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Jaane Kahaa ??? The Revolution

अपडेट 9

रामेश्वरम  पहुचने के बाद विक्रम ने  एक होटल बुक करवा ली। क्यूकी टूरिस्ट सीजन थी तो एक ही बड़ा रूम मिला जहां पर केवल 3 बेड्स थे और एक बेड एक्स्ट्रा करवा लिया गया। 
विक्रम ने कहा की वो खाना लेकर आ रहा है कुछ देर वहा आराम करे। लेकिन नारायणप्रसाद को क्या सूजी की उसने सुनंदा को कहा की उसे कोई शॉपिंग करना हो तो विक्रम से साथ चली जाए।
सुनंदा ने अचानक जवाब दिया की वो बोर हो जाती है। विक्रम देखता ही रहा, लगा की ये वार उसके ऊपर सुनंदा ने किया है|

नारायणप्रसाद इतना सुनते ही रुके और पलट के सुनंदा की और देखा और पुछा,"क्या बोली तू?, बोर हो जाती है? वैसे तो औरतो को खरीदारी का बड़ा शौक होता है और यहां पर उल्टा तू मना कर रही है। तु बाजार से तो कभी बोर नहीं होती है तो क्या विक्रम से बोर हो रही है? और अगर ऐसा है तो इसके साथ तुझे जिंदगीभर की दोर से बंधना है तो क्या जिंदगी बोर होगी?”

अब सुनंदा को ख्याल आया की वो अनजाने के क्या बोल गई थी। अब वो क्या बोलती। हा बोले तो भी फसती और ना बोले तो भी फसती। लेकिन जवाब तो देना ही था और उसकी जुबान लडखड़ाई," न..न ऐसा नहीं..."
“छोड़ ऐसा वैसा, और जा विक्रम के साथ। वो बेचारा कइ दिनो से हमारा ध्यान रख रहा है। तू चली जा बेटे हमें कोई तकलीफ नहीं है। विक्रम बहुत अच्छा लडका है और उसके साथ तुझे भेजने में हमें कोई ऐतराज नहीं। तू भी बार बार घुमने नहीं जा सकती। इसिलिए इसके साथ जा और जो कुछ लेना है आराम से खरीद ले बेटा।” कहकर नारायणप्रसाद होटल के कमरे की और मुड गए।
सुनंदा देखती रही की आज उसके पिताजी को क्या हो गया था। अब ना का तो सवाल ही नहीं उठा और उसने,"जी बाबूजी" कहकर विक्रम के साथ कदम उठाये।
विक्रम तिरछी नजरो से देखते जा रहा था और धीरे-धीरे दोनो के कदम बाजार की और बढ़ते चले गए। शाम धीरे धीरे ढल रही थी और दोनो बाजार में घुमने लगे थे।
मन नहीं था फिर भी अपने माता-पिता का सम्मान रखने के लिए सुनंदा ने दो साड़ी ले ली। अब रंग,माप सब के लिए विक्रम के साथ बोलना जरुरी ही पड गया और वैसे भी बहुत दिन बीत चुके थे उस घटना को इसिलिए सुनंदा ने पुरानी बातो को भूल जाने में ही सही समजा और उस के सामने आराम से विक्रम भी  धीरे धीरे नॉर्मल हो रहा था। और ऐसे ही शाम ढल गई और दोनो ने शॉपिंग खतम की और बाजार से बहार निकले।
दोनो की जुबान बंद थी लेकिन दिल में तूफान उठा हुआ था। सुनंदा ने अब बाजी समाली और कहा, "सुनिये।"
विक्रम दो कदम जो आगे चल रहा था और वही रुक गया और पिछे मुडकर आंखों से पुछा,"क्या हुआ?"
सुनंदा,"कुछ देर कहीं बैठे।"
विक्रम शॉक्ड हो गया, वो न तो हा बोल पाया और न तो ना।
सुनंदा उस की हालत समज गई और धीरे से मुस्कान के साथ बोली,"पुरानी बात छोडिये, आज मौका है कुछ देर साथ बैठने का।" और नजर जुका ली।
विक्रम तब तक होश में आ गया था,"ओह ज़रूर। चलो देखते है कही कोई जगह जहा कुछ देर बैठ सके।”
सुनंदा ने नजर उठाये बिना ही हा बोल दिया और धीरे-धीरे वे चलने लगे। 
कुछ 10 मिनिट के बाद वे लोग गार्डन में थे। वहां कोई ज्यादा भीड नहीं थी। दोनो ने एक कोने की बेंच देखी और वहा बैठे गए।
कुछ देर दोनो में बात नहीं हुई। लेकिन विक्रम ने अब बाजी सम्भालाते हुए पुछा,"कुछ खाओगी?"
सुनंदा ने ना में सिर हिलाया। विक्रम ने कुछ पल बाद फिर से पुछा,"कुछ कहना चाहती हो ? 
सुनंदा ने फिर से न में सिर हिलाया। विक्रम फिर चुप हो गया और सोच रहा था कि किसलिय सुनंदा एकांत चाहती है। लेकिन उस की आगे पुछने की हिम्मत नहीं हो रही थी।

