Jahnavi Sharma

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आकांक्षा: द डेविल्स एंजेल - 4



पलक की लाश देख कर वो तीनो घबरा गए। पिया डर के मारे चिल्लाते हुए अंश के गले लग गई। 

अंश ने घबराते हुए कहा, "ग....गायज हमें यहां से चलना चाहिए। प... पलक अब मर चुकी है। हम... हम भी बचेंगे। पुलिस को अगर पता चल जाए तो उनका सबसे पहला शक हम पर ही जाएगा। पलक को जंगल में जाने के लिए फोर्स भी तो हमने किया था।"

पिया ने उसकी हाँ मे हाँ मिलाई। जबकि मयंक उसकी बात सुनकर गुस्सा हो गया। 
उसने चिल्लाते हुए कहा, "तुम पागल तो नहीं हो गए हो अंश? ये कैसी बातें कर रहे हो? वैसे भी पलक हमारे साथ आई थी। इसके घर वालों को यह बात अच्छे से पता है...... और रही बात पुलिस की, तो पुलिस हम तक कैसे भी करके पहुंच ही जाएगी।"

पिया ने रोते हुए बोला, "मुझे बहुत डर लग रहा है। कहीं हम लोगों को जेल तो नहीं हो जाएगी.... मैं जेल नहीं जाना चाहती। प्लीज कुछ करो। मेरा कैरियर... मेरे पेरेंट्स तो मुझे मार ही डालेंगे।"

"तुम दोनों इतने कैसे बेवकूफ हो सकते हो ? कैसी बातें कर रहे हो.... जब हमने कुछ किया ही नहीं है, तो बेवजह हम क्यों जेल जाएंगे। मैं अभी पुलिस को कॉल करके यहां पर बुलाता हूं। ऐसे कायरों के जैसे भागोगे तो पुलिस जरूर शक करेगी।"

अंश– " पिया ... मयंक बिल्कुल ठीक बोल रहा है। अगर हम ऐसे यहां से भाग कर गए तो पुलिस को यही लगेगा कि हमारी वजह से पलक की जान गई है। लेकिन भूलकर भी पुलिस के सामने यह मत बोलना कि हमने उसे डेयर दिया था और जंगल में के लिए फोर्स किया था। ह... हम बोल देंगे कि वो रास्ता भटक गई थी .... या कुछ भी और कह देंगे।"

पिया वहाँ खड़े होकर जोर जोर से रोये जा रही थी। 
"हां मयंक मुझे भी यही लगता है। अंश बिल्कुल ठीक बोल रहा है। हम....हमें पुलिस को यह बिल्कुल नहीं बताना चाहिए कि हमारे जिद की वजह से पलक जंगल में गई थी। बाकी तुम जैसा कहोगे .... हम वैसा करेंगे। पर प्लीज यह बात पुलिस को बिल्कुल मत बताना।"

मयंक ने उसे शांत करते हुए बोला, "पिया तुम घबराओ मत..! जब हमने कुछ किया ही नहीं है, तो घबराने की क्या जरूरत है ? पिया और अंश तुम दोनों यही रुको .....मैं पुलिस को कॉल करता हूं।"

मयंक ने पुलिस को कॉल करके वहां पर हुए हादसे की जानकारी दी  लगभग एक घण्टे मे पुलिस टीम वहाँ पहुँच गयी। 

सुबह के लगभग 4 बजे बज रहे थे। चीफ इंस्पेक्टर श्यामदास गुप्ता तीन कांस्टेबल के साथ पहुँचे। वो अपनी मोटी घनी मूछों को ताव देते हुए क्राइम सीन का जायजा ले रहे थे। काफी देर तक इधर-उधर छानबीन करने के बाद वह उन तीनों के पास पहुंचे। 

इंस्पेक्टर दुबे ने उबासी लेते हुए कहा, "तुम यंगस्टर्स को भी चैन नहीं मिलता क्या? इतनी बार बोला है कि इस जंगल के पास ट्रैकिंग के लिए मत आया करो। पता नहीं यहां पर डेंजर का एक साइन बोर्ड क्यों नहीं लगवा दिया जाता? इतनी बार बता दिया कि यह जंगल शापित है। फिर भी पता नहीं क्यों घुस जाते हो इसके अंदर..!"

