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छड़ी

"रोहन! बेटा मेरी छड़ी लेकर आओ मुझे घूमने जाना है।" रोहन की दादी जी ने कहा मगर कानों में इयरफोन्स लगाए रोहन ने सुना ही नहीं। तब वैभवी उठी और दादी जी की छड़ी लाकर उनको पकड़ाने लगी।


"वैभवी तुझे कितनी बार समझाऊं कि बेटियां छड़ी नहीं पकड़ाती हैं, पता नहीं क्या तुझे छड़ी पकड़ाने का अर्थ सहारा देना होता है! और बेटियां कभी मां बाप, बड़े बुजुर्गों को सहारा नहीं दे सकतीं। मां बाप का असली सहारा तो बेटे ही होते हैं।" दादी जी ने कहा तो वैभवी उदास होकर जाने लगी।

अभी वैभवी कुछ ही कदम चली होगी कि तभी उसने दादीजी की हल्की सी चीख सुनी और बिना एक पल की भी देरी किए वह भागकर दादी जी के पास पहुंची और उनका एक हाथ कस कर पकड़ लिया। दरसल वैभवी की दादी जी सीढ़ियों से नीचे उतर रही थी और तभी उनका पैर फिसल गया। रोहन तो पहले से ही इयरफोन्स कानों में लगाए गाने सुन रहा था तो उसका ध्यान नहीं गया मगर वैभवी ने तुरंत दादी जी को संभाल लिया। उनके पैर में हल्की मोच आ गई थी और वे चलने में असमर्थ थीं तब वैभवी ने उनको अपने कंधों का सहारा देकर उनके कमरे तक पहुंचाया।

जब तक वैभवी की दादी जी पूरी तरह से ठीक नहीं हो गईं, तब तक वह दिन रात उनकी सेवा में तल्लीन रही। वहीं रोहन अपनी पढ़ाई और अपने दोस्तों में व्यस्त रहता।

कुछ दिन बाद जब दादी जी बिल्कुल ठीक हो गईं और टहलने जाने वाली थीं उन्होंने आवाज़ लगाई - "बेटा मेरी छड़ी पकड़ा दे जरा।"

एक बार फिर रोहन और वैभवी वहीं मौजूद थे, मगर इस बार वैभवी अपनी दादी जी के लिए छड़ी लेने नहीं गई क्योंकि उसे डर था कि कहीं दादी जी फिर से उससे नाराज न हो जाएं।

"अरे वैभवी खड़े-खड़े मेरा मुंह क्या देख रही है? जा बेटा मेरी छड़ी लेकर आ, मुझे टहलने जाने के लिए देर हो रही है।" दादी जी ने जब मुस्कुराते हुए कहा तो वैभवी अपनी आंखों में नमी लेकर उनकी छड़ी ले आई और उन्हें पकड़ाते हुए उनके पैर छू लिए।

Ayushi Singh

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10 Comments

kashish

07-Feb-2023 08:51 PM

osm

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Niraj Pandey

09-Oct-2021 04:34 PM

वाह बहुत ही बेहतरीन

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Shalini Sharma

29-Sep-2021 12:08 PM

Superb ✌️

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