वो इधर उधर देखने लगा तो सुनंदा उसकी हालत समज गई और धीरे से उसकी हसी छूट गई। विक्रम ने हल्की सी हसने की आवाज सुनी और पुछा,"क्या हुआ?"
सुनंदा ने मुह फेर लिया लेकिन हसी नहीं रुकी।
विक्रम को समज में आ गया की उसकी हालत पर सुनंदा हस रही है। उसकी भी हसी छुट गई और इधर उधर देख कर कहने लगा,"तो मेरी हालत पर हसा जा रहा है।"
सुनंदा कुछ नहीं बोली। विक्रम देख रहा था उसकी हसी नहीं रुक रही है।
विक्रम फिर से हालात सुधारने के लिये कहा,"अब यू ही खामोश बैठी रहोगी तो मैं क्या कर सकता हूं।"
सुनंदा फिर भी मुड़ी नहीं और मुस्कुराती रही।
विक्रम अब खड़ा हो गया और कहा,”ठीक  है अगर नाराज  ही रहना है तो मैं क्या कर सकता हूं। अब गलती हो गई है मुझसे तो माफ़ी भी मांग ली है। अब अगर तुम माफ नहीं करना चाहती तो मैं कुछ नहीं कर सकता।”
और विकम कुछ कदम दूर खड़ा होकर आकाश की और देखने लगा।
सुनंदा धीरे से खडी हुई और अपने दोनो हाथ की अदब ऐसे ही रखी थी और धीरे धीरे विक्रम के पास आई और कुछ पल खडी रही और फिर बोली,"अगर माफ नहीं किया होता तो यहां आप के साथ क्यों चली आती।"
इतना सुन ते ही विक्रम मुडा और उसके चेहरे पर मुस्कान थी, उस ने भी अपने दोनो हाथ की अदब बांधे रखी थी और शरारत से सुनंदा की और देख कर कहा,"मैं जानता हूं की तुम ने मुझे माफ कर दिया है लेकिन यहां तो तेर लिए कुछ तो नाटक करना था ना।” और वो खुल के हस दिया|
सुनंदा को अब एहसास हुआ की विक्रम ने कितनी चलाकी से उसे अंधरे में रखकर फसा दिया था । और उस ने पहले तो गौर से विक्रम की और देखा और मुस्कुराकर नजर जुका ली।

