Lalita Vimee

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मुन्नी

कामवाली बाई कृष्णा से सभी  घरों की महिलाओं को यही शिकायत थी कि वो दो तीन दिन तो खुद आती है फिर अपनी लड़की को भेज देती है।जो अभी बहुत बच्ची है और सफाई से काम भी नहीं करती।

मेरे यहाँ  कृष्णा ने अभी  काम करना शुरू  ही किया था।अभी उसे दस ही दिन हुए थे ,आते हुए। मैंने उसे हर रविवार को थोड़ा जल्दी आने को बोल दिया था ताकि सारे घर की अच्छे से सफाई हो सके। ।रोजाना तो वो मेरे शाम को डयूटी से आने के बाद ही आती थी, बस जैसे भी जल्दी जल्दी हुआ कर दिया।

  आज रविवार ही था ,ग्यारह बज ग ए थे पर अभी तक पहुंची नहीं थी कृष्णा।फोन भी नहीं किया कि नहीं आऊँ गी।
मै भुनभनाते हुए मशीन में कपड़े लगा रही थी।तभी दरवाजे के खुलने की आवाज़ के साथ कृष्णा अंदर आई थी,उस के साथ दस ग्यारह साल की एक छोटी बच्ची भी थी

"अब आई हो कृष्णा? मैने तो कहा था रविवार को जल्दी आया कर"।

"आज बहुत तबियत खराब है बीबी जी,आज तो इस छोरी से ही करालो।"

मुझे अन्य औरतों की बात याद आ ग ई थी कि कुछ दिन तो ये खुद आती है,फिर बच्ची को भेजना शुरू कर देती है।

"क्यों क्या हुआ तुझे"?

"बीबी सारी रात उस शराबी ने हाय तौबा मचा के रखी थी जब से आप के घर काम करके ग ई तब से ही बुखार लग रहा था।गोली  ले लेती तो ठीक  हो जाती, पर कहाँ गोली यहाँ तो उस शराबी की वजह से टुकड़े भी नसीब न हुए।कोई गोली पड़ी हो तो दे  दो बीबीजी।"

"चल छोरी उठा झाड़ू, पहले गली से लगा और सुथरी लगाईये"।

"पर कृष्णा ये छोटी बच्ची है ये कैसे करेगी सब"?

"आप बता कर जो भी करवाओगी वो  वैसा ही करेगी जी"।

मैने चाय बनाकर कुछ बिस्किट और चाय उसकी बच्ची को दी थी।बुखार की गोली और चाय कृष्णा को दी थी। वो लड़की अच्छे से काम कर रही थी।उसनें सारा काम मेरे निर्देशानुसार ही किया था, बल्कि कुछ अन्य जगहों से बिना कहे  भी झाड़पोंछ कर दी थी।वो काम खत्म करके जारही थी तो मैने उसे रोक कर दाल चावल दिए थे,वो एक कोने में बैठ कर खाने लगी,उसके खाने की स्पीड से मुझे वो भूखी लगी,मैने उसे रोटी और सब्जी भी दी।वो अपने बर्तन धोकर और नमस्ते आन्टी बोल कर चली ग ई थी
   अगले दिन भी जब मैं डयूटी से आई तो वो मुझे दरवाजे के पास बैठी मिली।मैने पूछा तो उसने कहा काम करने आई हूँ, माँ ने भेजा है।।

अब तो रोज का यही क्रम हो गया था मुन्नी  मुझे कभी दरवाजे पर मिलती तो कभी मेरे आने के दस मिनिट बाद आती।वो काम करके खाना खाकर भाग जाती,पर मेरे खुद के दिल में एक पछतावा छोड़ जाती ।सिर्फ खाना  देकर  ही हम किसी का भविष्य तय नहीं कर सकते।एक दिन मैने उससे पूछा था, "मुन्नी पढाई करोगी बेटी।"

"माँ फीस नहीं देती इसलिए स्कूल वालों ने मुझे निकाल दिया था स्कूल से।पर मुझे पढ़ना बहुत अच्छा लगता है।"

