मेरी माँ
"मेरी माँ”
✍️सुधांशू दुबे (रूद्र)
हे माँ मेरी तुम आ जाती
फिर से मुझे गले लगा जाती
अपने आँचल में सिर
रखकर लोरी माँ मुझे सुना जाती
तुम बिन रातों को नींद नहीं
दिन मेरा अब व्याकुल तुम बिन
कोई दिन नहीं ऐसा जीवन में
जो याद तुम्हारी ना आए
तुम्हें याद जो करता मेरा मन
आँखे मेरी हो जाती मेरी नम
दिन एक एक मेरी माँ तुम बिन
अंधेरों सा मुझे लगता है
जब साथ तुम्हारा ना पाया
जीवन के घोर अंधेरों में
छुप छुप के दुनिया से मैंन
आँखों के मोती खोए है
मेरी माँ तुम कितनी प्यारी थी
सिर मेरा चूमा करती थी
आँचल के स्नेह से तुम मुझको
अभिसिंचित करती रहती थी
अपनी साड़ी के पल्लू से
मुख मेरा पोछा करती थी
जो धूप लगे मुझको माता
सिर मेरा तुम ढक देती थी
अब वो आँचल का पल्लू मुझको
बहुत याद आता है माँ
जब सुबह गोद में लेकर माँ
तुम मुझे नींद से जगाती थी
जीवन के स्वप्न सलोने माँ
तुम मुझे दिखाया करती थी
पापा की दांट जो पङने पर
सीने से मुझे लगाती थी
हौसलों से भरकर माँ जब तुम
विद्यालय भेजा करती थी
मैंने कब सोचा था मेरी माँ
का दामन हाथ से छूटेगा
मेरी दुनिया विस्मय लूटी
ईश्वर ने है अन्याय किया
जो प्राण मात के लेने थे
तो मेरा ही ले लेते तुम
कम से कम भाई बहनों के सिर
हाथ मात का रहता तो
मेरी पीड़ा अब है अनंत
कैसे मैं कहुँ?किससे मैं कहुँ?
मन ही मन ,मन मेरा टूट रहा
आशाओं के बाँध ले डूबे
अश्रु की धरा रोज़ बहे
हिय मेरा माँ को याद करें
मैं बाट जोहता माँ तेरी
मानस सागर के तट पर
माँ फिर से तुम अब आ जाती
मुझे अपने गले लगा जाती
दे मुझे दिलासा कम से कम
कि साथ मेरे तुम हो हरदम।
Sonali negi
03-Jun-2021 03:25 PM
Nice
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