विक्रम ने अब करीब आकार उसके हाथ धीरे से पकड लिया और कहा,"अब ये जुठा गुस्सा रहने दो। आँखो में स्पष्ट प्यार दिखलाई देता है। ये सुहानी शाम बीत रही है और नाटक करती रहेगी तो एक अच्छी शाम खो दोगी।”
सुनंदा ने अब नजरे उठाइ और पुछा,"वो कैसे?"
विक्रम ने उस की आंखों में आंखों डालकर पुछा,"तो यहां क्या नोकजोक करने के लिए मेरे साथ आई हो?"
सुनंदा ने मस्कुराकर नज़रे जुका ली और धीरे से न में सर हिलाया।
विक्रम,"तो फ़िर?"
"तो फिर क्या?",सुनंदा ने नज़रे उठाकर पुछा क्युकी अभी भी उसके दोनो हाथ विक्रम के हाथ में थे और विक्रम ने धीरे से सखताई से हाथ पकड के खिचा था।
विक्रम,"ओए मैडम अब नाटक बंध करो ना। मैं इतना भी नादान नहीं हू की लडकियों की मन की बात ना जान सकु।”
सुनंदा ने अब शरारत से पुछा,"और लड़कियों के मन में क्या होता है?"
विक्रम ने उस शरारत से अब खुल कर लाभ लेने की ठान ली और उसने हलके से अपने दोनो हाथ से
सुनंदा के दो हाथ को ज़टका दिया और सुनंदा धीरे से उसकी की बाहो में आ गई और विक्रम ने कहा, "लड़कियों के मन में रंगीन शाम का लाभ उठाना होता है।"
सुनंदा संभलकर उस से अलग होनी चाही लेकिन विक्रम ने फिर से कस के बाहो में पकड लिया। सुनंदा कुछ पल वही रुक गई क्युकी उसे लगा की अगर उसने मना किया तो विक्रम पिछली बातो को लेकर फिर से परेशान होगा और वो अब नहीं चाहती थी कि उसका होने वाला पति नाराज हो।
उसने धीरे से अपना सर विक्रम की छात्ती पर टीका दिया..
विक्रम ने स्थिति का भरपुर लाभ लिया और शरारत से कहा,"देखा एक लड़की कैसे नखरा करती है और फिर कैसे अपना काम निकलवा लेती है?"
सुनंदा जटके से अलग होनी चाहि लेकिन विक्रम ने उसे छोडा नहीं और धीरे से उसके गालो पर अपने होठ रख दिये|
सुनंदा को किसी मर्द का ये पहला अहसास था और वो सीमट गई। विक्रम ने मुह उठाकर दुसरे गाल पर होठ लगा लिया। सुनंदा की सासे तेज हो गई और उसने पूरी ताकत लगाकर विक्रम से अलग होना चाही। फिर भी विक्रम के मजबुत हाथो से नहीं छुट पाई और उसने नजरे फिर से जुका दी। विक्रम ने अब उसे कस के बाहो में भर लिया और उसके होठ अब सुनंदा के कन्धे को छू रहे थे। और सुनंदा के मुह से आह निकल गई और अब वो सही में मदहोशी में जा रही थी।
उसने तेज सासो से ही विक्रम को नजरे उठाकर देखा और चेहरे से ना का इशारा किया। लेकिन विक्रम ने इस ना को लड़की की हा ही समजी और उसके होठ सुनंदा के गले को चुम गए। सुनंदा ने अब जोर से धक्का दिया विक्रम को और विक्रम दो कदम पीछे हट गया और सुनंदा बड़ी तेज सासो से आहे भरकर मुड गई। उसकी धड़कन तेज हो रही थी। विक्रम ने फिर से पिछे से उसे पकड लीया| सुनंदा ने पुरा जोर लगाया ता की विक्रम की हाथो की हथकड़ी छुटे लेकिन कामयाब नहीं हो पाई और विक्रम लगातार 2 मिनट तक उसके शरीर को चुमता रहा।
अब सच में गभराई हुई सुनंदा बोल उठी,"नहीं..मुजे छोडिये...आह..छोड़िया न...मैं इसिलिए आप से दूर भगती हूं..ओह..देखो मैं फिर कभी..आह.. .फिर आप के साथ नहीं आऊंगी।"
लेकिन विक्रम को अब नशा चढ़ चुका था और उसे चुमना जारी रखते हुये कहा,”नहीं छोडूंगा।''
"नहीं..ओह...नही...आह..बाबा छोडो ना।" सुनंदा नी फिर बिनती की। लेकिन विक्रम अब सखताई से उसे पकडकर अपने होठ की यात्रा सर से लेकर पेट तक पहुचा दी थी।
अब सुनंदा को गुदगुदी हो रही थी और वो छटपटाई। उसका सारा बदन धीरे-धीरे काप रहा था। उसके लाख मना करने पर विक्रम ने उसे नहीं छोड़ा और मजबूरी से हार कर बोल उठी,"मैं.. आआह.. लेकिन अभी मुजे छोड़ो ... ओह्ह।"
"दुबारा मिलाने क वादा करो" विक्रम ने अभी चुमना नहीं छोडा।
"कोशिश करुंगी..ओह..लेकिन अभी छोडोगे तो ना...आह" सुनंदा ने फिर बिनती की।
और विक्रम ने छोड दिया और कहा,"हा अब ठीक है|"
सुनंदा से गुस्से से उस की और देखा और कहा,"जंगली कही के।"
इतना सुनते ही फिर से विक्रम ने उसे पकड़ लिया और सुनंदा फिर से बिनती करने लगी,"अब छोडो ना। ये कैसा प्यार है आपका।" उसकी आवाज में नमी देखकर विक्रम ने छोड दिया और हसने लगा,”ठिक है अगला हिसाब रात को लुंगा।''
सुनंदा ने जिभ निकालकर कहा,"अब राह देखते रहो।" कहकर जैसे ही वो भागने गइ की विक्रम ने फिर से दबोच लिया और फिर से चुमते हुये पुछा,"अब कहा जाओगी?"
"नहीं नहीं" कहते हुए सुनंदा बोली|
सुनंदा ने छुटने के लिये कोशिश की और कहा,"देखो आप की यही आदत है। जैसे ही मौका मिला और फिर से मजबूरी का लाभ उठाने पर आ गये।"
"लेकिन मैंने एसा किया क्या वो तो बताओ?" विक्रम ने शरत से पुछा।
"अब वो भी मैं ही बताउ?" सुनंदा ने शरारत भरी नजरो से विक्रम को पुछा.|
"अब मुजे मालुम ही नहीं है की मैंने क्या किया तो तुम ही बताओगी ना।" विक्रम ने उसे जकड के रखा था।
"मुजे नहीं बोलना है।" सुनंदा ने नजरे फेर ली थी।
"तब तो मैं जाने ही नहीं दूंगा।" विक्रम ने कस के पकड लिया था।
सुनंदा ऐसे ही गुस्से से उसे देखती रही। फ़िर फुसफुसाई,"जंगली कही के।"
ये सुनकर विक्रम और जोश में आ गया और कहा,"अच्छा हम जंगली तो फिर देखो ये जंगली क्या करता है?"
और उसने सुनंदा को बेइंतहा चुमना चालू कर दिया। सुनंदा शायद होश खो रही थी लेकिन फिर भी अपने आप को संभालते हुये भागने की कोशीश की। लेकिन कामयाबी नहीं मिली क्योंकि विक्रम की पकड सख्त थी।

दोनो एकदुसरे मे इतने खोये हुवे थे की आसपास का कुछ ध्यान दोनो को नही था। अब विक्रम ने सुनंदा के गाल से लेकर गले और कन्धे को चूमना शुरू किया और इसके बाद विक्रम की लिप्स एक्सप्रेस ने स्पीड ली और गले से नीचे की तरफ प्रस्थान किया|

सुनंदा के लिये अब एक और नया एहसास था। सांस तो तेज़ चल ही रही थी, लेकिन अब सुनंदा के मूह से आआहह की स्लो चीख निकल रही थी। सुनंदा पूरी मदहोशी और नशे मे थी। लेकिन स्लो चीख की वजह से विक्रम की तंद्रा टूट गयी और 5 सेकेंड्स के लिए वो रुक गया और आहिस्ता बोला,‘’धीरे, कोई सुन लेगा’’

