रीछ की खालवाला : परी कहानी
एक समय की बात है। एक गाँव का नौजवान राजा की फौज में भरती हुआ। जिस समय उसके देश के राजा की लड़ाई दूसरे देश के राजा के साथ हुई, वह अन्य सिपाहियों के साथ बड़ी बहादुरी से लड़ा और हमेशा सबसे आगे ही रहा। जब तक लड़ाई चलती रही, उसकी जिंदगी ठीक तरह चलती रही, पर जब दूसरे देश के राजा ने शांति का ऐलान किया, तो अचानक ही लड़ाई बंद हो गई। अब राजा को इतनी सारी फौज की जरूरत नहीं थी। अत: उसने बहुत से सिपाहियों को फौज से निकालने की आज्ञा दे दी। राजा के सेनापति को मजबूरन बहुत से नौजवानों को सेना से निकालना पड़ा। निकाले गए सिपाहियों में वह नौजवान भी था।
नौकरी से निकलने के बाद उसे वापस अपने भाइयों के पास जाना पड़ा, क्योंकि उसके माँ-बाप की मृत्यु हो चुकी थी। जब उसने कुछ समय तक उनके पास रहने की इच्छा व्यक्ति की तो उसके दोनों भाई उसे लंबे समय तक अपने पास रखने के लिए तैयार नहीं हुए। वे बोले, 'हमारा तो अपना ही खर्चा बड़ी मुश्किल से चलता है। हम तुम्हें कैसे पाल सकते हैं?'
अब गाँव छोड़कर जाने के अलावा और कोई रास्ता उस नौजवान के सामने नहीं था। आखिर दु:खी मन से उसे अपना गाँव छोड़ना पड़ा। साथ ले जाने के लिए उसके पास अपने हथियार थे, जो उसे फौज में भरती होने पर मिले थे और फिर फौज से निकालने पर उसे ही दे दिए गए थे। अपनी बंदूक कंधे पर रख वह गाँव से चल पड़ा। चलते-चलते ऐसी जगह पहुँचा, जहाँ पर घने पेड़ों के अलावा और कुछ नहीं था। वह बहुत थक गया था। अत: वहीं पर एक घने पेड़ के नीचे आराम करने के लिए बैठ गया और अपने भाग्य के बारे में सोचने लगा कि न तो मेरे पास पैसा है और न ही मुझे कोई हुनर ही आता है। अब मैं कौन सा काम खोजूं। अब तो मुझे भूखा ही मरना पड़ेगा। इसी समय हवा का एक तेज झोंका आया। जब उसने चारों ओर नजर दौड़ाई तो अपने सामने एक अजनबी को खड़ा पाया। जिसने हरे रंग का बड़ा ही सुंदर गाउन पहन रखा था और शक्ल से बड़ा अमीर दिखाई दे रहा था, पर उसका एक पैर घोड़े के पैर की तरह था। वह आदमी बोला, 'मुझे मालूम है कि तुम इस समय क्यों परेशान हो। तुम्हें मैं ढेर सारी दौलत दूँगा, पर उससे पहले मैं तुम्हारी परीक्षा लूँगा। कहीं तुम मेरी सारी दौलत बरबाद तो नहीं कर दोगे? तुम किसीसे डरोगे तो नहीं?'
