शिकायतें
शिकायतें तुझ से सभी को हैं...ए जिंदगी...!!
फिर भी गम ना कर,
आखों को यूं नम ना कर,
कुछ चेहरे खफा खफा से हैं,
मानो जिंदगी से रुसवा से हैं,
शिकायतों का पिटारा उनका भी है,
यहां सुनने वाला कोई नहीं है,
कोई शख़्स भी ऐसा नहीं है,
जिसे कहीं कोई शिकायत नहीं है,
बंजर जमीं को शिकायत है....बारिशों के ना आने पर,
फूलों को शिकायत है....भवरों से उनकी खुशबू चुरा लेने पर,
पंछियों को शिकायत है....उनका खुला आसमान छिन जाने पर,
राहों को शिकायत है....मंजिलों से नहीं मिल पाने पर,
खामोशियों को शिकायत है....हवाओं के शोर से
लम्हों को शिकायत है....गुजर जाने वाले पलों से,
प्रेम को शिकायत है....नफरतों से,
तन्हाइयों को शिकायत है...महफिलों से,
इंसा को शिकायत है....इंसा से,
कुछ कम मिलने की शिकायत,
ज्यादा मिलने पर और पाने की चाहत,
लेकर आएंगी हमेशा ही शिकायतें,
शिकायतों का यह किस्सा कभी नहीं थमेगा,
सीने में कोरा सा कोई पत्थर दबा कर रखना होगा,
दो घूंट चांदनी के कम पीने होंगे,
आधे भरे गिलासों में ही सब्र रखना होगा,
उसे सुकून के साथ गले में उतरना होगा,
तब जाकर शायद कहीं कुछ कम होगा
शिकायतों का कुछ हिस्सा कम होगा...।।
लेखिका- कंचन सिंगला
Niraj Pandey
10-Dec-2021 04:12 PM
बेहतरीन
Reply
Raghuveer Sharma
10-Dec-2021 12:07 AM
बहुत खूब
Reply
Shrishti pandey
10-Dec-2021 12:00 AM
Nice
Reply