उनकी बात सुनकर मयंक ने हैरानी से बोला, "सर आप पढ़े लिखे होकर ऐसी अंधविश्वास वाली बातें क्यों कर रहे है?"

इंस्पेक्टर दुबे– " बेटा बात ऐसी है कि ...... चलो छोड़ो.... ये बताओ भगवान में मानते हो तुम?"

मयंक ने उनकी बात के जवाब मे कहा, "हाँ.... भगवान में  कौन नहीं मानता।"

"तो यूँ है ना कि जब भगवान में मानते हो तो फिर शैतान में भी मानना सीखो। जहां अच्छाई है, वहां पर बुराई भी जरूरी होगी। अगर बुराई नहीं होती तो फिर भगवान की क्या जरूरत पड़ती। कुछ चीजें सोच और समझ से परे होती है। तो वहाँ अपना दिमाग नही लगाना चाहिए।"

अंश और पिया वहां पर चुपचाप खड़े थे। 

इंस्पेक्टर दुबे ने उनकी तरफ मुड़ते हुए कहा, "तुम लोगों को घूमने फिरने का, ट्रैकिंग का, एडवेंचर करने का इतना ही शौक है, तो कम से कम किसी नई जगह पर जाने से पहले उस जगह के बारे में थोड़ी जानकारी ले लिया करो। यह कोई पहली लाश तो है नहीं, जो यहां जंगल के किनारे मिली है। आए दिन किसी न किसी की लाश यहां पर मिलती ही रहती है।"

"अगर आए दिन यहां पर किसी की लाश मिलती रहती है, तो आप लोग पता क्यों नहीं लगा लेते कि कौन है,,,,,, जो इन लोगों को मार रहा है।" अंश ने उन पर तंज कसा। 

हवलदार सावंत उसकी बात पर हंसते हुए बोला, "कौन इस शापित जंगल के अंदर जाएगा? पहले भी कई लोगों ने इस बारे में पता लगाने की कोशिश की,,,,,, लेकिन आज तक कोई भी जिंदा वापस नहीं आ पाया। अब अपनी दोस्त को ही देख लो।"

उनकी बातें सुनकर अंश, पिया और मयंक डर गए। उनकी नजर पलक की लाश पर गई.... जो कि खून ना होने की वजह से सफेद पड़ चुकी थी। 

इंस्पेक्टर दुबे ने आगे पूछा, "अच्छा अब अपनी सारी डिटेल्स शॉर्ट में बता दो।"

"हम चार लोग यहां पर ट्रेकिंग के लिए आए थे। यह हमारी दोस्त पलक मेहता है।" पिया ने जवाब दिया। 

इंस्पेक्टर दुबे ने की तरफ ध्यान दिया,तो वह घबरा रही थी। "वैसे ये जंगल में क्यों गई थी .... वो भी अकेले?"

पिया ने हकलाते हुए जवाब दिया, "सर वो... प... पलक ....र...रा.... रास्ता भटक गई थी।"

इंस्पेक्टर दुबे–" जब तुम चारों साथ आए थे, तो अकेले वही रास्ता कैसे भटक गई थी?"

पिया कुछ कहती उस से मयंक बोल पड़ा।
"सर पिया पलक की डेडबॉडी देख कर घबरा रही है। मै बताता हूँ, ये रास्ता कैसे भटक गयी थी.... वो हम चारो ट्रुथ एंड डेयर खेल रहे थे। पलक ने अपने लिए डेयर सेलेक्ट किया था। और जंगल में जाना तय किया था। काफी देर तक वह नहीं आई, तो हम लोग उसे ढूंढने के लिए निकल गए। लगभग आधे घंटे तक हमने उसे ढूंढा और ढूंढते– ढूंढते हम यहां पहुंचे। तो पिया का पैर पलक की डेडबॉडी बॉडी से टकरा गया। 

मयंक ने उन्हे सब कुछ सच सच बता दिया। 

इंस्पेक्टर दुबे ने आगे कहा, "और तुम्हें लगा कि हम सबसे पहले तुम लोगों पर शक करेंगे, तो हमें झूठ बोल कर गुमराह कर देते हैं। लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। यहां आए दिन जंगल के बाहर किसी ना किसी की लाश मिलती रहती है। आप लोग अपना बयान लिखवा देना ... और हां जो हुआ, जैसे हुआ.... सच सच बताना।"
 