नौजवान सिपाही बड़े गर्व से बोला, 'एक सिपाही और डर-ये दोनों बातें साथ-साथ नहीं चलतीं। तुम मेरी परीक्षा लेकर देख सकते हो।'
अजनबी बोला, 'ठीक है, अब तुम अपने पीछे मुड़कर देखो।'
नौजवान ने अपने पीछे मुड़कर देखा, तो पाया कि एक बड़ा रीछ उससे कुछ दूरी पर खड़ा उसे घूर रहा था। जैसे ही वह नौजवान पलटा, वैसे ही वह रीछ उसपर झपटा। नौजवान सिपाही ने झट से अपनी बंदूक तानी और उसपर गोली दाग दी। देखते-ही-देखते रीछ उसी समय वहीं ढेर हो गया। यह सब देखकर वह आदमी बोला, 'अब मुझे यकीन हो गया कि तुम सचमुच एक बहादुर नौजवान हो, पर मेरी भी एक शर्त है, जो तुम्हें पूरी करनी होगी।'
'अगर मेरी आत्मा इसकी अनुमति देगी, तो मैं तुम्हारी शर्त जरूर मानूँगा।' नौजवान बोला।
हरे गाउनवाला अजनबी बोला, 'यह तुम खुद ही देख लेना। मेरी शर्त यह है कि आनेवाले सात वर्षों में तुम न नहाओगे, न ही दाढ़ी और सिर के बाल कटवाओगे, न ही हाथ तथा पैरों के नाखून काटोगे और न ही ईश्वर की पूजा करोगे। मैं तुम्हें स्कर्ट और बड़ा सा कोट दूंगा, जिसे तुम इन सात सालों तक पहनकर रखोगे। अगर तुम इन सात सालों के बीच में ही मर जाते हो तो तुम मेरे हो, पर अगर तुम जीवित बच जाते हो तो मैं तुम्हें अपनी शर्त से आजाद कर दूँगा और इतना सारा धन दूँगा जिससे तुम सारी जिंदगी आराम से गुजार सकोगे। तुम्हारे कोट की जेबें हमेशा धन से भरी रहेंगी।'
नौजवान सिपाही, जिसे अपना भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा था, ने कुछ देर सोच-विचार करने के बाद उस अजनबी की सारी शर्ते मान लीं। तभी उस अजनबी ने मरे हुए रीछ की खाल उतारी और उस नौजवान के हाथों में देकर बोला, 'आज से यही खाल तुम्हारा ओवरकोट है और यही तुम्हारा विस्तर। आज से तुम किसी और बिस्तर पर नहीं सो सकते।' फिर उसने वही खाल उस नौजवान के कंधों पर डाल दी और उसे एक नया नाम भी दे दिया। वह नाम था 'रीछ की खालवाला'। इतना कहने के बाद वह अजनबी अचानक कहीं गायब हो गया। नौजवान सिपाही ने जब उसे कंधे पर डाला तो वह एक ओवरकोट बन गया और जब उसने इस ओवरकोट की जेब में हाथ डाला तो देखा कि उसकी जेब में पैसा-ही-पैसा था। उस अजनबी की बात सचमुच ही सच निकली। अब वह नौजवान सिपाही भी उस घने जंगल से बाहर निकला। उसने मन-ही-मन सोचा कि अपनी मजबूरी के कारण उसे उस शैतान की सारी शर्ते माननी पड़ी हैं। वह ईश्वर की प्रार्थना भी नहीं कर सकता, पर वह इस धन से गरीब लोगों का भला तो कर सकता है। इतने सारे धन का उसे क्या करना।
एक साल तो किसी तरह बीत गया, पर दूसरा साल शुरू होते ही उसका सारा मुँह दाढ़ी और सिर के बालों से ढक गया। हाथों और पैरों के नाखून भी बहुत बढ़ गए। महीनों न नहाने की वजह से पूरा शरीर मिट्टी से भर गया था। जो कोई भी उस नौजवान को देखता, डरकर भाग जाता, पर जब वह अपनी जेब से निकालकर लोगों को पैसे बाँटता तो कुछ उससे पैसे लेने उसके पास आ जाते थे। वह उन सबसे अनुरोध करता कि वह ईश्वर से उसके लिए प्रार्थना करें कि वह इन सात सालों के बीच में मरे नहीं। पैसे लेनेवाले लोग उसके लिए प्रार्थना करते।
