Akassh_ydv

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ज़िन्दगी... अब भी सफर में है!!!

तू लाख मुझ से दूर सही
पर मेरी नज़र में है
बेशक मेरी ज़िंदगी की कश्ती
आज भँवर में है

बहारें कब की बीत गईं
चरागें भी हैं बुझी हुई
अंधेरा ही है हर तरफ
अब पत्ते भी कहाँ इस शज़र में हैं

तमन्नाओं की फेहरिस्त में 
अब ख्वाब भी तो कोई शामिल नही 
बदले हैं हम बस इतना ही की
अव बदलाव भी हमारे असर में है

मुफ़लिसी ने हमसे यूँ नाता है जोड़ा
रिश्तों की झोली भी खाली पड़ी है
भाई भी मेरा ये भुला है कबसे-
"एक भाई भी मेरा इस घर मे है"

तन्हाई के इस आलम में 
बस मैं ही खुद  हूँ मेरा 
तेरी यादों कर हर कतरा
मेरे खून-ए-जिगर में है

रंजिश की बातें कुछ वैसी नही है
मिलता हूँ सबसे अब भी मुस्कुरा कर
बस कबूल नही उसको मेरा मुस्कुराना
एक रक़ीब भी ऐसा इस शहर में है

बड़े अरमानों से पाला था मुझको
के घर का बोझा भी मैं उठाऊं
मगर तु ने मुझको बनाया यूँ काफ़िर
मेरा भी बोझा अब उनके सर में है

कुम्हलाया हूँ मैं तो खिलने से भी पहले
जवानी में ही बिखरा पड़ा हूँ
सब की नज़र में तूने झुकाया ही इतना
की दर्दों का एक गुच्छा मेरे कमर में है

तबियत थी तेरी 
था दिल तेरा भी आया
फिर नज़रें चुराना तुझे क्यों कर आया?
क्यूं आया फ़र्क़ इतना
तेरी नज़र में है?


दीमकें कब की चाट गई
ना जाने किसकी बद्दुआ थी 
मैं अपने 'घर' पहुंच गया
बस ये जिस्म ही बाकी अब सफर में है

...Dev

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2 Comments

Aliya khan

19-Dec-2021 10:00 AM

Wah bahut khoob likha h

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Akassh_ydv

19-Dec-2021 02:49 PM

Thank you aliya ji

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