हवलदार सावंत एक डायरी मे सब कुछ लिख रहा था। 
"उम्र क्या होगी इसकी ? कहां से हो तुम लोग.... इस के मम्मी पापा का नाम एड्रेस सब लिखवा देना।"

वो लोग पूछताछ कर रहे थे। तभी एंबुलेंस भी वहाँ आ गयी। 
इंस्पेक्टर दुबे ने उन्हे कहा, "मैं लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा देता हूं। वैसे भी रिपोर्ट मे तो वही आना है, जो बाकी सारी डेड बॉडीज की रिपोर्ट में आया था। फिर भी फॉर्मेलिटी तो करनी ही पड़ेगी। आप सब लोग सावंत के साथ पुलिस स्टेशन जाकर अपना अपना बयान लिखवा दीजिए।"

इस्पेक्टर दुबे वहां से जाने लगे कि मयंक उनके पास दौड़कर गया। 

मयंक ने उनके पास जाकर कहा, "एक्सयूज मी इस्पेक्टर! क्या मैं जान सकता हूं कि यहां जंगल किनारे मिली बाकी की डेड बॉडीज की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में क्या आया था?"

इंस्पेक्टर दुबे ने जवाब दिया, "लगता है तुम लोगो ने यहां पर आने से पहले इन जंगलों के बारे में कुछ भी नहीं सर्च किया। वरना इंटरनेट पर तुम्हें इस के बारे मे एक दो आर्टिकल्स तो जरूर मिल जाते हैं। यहां जंगल किनारे जो भी लाश मिलती है, उन डेड बॉडीज के अंदर खून की एक बूंद तक नहीं मिलती। मौत का तरीका भी नहीं पता चलता.... और सभी डेड बॉडीज की गर्दन पर किसी जानवर के काटने के निशान मिलते हैं।"

उनकी बात सुनकर मयंक दंग रह गया। वह एंबुलेंस में बैठकर वहां से जा चुके थे। सावंत उन तीनों को अपने साथ बयान देने के लिए पुलिस स्टेशन लेकर गया।  

★★★★★


सुबह के 5:00 बज रहे थे। आकांक्षा जानवी के साथ उसके कमरे में सो रही थी कि तभी सोते हुए वह नींद में जोर जोर से चिल्लाने लगी। 
"न....नहीं. ...प्लीज... मुझे मत मारो। जाने दो मुझे.... प्लीज...!"

जानवी ने नींद मे ही उसे हल्का सा देते हुए कहा, "यार अक्षु सोने दे ना। नींद में भी तेरी पटर पटर बंद नहीं होती क्या?"

"बचाओ.... बचाओ....!" वो नींद मे अभी तक चिल्ला रही थी। 

जानवी जैसे तैसे उठकर बोला, "अक्षु क्या हुआ तुझे? हे भगवान! यह तो पूरा पसीने में तरबतर हो रखी है। लगता है इसके सपने में जरूर कोई पिशाच आया होगा।" वो आकांक्षा को जगाने के लिए उसे पकड़कर हिलाने लगी, "उठ अक्षु.... क्या हुआ तुझे?"

उसकी आवाज सुनकर आकांक्षा की नींद खुली और उसने डर कर उसे गले लगा लिया। 
"जानवी मैंने बहुत बुरा सपना देखा। मुझे सच में बहुत डर लग रहा है।"

"ये तो तेरी हालत देखकर कोई भी बता सकता है कि तूने कोई बुरा सपना देखा है। शक्ल देख अपनी। डर के मारे पूरा चेहरा लाल हो गया है। वैसे क्या देखा सपने में ? जरूर कोई हॉट सा पिशाच आया होगा।"

आकांक्षा ने डांटते हुए कहा, "हॉट था या कूल.... यह मुझे नहीं पता..... पर जो भी था बहुत भयानक था।"
जानवी ने घड़ी की तरफ देखते हुए कहा, "पता है मेरी दादी क्या कहती थी? सुबह के देखे हुए सपने सच होते हैं  सोच अक्षु सोच .... अगर सच में तेरे सामने वह पिशाच आ जाए.... और क्या कहा था मोहन दास गुप्ता जी ने कि वह जिंदा रहने के लिए किसी का खून पीते हैं... और एक हॉट सा पिशाच प्यार से तेरी गर्दन के पास आकर.... एक बड़ा सा बाइट कर तेरी बॉडी का सारा खून चूस ले।"