वह जहाँ कहीं भी रहने की जगह ढूँढ़ता तो घर का मालिक डर के मारे उसे अपने घर में जगह देने से भी कतराते थे। अगर वह किसी सराय या होटल में जाता तो मालिक उसे दूर से ही भगा देते, पर जब वह उन्हें ढेर सारा पैसा दिखाता तब कहीं जाकर उसे रहने के लिए कोई अकेला सा कमरा वे दे देते। इसी तरह धीरे-धीरे तीन साल बीत गए और चौथा साल शुरू हो गया। अब तो उसकी शक्ल बहुत ही भयानक हो गई। रीछ के बालों के कोट की तरह ही उसकी सारी शक्ल हो गई। लोगों को यह पहचानना भी मुश्किल हो गया कि वह कोई आदमी है या दो पैरों वाला कोई वनमानुष। चौथे साल में एक बार घूमते-घूमते एक सराय में कुछ दिन रहने के लिए वह पहुँचा, पर सराय के मालिक को केवल उसकी आवाज ही सुनाई दी, उसका चेहरा उसे दिखाई नहीं दिया। उसके पास खड़े रहना भी उस सराय के मालिक के लिए मुश्किल हो गया, क्योंकि उस नौजवान के शरीर से बहुत बदबू आ रही थी। उस सराय के मालिक ने अपनी सराय में तो क्या अपने अस्तबल में भी उसे ठहरने की जगह देने से इनकार कर दिया, क्योंकि उसे डर था कि कहीं इस आदमी की शक्ल देखकर उसके घोड़े अस्तबल छोड़कर न भाग जाएँ। जब नौजवान सिपाही ने उस सराय के मालिक के सामने ढेर सारा पैसा रखा तो उसने सराय से दूर नौकरों के लिए बनाए गए कमरे में उसे रहने की अनुमति दे दी, पर उससे वचन लिया कि वह जब तक वहाँ रहेगा तब तक अपने कमरे से कभी बाहर नहीं निकलेगा, नहीं तो उसके डर से कोई भी उस सराय में रहने नहीं आएगा।
नौजवान सिपाही ने उसकी सारी शर्ते मान ली, पर जब शाम के समय नौजवान सिपाही अकेला अपने कमरे में बैठा सोच रहा था कि उसके सात साल पूरे क्यों नहीं हो रहे हैं, वह इतनी भयंकर जिंदगी और कैसे जी सकता है, तभी उसे अपने बराबर वाले कमरे से किसी आदमी के जोर-जोर से रोने की आवाज आई। वह बड़े ही दयालु प्रकृति का इनसान था। अतः अपने कमरे का दरवाजा खोलकर बाहर निकला। उसने देखा कि साथ वाले कमरे में एक बूढ़ा आदमी अपना सिर पीट-पीटकर रो रहा है। रीछ की खालवाला वह नौजवान उसके पास पहुँचा, तो उसकी चीखें बाहर तक सुनाई देने लगीं। वह बूढ़ा डर के मारे अपने कमरे से भागना चाहता था, तब नौजवान सिपाही ने उसका हाथ पकड़कर उसे भागने से रोका और बड़े ही प्यार से उसके रोने का कारण पूछा। उस रीछ की तरह दिखाई देनेवाले आदमी से इनसानों की आवाज में बात करने पर बूढ़े आदमी का डर कुछ कम हुआ। उसने बताया कि वह जुए में सबकुछ हार गया है। उसके पास अब एक पैसा भी नहीं है। वह सराय का बिल भी नहीं चुका सकता। अब उसे इस सराय का मालिक जेल भेज देगा।
