपे बैठे हैं.... देखो तो जंगल में अपने छुपने के लिए इन्होंने कौन सी जगह ढूंढी। झरने के नीचे.... फूलों के बीच... ” अचानक उनके ठीक पीछे हवा के अंदर कुछ अंधेरी परछाइयां प्रकट हुई और उनमें से एक अंधेरी परछाई बोली।  
    
    आवाज सुनते ही आर्य और विष्णुवर पीछे की तरफ पलट गए। उनके ठीक सामने काले चोगों में छह अंधेरी परछाइयां खड़ी थी, जिनके चेहरे नहीं थे, बल्कि उनके चेहरों की जगह काला धुआं तेर रहा था। 
    
    आर्य ने इस तरह की प्रजाति अपनी अब तक की उम्र में कभी नहीं देखी थी। उन्हें देखते ही उसका डरना जायज था। वह थोड़ा सहमता हुआ बोला “बाबा.... मुझे... मुझे यह खतरनाक लग रहे हैं.... हमें यहां से भागना चाहिए।”
    
    विष्णुवर ने आर्य का हाथ पकड़ा और कहा “शांत रहो। मुझे पता है तुमने यह सब आज से पहले कभी नहीं देखा। इसलिए तुम्हारे मन में डर है। लेकिन मैं इनका कई बार सामना कर चुका हूं। बस तुम डरना मत। और जैसा मैं कहूंगा वैसा करना।” कहते कहते विष्णुवर ने अपने हाथ में पकड़ी अंगूठी को उसके हाथ में पकड़ा दिया। “अब तुम पीछे हो जाओ..” आर्य धीमे धीमे कदमों से पीछे हटने लगा। वहीं विष्णुवर ने कुछ कदम आगे की ओर भरे और उनके सामने जाकर खड़ा हो गया।
    
    जो शैतानी परछाई पहले बोली थी उसने दोबारा कहा “हम पिछले 12 सालों से आश्रम के लोगों को ढूंढ ढूंढ कर मार रहे हैं। उनके सुरक्षा चक्कर बनाने के बाद हम सिर्फ उन्हें ही नुकसान पहुंचा सकते थे जो उनके सुरक्षा चक्कर से बाहर हैं। और तुम्हें यह जानकर खुशी होगी, तुम हमारे 816वें‌ शिकार हो। आश्रम वाले सिर्फ दो ही काम कर सकते हैं, या तो तुम लोगों को मरते हुए देख सकते हैं, या फिर दोनों ही छड़ीया हमारे हवाले कर सकते हैं।”
    
    “हमारे लोग सच्चाई को जानते हैं। उन्हें पता है तुम लोग अपने शैतानी मकसद में कभी कामयाब नहीं हो सकतें। ना तो तुम लोगों को आश्रम से वह दोनों सुरक्षित छड़ीया मिलेंगी, ना ही तुम लोग कभी शैतानों के शहंशाह को यहां धरती पर ना पाओगे।”
    
    यह सुनकर वह शैतानी परछाईं जोर-जोर से हंसने लगे। हंसते हुए उसने कहा “तुम्हें पता है यहां इस दुनिया में मुझे सबसे ज्यादा इंसान पसंद है। क्यों... क्योंकि उनकी कहावतें बड़ी मजेदार होती है। उनके पास हर एक बुरी से बुरी और अच्छी से अच्छी स्थिती के लिए कहावत है। जैसे कि अब इस मामले में, जहां तुम हमें ज्ञान दे रहे हो... वहां यह वाली कहावत बड़ी जचती है। ‘ मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती’ और हम हमारे आका के गुलाम, तब तक मेहनत करते रहेंगे जब तक हमअपने मकसद में कामयाब नहीं हो जाते। जब तक हमारे शहंशाह यहां इस दुनिया में नहीं आ जाते।”
    
    “पुलावी ख्वाब देखने वाले कभी कुछ हासिल नहीं कर पाते। उनके ख्वाब बस ख्वाब रह जाते हैं।” विष्णुवर अपने कदमों को गति देकर उनकी और पास जा रहा था। सभी शैतानी परछाइयां उसे पास आता देख चौक्कनी हो रही थी। वही आर्य दूर से अपने बाबा को उनके पास जाते हुए देख रहा था। यह बात उसकी समझ से परे थी कि उसके बाबा ऐसा क्यों कर रहे हैं। आखिर वह करना क्या चाहते हैं। लेकिन वह जो भी करना चाहते थे... उसका नतीजा अच्छा नहीं रहने वाला।
    
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5 Comments

Horror lover

18-Dec-2021 04:36 PM

Jaisi hmko hai pasand vaisi kahani h ye...

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Seema Priyadarshini sahay

08-Dec-2021 06:32 PM

ऐसी कहानियों की प्रेरणा कैसे मिलती है.. अद्भुत लेखन

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Fauzi kashaf

02-Dec-2021 11:50 AM

Good

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