 "सुबह-सुबह तेरी बकवास फिर चालू हो गई। एक तो मुझे ऐसे ही डर लग रहा है और मैंने कोई पिशाच नहीं देखा..... तो यह खुली आंखों से सपने देखना बंद कर। अगर कभी पिशाच मेरे सामने आ गया ना सबसे पहले उसके सामने तुझे ले जा कर पटकूंगी।" 

जानवी ने मुँह बनाकर बोला, "कैसी दोस्त है तू... अपनी दोस्त को पिशाच से कटवाएंगी?"

"यही दोस्त एक मिनट पहले मुझे भी उसी पिशाच से कटवा रही थी तब क्या? लेकिन यार मैंने सच में बहुत डरावना सपना देखा...... जैसे मैं जंगल में बस इधर से उधर दौड़े जा रही हूं और मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा कि मैं कहां जाऊं। और वह जंगल किसी भूल भुलैया की तरह खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा। तभी अचानक से एक जानवर मुझ पर हमला बोल दिया।"

जानवी– " कितना बोरिंग सपना था। तेरे डर की वजह से इतनी सुबह सुबह मुझे भी उठना पड़ा।"

"अब उठ ही गए हैं, तो चलो दोनों रेडी होकर वापस प्रोजेक्ट करने में लगते हैं। वैसे भी कल तेरे सच पता लगाने के चक्कर मे कुछ नहीं किया।" 

आकांक्षा ने जबरदस्ती जानवी को काम लगा दिया। वह दोनों कमरे में बैठकर काफी देर तक काम करती रही। 
राजवीर जी ने उठने के बाद उन दोनों के लिए नाश्ता बनाया। उनकी आवाज लगाने पर वो दोनों नीचे आकर उनके साथ नाश्ता करते हुए टीवी देखने लगी। 

टीवी एंकर– "कल रात को फिर से जंगलों के पास से एक और लाश मिली। ताज्जुब की बात है इस लाश की गर्दन पर भी वही जानवर के काटने के निशान है.... जो कि पहले मिली लाशों पर थे। क्या ऐसे में कहा जा सकता है कि यह जंगल एक शापित जंगल है .... या कुछ लोगों की मानें तो वहां पर नर पिशाच का डेरा है। देखिए हम किसी अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देते। लेकिन फिर भी क्या इन घटनाओं को एक इत्तेफाक मानकर आगे बढ़ा जाए या जंगल में ऐसा कोई ईलीगल रैकेट चल रहा है, जिसे छुपाने के लिए यह सब हत्याएं हो रही है  आप अपनी राय स्क्रीन पर दिखाए गए नंबरों पर मैसेज करें। 
आप हमारे ऑफिशियल टि्वटर आईडी पर ट्वीट करके अपनी राय बता सकते है।"
#विश्वास या अंधविश्वास

वो न्यूज़ देखकर जानवी और आकांक्षा थोड़ी घबरा गयी। उन्हें मोहन दास जी की बातें याद आने लगी। टीवी में पलक की फोटो दिखाई जा रही थी जिसे देखकर आकांक्षा की आंखें बंद होने लगी। 

आकांक्षा ने अपना चेहरा टीवी की तरफ से हटा लिया। जहां राजवीर जी और जानवी खाना खाने में व्यस्त थे, वही आकांक्षा के मन में कुछ और ही चल रहा था। 

 "इस लड़की को टीवी पर देख कर मुझे इसके बारे में विजुअल्स क्यों आ रहे हैं? ना चाहते हुए भी मेरी आंखे बंद हो रही हैं।  ऐसा लग रहा है जैसे यह लड़की जंगल में चलती जा रही है.... अचानक से एक लड़के से टकराती है और उसकी बाहों में गिर जाती है। फिर वह लड़का इससे बात करके इसके करीब आकर इसका खून पीने लगता है।  क्या सच में पिशाच होते हैं?"
वह कुछ कहती उससे पहले ही जानवी ने राजवीर जी से पूछा, "दद्दू क्या सच मे पिशाच होते है?"