और इतना सुनते ही सुनंदा होश मे आई, पलक ज़पकते ही वो दूर हटी और फूली हुई साँसे,और  चारो ओर उसने आँखे घुमाई, अब उसे समय और स्थल का एहसास हुवा की वो कहा थी और किस हालत मे थी। उसने खुद पर नज़र डाली, सारी का पल्लू सरक कर छाती तक आ चुका था।  उसने जट से पल्लू शोल्डर पे डाला और साड़ी का दूसरा छोड़ को घूमाँकर दूसरे शोल्डर पर डाला। अभी भी उसकी साँसे तेज़ थी। विक्रम उसे देखते ही जा रहा था। अब सुनंदा ने विक्रम पे नज़र डाली। विक्रम की साँसे भी तेज़ थी, दोनो को जैसे बुखार हुवा हो ऐसे बदन गर्मी खा चुके थे। सुनंदा आगे होने गयी तो विक्रम ने हाथ पकड़ कर उसे गिरा दिया और फिर से उसको अपने बाहो मे भरकर अपने होठ उसके होठो पर रख लिया और फिर आराम से सुनंदा की आँखो मे ज़ाक कर देखने लगा। सुनंदा आधी ज़मीन पर और आधी विक्रम की बाहो मे ज़ुल रही थी। उसने फिर उठने की कोशिश की लेकिन विक्रम के ज़ोर के आगे कुछ ना कर सकी। तुरंत उसने अपना चेहरा हटा लिया| विक्रम के होठ गले पर चुभने लगे थे|

उसने होठ भीड़कर गुस्से से विक्रम की ओर देखा, तो विक्रम ने शोल्डर पर किस कर दिया। सुनंदा ने बोलने के लिए मूह खोलने की कोशिश की तो फिर जवाब मे एक गहरा चुंबन। तब फिर से उसने मूह फेर लिया तो विक्रम ने हद कर दी और धीरे धीरे नीचे नजए घुमाई।
सुनंदा ने ज़ट से नज़र उलट दी और अपनी पीठ विक्रम के सामने रख दी ता की विक्रम उसकी छाती न देख सके। लेकिन साथ मे उसने अपना हाथ भी स्वाभाविक तरीके से अपनी छाती पर रख के उसे साडी से ढकने की कोशिश की। 
इस मे तो विक्रम को ओर आज़ादी मिल गयी क्योकि अब सुनंदा के हाथ बँधे हुवे थे और विक्रम ने पिछे से उसे पकड़ा और अपने होठ उसके खुले शोल्डर पर रखकर काट लिया। सुनंदा धीरे से चिल्लई, उसके शोल्डर पर विक्रम के दाँत के निशान पड़े और उसने स्वाभाविक अपना हाथ उठाया और विक्रम को दूर हटाने की कोशिश की। बदले मे विक्रम ने हाथ पकड़ कर उसे उल्टा ही बाँध लिया। अब सुनंदा उल्टी उसके गोद मे गिरी और विक्रम ने अपने हाथ से सुनंदा के हाथ को उल्टा कमर पे बांध कर करीब 2 मीं तक उसे नही छोड़ा और कन्धे और गले से लेकर पीठ पर चूमना जारी रखा था।

इस हरकत से सुनंदा थोड़ी ओर ज़ोर से चिल्लई तो विक्रम की गिरफ़्त कुछ हद तक कमजोर हुई और सुनंदा ने तेज़ी से पलटकर अपना हाथ छुड़ा लिया और विक्रम के सामने घूमकर ज़मीन पर आधी बैठ गयी, उसके पैर उल्टे थे, दोनो हाथ मे से एक हाथ छाती पर था जहा विक्रम ने पहले ही काट लिया था और दूसरे से फटाफट वो सारी से पूरा शारीर को ढकने की कोशिश करने लगी। होठ सखती मे बंध कर के करारी नज़ारो से गुस्से मे विक्रम को घूर रही थी। साँसे अभी भी तेज़ थी, उसने बारी बारी अपने दोनो कन्धे को देखकर विक्रम से बिना नज़रे मिलाये धीरे से फुसफुसाई,”बिलकुल जंगली ही हो”।

विक्रम ने सुना तो बोला,”क्या?”