"कोई बात नहीं तुम तुम्हारी माँ को भेजना आज शाम को जाने के बाद"।

कृष्णा को मैने ये कहकर राज़ी किया कि इससे काम तब करवाऊंगी जब तुम इसको पढने जाने दोगी'।

"इसने कौनसा  मास्टरनी बनना है बीबीजी करना तो वही झाड़पौंछा, बर्तन,और फिर आपके यहाँ से जो पैसे आते हैं वो इसकी फीस पर लग जायेंगे,और तो कोई इससे काम भी नहीं करवाता ,गर झाड़पोंछ करवा भी लेते हैं तो भिखारी की तरह़ एक कप चाय देकर भगा देते हैं।"

"तुम  चिंता मत करना,इसकी फीस और यूनिफॉर्म के पैसे मैं दूंगी, और जो इसके काम  के होंगे वो भी तुझे मिलेंगे।'

मै अगले दिन मुन्नी को लेकर उस समीप वर्ती स्कूल में ग ई थी,उन्होंने जो टेस्ट लिया उसके हिसाब से मुन्नी तीसरी कक्षा के काबिल थी।मैने पूरे सत्र की फीस जमा करवा दी तथा उन्हें शुक्रिया भी अदा किया कि सत्र के मध्य में ही उन्होंने दाखिला कर लिया है।नये जूते बैग चप्पल कपड़े किताबें  सब कुछ लेकर वो बहुत खुश थी।

वो मेरे यहाँ काम भी करती अपनी पढाई भी करती।जो कुछ उसे समझ नहीं आता वो मुझसे समझती भी।समय जैसे पंख लगाकर उड़ रहा था उसी स्कूल में पढ़ते पढ़ते मुन्नी दसवीं कक्षा पास कर   गई थी अस्सी प्रतिशत के साथ।  अब तो मुन्नी टयुशंस भी पढाने लगी थी।पर मेरा काम मुन्नी जरूर करके जाती मना करने पर भी नहीं मानती थी।
मुन्नी   ने बारहवीं. कक्षा नब्बे प्रतिशत के साथ उर्तीण की और उसे छात्रवृति भी मिली।उसके अध्यापकों के सहयोग और उसकी काबलियत से उसका सरकारी संस्थान में जेबीटी में दाखिला हो गया।

मुन्नी मिठाई लेकर घर आई थी,"ये सब आपकी वजह से संभव हुआ आन्टी"।

"नहीं बेटी ये आपकी मेहनत और लगन से संभव हुआ और मैने जो किया वो एक बेटी के लिए मेरा फर्ज था।

     घर किराये  पर देकर मैं समय से पहले ही रिटायरमेंट लेकर बेटे के पास आ .ग ई थी। इन बातों को सात साल बीत गये थे।पता नहीं मुन्नी कैसी होगी?

आज छब्बीस जनवरी है, मैं राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित अध्यापकों की सूची और विवरण पढ़ रही थी एक नाम जिसे पढ़कर मैं चौंक गई थी ,बल्कि मेरी खुशी का भी ठिकाना न रहा था।
सरकारी स्कूल में जेबीटी अध्यापिका कुमारी मुन्नी देवी  जो झुग्गी झोपड़ी के बच्चों को न केवल शाम को अपने घर पर बुलाकर पढ़ाती हैं बल्कि उन्हें भीख न माँग कर काम करके सम्मानित जीवन जीने की और अग्रसर करतीं हैं।वो अपने जीवन के उदाहरण से बच्चों को झाडू पोछा बनाम चाक डस्टर  का मायना बताती हैं।

खुशी के मारे आँखे नम हो ग ई थी।मैं फोन नम्बर ढूढने लगी ताकि मुन्नी को बधाई दे सकूं।

लेखिका, ललिता विम्मी।
भिवानी, हरियाणा

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2 Comments

Sonali negi

03-Jun-2021 03:27 PM

Nice

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Lalita Vimee

03-Jun-2021 05:35 PM

बहुत शुक्रिया जी❤️❤️🙏🙏

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