वह नौजवान बोला, 'तुम पैसों की चिंता मत करो। मेरे पास बहुत पैसा है।' इतना कहकर उसने अपनी जेबों से ढेर सारा पैसा निकालकर उस बूढ़े के हाथों में रख दिया और बोला, 'अब तुम्हें रोने और दुःखी होने की जरूरत नहीं है। तुम इससे सराय का पैसा चुका सकते हो।' इतना कहकर उस नौजवान ने उस बूढ़े को और ढेर सारा धन अपने घर ले जाने के लिए दिया। बूढ़ा उस रीछ की खालवाले का बहुत ही शुक्रगुजार हुआ और बोला, 'तुम्हारे इस उपकार के बदले में मैं अपनी किसी भी एक बेटी से तुम्हारा विवाह कर दूंगा। तुम मेरे साथ मेरे घर चलकर अपनी इच्छा की लड़की चुन सकते हो।' पहले तो वह नौजवान उस बूढ़े की बात पर राजी नहीं हुआ, क्योंकि उसे मालूम था कि कोई भी लड़की उससे शादी करने के लिए तैयार नहीं होगी, पर बूढ़े के आग्रह पर उसके घर जाने के लिए तैयार हो गया। जब वह उसके घर पहुंचा, तो बूढ़े ने अपना फैसला अपनी बेटियों को सुनाया और उनमें से एक से उस रीछ की खालवाले से शादी करने को कहा। जब दोनों बड़ी लड़कियों ने उस रीछ की खालवाले को देखा तो डर से चीखती हुई बाहर भाग गई और अपने पिता की बात को मानने से साफ इनकार कर दिया। फिर उस बूढ़े ने अपनी छोटी बेटी को बुलाया। वह उस रीछ की खालवाले से शादी करने के लिए तैयार हो गई, क्योंकि इसी आदमी ने उसके पिता को जेल जाने से बचाया था और उसे ढेर सारा धन भी दिया था। उसे लगा कि यह आदमी जरूर कोई भला इनसान होगा, नहीं तो कौन किसकी सहायता करता है।
नौजवान ने अपने हाथ की अंगूठी उतारकर उस लड़की को दे दी और उसकी अंगूठी खुद पहन ली और फिर वह उस लड़की से बोला, 'मैं तुमसे अभी शादी नहीं कर सकता, क्योंकि मुझे अभी इसी हालत में रहकर तीन साल और गुजारने हैं। अगर मैं इन तीन सालों में मर गया तो तुम पूरी तरह से आजाद हो। अगर मैं जीवित रहा तो आकर तुमसे शादी करूँगा, पर मेरे लिए ईश्वर से प्रार्थना करो कि मैं जिंदा रहूँ।'
इतना कहकर वह उस बूढ़े आदमी के घर से चल पड़ा। उस भोली-भाली लड़की ने उसी दिन से उसे अपना पति मान लिया और निर्णय किया कि वह तब तक काले कपड़े ही पहनेगी जब तक वह उसका होनेवाला पति वापस आकर उससे शादी नहीं करता। उसकी दोनों बड़ी बहनें उसका मजाक बनाती और उससे कहती, 'तू भी कितनी भोली है। वह कोई आदमी है! वह तो दो पैरों वाला रीछ है। वह तुझे कभी भी मार डालेगा। तू पिता की बातों में मत आ। एक वनमानुष से भी कोई शादी कर सकता है।' पर उस लड़की को ईश्वर पर पूरा भरोसा था। उसे विश्वास था कि ईश्वर जो भी करेगा, अच्छा ही करेगा। अतः वह चुपचाप उनकी बातें सुनती रहती। वह सदैव ईश्वर से अपने होनेवाले पति की लंबी आयु के लिए प्रार्थना करती रहती।
इधर वह रीछ की खालवाला नौजवान तीन सालों तक इधर-से-उधर भटकता रहा और गरीबों को दोनों हाथों से धन बाँटता रहा। धीरे-धीरे वह भयानक समय भी खत्म होने को आया। सातवें साल के आखिरी दिन वह नौजवान फिर से उसी घने पेड़ों वाले जंगल में आ पहुँचा और वहीं पर एक पेड़ के नीचे बैठकर हरे रंग के गाउनवाले अजनबी की प्रतीक्षा करने लगा। उसे बैठे अभी थोड़ी ही देर हुई थी कि एक आँधी आई और वह हरे गाउनवाला अजनबी उसके सामने आकर खड़ा हो गया, बोला, 'तू जीत गया। तू मेरी तरफ से आजाद है। अब तू जहाँ चाहे जा सकता है।'