"हाँ ददु..! मैं भी यही पूछने वाली थी। क्या सच मे.....।" 

राजवीर जी ने आकांक्षा की बात को बीच में काट कर बोला, "तुम दोनों आजकल की बच्चियां हो। क्या इन न्यूज़ वालों की फालतू बातों को सुनकर घबरा रही हो। इन लोगों को अपनी टीआरपी बढ़ाने होती है। इसके लिए यह लोग कुछ भी दिखा देते हैं"

आकांक्षा– "दद्दू क्या सुपर नेचुरल पावर्स एक्जिस्ट करती है? आई मीन क्या किसी के पास मैजिकल पावर्स हो सकती है?"
 
राजवीर जी आकांक्षा के मुंह से मैजिकल पावर्स का नाम सुनकर थोड़ा घबरा गए। 
"एक तो तुम लोग पता नहीं क्या क्या देखती रहती हो इस मोबाइल फोन में... कभी सुना है किसी के पास कोई जादुई शक्तियों जैसी चीज होती है। यह सब वहम होता है और कुछ नहीं चलो... तुम दोनों बच्चे यहां पढ़ाई करो, मैं घर पर होकर आता हूं।"

आकांक्षा को टालकर राजवीर जी वहां से घर चले गए। आकांक्षा के सवालों ने उन्हें परेशानी में ला दिया था। 

"अक्षु ने अचानक से मैजिकल पावर के बारे में क्यों बात की? कहीं उसे अपनी शक्तियों के बारे में एहसास तो नहीं होने लगा है.... हे ईश्वर ! मेरी बच्ची के साथ यह सब होना जरूरी था क्या? मैं पहले ही अपने इकलौते  बेटे और बहू को खो चुका हूं। अब इस उम्र मे मेरे अंदर मेरी अक्षु को खोने की हिम्मत बिल्कुल भी नहीं है। मेरी बच्ची की रक्षा करना.... जाने अनजाने में अगर उसके पास कोई कुदरती शक्ति है भी, तो आप वापस ले लीजिये। पता नहीं क्या होगा..... मेरी बच्ची पर कहीं कोई खतरा तो नहीं है।"

अचानक से राजवीर जी को अतीत की कुछ बातें याद आने लगी।

लगभग 18 साल पहले जब आकांक्षा सिर्फ 5 साल की थी, तब वह उसके साथ कांगड़ा में देवी मां के मंदिर गए थे। रोड एक्सीडेंट में बेटे और बहू की मौत होने के बाद मानसिक शांति की तलाश में वह अक्सर मंदिरों में घूमते रहते थे। 

वहाँ मंदिर के पास एक आदमी बेहोश पड़ा था। सब लोग उसके आस पास इक्कठे थे। उसी भीड़ में राजवीर आकांक्षा के साथ खड़े थे। मंदिर के राजपुरोहित जी आदमी की नब्ज देख कर रहे थे। 
"इसे किसी सर्प ने काटा है। तभी इसका शरीर नीला पड़ने लगा है। इससे पहले कि देर हो जाए हमें इसका इलाज करना होगा। कुछ देर पहले जंगल में गया था ना यह? एक काम करो... मोहन.....सोहन इसको तुम औषधालय में लेकर जाओ। मैं तब तक यही आसपास से कुछ जड़ी बूटियां इकट्ठा करके लाता हूं।"

दो चार लोग मिलकर उस आदमी को मंदिर के औषधालय की तरफ लेकर गये। राजपुरोहित जी जड़ी बूटियां इकट्ठा करने के लिए वही थोड़ी दूर आगे जाने के लिए दिए थे कि आकांक्षा ने दौड़ कर उनका हाथ पकड़ लिया। 
"दद्दू आप वहां पर मत जाइए... वह सांप अभी भी वही पर ही हैं। मैंने देखा था ये अंकल जंगल में कुछ चीजें तोड़ रहे थे, तो एक सांप पेड़ पर से इनके ऊपर आकर गिर गया .... और इन्हे काट लिया। आप वहां गए तो आपको भी वह सांप काट लेगा।"

आकांक्षा की बात सुनकर राजवीर जी और राजपुरोहित जी दोनों चकित रह गए। 

राजवीर जी ने धीमी आवाज मे कहा, "आप इसकी बातों पर ध्यान मत दीजिए। अक्षु थोड़ी इमेजिनेटिव है। आपके मुंह से सांप काटने की बात सुनी होगी तो इसलिए बोल दिया होगा। हम लोग तो काफी समय से मंदिर के अंदर थे, तो इसे जंगल के अंदर क्या चल रहा था.... वह कैसे पता हो सकता है?"