“कुछ नही” कहकर सुनंदा ने अपने शरीर को ठीक करना जारी रखा और नज़रे उठाकर विक्रम को घूरना शुरू किया।

“मेडम, जंगली किसे कहते है पता है” विक्रम बोला।

सुनंदा चुप रही और नज़रे दूसरी ओर ले गयी। 

‘’बताऊ जंगली कैसे होते है?’’ विक्रम फिर चिड़ाना चाहा ।

सुनंदा ने घूमकर विक्रम को घूरा। विक्रम शायद अभी भी कुछ कर शकता था ये अंदाज़ा लगाकर बोली,”देर हो रही है’’|

“पहले मेरी बात का जवाब दो की क्या मै बताऊ की जंगली क्या कर सकता है?’’ विक्रम ने फिर सवाल दोहराया।

“मूज़े कुछ नही सुन ना है’’ कहकर सुनंदा ओर आगे बोली,”शरीफ लड़की को क्या कोई ऐसे…” कहकर सुनंदा ने बात आधी छोड़ दी, उसे पता था वो कुछ भी बोलेगी विक्रम सामने प्रत्युतर देगा ही। लेकिन अब वो पीछा छुड़ाने के मूड मे थी। वो जैसे खड़ी होनी चाही। विक्रम ने जट से हाथ को जटका दिया और फिर उसे अपनी गोद मे लेकर अपना मूह उसके लिप्स के करीब ले जाकर बोला,”पहले मेरी बात का जवाब मेडम,वरना और आगे…”

“प्लीज़, मूज़े छोडिये  ना कुछ ज़्यादा नही हो गया क्या ?”अब सुनंदा की आवाज़ में नमी होने लगी, उसे डर था की विक्रम कही और अटॅक ना करे।

“मेडम मैं कुछ समजा नही, क्या कुछ ज़्यादा, मैने किया क्या है की मैं जंगली, आख़िर मेरा कुसूर क्या है ?” विक्रम ने अब सुनंदा की फिरकी लेनी शुरू की।

“नही बाबा आप की नही मेरी भूल थी बस अब तो मूज़े छोड़ दो, प्लीज़ मैं आप के पाव पड़ती हू बस” सुनंदा अब बेबस औरत होकर गिड़गिडाई।

“मेडम आप से क्या ग़लती हुई मूज़े बतायेगी क्या ?” अब विक्रम ने दूसरा अटॅक किया।
इस सवाल से सुनंदा की बोलती बंध हो गयी, वो हल्की हल्की मुस्कुराहट के साथ नज़रे जुकाकर धीरे से बोले,”ये सबकुछ कुछ ज़्यादा हो गया आज, मूज़े शर्म आती है अब”

“लेकिन मेडम आप ने ऐसा क्या किया की शर्म आ रही है वो मैं जानना चाहता हू” विक्रम ने फिर शरारत की।

“ऐसी बाते बोलनी ज़रूरी है क्या ? कितने बेशर्म हो आप ? एक तो आज मेरा फ़ायदा उठाया और मेरे ही मूह से सबकुछ…।” सुनंदा कुछ आगे बोले उसके पहले विक्रम ने ओर कस से सुनंदा को बाहो मे भर लिया और बोला,”मेडम मैने आप का फ़ायदा उठाया, ऐसा हुवा और मूज़े ही मालूम नही बोलो। उल्टा चोर कोतवाल को डाटे जैसे हुवा ये तो”

“क्या मैने कहा था ये सब करने के लिए ?” सुनंदा प्यार भरे गुस्से से बोली।

“लेकिन हमने किया क्या यार जो आप इल्ज़ाम पे इल्ज़ाम लगाये जा रही है मेडम’’विक्रम ऐसे आसानी से कहा छोड़नेवाला था।
“देखो टाइम ख़तम हो चुका है’’ सुनंदा ने ट्रॅक चेंज किया।

“अरे भाड़ मे जाए टाइम, यहा मूज़े कोई जंगली, चोर, एक मजबूर महिला पर अत्याचार करनेवाला कहा जा रहा है जब तक मूज़े मेरे सवालो के जवाब नही मिलते मैं तो यहा से नही जाउंगा’’ विक्रम ने सुनंदा को ओर कस से पकड़ा। 

अब सुनंदा पूरी तरह उसके गिरफ़्त मे आ चुकी थी।
“प्लीज़, बंध  करो ना इतना तो मूज़े परेशन किया अभी ओर क्या चाहिए आप को ?” सुनंदा ने फिर गिड़गिडना जारी रखा।

“लेकिन हमने क्या किया वो बताओ पहले फिर ही मैं छोडूंगा मेडम” विक्रम अपनी ज़िद पर अडा रहा।

सुनंदा कुछ देर तक विक्रम को देखती रही। उसकी आँखो मे शरारत भरी पड़ी थी। सुनंदा ने नज़रे बचाने की लाख कोशिश की। कुछ पल के बाद भी विक्रम ने उसे ना तो छोड़ा और ना तो कुछ बोला सिर्फ़ सुनंदा के चेहरे को देखकर मुस्कुराता रहा तो सुनंदा से नही रहा गया ओर बोली,”अच्छा बाबा मूज़े माफ़ करो मेरी ग़लती हो गयी बस”

“लेकिन आप से ग़लती क्या हुई मेडम ?यही मेरा सवाल है, कौन सा जुर्म किया है आज आपने?’’विक्रम ने फिर वोही दोहराया।

सुनंदा की हालत ओर खराब हो गयी फिर बोली,”देखिए मेरे कपड़े मूज़े ठीक करने दीजिए, कोई देख लेगा। आप अभी भी संतुष्ट नही है क्या?”

