लेखनी प्रतियोगिता -15-Dec-2021 बुढ़ापे का सच
तीनों बच्चों की शादी हो गई है ।सब अच्छे से सेट हो गए।अब हम घूमने का प्रोग्राम बनाएंगे।बहुत शिकायत रहती थी न कहीं नहीं जाते हो।लो अब जिम्मेदारी से भी फ्री हैं।समय ही समय हैं हमारे पास।
कुछ दिनों बाद ..
लो मैने चार धाम की टिकट करा ली हैं सब पैकिंग कर लो।पंद्रह दिनों बाद निकलना हैं।सब धीरे धीरे कर लेना आराम से। सरला जी को कमर दर्द की परेशानी रहती थी।
सम्पूर्ण सम्पन्न फला फूला परिवार था।एक बेटी और उसकी भी अच्छे घर मे शादी हो गई।लड़को को भी उनके पिता सोहन लाल जी ने मेहनत कर अच्छे कारोबार मे लगा दिया।वह अब निश्चित थे।लेकिन अपनी सेहत की कभी परवाह नहीं की।इसलिए डाईबिटिज ने जल्दी पकड़ लिया।कहते थे... जब सब हो जाएगा ,तब अपने लिए समय निकालूँगा।
आखिर उनके चार धाम जाने का दिन नजदीक आ गया।सभी बहुत उत्साहित थे।सुबह ही उन्हें निकलना था।सब तैयारी हो चुकी थी।
रात के तीन बज रहे थे।सरला जी बहुत तेज चिल्लाई अरे..रवि रवि रवि जल्दी आओ देखो तुम्हारे पापा को क्या हुआ है।
रवि के साथ उसके छोटे भाई अवि की भी आँख खुल गई।दोनों भागते हुए सोहन लाल जी के कमरे की तरफ बढ़े।
फटाफट उन्हें पानी पिलाया।और डाक्टर को फोन किया।डाक्टर वहीं पास मे रहता था।जल्दी से आकर उसने चेकअप किया।बोला इन्हें पैरालाइसिस हुआ है।इन्हें तुरंत होस्पिटल में एडमिट कराओ।दोनों बेटे ने सोहनलाल जी को तुरंत एडमिट कराया।
कहाँ तो दोनों घूमने जा रहे थे और देखो क्या हो गया।तभी तो कहते है समय से बलवान कोई नहीं हैं। जो सोचते है वह कहाँ होता हैं।हमारा भविष्य समय के गर्भ म़े छिपा है।कब क्या होना है कोई नहीं जानता। सब किया कराया धरा रह जाता है। समय अपनी चाल कब चल दे, किसी को नहीं मालूम। सब समय के चक्र में फस कर रह जाते हैं।
बहुत ईलाज कराने पर भी उनकी तबीयत बहुत अधिक ठीक नहीं हुई बस अपना कार्य कर लेते थे क्योंकि उनमें बहुत हिम्मत थी ।लेकिन अधिकतर वह बैठे रहते थे या अपने बिस्तर पर लेटने का कार्य करते थे ।धीरे-धीरे उनकी सेवा करते करते , और उम्र का तकाजा होते होते सरला जी की भी तबीयत खराब रहने लगी ।वैसे भी उनकी कमर में पहले ही दर्द था ।वह भी अधिकतर बैठी रहने की वजह से चलना फिरना मुश्किल हो गया ।जहां शरीर ने साथ छोड़ा । वही बहु बेटों ने भी नकारना शुरू कर दिया।
सोहनलाल जी ने कभी अपने बच्चों को कोई कमी नहीं की और परिवार में बडे होने के नाते सबकी जिम्मेदारियां भी अच्छे से निभाई।पहले तो बेटे भी उनके साथ उनका दाया बाया हाथ बनकर रहते थे।
बीतते समय के साथ दोनों भाई अलग अलग हो गये। बड़े भाई रवि की तबीयत सही नहीं रहती थी और सरला जी की अपनी बड़ी बहू से भी कम बनती थी।
सोहनलाल और सरला जी अपनी मर्जी से अपने छोटे बेटे अवि के साथ रहने का फैसला किया।