रीछ की खालवाला नौजवान बोला, 'अभी तुम कहाँ जाते हो? मुझे पहले मेरी पुरानी शक्ल वापस करो।'
अजनबी ने खुद रीछ की खालवाला उसका कोट उतारा, उसे नहलाया और उसकी दाढ़ी तथा सिर के बाल काटे, हाथ-पैर के नाखूनों को काटा, फिर उसे नए कपड़े पहनने को दिए और बोला, 'तेरी जेबें हमेशा ही पैसों से भरी रहेंगी, क्योंकि इन सात सालों में तूने दिल खोलकर गरीबों की सहायता की है।' इतना कहकर वह शैतान जैसे आया था, वैसे ही अचानक गायब हो गया।
अब वह नौजवान सुंदर कपड़ों में बिलकुल राजकुमार लग रहा था। अब उसे उस लड़की की याद आई, जिससे तीन साल पहले उसने शादी करने का वादा किया था। उसने लड़की की अंगूठी अपनी जेब में रख ली और चार घोड़ों की बग्गी में बैठकर उस बूढ़े के घर की ओर चल पड़ा। जब वह उस बूढ़े के घर पहुंचा, तो उसे बूढ़े की सबसे बड़ी बेटी मिली, जो उसे देखती ही रह गई और मन-ही-मन उससे विवाह करने की सोचने लगी, पर वह उसे वहीं छोड़कर सबसे छोटी बेटी को ढूँढ़ने लगा। तभी उसे उस बूढ़े की मझली लड़की मिली। वह भी उससे शादी करने की बात सोचने लगी, पर उससे बिना कुछ बोले वह नौजवान आगे बढ़ गया और अंत में एक छोटे से कमरे में पहुँचा, जहाँ उसकी होनेवाली पत्नी काले कपड़े पहनकर ईश्वर की पूजा कर रही थी। वह चुपचाप उसके पास पहुँचा और उसकी अँगूठी उसके सामने रख दी। लड़की अंगूठी देखकर पहचान गई कि यह वही आदमी है जिससे शादी करने के लिए वह राजी हो गई थी। लड़की ने भी अपनी अंगुली से अंगूठी निकालकर उसके हाथ पर रख दी। वह लड़की उस नौजवान का इतना सुंदर रूप और अमीरी देखकर हैरान रह गई।
जब लड़की ने नौजवान से इसके बारे में पूछा तो उसने पूरी कहानी सुना दी। लड़की ने दया के लिए हृदय से ईश्वर को धन्यवाद दिया। इधर वह नौजवान जब अपनी होनेवाली पत्नी का हाथ पकड़कर कमरे से बाहर आ रहा था तो दोनों बड़ी बहनें तैयार होकर उससे मिलने आ रही थीं; पर जब उन्हें पता चला कि वह रीछ की खालवाला व्यक्ति है तो उन्हें अपने ऊपर बहुत गुस्सा आया। गुस्से और नफरत से भरी बड़ी बहन ने घर के पासवाले कुएँ में कूदकर और बीच वाली बहन ने पेड़ पर लटककर आत्महत्या कर ली। शादी के अगले दिन जब उनके दरवाजे पर दस्तक हुई तो नौजवान ने दरवाजा खोलने पर देखा कि वही शैतान उसके सामने खड़ा है। उसे देखकर हरे गाउनवाला शैतान बोला, 'देख, तेरी एक जान के बदले मैंने दो-दो जानें ले लीं, ये दोनों लड़कियाँ ईर्ष्या और नफरत की आग में खुद ही जल गई और तू अपने साहस, दया तथा धैर्य की वजह से इस आग से बच गया।' इतना कहकर वह शैतान फिर गायब हो गया।
(ग्रिम्स फेयरी टेल्स में से)