“संतुष्ट? कोन से कार्य मे संतुष्ट मेडम ?” विक्रम बोला।

ये सुनकर शर्म से नज़रे फेरकर सुनंदा हस पड़ी,”जाईएना सब मेरे ही मूह से बुलाएँगे आप मैं जानती हू”

“अगर आप जानती है तो बताने का कष्ट कीजीयेना प्लीज़ तो हमारी बहस ख़त्म हो जायेगी ओर हम चले जायेंगे बस” विक्रम ने अब धीरे से फुसलाने की कोशिश की।

“पक्का वादा की आप मूज़े छोड़ देंगे” सुनंदा ने हारकर समर्पण किया।

“जेन्टल प्रॉमिस बस” विक्रम बोला।

कुछ पल सुनंदा नहीं बोल सकी तो विक्रम ने आँखों से उसे बोलने के लिए कहा|
शर्म से सुनंदा ने पूछा,“लेकिन क्या बोलू मैं?”

“यही की हमने क्या किया अभी ?” एक एक वर्ड्स अलग अलग स्टाइल मे विक्रम ने दोहराया।

कुछ देर तक सुनंदा नीची नज़रो से मुस्कुराती रही ओर फिर नज़रे उठाकर विक्रम के चेहरे को देखा ओर फिर अपने होठो से विक्रम के होठ पर रखकर तुरंत मुह फेर लिया और बोली,”ये किया हमने।”

“शाबाश लेकिन इसे क्या कहते है” विक्रम ने अभी शरारत नही छोड़ी थी।

“अब बस भी करो ना मूज़े शर्म आती है। मैं लड़की हू लड़का नही” सुनंदा गुस्से से बोली।

जवाब मे विक्रम ने फिर गले के नीचे  हल्के से काटा ओर बोला,”ये तो मूज़े पता है क्यूकी यहा कुछ करने से मूज़े कुछ नही होता लेकिन आप को कुछ ज़रूर होता है”

“वो काटने की चीज़ नही है जंगली” सुनंदा आह कर के चिल्लई।

“तो क्या करने की चीज़ है वो ?”विक्रम ने पुछा,”अगर आप बतायेगी तो अगली बार मैं काटूंगा नही जैसा आप बोलेगी वैसा मैं करूँगा”

अब सुनंदा भी जोश मे आई आकर बोल दिया,”वो आप के लिये नही है|

“मेडम अच्छा हुवा बता दिया लेकिन मैं तो अभी बच्चा ही हू अभी मेरी शादी कहा हुई है” विक्रम बोला और फिर अपना मूह दुसरे कन्धे पे लगाकर ज़ोर से काट लिया।

“आउच” सुनंदा ज़ोर से चिल्लाई की विक्रम के हाथ छुट गये। चारो ओर से नज़रे अब उसकी तरफ घूम रही थी। 
विक्रम बोला,”आहिस्ता मेडम आहिस्ता”

“नही मैं अब ज़ोर से चिल्लौंगी अगर तुम बाज ना आये तो” सुनंदा ने धमकी दी अभी भी वो अपना हाथ बाये कन्धे को दबाये बैठी थी। 

“अच्छा चिल्ला के दिखाओ तो” विक्रम पूरे मज़े लूट रहा था।

“आप क्या चाहते है प्लीज़” सुनंदा अब हार कर बोली।

“आज रात अंकल के सोने के बाद मूज़े मिलने आओगी” विक्रम ने हिम्मत के साथ खुल्लेआम बोल दिया।

“ना बाबा मै ऐसा नही कर सकती” सुनंदा ने गभराकर बोला।

“मेडम अभी तक जो भी यहाँ आप ने किया, जो भी कुछ कर रही थी इस काम से बड़ा आसान काम मैने आप को बोला है” विक्रम ने फिर शरारत की।

“वो तो हम अकेले है इसीलिए वरना बाबूजी के सामने कोई ऐसा करेगा क्या ?”सुनंदा ने जवाब दिया।

“हमे बाबुजी के सामने कुछ नही करना है जो कुछ करना है पिताजी के सो जाने के बाद करना है” विक्रम ने बाई आँख ज़पककर सुनंदा को चिडाया।

“अब रात को आप ओर क्या करनेवाले हो?, अभी आप का मन नहीं भरा क्या?, कम से कम मेरी हालत पे तो गौर कीजिए, मुज़े दर्द हो रहा है। जोश मे जो नही होना चाहिए था वो मै कर चुकी हू।” 
सुनंदा एक ही सांस मे बोल गयी और हाथ जोड़कर गिड़गिडाने लगी।

“मेडम, अगर रात का वादा नही करती है तो अभी और सज़ा मिलेगी’ कहकर फिर विक्रम ने उसे बहो मे भरकर अब सीधे होटो को काटना शुरू किया।

उउऊ... ऑफ.. ऑफ.. एयेए करके सुनंदा ने दोनो हाथो से सरेंडर का इशारा किया तब जाके विक्रम ने उसे छोड़ा और पुछा,”क्या रात को आओगी?”