वह सब लोग एक नए घर में शिफ्ट हो गए। शुरु शुरु में तो उनकी छोटी बहू में उनका बहुत ध्यान रखा। लेकिन अचानक दोनों सास बहू में बहुत अधिक अनबन हो गई थी ।बहू ने उनका ध्यान रखना बंद कर दिया ।और कहती आप जानबूझकर कुछ भी काम नहीं करती हो ।
धीरे-धीरे आंखों में भी मोतियाबिंद हो गया लेकिन किसी वजह से उनकी आंखों का भी ओपरेशन भी नहीं हो पाया और मैं केवल कुर्सी के सहारे से और बैठे बैठे ही सारे कार्य करती थी। अब अपनी मर्जी से न कुछ खा सकती थी ना पी सकती थी। बस समय से ही तो मिल जाए वही खा लेते थे। दवाई , डॉक्टर को दिखाना सब टाइम बेटाईम हो गया जब मर्जी हो तो दिखा लाए जब मर्जी हो तो नहीं। दोनों एक दूसरे का सहारा बन गया और एक दूसरे को देख कर ही अपनी जिंदगी काटने लगे।
बुढापा नाम ही बीमारी है।ऊपर से बच्चे जब इग्नोर करने लगे तो बुढ़ापा कटना और मुश्किल हो जाता हैं। जिंदगी बोझ लगने लगती है और जब कोई नहीं सुनता तो मन से खूब अनशन निकलता है जिन बच्चे को कभी अपने सीने से लगा कर बड़ा किया था। उनके लिए ही गलत बातें निकलती है।
बुढ़ापे में अपने हाथ में कुछ नहीं रह जाता है। तो हिम्मत रखो ।और अपने आप में खर्च करने की हिम्मत रखो ।तभी अपने आप को संभाल सकते हैं वरना बिना किसी दूसरे के देखभाल यह संभव नहीं है ।चाहे कितना भी धन क्यों ने कमाया हो आपने। दूसरों पर निर्भर होकर ही जिंदगी नहीं काटी जा सकती है ।
"यदि कोई आपके अपने ध्यान रखते हैं तो आपकी जिंदगी मजे से कट जाएगी और यदि इग्नोर करते हैं तो मैं जिंदगी बोझ बन जाएगी ।यह बात बहुत देर से समझ में आती है ।जब समय निकल जाता है," क्योंकि सोहनलाल जी ने कभी अपनी सेहत का ध्यान नहीं किया तो पैसे कमाने के पीछे रहे ।जिंदगी भर मेहनत की। जब सेहत सही हो कहीं घूमने का प्लान बना ले जब इच्छा हो जब चले जाएं समय का इंतजार ना करें।
लेकिन समाज में सोहनलाल जी के परिवार का बहुत बड़ा रूतबा था इस कारण उनके दोनों बेटे मिलकर उनका जन्मदिन और उनकी मैरिज एनिवर्सरी मनाते थे। जिससे बाहर वालों को लगता था कि कितने खुशनसीब हैं इनके बेटे उनके लिए इतना करते हैं।
लेकिन पर्दे के पीछे सब छिप जाता है ।किसी को कुछ नहीं मालूम पड़ता है कि किसी के साथ कैसा व्यवहार हो रहा है जो सामने दिखता है सब उसी को सच मानते हैं ।इसकी खबर किसी को नहीं होती।
Dipanshi singh
16-Dec-2021 05:07 PM
Very nice 👌
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Shrishti pandey
16-Dec-2021 03:06 PM
Nice one
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Rohan Nanda
16-Dec-2021 10:31 AM
Good... Kuch adhuraa lga maidm ji
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NEELAM GUPTA
16-Dec-2021 12:04 PM
क्या,अधुरा है यही अंत है। ऐसे ही जिंदगी गुजर रही दोनो की। दूसरे की सहारा से
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