अफसाने हो गए
देखे बिना अब तो उन्हें कितने ज़माने हो गए।
दूर जब से दिलों के दो घराने हो गये।
खामोशियों की सुर्ख चादर ओढ़े हुई ये रात है।
जाने कब से तकिए में फिर मुँह छिपाने हो गये।
कोई दवा इस मर्ज की मिलती नहीं बाजार में।
मिल गई नज़रों से नज़रें आशिक दीवाने हो गये।
आये थे कूचे में किसी दिन कुछ खबर लेने के लिए।
खत्म पर तेरे मेरे अब वो पुराने अफ़साने हो गये।
रोशनी की मद्धम लकीरें भी चुभती हैं इन आंखों में।
अंधेरों में रोते हुए अश्कों को खामोशीरिझाने हो गये।
पूछा किसी को बताकर नाम और पता मेरा ।
कोई बता दे गुमनाम हुए अब तो ज़माने हो गये।
स्नेहलता पाण्डेय \\'स्नेह\\'
प्रतियोगिता के
Swati chourasia
16-Dec-2021 11:14 PM
Wahh bohot hi khubsurat rachna 👌👌
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Ravi Goyal
16-Dec-2021 10:50 PM
वाह बेहतरीन रचना 👌👌
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