“कोशिश करूगी” सुनंदा ने हाफते हुये बाजी हारकर जवाब दिया।

“हा ये अच्छा हुवा क्यूकी वादा करती तो वो तो अकसर तूट जाया करते है लेकिन कोशिश ज़रूर कामयाब होती है” विक्रम ने हसकर बोल दिया।

“लेकिन आप भी कोशिश करना की कोई ऐसा वैसा काम ना करे जिस से मूज़े कुछ तकलीफ़ हो” सुनंदा ने उंगली सीधी रखकर विक्रम से वादा चाहा।

“मेडम मूज़े तो वोही करना है जो आप सिख़ाओगी, दूसरा मैं तो बच्चा हू खिलौने मूज़े पसंद है तो जैसे आप सिख़ाओगी वैसे खिलोने से खेलूँगा” कहकर विक्रम ने सुनंदा को छूकर इशारा किया।

“बेशर्म” बोलकर अब सुनंदा ज़ट से खड़ी हो गयी और बोली “घूम जाइए प्लीज़।”

“क्यू कपड़े चेंज करने है ? मै कर दू ?” विक्रम ने नज़दीक आकर बोला।

“जी नहीं, आप को तो सिर्फ़ वोही दिखाई देता है, मूज़े कोई कपड़े चेंज नही करने है अब मैं कुछ सारी ठीक कर लू ता की बाहर पता न चले की हमने यहा क्या किया है“ सुनंदा गुस्से से बोली लेकिन उसकी आवाज में नमी थी।

अब विक्रम जानता था की दुसरीबार अभी मौका नहीं मिलनेवाला इसीलिए “मेरी ही किस्मत खराब है की मेरे कार्यक्रम की बालमृत्यु हो गयी“ विक्रम आहे भरकर वोही ज़मीन पर लेट गया।

“ऐसा बोलने मे भी शरम नही आती इसको तो और अच्छा हुवा बालमृत्यु हो गयी वरना मेरी मृत्यु हो जाती’’ कहकर विक्रम का हाथ पकड़कर उसे खिचकर खड़ा किया और सुनंदा आगे आगे चलने लगी और बोलती रही, “कैसे जंगली आदमी से पाला पड़ा है जितना भी दो कम ही पड़ता है“|

विक्रम धीरे धीरे कदम बढाता उसके पिछे पीछे  चलता रहा था उसका मन नही था फिर भी देर तो हो ही रही थी। कुछ देर तक मौन दोनो चलते रहे तो दोनो थोड़े उजाले मे आ पहुचे थे। 

विक्रम को खामोश देखकर सुनंदा ने विक्रम का हाथ पकड़कर पुछा,“नाराज़ हो ?“। विक्रम ने नकार मे सिर हिलाया। 
’’तो फिर बोलती बाँध क्यू हो गयी ?“ अब वो खुलकर बोल रही थी मानो 45 घंटे मे उसकी ज़बान मे जादू आ गया था। लगता था की लड़की को एकबार खोल दो वो इतनी खुल जाती है की बध करना भी मुश्किल हो जाता है। 

“कुछ बोलो तो सही क्या हुवा, इतने चुप चुप से क्यू हो” सुनंदा ने फिर पुछा।

विक्रम खड़ा रह गया और सुनंदा की बाहो मे हाथ डालकर आँखो मे आँखे डालकर बोला,”थेंक्स”|

सुनंदा ने नज़रे ज़ुका दी और थोड़ी ही देर मे पलक उठाकर विक्रम को प्यार भरी निगाहो से देखने लगी।
“मैने कुछ ज़्यादा तो परेशन नही किया ना ?”विक्रम ने शोल्डर सहलाकर पुछा।

“देखना है आप को तो खुद ही देख लो” कहकर सुनंदा ने धीरे से शोल्डर से विक्रम का हाथ हटाया और शोल्डर पर से सारी का पल्लू हटाया और ब्लाउस की धार को तोड़ा हटाकर स्ट्रीप को हटाकर अपना शोल्डर दिखाया और सारी का पल्लू हटाकर ब्लाउस को थोडा सा हटाया और खुद नज़रे जुकाकर खड़ी रही।
 
विक्रम ने उसकी पलको मे मासूमियत के साथ एक प्रेमिका का अपने प्रेमी के प्रति पूरी श्रद्धा के साथ समर्पण दिखाई दिया फिर उसकी नज़र सब से पहले शोल्डर पर पड़ी वहा उसने दो तीन बार काटा था। मदहोशी, आवेग मे उसे पता नही था लेकिन उसके दातो के निशान शोल्डर पे बहुत गहरे थे और रताश दिखाई दे रही थी। उसके बाद विक्रम की नज़र छाती पर गयी, पहला हुक टूट जाने की वजह से छाती की गहराई स्पष्ट दिखाई दे रही थी। बीच मे लाल लाल दाग लग चुके थे और ब्लाउस भीना था और ब्लाउस के उपर दातो के निशान पड चुके थे। 

विक्रम ने अपने हाथो से सुनंदा के कपड़े ठीक किये और बोला,”आई आम सॉरी मूज़े तो पता ही नही था की मै तुजे काट रहा हू”
“कोई बात नही” धीरे से कहकर फिर सुनंदा साथ मे चलने लगी।
“मैं ये दर्द रात को मिटा दूँगा’’ विक्रम ने हसकर बोला।
“ये दर्द कभी किसी लड़की का मिटा है क्या ?“सुनंदा ने नज़रे जुकाकर बोल दिया।

“हा ये भी ठीक है लेकिन एक ट्रिक है मेरे पास जिस से तुम्हारा दर्द समाप्त हो जायेगा’’

