सामान
मैं बेचैन सी ख़्वाबों को तलाश रही थी इधर-उधर,
कुछ तकिये के नीचे मिले भीगे हुए,
कुछ डायरी के पन्नों में अधूरे पड़े हुए।
उम्मीदों की धूप लगा दूँ इन्हें क्या,
या दीमक की तरह सड़ने दूँ?
क्या खोल दूँ जंजीरें मन की ,
खुद को आसमाँ में उड़ने दूँ?
हर बार खुद से सवाल करती हूँ,
जैसे ही सुनती हूँ कमरे में तुम्हारे आने की आहट,
मैं चुपचाप सी कोने में,
किसी सामान की तरह सिमट जाती हूं।
❤सोनिया जाधव
#लेखनी प्रतियोगिता
Farhana ۔۔۔
14-Dec-2021 05:01 PM
Waao
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Shrishti pandey
13-Dec-2021 11:57 PM
Nice one
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Niraj Pandey
13-Dec-2021 11:53 PM
बहुत खूब
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