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सर्वे भवन्तु सुखिनः


सर्वे भवन्तु सुखिनः

आजकल टेलीविजन देखने का मन नहीं करता जो खबर देखने को मिलती है उससे दिल तड़प उठता है । दिमाग शून्य हो जाता है,कुछ सोचने समझने की स्थिति में नहीं रहता।
लेकिन इन्हीं खबरों के बीच कुछ ऐसी खबरें आती हैं कि सुनकर दिल दहल जाता है। टैक्सी से आदमी जहाँ 400 या 4000 ₹ में जा सकता है। कोरोना मरीज को ले जाने वाले एम्बुलेंस वाले 100000,200000 मांग रहे हैं। कोरोना की दवाइयां जो कि शत प्रतिशत कारगर नहीं हैं कई गुने दामों में मिल रही हैं। रेमडेसीवीर 20000 की मिल रही है।खाने पीने की चीज़ें मनमाने दामों पर मिल रही है। अचानक नींबू 200₹किलो बिकने लगा नारियल पानी 80-90 ₹में मिल रहा है । इसी तरह बहुत चीजें महंगी हो गई हैं। 
आज की खबर ये है कि नकली रेमडेसिवीर बनने लगी।हालात ये कि है कि आम आदमी स्तब्ध है।
खाना खाएं या दवाई खाये कुछ समझ में नहीं आता।कुछ लोग इस नाज़ुक मौके का फायदा उठा रहे हैं। अपनी तिजोरी भर रहे हैं।इनलोगों का कोई धर्म नहीं होता बस एक धर्म होता है स्वार्थ लिप्सा,इनलोगों के लिए बात धर्म पर आकर नहीं खत्म होती है,स्वार्थ और इनके कुत्सित इरादों पर आकर खत्म होती है। धर्म के नाम पर मतभेद पैदा करके ये अपना उल्लू सीधा करते हैं।
सोशल मीडिया पर गलत सूचनाएं भी लोगों को भ्रमित कर रही हैं।
धन संग्रह का आज की तारीख में कोई औचित्य नहीं दिखता ,कल जब हम ही नहीं रहेगें तो इस धन का क्या फायदा जिसके लिए इतना तिकड़म लगा रहे हैं। ये बीमारी किसी के प्रति भेद भाव नहीं कर रही। हाँ अमीरों को संसाधन आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं और सामान्य जन इन तिकड़मों के शिकार होते हैं।
प्राइवेट हॉस्पिटल में पैसे पहले जमा कराते थे और जब तक पैसे का हिसाब न पूरा हो जाये वेंटीलेटर पर रखते थे। 
आज सभी धर्म के लोग पीड़ित हैँ।आज जाति, सम्प्रदाय ,मज़हब देखने का समय नहीं है,समय है निःस्वार्थ सेवा भाव की, मानव का मानव के प्रेम की, प्राणिमात्र पर स्नेहभाव का दिखावा नहीं अपितु अन्तर्मन से ऐसा करने की। इस निराशा के भंवर में फंसे यदि एक सदस्य को भी निकाल पाते हैं तो समझेंगे कि प्रयास सफल हुआ।ज़रूरत है एक सार्थक आह्वान की।
सर्वे भवन्तु सुखिनः की भावना रखने मात्र से क्या सभी जन सुखी हो जाएंगे, निरामया की भावना से सभी निरोगी हो जाएंगे।
हम भावना रख सकते हैं कि सभी का कल्याण हो कोई रोगी,दुखी न रहे।लेकिन यदि हम ये बातें व्यवहार में ले आते हैं तभी इस कथन की सार्थकता है।
अतः हमें अपनी देखभाल स्वयं ही करनी है।
बिना किसी बहुत ज़रूरी काम के घर से बाहर मत निकलें।
यदि निकलना भी पड़े तो मास्क, ग्लब्स,और सेनिटाइजर साथ लेकर निकले।
लोगों से दो ग़ज़ की दूरी बनाकर रखें।
घर आकर जूते बाहर निकालें और नहाकर कपड़े डेटॉल से धो डालें।
यदि किसी को बिना लक्षण के कोरोना पॉज़िटिव रिपोर्ट आये, तो घर पर ही क़वारन्टीन रहें। अपने फैमिली डॉक्टर या ऑनलाइन किसी अच्छे डॉक्टर से संपर्क करके उसके निर्देश के अनुसार दवाइयां लें और एहतिहात बरतें। बुखार को नापते रहें। सेनिटाइजर, ग्लब्स,मास्क इत्यादि चीज़ों का हमेशा प्रयोग करें।
घर के अन्य सदस्य भी रोगी से शारीरिक दूरी बरतें लेकिन मानसिक रूप से साथ रहें।आप उनके साथ बैठकर कोई गेम नहीं खेल सकते तो ऑनलाइन, गूगल मीट,व्हाट्सएप्प वीडियो चैटिंग ,ज़ूम इत्यादि ऐप्प के माध्यम से आप उनके संपर्क में रहें। 
अन्ताक्षरी खेलें ,कविता,फिल्मी गाने,चुटुकले इत्यादि से उसका मनोरंजन करें।
प्रकृति माता भी हमसे कुपित हैं। हमने उन्हें इतना सताया जो है।
हम अपने घर के आसपास नए पौधे लगाकर उसकी देखरेख करेंगे तो हमें बहुत अच्छा लगेगा और कुछ समय के लिए हमारा ध्यान दूसरी तरफ बंटेगा। बाद में ये पौधे पेड़ बनकर प्रकृति की सुंदरता बढ़ाएंगे और वातावरण में आक्सीजन की मात्रा बढ़ेगी।
मरीज़ को थोड़ा बहुत प्राणायाम करना चाहिए, जिससे शरीर को ऑक्सीजन मिले। 
चौदह दिन बाद पुनः कोरोना टेस्ट कराएँ।
मैं ये कोई नई बात नहीं कर रही हूँ ये बातें आज एक आम इन्सान को ज्ञात हैं लेकिन सब कुछ की जानकारी रहते हुए हम ग़लतियाँ कर बैठते हैं और उसका खामियाज़ा बहुत बुरा भुगतना पड़ता है।
यदि मरीज़ की तबियत ज्यादा बिगड़ती है तभी अस्पताल ले जाएं क्योंकि वहाँ पर इतनी भीड़ है कि मरीज़ के साथ जाने वाला निरोग इन्सान भी संक्रमण का शिकार हो सकता है।
अस्पताल में कोरोना के मरीज के पास परिजनों तक को जाने नहीं देते। 
अंदर उनके साथ क्या हो रहा है ये किसी को नहीं पता।
सब हरि इच्छा पर निर्भर करता है।
हम सभी लोग एक दूसरे के साथ रहे, अन्याय और अराजकता के विरुद्ध आवाज उठाएं ।आज के कठिन समय की मांग यही है।
अंत में सर्वे भवन्तु सुखिनः की कामना के साथ💐💐

स्नेहलता पाण्डेय"स्नेह"✍️✍️
नई दिल्ली

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2 Comments

Sonali negi

03-Jun-2021 03:45 PM

Osm

Reply

Zulfikar ali

25-May-2021 07:42 AM

बेहतरीन बातें की हैं आपने

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