“वो कैसे? “सुनंदा ने पुछा।

“वो क्या है की किसी को नीचा दिखाना हो तो उसकी लाइन को छुते नही है लेकिन उसके आगे हमारी लाइन बड़ी कर देते है वैसे ही ये छोटे दर्द को मिटाने के लिये थोड़ा बड़ा दर्द उठा लो तो ये तो मामूली दर्द है मिट जायेगा ‘’ विक्रम ने नज़रे उल्टी कर के एक ही सांस मे बोल दिया। उसे पता था की अब सुनंदा ज़रूर घूर रही होगा। वो इंतेज़ार कर रहा था की रिप्लाइ क्या होगा।

अचानक सुनंदा ने पैर उठा कर ज़ोर से चप्पल विक्रम के पैर के घुटनो के बीच मे लगा दिया।अचानक दोनों घुटनों पर प्रहार से विक्रम क संतुलन गया और वो चिल्ला उठा|
 
“ओ माआआआ‘’ विक्रम एक पैर पे लंगडाने लगा और थोड़ी देर जंप करता रहा।

सुनंदा देख कर मुस्कुराने लगी और बोली,”जंगली को शरीर नौचने के सिवा कुछ सुजता ही नही है, आधी तो ज़ख़्मी कर दिया है अब रात को ना जाने क्या करोगे‘’

“अम्मा इसमे मैं क्या करू तेरा दर्द तो मिटाना मेरा परम कर्तव्य है ना, लेकिन ये लात मारने की क्या ज़रूरत थी, एक तो हालत पे मदद करो ओर दूसरी ओर जुते खाओ, लड़की है या मुसीबत ‘’ विक्रम अभी भी दर्द से आहे भर रहा था।

लेकिन तब तक दोनो गार्डेन के बाहर आ चुके थे। 

अब पूरे उजाले मे विक्रम ने सुनंदा का चेहरा देखा। देखकर कोई भी बता सकता था की सुनंदा के साथ क्या हुवा है। सुनंदा के होठ पे काटने की वजह से काले ब्लड की तरह कलर छा गया था। गले मे रताश आ चुकी थी। आँखो मे मदहोशी भर चुकी थी। अब उसे ध्यान मे आया की नशे मे कितनी ज़ोर से दोनो ने क्या कुछ कर दिया था।

विक्रम सुनंदा के बिल्कुल करीब जाकर कान मे बोला,”मेडम रुमाल से चेहरा साफ कर लो वरना सब कुछ दिखाई दे रहा है” सुनंदा ने चेहरा पलटकर अपने छोटे रुमाल से चेहरा साफ करने लगी। और दोनों कुछ ही देर में होटल वापस आ गये|
सुनंदा ने खरीदी हुयी सारी अपने पेरेंट्स को दिखाई और फिर सब ने खाना खाया और सो ने के लिये चल दिया। विक्रम बेकरारी से सुनंदा के इशारे की रह देख रहा था। रात के 11 बज चुके थे।

9 बजे से लेकर 11 बजे तक बहुत इंतेज़ार करने के बाद भी जब सुनंदा नही जागी तो बेचैनी मे विक्रम उठकर रूम से बाहर आया और जहा सुनंदा सोयी थी वहा आके विंडो से देखा तो अंकल, आंटी के साथ सुनंदा आराम से सोई हुई थी, शायद पूरा दिन घूमने से थकी हुई होगी, इसीलिए उसे समय का पता नही चला था और गहरी नींद मे जा चुकी थी। विक्रम ने करीब आधे घंटे मे यहा वहा चक्कर काटे तीन बार सिगरेट पी चुका था, लेकिन सुनंदा ने तो करवट भी नही बदली। आख़िर थक कर , हारकर घायल शेर की तरह गुस्से मे विक्रम आकर बेड पर गिरा और सोने की कोशिश कर रहा था। लेकिन जब शेर शिकार करने से चुकता है और जो हालत होती है वैसी ही हालत विक्रम की हो रही थी। बार बार उसे कोणार्क की मूर्तिया और सुनंदा के साथ बिताया हुवा आधा घंटा परेशान कर रहा था। उसका बदन तेज़ी से जिस्म की गरमी बढ़ती ही जा रही थी। सुबह तक वो करवटे बदलता रहा, उसे अब गुस्से के साथ एक प्रेमिका के विरह का एहसास हो रहा था। वो सुनंदा पर बहुत ही खफा हो चुका था और कुछ परोढ़ में वो नींद की आगोश मे समा गया।

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10 Comments

Sandhya Prakash

02-Jan-2022 11:22 AM

Vikram aisa bhi karega , ...

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PHOENIX

02-Jan-2022 11:49 AM

🙂जी हां बहुत कुछ करेगा।

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Rohan Nanda

16-Dec-2021 12:57 PM

खूबसूरत....रचना आपकी

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PHOENIX

16-Dec-2021 01:42 PM

धन्यवाद जी। आप का स्वागत है।🙏

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🤫

15-Dec-2021 03:44 PM

Kahani ka mod bada hi saspens se bhara h

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PHOENIX

15-Dec-2021 04:06 PM

जी हां। ये कहानी जिस दिन भी छूट गई, सस्पेन्स अधूरा रह जायेगा।

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