राजपुरोहित जी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "श्रीमन आप मेरे साथ मेरे कक्ष में चलने की कृपा करेंगे।"

राजपुरोहित जी लगभग 90 साल के व्यक्ति थे, जो कि मंदिर में रहते हुए साधना करते थे। मंदिर के लोग उनका बहुत ही आदर करते थे।  उनके पास भी साधना से प्राप्त की हुई कुछ अलौकिक सिद्धियाँ थी। 

राजवीर जी आकांक्षा के साथ राजपुरोहित जी के कक्ष में गए। वहां एक चटाई के अलावा और कुछ मौजूद नहीं था। 

राजपुरोहित जी ने आकांक्षा के सिर पर हाथ रख कर बोल, "बच्ची को देखते ही मैं समझ गया था कि यह कोई साधारण बच्ची नहीं है। वैसे देखा जाए तो इस जगत में साधारण तो कोई नहीं होता.... लेकिन कुछ लोग अपनी शक्तियों को पहचान पाते हैं और कुछ जीवनभर उनसे अज्ञात रहते हैं।"

उनकी बात सुनकर राजवीर जी ने हैरानी से पूछा, "आप किन शक्तियों की बात कर रहे हैं राजपुरोहित जी? मेरी बच्ची सिर्फ 4 साल की है।"

" कर्म हमारी उम्र देखकर निर्धारित नहीं किए जाते श्रीमन। भगवान हर व्यक्ति को एक लक्ष्य के साथ इस धरती पर भेजते हैं। उस लक्ष्य को पूरा करने में यह शक्तियां इस बच्ची की मदद करेगी। मुझे ज्यादा कुछ तो नहीं पता कि इसके पास क्या शक्तियां हैं .... क्योंकि मैंने इसे परखा नहीं है। लेकिन इतना जरूर कह सकता हूं कि यह बच्ची भूत देख सकती है। अपने आसपास से जुड़े हुए लोगों की घटनाओं को महसूस कर सकती है कि उनके साथ भूतकाल में क्या घटित हुआ था?"

राजवीर जी– "आप जानते हैं ना राजपुरोहित जी यह है संसार कितना स्वार्थी है। अगर किसी को मेरी बच्ची की शक्तियों के बारे में पता चला तो वह जरूर उसका गलत उपयोग करने की कोशिश करेगा। मैं अपनी बच्ची को कभी भी उसकी शक्तियों के बारे में नहीं बताऊंगा।"

राजपुरोहित जी ने मुस्कुराते हुए कहा, "जी श्रीमन..! जैसा आपको ठीक लगे। आप भले ही इसे कुछ नहीं बताइएगा। लेकिन जब यह अपने लक्ष्य के करीब पहुंचने लगेगी.... या जिसके लिए इसका जन्म निर्धारित किया गया है वह वक्त करीब आएगा,,,, तब इसकी शक्तियां जागृत होने लग जाएगी। बाकी विश्वास रखिए ......बच्ची को कभी कोई खतरा नहीं होगा।"

उन बातों को याद करके राजवीर जी सिहर उठे। 
"क्या वो वक़्त करीब आ रहा है, जिसके लिए मेरी आकांक्षा का जन्म हुआ था? जिसके लिए भगवान ने उसे कुछ अद्भुत शक्तियों से नवाजा था? हे ऊपर वाले! मेरी बच्ची की रक्षा करना। कहीं इसकी यह शक्तियां इसके लिए भक्षक ना बन जाए।"

क्रमशः....! 


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3 Comments

Seema Priyadarshini sahay

13-Dec-2021 12:36 AM

अद्भुत कथासंयोजन.. बहुत ही रोचक

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Miss Lipsa

10-Dec-2021 05:03 PM

Uff nice story sch mai itni saari daar aur saath saath wo asayein ki kya hoga kya wo shakti itni prabhab sali hai kya hone ke liye mila hai wo shaktiyan akanshya ko ....!! Bohot saari sawal pr haa really interesting

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Somdatta Mitra

10-Dec-2021 04:56 PM

Wow

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